स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

December 29, 2009

जाते हुए लम्हे....एक प्रार्थना

बीतते साल में क्या खोया, क्या पाया ..इसका क्या हिसाब करें?साल शुरू होते ही जो प्रण किये जाते हैं कुछ poore होते पाते हैं कुछ नहीं....शुभकामनायें हैं आप सभी के लिए कि आप की हर मनोकामना आने वाले वर्ष में पूरी हो।
लेकिन अभी इन जाते हुए इन लम्हों से कुछ कहते चलें....



-1--

सिर्फ़ कलेंडर बदल कर कहते हैं -
साल नया आया है!
क्या बदले हैं हालात यहाँ?
क्या बदली है तस्वीरें?
सब कुछ तटस्थ है ,
ठहरा हुआ..
ना जाने .. समय के किस पल में!
-2-

यह वर्ष धीरे धीरे!
लिए जा रहा है
साथ,
तारीखें
जो हैं गवाह...
कुछ क़िस्सों की!
------------------

नवंबर २००८ से मैं हिंदी ब्लॉग्गिंग में सक्रिय हुई, सब का बहुत स्नेह मिला.आप सभी का बहुत बहुत आभार.
बहुत से प्रभावशाली व्यक्तित्वों से परिचय हुआ.बहुत कुछ सीखा ।साथ ही बहुत उतार चढ़ाव देखे यहाँ ब्लॉग जगत में.. गुटबाजी...राजनीति ..अनामी बेनामी ..ना जाने क्या क्या...जो नकारात्मक था..मगर कुछ भी कहिए..
इन सब पर हावी रहा ब्लॉग्गिंग का सकारात्मक पक्ष जो दूर जाते साथियों को फिर से खींच लाया जो नहीं लौटे वो भी आएँगे.
आना भी चाहीए..

जीवन है ही कितना?

कल का किसी को पता नहीं है.. कल का क्या अगले पल का पता नहीं?

और इतने से छोटे समय में खुशियाँ बिखरने या ,समेटने की बजाय दिल में किसी बात को लगा लेना खुद को सज़ा देने जैसा है. जो समय जितना समय हम खुश रह सकें ,औरों को खुश रख सकें ..तो वही अहसास खुद में भी आत्मविश्वास भर देता है. ऐसा मेरा सोचना है...युवा वर्ग जो यहाँ है,बड़े सदस्यों को उन्हें प्रोत्साहन देना चाहीए और युवाओं को देना होगा बड़ों को अपेक्षित सम्मान.
आशा है ,नया वर्ष हम सभी के लिए और हिन्दी ब्लॉग्गिंग के लिए भी शुभ और मंगलकारी होगा।


आईये ,इन जाते हुए लम्हों को विदा करें और करें नए साल का स्वागत ,इस प्रार्थना के साथ -:
जो फ़िल्म - दो ऑंखें बारह हाथ (१९५७) से है,
मूल गायिका - लता मंगेशकर,संगीतकार - वसंत देसाई,गीतकार -भरत व्यास हैं. [यहाँ प्रस्तुत गीत कराओके track पर मेरे स्वर में है।

'ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हों हमारे करम,
नेकी पर चले और बदी से टले....'
Mp3डाउनलोड/ प्ले करीए


------------------अल्पना------------


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December 8, 2009

'अपनी शर्तो पर जीना'


'अमल 'नाम की हमारी एक सहकर्मी थी जो जॉर्डन देश की रहने वाली थी ,जब भी वह स्टाफ रूम में आती तब माहौल ख़ुशगवार हो जाता था.क्योंकि वह बहुत ही हँसमुख स्वभाव की थी.हमेशा पूरे मेक अप में रहती थी.
शक्ल सूरत में बहुत ही साधारण ,कद कोई ५ft २'' रहा होगा.
वह अगले महीने अपने प्रेमी से शादी कर रही थी.प्रेम संबंध भी प्रगाढ़ थे.. अपने प्रेम संबंधो की खूब बातें सुनाया करती थी. सभी रश्क करते थे की इतना प्यार करने वाला पति मिल रहा है उसे!

महीने भर बाद शादी करके आई तब बेहद खुश थी ,मगर चेहरे पर कोई मेकअप नहीं देख कर सब ने सवाल कर डाले..
उसने बड़े गर्व से कहा की उसके पति उस से इतना अधिक प्यार करते हैं वे नहीं चाहते की उन के अलावा कोई और उस को देखे.हम मज़ाक में कहते थे की अमल ध्यान रखना उन्हें नौकरी मिल जाएगी तो तुम्हें तो ताले में बंद कर के जाया करेंगे!वह स्टाफ रूम मे आते ही सब से पहले अपने लोकर से मेक अप का समान निकालती और इतमीनान से सजती ,घर जाने से पहले चेहरे से सारी सजावट उतारती.

