स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

December 29, 2009

जाते हुए लम्हे....एक प्रार्थना

बीतते साल में क्या खोया, क्या पाया ..इसका क्या हिसाब करें?साल शुरू होते ही जो प्रण किये जाते हैं कुछ poore होते पाते हैं कुछ नहीं....शुभकामनायें हैं आप सभी के लिए कि आप की हर मनोकामना आने वाले वर्ष में पूरी हो।
लेकिन अभी इन जाते हुए इन लम्हों से कुछ कहते चलें....



-1--

सिर्फ़ कलेंडर बदल कर कहते हैं -
साल नया आया है!
क्या बदले हैं हालात यहाँ?
क्या बदली है तस्वीरें?
सब कुछ तटस्थ है ,
ठहरा हुआ..
ना जाने .. समय के किस पल में!
-2-

यह वर्ष धीरे धीरे!
लिए जा रहा है
साथ,
तारीखें
जो हैं गवाह...
कुछ क़िस्सों की!
------------------

नवंबर २००८ से मैं हिंदी ब्लॉग्गिंग में सक्रिय हुई, सब का बहुत स्नेह मिला.आप सभी का बहुत बहुत आभार.
बहुत से प्रभावशाली व्यक्तित्वों से परिचय हुआ.बहुत कुछ सीखा ।साथ ही बहुत उतार चढ़ाव देखे यहाँ ब्लॉग जगत में.. गुटबाजी...राजनीति ..अनामी बेनामी ..ना जाने क्या क्या...जो नकारात्मक था..मगर कुछ भी कहिए..
इन सब पर हावी रहा ब्लॉग्गिंग का सकारात्मक पक्ष जो दूर जाते साथियों को फिर से खींच लाया जो नहीं लौटे वो भी आएँगे.
आना भी चाहीए..

जीवन है ही कितना?

कल का किसी को पता नहीं है.. कल का क्या अगले पल का पता नहीं?

और इतने से छोटे समय में खुशियाँ बिखरने या ,समेटने की बजाय दिल में किसी बात को लगा लेना खुद को सज़ा देने जैसा है. जो समय जितना समय हम खुश रह सकें ,औरों को खुश रख सकें ..तो वही अहसास खुद में भी आत्मविश्वास भर देता है. ऐसा मेरा सोचना है...युवा वर्ग जो यहाँ है,बड़े सदस्यों को उन्हें प्रोत्साहन देना चाहीए और युवाओं को देना होगा बड़ों को अपेक्षित सम्मान.
आशा है ,नया वर्ष हम सभी के लिए और हिन्दी ब्लॉग्गिंग के लिए भी शुभ और मंगलकारी होगा।


आईये ,इन जाते हुए लम्हों को विदा करें और करें नए साल का स्वागत ,इस प्रार्थना के साथ -:
जो फ़िल्म - दो ऑंखें बारह हाथ (१९५७) से है,
मूल गायिका - लता मंगेशकर,संगीतकार - वसंत देसाई,गीतकार -भरत व्यास हैं. [यहाँ प्रस्तुत गीत कराओके track पर मेरे स्वर में है।

'ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हों हमारे करम,
नेकी पर चले और बदी से टले....'
Mp3डाउनलोड/ प्ले करीए


------------------अल्पना------------


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December 8, 2009

'अपनी शर्तो पर जीना'


'अमल 'नाम की हमारी एक सहकर्मी थी जो जॉर्डन देश की रहने वाली थी ,जब भी वह स्टाफ रूम में आती तब माहौल ख़ुशगवार हो जाता था.क्योंकि वह बहुत ही हँसमुख स्वभाव की थी.हमेशा पूरे मेक अप में रहती थी.
शक्ल सूरत में बहुत ही साधारण ,कद कोई ५ft २'' रहा होगा.
वह अगले महीने अपने प्रेमी से शादी कर रही थी.प्रेम संबंध भी प्रगाढ़ थे.. अपने प्रेम संबंधो की खूब बातें सुनाया करती थी. सभी रश्क करते थे की इतना प्यार करने वाला पति मिल रहा है उसे!

महीने भर बाद शादी करके आई तब बेहद खुश थी ,मगर चेहरे पर कोई मेकअप नहीं देख कर सब ने सवाल कर डाले..
उसने बड़े गर्व से कहा की उसके पति उस से इतना अधिक प्यार करते हैं वे नहीं चाहते की उन के अलावा कोई और उस को देखे.हम मज़ाक में कहते थे की अमल ध्यान रखना उन्हें नौकरी मिल जाएगी तो तुम्हें तो ताले में बंद कर के जाया करेंगे!वह स्टाफ रूम मे आते ही सब से पहले अपने लोकर से मेक अप का समान निकालती और इतमीनान से सजती ,घर जाने से पहले चेहरे से सारी सजावट उतारती.

