‘महापंडित’,हिंदी यात्रा सहित्य के पितामह' राहुल सांकृत्यायन' उर्फ 'केदारनाथ पाण्डेय'(9 अप्रैल 1893 – 14 अप्रैल 1963) कृत 'घुमक्कड़ शास्त्र 'पुस्तक में एक निबंध 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' शीर्षक से है,में से कुछ पंक्तियाँ /लेखक के विचार उनके जन्म दिवस 9 April के अवसर पर -:
**संसार में यदि कोई अनादि सनातन धर्म है,तो वह घुमक्कड़ धर्म है। धर्म भी छोटी बात है,उसे घुमक्कड़ के साथ लगाना “महिमा घटो समुद्र की,रावण बसा पड़ोस” वाली बात होगी।
**यदि कोई तरुण-तरुणी घुमक्कड़ धर्म की दीक्षा लेता है - यह मैं अवश्य कहूँगा, कि यह दीक्षा वही ले सकता है, जिसमें बहुत भारी मात्रा में हर तरह का साहस है - तो उसे किसी की बात नहीं सुननी चाहिए, न माता के आँसू बहने की परवाह करनी चाहिए, न पिता के भय और उदास होने की, न भूल से विवाह लाई अपनी पत्नीन के रोने-धोने की फिक्र करनी चाहिए और न किसी तरुणी को अभागे पति के कलपने की। बस शंकराचार्य के शब्दों में यही समझना चाहिए - निस्त्रैगुण्ये पथि विचरतः को विधिः को निषेधः।।
.. अर्थात 'विचरने वाले महापुरुष के लिये क्या विधि और क्या निषेध है ? 'और मेरे गुरु कपोतराज के बचन को अपना पथप्रदर्शक बनाना चाहिए -
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ ?
**कोई-कोई महिलाएँ पूछती हैं- क्या स्त्रियाँ भी घुमक्कड़ी कर सकती हैं.. स्त्रियाँ इसमें उतना ही अधिकार रखती हैं, जितना पुरुष। यदि वह जन्म सफल करके व्यक्ति और समाज के लिए कुछ करना चाहती हैं, तो उन्हें भी दोनों हाथों इस धर्म को स्वीकार करना चाहिए। घुमक्कड़ी-धर्म छुड़ाने के लिए ही पुरुष ने बहुत से बंधन नारी के रास्ते में लगाये हैं।
( ***घुमक्कड़ी का अर्थ -पर्यटन,यायावरी या देशाटन है )
लेख में दिया शेर 'ख़्वाजा मीर दर्द' का लिखा है ।