कुछ दिन सब ठीक ठाक चलता रहा .एक दिन परेशान सी थी मगर पूछने पर हंसकर बताने लगी की उसके पति ने उसके मोबाइल से जितने भी पुरुष सहकर्मियों /या कहिए जितने भी पुरुष नाम थे सब मिटा दिए उसे बताया भी नहीं . दिन बीते , ६ महीने हो गये थे मगर उसके पति को अभी तक कोई नौकरी भी नहीं मिल रही थी.
उसने अपनी सास को विज़िट वीसा पर बुलाया,लेकिन उनके आते ही अमल पर अभी तक माँ ना बन पाने के कारण पूछे जाने लगे .रोज़ के सवालों से तंग आ कर अमल ने अपने सारे टेस्ट करवाए,परीक्षणो से पता चला की वह पूरी तरह से नॉर्मल थी.पति जो उस से बेइंतहा प्यार करने के दावे किया करता था अब अपना टेस्ट करवाने को तैयार नहीं था.आख़िर कार डॉक्टर के समझाने पर उसने अपने टेस्ट करवाए .कमी उसी में निकली जिसे ना तो अमल की सास स्वीकार कर पाई ना ही उसका पति. हमेशा खुश रहने वाली अमल अब बुझी बुझी रहती थी.उसकी सास ने उसे बांझ कह कर ताने देना शुरू कर दिया था.

एक महीने की विज़िट में ही इतना कुछ हो गया..अलेएन चूकि छोटा शहर है इसलिए अपनी सास की तस्लली के लिए अबूधाबी के बड़े प्राइवेट हस्पताल से भी दोनो ने टेस्ट करवाए मगर परिणाम वही..!लेकिन मानना तो किसी ने था नहीं इसलिए उसकी सास दूसरी शादी करवाने की धमकी दे कर चली गयीं.पति जो अब तक बेहद प्यार दिखा रहा था..अपनी माता जी के आगे जैसे सारा प्यार काफूर हो गया था.

सच है प्यार भी समय और परिस्थिति का मोहताज है ..सच्चा प्यार सिर्फ़ किताबों में ही होता है वास्तविकता का उस से कोई लेना देना नहीं है...यह हम सब के सामने उस के केस से प्रमाणित हो गया था.

अब अमल ने एक बड़ा निर्णय लिया..चूकि उसे बार बार ऐसी ग़लती के लिए दोषी बताया जा रहा था जो उस ने की ही नहीं थी.पति भी खुद की कमी स्वीकारने को तैयार नहीं ..उस ने तलाक़ लेने का फ़ैसला किया ..और शादी के एक साल पूरे होने से पहले ही उसने तलाक़ ले लिया ..अब...अमल ने अपने रिश्तेदारों में ही ऐसे व्यक्ति को ढूँढना शुरू किया.[जॉर्डन में मुस्लिम रिवाज़ के अनुसार वे अपने रिश्तेदारों में शादी कर सकते हैं.]
ऐसा पुरुष' जिस से उस की पत्नि को अभी हॉल ही में नवजात शिशु हुआ हो..और उस ने ऐसे व्यक्ति को खोज भी निकाला.
फोन पर बातें होने लगीं. फ़ोन पर ही उसने शादी का प्रस्ताव रखा जिसे अब्दुल्ला ने स्वीकार भी लिया.अब फ़ोन पर ही उसने सगाई की और शादी भी.काग़ज़ सब तैयार हो गये.जब अमल के वीसा पर यहाँ आया तब उसने बताया की इस दूसरे निकाह की खबर उसने अपनी पत्नी को नहीं दी है जिसके कारण वह सिर्फ़ २ महीने रह सकेगा. अमल का उद्देश्य खुद को पूर्ण स्त्री साबित करना था.इसलिए उसे इस बात से दुख तो ज़रूर हुआ लेकिन अफ़सोस नहीं.ईश्वर ने उसकी सुनी और उसी साल उसके जुड़वाँ बेटे हुए.पति तो दो महीने रह कर चला गया था...अब वह यहाँ अकेली थी तो उसने अपनी माँ को अपने पास बुलाया hai.आज उसके दोनो बच्चे swasth हैं और दो साल के हो गये हैं.अमल खुश है उसे कोई अफ़सोस नहीं है.[naam badal diye gaye hain]

खुद को पूर्ण स्त्री साबित करने के लिए उस ने अगर कुछ खोया है तो बहुत कुछ पाया भी है.ऐसा कदम हर कोई नहीं उठा सकता.अमल में आत्मविश्वास था उसके आत्मविश्वास का एक कारण उसकी नौकरी भी थी जिस का सहारा उसे था ही ,इसीलिए भी वह अपने जीवन के निर्णय खुद ले पाई.
जीवन में उसने इतना बड़ा निर्णय लिया शायद इसीलिए क्योंकि उसके पति ने उसे तब सहारा नहीं दिया जब उसे उसकी सब से अधिक ज़रूरत थी.परिवार में बिना किसी दोष के उसे दोषी बनाया जा रहा था.यह उस के मन पर लगे आघात का परिणाम था या फिर एक प्रतिशोध ...या फिर समाज में खुद को पूर्ण स्त्री साबित करने के लिए यह कदम उठाना उस के लिए आवश्यक था.