कुछ दिन सब ठीक ठाक चलता रहा .एक दिन परेशान सी थी मगर पूछने पर हंसकर बताने लगी की उसके पति ने उसके मोबाइल से जितने भी पुरुष सहकर्मियों /या कहिए जितने भी पुरुष नाम थे सब मिटा दिए उसे बताया भी नहीं . दिन बीते , ६ महीने हो गये थे मगर उसके पति को अभी तक कोई नौकरी भी नहीं मिल रही थी.
उसने अपनी सास को विज़िट वीसा पर बुलाया,लेकिन उनके आते ही अमल पर अभी तक माँ ना बन पाने के कारण पूछे जाने लगे .रोज़ के सवालों से तंग आ कर अमल ने अपने सारे टेस्ट करवाए,परीक्षणो से पता चला की वह पूरी तरह से नॉर्मल थी.पति जो उस से बेइंतहा प्यार करने के दावे किया करता था अब अपना टेस्ट करवाने को तैयार नहीं था.आख़िर कार डॉक्टर के समझाने पर उसने अपने टेस्ट करवाए .कमी उसी में निकली जिसे ना तो अमल की सास स्वीकार कर पाई ना ही उसका पति. हमेशा खुश रहने वाली अमल अब बुझी बुझी रहती थी.उसकी सास ने उसे बांझ कह कर ताने देना शुरू कर दिया था.

एक महीने की विज़िट में ही इतना कुछ हो गया..अलेएन चूकि छोटा शहर है इसलिए अपनी सास की तस्लली के लिए अबूधाबी के बड़े प्राइवेट हस्पताल से भी दोनो ने टेस्ट करवाए मगर परिणाम वही..!लेकिन मानना तो किसी ने था नहीं इसलिए उसकी सास दूसरी शादी करवाने की धमकी दे कर चली गयीं.पति जो अब तक बेहद प्यार दिखा रहा था..अपनी माता जी के आगे जैसे सारा प्यार काफूर हो गया था.

सच है प्यार भी समय और परिस्थिति का मोहताज है ..सच्चा प्यार सिर्फ़ किताबों में ही होता है वास्तविकता का उस से कोई लेना देना नहीं है...यह हम सब के सामने उस के केस से प्रमाणित हो गया था.

अब अमल ने एक बड़ा निर्णय लिया..चूकि उसे बार बार ऐसी ग़लती के लिए दोषी बताया जा रहा था जो उस ने की ही नहीं थी.पति भी खुद की कमी स्वीकारने को तैयार नहीं ..उस ने तलाक़ लेने का फ़ैसला किया ..और शादी के एक साल पूरे होने से पहले ही उसने तलाक़ ले लिया ..अब...अमल ने अपने रिश्तेदारों में ही ऐसे व्यक्ति को ढूँढना शुरू किया.[जॉर्डन में मुस्लिम रिवाज़ के अनुसार वे अपने रिश्तेदारों में शादी कर सकते हैं.]
ऐसा पुरुष' जिस से उस की पत्नि को अभी हॉल ही में नवजात शिशु हुआ हो..और उस ने ऐसे व्यक्ति को खोज भी निकाला.
फोन पर बातें होने लगीं. फ़ोन पर ही उसने शादी का प्रस्ताव रखा जिसे अब्दुल्ला ने स्वीकार भी लिया.अब फ़ोन पर ही उसने सगाई की और शादी भी.काग़ज़ सब तैयार हो गये.जब अमल के वीसा पर यहाँ आया तब उसने बताया की इस दूसरे निकाह की खबर उसने अपनी पत्नी को नहीं दी है जिसके कारण वह सिर्फ़ २ महीने रह सकेगा. अमल का उद्देश्य खुद को पूर्ण स्त्री साबित करना था.इसलिए उसे इस बात से दुख तो ज़रूर हुआ लेकिन अफ़सोस नहीं.ईश्वर ने उसकी सुनी और उसी साल उसके जुड़वाँ बेटे हुए.पति तो दो महीने रह कर चला गया था...अब वह यहाँ अकेली थी तो उसने अपनी माँ को अपने पास बुलाया hai.आज उसके दोनो बच्चे swasth हैं और दो साल के हो गये हैं.अमल खुश है उसे कोई अफ़सोस नहीं है.[naam badal diye gaye hain]

खुद को पूर्ण स्त्री साबित करने के लिए उस ने अगर कुछ खोया है तो बहुत कुछ पाया भी है.ऐसा कदम हर कोई नहीं उठा सकता.अमल में आत्मविश्वास था उसके आत्मविश्वास का एक कारण उसकी नौकरी भी थी जिस का सहारा उसे था ही ,इसीलिए भी वह अपने जीवन के निर्णय खुद ले पाई.
जीवन में उसने इतना बड़ा निर्णय लिया शायद इसीलिए क्योंकि उसके पति ने उसे तब सहारा नहीं दिया जब उसे उसकी सब से अधिक ज़रूरत थी.परिवार में बिना किसी दोष के उसे दोषी बनाया जा रहा था.यह उस के मन पर लगे आघात का परिणाम था या फिर एक प्रतिशोध ...या फिर समाज में खुद को पूर्ण स्त्री साबित करने के लिए यह कदम उठाना उस के लिए आवश्यक था.




आज का गीत
'रात और दिन दिया जले ,मेरे मन में फिर भी अंधियारा है,
जाने कहाँ है वो साथी ,तू जो मिले जीवन उजीयारा है'

खुद नहीं जानू ढूँढे किस को नज़र, कौन दिशा है मेरे मन की डगर,
कितना अजब है दिल का सफ़र ,नदिया में आए जाए जैसे लहर!'

ये बोल हैं उस गीत के जो मैं आज यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ.
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[vartani trutiyan aur roman mein likhne ka karan transliteration ka unreachable hona hai.Mother-child Chitr Google se sabhaar]