1)अपने भीतर के जानवर को
छुपाने की कोशिश करते है,
कई लोग,
अक्सर ..... दूसरो के खोल में!
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2)वो शमा हूँ ,जो जलती रही मगर रोशनी कहीं न हुई!
वो लहर हूँ उफनती रही मगर न दामन किसी का गीला किया!
वो आंसू हूँ जो ढलका नहीं अब तक किसी के गालों पर!
हाँ ,
वो सांस हूँ जो ढली आह में मगर ,घुटती है अब तक सीने में!
[written when i was a college student]
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3)अपनी रफ्तार से जा रही है ज़िंदगी यूं तो!
मगर न जाने क्यों लगता है....
अनगिनत विराम चिन्ह
हरदम साथ चलते हैं!
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-अल्पना वर्मा