आज का गीत
'रात और दिन दिया जले ,मेरे मन में फिर भी अंधियारा है,
जाने कहाँ है वो साथी ,तू जो मिले जीवन उजीयारा है'

खुद नहीं जानू ढूँढे किस को नज़र, कौन दिशा है मेरे मन की डगर,
कितना अजब है दिल का सफ़र ,नदिया में आए जाए जैसे लहर!'

ये बोल हैं उस गीत के जो मैं आज यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ.
Play or download Mp3





[vartani trutiyan aur roman mein likhne ka karan transliteration ka unreachable hona hai.Mother-child Chitr Google se sabhaar]

November 21, 2009

'एक सुहाना सफर'

१२ तारीख को बच्चों की परीक्षाएँ ख़तम हो गयी थीं..इसलिए १३ -१४ को कहीं बाहर जाने का कार्यक्रम बनाया जाना था. कहाँ जाएँ ..यह सोचते ही ध्यान आया डिब्बा का !
'डिब्बा 'ओमान देश में एक प्रायद्वीप मुसंदम क्षेत्र का एक शहर है।
यह क्षेत्र यू .ए.ई के बॉर्डर पर ही है,और यहाँ जाने के लिए UAE residents ko वीसा की ज़रूरत नहीं है। अक्सर यहाँ से वहाँ लोग छुट्टियाँ बिताने जाया करते हैं। लगभग चार घंटों में हम वहाँ पहुँचे ।
शहर के शोर शराबे से दूर सागर का खूबसूरत किनारा और यह निर्जन स्थान एक अलग ही सुकून सा देता है। बहुत -से लोग आगे भी जाते हैं मुसंदम में लेकिन हम वहाँ नहीं जा पाए ,इसलिए सिर्फ़ डिब्बा तक गये।
आप भी देखिए  इस यात्रा के कुछ चित्र ... डिब्बा के सागर किनारे की खूबसूरती ..जो इस रेगिस्तान में प्रकृति से जुड़ने एक अनूठा अनुभव देती है।

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आज का गीत -

'वादियां मेरा दामन'एक प्रयास है-फिल्म 'अभिलाषा 'से.

अगर प्लेयर काम नहीं कर रहा तो Click here to Download or Play Mp3

November 7, 2009

समय धीरे चलो...

यू.ऐ.ई का प्राकृतिक दृष्टि से सबसे खूबसूरत शहर अलेन जिसका इतिहास पांच हज़ार साल पुराना बताया जाता है.पुरातत्व के महत्वकी वजह से ही नहीं बल्कि यहाँ की जलवायु ,हरियाली ,पानी के प्राकृतिक झरनों और गरम पानी के चिकित्सकीय गुणों वाले प्राकृतिक सोते के कारण भी इस स्थान को खासा महत्व और प्रसिद्धि मिली हुई है.

इस शहर में रहते हुए हमें १३ साल हो चुके हैं. मगर आज भी ऐसा लगता है जैसे कल परसों ही यहाँ आये थे.यहाँ रहने वाला हर प्रवासी यह जानता है कि यह उसका स्थाई निवास नहीं है.हमेशा एक अनिश्चितता में ही रहते हैं.आज हम यह कह नहीं सकते कि कल हम यहाँ रहेंगे या नहीं।

फिर भी इसी अनिश्चितता में सभी समय गुज़ार रहे हैं और केरल प्रदेश और हैदराबाद आदि के कई ऐसे परिवार तो ऐसे भी हैं जिनका सारा कुनबा ही यहाँ है.

