स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

December 27, 2012

'शशि'-एक आम स्त्री का प्रतिबिम्ब


शुक्रवार की शाम को  मेरी सहेली हेमा  का फोन आता है-

भाभी जी ,आप ने 'इग्लिश- विन्ग्लिश' देखी?

नहीं ,पता नहीं क्यों हेमा  ,मुझे पुरानी  श्रीदेवी पसंद है उनका नया लुक टोलरेट नहीं हो रहा,
इसलिए देखने नहीं गई। 

अरे नहीं ,भाभी जी ज़रूर देखना ,देख लो अब तो ई-लाईफ  [यहाँ का सरकारी टी वी चेनल ]पर भी खरीद कर देख सकते हैं। 
कल देखी हम सब ने ,बिना पलकें झपकाए पूरी फिल्म देख कर ही उठे!
क्या फिल्म है!

अरे! ऐसा क्या है उस में ?

देखोगे, तब मालूम चलेगा ,न!

अच्छा,ठीक है देखूंगी। 

December 25, 2012

'मैं' ने 'तुम' से कहा मगर क्या और क्यों ?

"आज तक मेरी तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत भी किसी दुश्मन की नही हुई .. लेकिन आज मुझे अपनों ने ही लाठियों से पीटा" !! ------- पूर्व जनरल वी के सिंह 

बीते कुछ दिनों में जो कुछ भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ, 
परदेस में हम तक भी खबरें पहुँची...  बहुत दुःख हुआ !!


मैथिलीशरण 'गुप्त 'जी की लिखी ये पंक्तियाँ याद आ रही  हैं --

हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, ये समस्याएँ सभी

संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी
निश्चेष्ट होकर किस तरह से बैठ सकते थे कभी

December 21, 2012

आप कहाँ हैं ?यूँ मौन क्यूँ हैं?


पिछले कई सालों से शायद २००७ के बाद से उस   नामी-गिरामी हस्ती के बारे में कहीं कोई खबर सुनायी नहीं दी तो लगा कि एक आवाज़ मैं भी दे कर देखूं , शायद कोई जवाब मिले .

''जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ।

बदले हैं अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ
शान्ति बिना खुशियाँ हैं बांझ।

सपनों में मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी सांझ।'

December 1, 2012

बरसे मेघ...अहा!



बरसात..अहा...यह शब्द ज़हन में आते ही याद आते हैं ...'काले मेघ और बरसती बूंदें'!..अरसा हुए था इन्हें देखे हुए..बस ,कल ये मुराद भी कोई डेढ़ साल बाद पूरी हुई....आसमान काले बादलों से ढका ..दिन के ३ बजे हल्का अँधेरा देख कर मन किया बाहर निकलूँ और खूब भीगूँ!और तभी रिमझिम बरसात भी  शुरू हो गई ...बस भीगना तो लाज़मी था ही ...घर के आस -पास देखा ...कई बच्चे और बड़े भी जानबूझ कर बरसात में भीगने को बाहर खड़े थे ..छाता हाथ में मेरे था लेकिन मैं ने तो  खोला ही नहीं ..ऐसे हलकी बूंदों में भीगना कितना अच्छा लगता है!