यहाँ के एक नियम के अनुसार चाहे किसी प्रवासी ने यहीं जनम लिया और पला बढा हो ..फ़िर भी उसे यहाँ की नागरिकता नहीं मिलती. बेटे की उम्र १८ होते ही उसको पिता के वीसा पर रहने का अधिकार खत्म हो जाता है.हाँ ,अगर वह स्कूल में पढ़ रहा है तब विशेष परिस्थितियों में उसका वीसा बढाया जाता है अन्यथा उसे अपने मूल देश ही वापस जाना होता है. अन्य रास्ते ये हैं कि किसी कॉलेज से वीसा लेना होगा या किसी व्यवसाय में कर्मचारी का जॉब वीसा लेना पड़ेगा. बेटी के लिए स्थितियां फरक हैं..अविवाहिता पुत्री अपने पिता या माता के वीसा पर कितने भी समय के लिए उनके साथ रह सकती है.मगर , उसके विवाह होने पर उस का यह वीसा रद्द हो जाता है.फिर उसे अपने पति या खुद के वीसा पर रहने की अनुमति लेनी होती है.
खैर, बहुत सी और भी बातें हैं जिनके कारण यहाँ रहते हुए अपने भविष्य को लेकर मन में अनिश्चितता हमेशा बनी रहती है..मगर फिर भी देखीये साल पर साल गुज़र रहा ही है!
अब आप कहेंगे कि वापस क्यूँ नहीं आ जाते?तो यह उतना आसान भी नहीं है..क्योंकि जब भी छुट्टियों में भारत जाते हैं तब यही विकल्प तलाशते हैं कि वहाँ जा कर क्या और कैसे करें..लेकिन कभी कोई बात जमती ही नहीं. खैर,अब तोयह पराया देश भी अपना सा ही लगता है..

मैं तो उन्हें देख कर अब आश्चर्य नहीं करती जो यहाँ ३०-३५ साल से रह रहे हैं.क्योंकि अब खुद को भी मालूम हो गया है कि वक़्त यहाँ कैसे तेज़ी से गुज़र जाता है .

हम जब यहाँ आये थे..तब किसी को भी जानते नहीं थे, अब बहुतों को हम जानते हैं और बहुत से लोग हमें! तब के 'अलेन' में और आज १३ साल बाद के अलेन में बहुत फरक आ गया है.तब यहाँ रात ९ बजे ही दुकाने बंद होने लगती थीं..मगर आज कई सुपरमार्केट २४ घंटे खुलती हैं.तब यहाँ की आबादी कोई २ लाख भी नहीं थी.अब यहाँ की आबादी लगभग ४ लाख है.वो बातें फिर कभी...
चलते चलते ...यहाँ आने के बाद कोई चार साल बाद मैं भारतीय समाज केंद्र से जुडी और फिर जब भी अवसर मिला केंद्र के लिए काम किया. दो बार महिला फोरम में विशेष पद भी संभाले . इसी २४ अक्टूबर को भारतीय समाज केंद्र की तरफ से मेरी सेवाओं के लिए मुझे विशेष सम्मान दिया गया.
इसी अवसर की तस्वीरें-

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बच्चों के इम्तिहान चल रहे हैं,हर तरफ परीक्षाओं का माहोल है.इसके चलते ब्लॉग्गिंग में आना जाना बहुत कम हो गया है.जल्दी ही दोबारा मिलती हूँ।

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October 21, 2009

'रात ग़मे तन्हाई की --चंदा ओ चंदा '

पेश हैं कुछ शेर ..साथ लिखे हैं तो ग़ज़ल जैसी लग रही है....अब जैसे हैं वैसे के वैसे उनके कुदरती रूप में 'आप के सामने हैं.

'रात ग़मे तन्हाई की'
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ग़मे तन्हाई की रात बहुत गहरी है,
बन के ओस मेरे आँसू बिखर जाते हैं.

दिल की चौखट पर कभी तो कोई आए,
ये सितारे भी मुख्तलिफ डगर जाते हैं.

लम्हों में कट जाएगी ज़िन्दगी मेरी,
तेरे आने से ये पल यूँ सँवर जाते हैं.

बादलों  से भी बिछड़ गया है कोई,
वरना क्यूँ ये बेमौसम बरस जाते हैं.

तेरी यादों से रिश्ते कायम हैं अभी,
इसलिए हर राह से बेखौफ गुज़र जाते हैं।

--लिखित द्वारा -अल्पना वर्मा २०/१०/२००९


...आज का गीत...
'चंदा ओ चंदा किसने चुराई तेरी मेरी निंदिया'
फ़िल्म-'लाखों में एक '-[लता जी का version]मेरे स्वर में सुनिए..
संगीत-राहुलदेव बर्मन ,गीत-आनंद बक्षी.


यहाँ क्लिक कर के भी प्ले कर सकते हैं

चित्र गूगल से साभार.'कमेन्ट फॉर्म पर सीधा जाने के लिए यहाँ क्लिक करें.'

October 15, 2009

'दीवाली आई है'

एक बरस बिता कर दीवाली आई है,इसी शुभ अवसर पर आप सभी को दीवाली की ढेर सारी शुभकामनायें.
ईश्वर करे हर ओर रोशनी केवल इस एक दिन नहीं ,हर दिन रोशनी हर घर आँगन में ऐसे ही जगमगाती रहे.



दीवाली आई है
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अमा का तम सघन,बेध रही दीप शिखा,
अनगिन किरण कण ,बिखरे हैं चहुँ दिशा,
महकी बयार है पकवानों की सुगंध से,
फुलझडी,अनारों की जगमग भी छाई है,
पुलकित है जग सारा नूतन उमंग से,

सजे घर द्वार सभी ,दीवाली आई है.

ज्योति मुखरित हो,हर घर के आँगन में,
कोई भी कोना ,ना रजनी का डेरा हो,
खिल जाएँ व्यथित मन,आशा का बसेरा हो,
करें विजय तिमिर पर ,अपने मन के बल से,
दीपों की दीप्ती यह संदेसा लाई है,

करें मिल कर स्वागत,दीवाली आई है.
.................................................................................
..अल्पना वर्मा.. [१५ -१०-२००९]




आप के अनुरोध पर यह गीत पोस्ट के साथ १६ तारीख को जोड़ा गया है..


अकेले हैं चले आओ [फ़िल्म-राज़ ][लता जी का version]]




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October 5, 2009

घूमे आधी रात को चिडियाघर में!

शीर्षक बिलकुल सही है...आधी रात ही नहीं सुबह दो बजे तक घूम सकते थे..कैसे??
यू ऐ ई की राजधानी अबू धाबी है और अबू धाबी में है शहर अलऍन .
फूलों और बागों के इस शहर को यू ऐ ई का सब से सुन्दर शहर माना जाता है.
अबूधाबी में होते हुए भी राजधानी से १६० किलोमीटर दूर है.
यहाँ की हरियाली मुख्य आकर्षण तो है ही.साथ ही यहाँ पूरे मिडल ईस्ट का सब से बड़ा चिडियाघर भी है.
इस चिडियाघर को १९६७-६८ में शेख जायेद के आदेश पर बनवाया गया था। इस समय यहाँ ४००० [चार हज़ार]जानवर हैं.
आज कल यहाँ रिसॉर्ट भी बनाया जा रहा है.
ज्ञात हो अलेन शहर यू ऐ ई के निर्माता और प्रथम प्रेजिडेंट शेख जायेद का जन्म स्थान भी है.
बात कर रही थी आधी रात को चिडियाघर देखने की-जी हाँ बिलकुल सही सुना.
इस साल पहली बार रमजान के पूरे महीने में,रात ९ बजे से सुबह २ बजे तक जानवरों के nocturnal व्यवहार को दिखाने /समझाने के लिए चिडियाघर को पब्लिक के लिए खोला गया.
यह आयोजन अमेरिका के सेन दीअगो जू के सहयोग से किया गया था.

हम भी पहुंचे रात को चिडियाघर देखने..जानवरों के पिंजरों में सब अँधेरा ही था..हलकी रोशनी कहीं कहीं की गई थी। जो बाहर से पिंजरों पर पड़ रही थी.जू बहुत बड़ा है इस लिए जहाँ तक चल कर जा सकते थे बस वहीँ तक गए क्यूँ कि रात को ट्रेन नहीं चलती थी.जानवरों के नाम पर सिर्फ बन्दर और उनकी विभिन्न किस्में,हिरनों की किस्में जागी हुई मिलीं..बन्दर भी ज्यादातर सो ही रहे थे..लगभग हर ३-४ पिंजरे के पास एक गार्ड खडा था..जिस से जानवरों को कोई परेशान न करे..मैं ने भी सिर्फ जहाँ जानवर जागे हुए थे वहीँ की फोटो लीं ..ताकि फ्लेश से सोये हुए जाग न जाएँ.
'बर्ड हाउस 'में सब से ज्यादा चहल पहल थी..पंछी भी रात को आगंतुक देख कर खूब चहक रहे थे.Falcon शो भी हुआ..पहले देखा था इस लिए उस रात हमने नहीं देखा -falcon की तस्वीरें पुराने शो की हैं क्योंकि यह शो सामान्य दिनों में भी हर रोज़ चलता है.
देखीये 18 sept,2009 रात में ली गयीं चिडियाघर की कुछ तस्वीरें-
[चित्रों को बड़ा देखने के लिए उन पर क्लिक करें.]
Al Ain zooDeer[ghazaal]
DeerMonkey again
Bird housemonkey
birdslove birds
Love birdVulture
bird trainerfalcon1
penguineDSCN3308






September 27, 2009

है धरा की पुकार...

दशहरा पर्व के आते ही ,याद आते हैं बचपन के दिन जब इस त्योहार का ख़ास इंतज़ार होता था.इस दिन हमारे शहर में क्षत्रिय महासभा द्वारा दशहरा मिलन समारोह ,जिसमें सामूहिक शस्त्र पूजन ,परिवारों का मिलना ,साथ खाना और बच्चों द्वारा किया जाने वाला रंगारंग कार्यक्रम होते थे. जिस में मैं भी नियमित भाग लिया करती थी ,और सब से आखिर में होता था मुख्य आकर्षण 'पारितोषिक वितरण'!


मुझे दशहरा पर रावण ,कुम्भकरण और मेघनाद के पुतलों को जलाए जाने का तर्क कभी गले से नीचे नहीं उतरा..--'ये बुराई के प्रतीक हैं क्या बस इसलिए जलाए जाते हैं!'
ज़रा सोचीये तो कितनी लकडी ,कागज़ और विस्फोटकों का इस्तमाल इनमें होता है .ध्वनि ही नहीं वायु प्रदुषण भी फैलता है..साथ ही किसी दुर्घटना के होने का अंदेशा भी रहता है।
पुतले जलाएं मगर मेरे विचार से सरकार को इनकी ऊँचाई और इनमें लगने वाले सामग्री का निर्धारण कर देना चाहिये। ताकि इनकी ऊँचाई और धमाके के लिए होने वाली अनावश्यक प्रतियोगितों से बचा जा सके।


''आप सभी को इस विजय पर्व की ढेर सारी शुभकामनाएं''


है धरा की पुकार

--------------

हर वर्ष जलाते हैं पुतले,
करते श्रम ,अर्थ व्यर्थ !
कर भस्म इन प्रतीकों को,
हर बार भ्रम में जीते हैं.
जब कि ,
रावण जीवित है अभी,
माया के मृग भी मरे नहीं,
निडर ताड़का घूम रही,
लिए अहिरावन और खरदूषण.
संताप , पाप व्यभिचारी संग
हर ओर आपदा झूम रही.

कलुषित मन मानव के हुए,
यहाँ सत्य प्रताडित होता है,
अनाचार और दुष्कर्मों से,
अब न्याय प्रभावित होता है.

प्रतिदिन जलती है चिता यहाँ,
'अग्नि ' का परखा जाता है,
दानव दहेज़ का ऐसे भी,
नव वधूओं को खा जाता है.

हुई धरती अभिशप्त क्यों?
हैं युगमनीषी अब मौन क्यों?
ना आते अब हनुमान यहाँ,
ना जामवंत ही मुंह खोलें ?

बसते थे तुम ही स्मरण करो,
यह देश तुम्हारा है राघव!
अब तुमको आना ही होगा
करने धरा पावन यहाँ!
करने धरा पावन यहाँ!

[लिखित द्वारा-अल्पना वर्मा[२७/०९/२००९,10am]


[इस कविता में 'अग्नि 'की परीक्षा ली जाती है ऐसा मैं ने कहा है ..क्योंकि सतयुग में तो निर्दोष सीता को अग्नि ने रास्ता दे दिया था और उनको सुरक्षित रखा मगर आज सीता की ही नहीं अग्नि की भी परीक्षा होती है मगर निर्दोषों को बचाने कोई नहीं आता और इस तरह दहेज़ रूपी दानव उन्हें निगल लेता है।]
आप अपने विचार यहाँ क्लिक कर के भी लिख सकते हैं.

September 17, 2009

जाने क्या चाहे मन?

Painting by DeoPrakash Chaudhary'जाने क्या चाहे मन बावरा' -एक फ़िल्मी गीत की पंक्तियाँ हैं..सुनती हूँ तो सोचती हूँ कि आखिर यह मन है क्या?
किसकी परिभाषा मानी जाये..एक मनोचिकित्सक की?या 'कथित मनोरोगी' की?दोनों ही अपने ढंग से इस मन को समझते और समझाते हैं..
मैं तो मन को एक पिक्चर puzzle मानती हूँ.. .या कहीये..ये है ही एक zigsaw puzzle !
..जिसे पूरा करने में एक उम्र- एक जनम या कई जनम लग जाते हैं..अक्सर इसे अधूरा ही छोड़ दिया जाताहै..जीवन की रोज़ की आपा धापी में, दिन के दोनों सिरों को मिलाने की जुगत में इस तस्वीर के अधूरेपन की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं जाता..और यूँ ही भुला दिया जाता है.
कभी कुछ टुकड़े मिलते हैं तो match नहीं करते फिर भी उन्हें किसी तरह फिट करने की कोशिश ताउम्र जारी रहती है..अनजाने कभी कहीं राह में चलते चलते कोई ऐसा टुकडा मिलता है जो match कर सके..तो उसको उठाने में ही हाथ लहू लुहान हो जाते हैं...और कभी सफल हुए भी तो उसको सही जगह देने के लिए 'वक़्त हाथ में नहीं होता...मुट्ठियों में बंद किये इंतज़ार करना पड़ता है....कुछ पल फुर्सत के पाने के लिए!
ऐसे में किया क्या जाए?..क्या उस हिस्से को संभाल कर रखा जाये...या फिर तस्वीर को अधूरा ही रहने दिया जाये..शायद दूसरा विकल्प सही है...आखिर मन की अहमियत ही कितनी है...इस व्यवहारिक दुनिया में?

'सोचती हूँ लपेट कर अनगिन परतों में,
छुपा दूँ सागर के गहरे तल में ,

कहते है 'मन' गहरी नींद भी सो सकता है!

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कवर गीत सुनिए फिल्म-अंकुश[1986] से-

स्वर-अल्पना

-प्रार्थना --
'इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमज़ोर हो न,
हम चलें नेक रास्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो न.'


Slow netspeed users can Download/play Mp3 here or here


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चित्र-साभार-श्री देव प्रकाश चौधरी

September 11, 2009

'आभासी रिश्ते' और 'तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर'

वास्तविक जीवन में यूँ तो हर रिश्ते की अपनी एक पहचान होती है उनकी एक नज़ाकत होती है ,अधिकार और अपेक्षाओं से लदे भी होते हैं .एक कहावत भी है 'जो पास है वह ख़ास है'.
यथार्थ से जुड़े और जोड़ने वाले इन रिश्तों से परे होते हैं -कुछ और भी सम्बन्ध !
जो होते हैं कुछ खट्टे , कुछ मीठे,कुछ सच्चे ,कुछ झूटे!
यूँ तो इन में अक्सर सतही लगाव होता है..जो नज़र से दूर होतेही ख़तम हो जाता है.
इन के कई पहलू हो सकते हैं...सब के अपने अलग अलग विचार और राय होंगी इस विषय में .
एक पहलू मैं यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ-




tunnel-we-go-thru copy painting by Deo prakash
आभासी रिश्ते

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कांच की दीवार के परे ,
कुंजीपटल की कुंजीयों से बने,
माउस की एक क्लिक से जुड़े-

मुट्ठियाँ भींच कर रखो तो मुड़ जाते हैं,
खुली हथेलियों में भी कहाँ रह पाते हैं,

मन से बनते हैं ,कभी रूह में उतर जाते हैं.
कैसे रिश्ते हैं ये ? जो समझ नहीं आते हैं!

देह से नहीं ,बस मन से बाँधने वाले ,
भावों का अथाह सागर कभी दे जाते हैं,

अपेक्षाओं से बहुत दूर , मगर, हैं नाज़ुक ,
टूट कर गिरे तो बस ,बिखर कर रह जाते हैं.

ये रिश्ते ..आभासी रिश्ते!
-लिखित द्वारा-अल्पना वर्मा-
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[चित्र-साभार-देव प्रकाश चौधरी ]


आज का गीत -


मूल गीत गीता दत्त का गाया फिल्म-बाज़ी से है.
जिसे आज अपने स्वर में प्रस्तुत कर रही हूँ-
गीत के बोल बहुत खूबसूरत हैं -'क्या ख़ाक वो जीना है जो अपने ही लिए हो....

अगर प्लेयर काम नहीं कर रहा तो यहाँ पर भी सुन सकते हैं.
 

September 4, 2009

'आस-एक गीत'

३० अगस्त हमारे बच्चों के स्कूल खुल गए.दूसरे सत्र की पढ़ाई शुरू हो गयी.
सरकारी स्कूलों में ईद तक की छुट्टी है ही..लोग जो छुट्टी गए थे वापस आ गए हैं ,फिर से पुरानी चहल पहल और रौनक लौट आई..
गरमी का वही बुरा हाल है..तापमान दो दिन पहले भी ५० से ऊपर था.

स्वाईन फ्लू के बारे में स्कूल में बताया जा रहा है..फॉर्म भरवाए जा रहे हैं..शौपिंग माल आदि जगहों पर इस विषय में जानकरी देने के लिए काउंटर खुले हैं.बस इस से अधिक हमें इस विषय में जानकरी नहीं है..रामादान जिसे भारत में रमजान कहते हैं वह पाक महिना शुरू हो चुका है चूँकि यह इस्लामिक देश है तो यहाँ रमजान की रौनक अलग ही देखने को मिलती है..यह पूरा महीना बहुत ही अलग होता है..रात में भी दुकाने ,रेस्तरां आदि खुले रहते हैं..सुबह ४ बजे तक दुकाओं में आवा जाही देखी जा सकती है.दिन के समय सभी रेस्तरां बंद होते हैं.ऑफिस और स्कूल के समय में १-२ घंटे कम कर दिए जाते हैं.[यह समय कटोती हर संस्था के ऊपर निर्भर है]कई जगह शामियाने लगे दिखेंगे जहाँ इफ्तार /दवातें [रोजा खोलने के बाद शाम का खाना] मुफ्त दिए जाते हैं.इन दिनों बाज़ार में खरीदारी पूरे जोरों पर रहती है.यहाँ की मार्केट में भीड़ देख कर लगता ही नहीं की स्वाईन फ्लू से किसी को कोई भय है या बाज़ार की मंदी [recession ] का कोई असर किसी पर है!
हर मॉल और दुकाने अपने हिसाब से सजायी गयी हैं यहाँ दो तस्वीरें हैं जो अलएन मॉल के भीतर की हैं.[Click pictures to enlarge]

alain mall ramdan decoralainmall ramadandecor

Sunset ki तस्वीर जून माह के गल्फ न्यूज़ अखबार के रीडर्स pictures में चुनी गयी थी..
[कोई बड़ी बात नहीं है..बस ऐसे ही)
sunsetdubai

तस्वीर को बड़ा कर के देखेंगे तो देख सकते हैं कि सूरज के साइड में दुनिया की सब से बड़ी इमारत 'बुर्ज दुबई' और साथ में दुबई की सारी बड़ी इमारतें नज़र आयेंगी.

'आस-एक गीत'
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ढूंढ पाओ ऐ हवाओं तो कहना उनसे ,
नहीं मुमकिन अगर मिलना तो इक ख़त लिख दें,

ढूंढ पाओ..

1-है जुदा नींद मेरी रातों की तनहा दिन हैं,
ऐसा कुछ हाल मेरा कहना के उनके बिन है.
जो यही उनका भी हो हाल तो इक ख़त लिख दें...

ढूंढ पाओ ...

2-वो है इक संगदिल ये जानकर भी चाहा है,
क्यों न हो शिक़वा गिला ,ये तो हक़ हमारा है,
ग़र वो समझें मुझे अपना तो इक ख़त लिख दें
ढूंढ पाओ ..

3-ऐ हवाओं जो कहो आज तुमको जाँ दे दूँ,

बाद मुद्दत के ये पैगाम उनका आया है..
मुझको समझा है मेरे प्यार को अपनाया है..
मुड़ के जाओ ऐ हवाओं तो कहना उनसे ,
ठहरो दो पल ..

ठहरो दो पल को ज़रा हम भी उन्हें ख़त लिख दें...
ऐ हवाओं...

--------------अल्पना वर्मा -----------------

अपने लिखे इस गीत को अपनी आवाज़ में पेश करने की एक कोशिश की है-

Download/play MP3


अब सुनाती हूँ मेरी आवाज़ में -गीत-'मेरा दिल ये पुकारे आजा'..फिल्म-नागिन [१९५४] से.इस गीत का काराओके ट्रैक मूल ट्रैक से थोडा अलग है.
Download/play Mp3
[ग़ज़ल 'वो इश्क जो हमसे' को साइड बार में लगा दिया है.]

August 20, 2009

'तुम्हारी प्रिया हूँ'

पिछले कुछ दिनों से समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या लिखूं?
यूँ तो ब्लॉग पर सूचना पट लगा दिया था कि ब्रेक टाइम है!कुछ परिस्थितियां भी ब्लॉग लेखन के लिए अनुकूल नहीं हो पा रही थीं.ब्लॉग की दुनिया में महीने भर से मेरी अनियमितता बनी हुई थी.
अब स्थिति सामान्य हुई है तो सोचा यह बंद भी खोल दिया जाये.आज मुहूर्त निकल ही गया :)और यह कविता प्रस्तुत है..

fantasy2
-तुम्हारी प्रिया हूँ -
बरस जाओ बन मेह नेह का तुम,
लरज कर लता सी सिमट जाऊँगी मैं.
बिखरने लगी हैं ये व्याकुल सी अलकें,
जो पल भर भी देखो,संवर जाऊँगी मैं.

मैं कोमल कुमुदनी सी दिख तो रही हूँ,
पवन बन जो आओ महक जाऊँगी मैं,

कभी भीगें नैना और बिखरे जो काजल,
मधुर हास देना ,बदल जाऊँगी मैं.

तुम्हारी छुअन ने बनाया है चन्दन,
यूँ हीं धड़कने तो , नवल पाऊँगी मैं .

न जाओगे अब दूर,वचन मुझ को दे दो,
विरह वेदना अब न सह पाऊँगी मैं.
बरस जाओ बन मेह नेह का तुम,
लरज कर लता सी सिमट जाऊँगी मैं.
-
..अल्पना वर्मा ..

अब है गीत की बारी --
प्रस्तुत है गीत'तेरी आँखों के सिवा' [फिल्म-चिराग]--
Teri Aankhon ke siwa[Chirag]


Download or play Mp3 click Here
यह गीत पिछले साल रिकॉर्ड किया था.इन दिनों कोई नया गीत भी रिकॉर्ड नहीं कर सकी इस लिए इसे ही यहाँ कविता के साथ पोस्ट कर रही हूँ.उम्मीद है पसंद आएगा.