स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

March 30, 2013

छूटते हाथ...


मैं ढूँढती हूँ तुम्हारे भेजे  पन्नों पर उन शब्दों को जिनसे तुमने मुझे खरीदा था।
हाँ,खरीदा ही तो था तुमने मुझे  उन शब्दों से  ,
किश्त दर किश्त मेरा मन उन शब्दों के बदले बिकता चला  गया था 
हार गयी थी मैं खुद को तुम्हारी  बिछायी शब्दों की बिसात पर

March 24, 2013

फागुन- धुन


हर रिश्ता अपना अलग रूप रखता है ,हर रिश्ते की अलग पहचान तो उसे निभाने के लिए जतन भी अलग -अलग होते है।दिल के भी न जाने कितने चेंबर बनाने पड़ते हैं ...हर रिश्ता अपने लिए प्रयाप्त जगह चाहता है और  उसके फलने फूलने के लिए प्रयाप्त खुराक भी !
हम कितना समय दे पाते हैं किस को ..इसी पर निर्भर करता है हमारा सामाजिक जुड़ाव भी। .
त्यौहार हमें एक दूसरे के इसी जुड़ाव को मजबूत करने का मौका देते है। 
होली का त्यौहार भी आपसी मेल -जोल और प्रेम को बढाने का   त्यौहार है।
  
मैंने आखिर होली १५ साल पहले खेली थी। 
मुझे इस त्यौहार से कोई खास मोह नहीं है उसका एक कारण यह है कि होली में  रंग -बिरंगे होने के बादजो उन रंगों को उतारने की जद्दोजहद करनी पड़ती है वो अक्सर तकलीफदेह होती है। 
होली के त्यौहार को मैं रंगों के साथ साथ गुझिया से जोड़ती हूँ.वही तो खास मिठाई बना करती घरों में और बांटी भी जाती थी।
होली के त्यौहार की एक बात बड़ी अच्छी हैं कि आप किसी को कोई भी बात  बेबाक कह सकते हैं ,

March 20, 2013

अच्छा लगता है....


'व्योम के पार' ब्लॉग के अतिरिक्त मेरे अन्य दो ब्लॉग भी हैं जिनमें से एक है - 'भारत दर्शन' ।  भारत के विभिन्न दर्शनीय स्थलों की जानकारी जितना संभव हो विस्तार से देने का प्रयास करती हूँ। उद्देश्य यही होता है कि अंतरजाल पर हिंदी भाषियों को भारत के महत्पूर्ण स्थलों, स्मारकों, धार्मिक व पर्यटन से जुडी जगहों के बारे में जानकारियाँ उपलब्ध करा सकूँ !     

सम्बन्धित तस्वीरें अगर नेट से लेती  हूँ तो जिनकी साईट से तस्वीरें ले रही हूँ उन से बकायदा अनुमति लेती हूँ, ... अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद कर विश्वसनीय स्रोत से जानकारी एकत्र करके एक जगह क्रमबद्ध करना इतना भी आसान नहीं जितना लगता होगा ... लेकिन ब्लॉग-जगत ने शायद ही इस ब्लॉग को संज्ञान में लिया हो !

परन्तु मुझे दुःख नहीं है क्योंकि अक्सर इस ब्लॉग पर और लिखने के लिए मुझे अनजान लोगों से प्रोत्साहन मिलता रहता है, गूगल स्टेट के आंकड़ों के अनुसार पाठकों का आगमन निरंतर बढ़ रहा है। आज स्थिति यह है कि ब्लाग पर प्रतिदिन औसतन दो-तीन सौ पाठक आते हैं...तमाम पर्यटक...जिज्ञासु...स्कूल-कालेज के स्टूडेंट्स इस साईट पर आकर विभिन्न स्थलों, स्मारकों, जगहों इत्यादि से सम्बंधित जानकारियां पढ़ते हैं।   बेशुमार लोगों के लिए मेरे द्वारा दी गयी जानकारियाँ उपयोगी सिद्ध होती हैं। ये सब बातें मुझे उनके ई-मेल्स और कमेंट्स [फिलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद है] से भी बराबर पता चलती रहती हैं। 

इसी तरह नवंबर में एक पोस्ट पर टिप्पणी से मालूम हुआ कि कहीं किसी अखबार में ब्लॉग का ज़िक्र है, प्रतिटिप्पणी में मैंने टिप्पणीकर्ता से जानकारी चाही तो उनका कोई उत्तर नहीं मिला और न ही उनका कोई ई-मेल आया। 

दो दिन पहले यह बात मैंने प्रकाश गोविन्द जी से बतायी कि भारत दर्शन ब्लॉग के बारे में कहीं छपा था लेकिन पता नहीं चल रहा कि कहाँ ?  तब उन्होंने पता नहीं कैसे व किस-किस तरह के प्रयास कर के आखिरकार वो अखबार और क्लिप तलाश ही ली, लेकिन उसका प्रिंट काफी खराब सा था, तब उन्होंने इसे साफ़ कर के मुझे भेजी .. उनका हार्दिक आभार।  

मेरे लिए यह बड़ी खुशी की बात थी कि ब्लोगजगत द्वारा उपेक्षित इस ब्लॉग के बारे में इतनी अच्छी बातें लिखी गयी थीं। राजस्थान पत्रिका के नवंबर 2012 के अंक में प्रकाशित स्वप्नल सोनल जी की यह रिपोर्ट --

Click to view better 
मैं पत्रिका  के संपादक एवं इस लेख के लेखक को  धन्यवाद देना चाहती हूँ
और 
आभार प्रकट करना चाहती हूँ कि उन्होंने मेरे कार्य को सराहा और प्रोत्साहन दिया। 
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March 16, 2013

रंग आसमान के...

सुबह से ले कर रात तक...आसमान कैसे -कैसे रंग बदलता है। देखें इस बदलते आसमान के रूप-रंग की एक झलक..भोर की लाली से रात के धुंधलके तक ..
सुबह साढ़े ६ बजे उगता सूरज...१४ मार्च २०१३ 

March 14, 2013

मेरा खज़ाना /मेरा पुरस्कार


२०१२-१३ का शैक्षिक सत्र समाप्त होने को है,परीक्षाएँ शुरू हुई हैं या समाप्त  होने को हैं  या फिर समाप्त हो चुकी हैं।
यहाँ एमिरात में अप्रैल के दूसरे हफ्ते से नया सत्र शुरू होगा।  गर्मियों की छुट्टियाँ जुलाई- अगस्त में होती हैं।
इस समय  नए दाखिलों का आना ,पुराने छात्रों का जाना लगा रहता है .इसी तरह शिक्षकों को भी अपने नए टाईम  टेबल की प्रतीक्षा रहती ही है,वहीँ पुरानी कक्षाएँ खतम होती हैं तो जिन छात्रों को आप पूरे साल पढाते रहे हैं उनसे जुड़ाव हो जाना सामान्य सी बात है।

खासकर जब आप किसी कक्षा के कक्षा-अध्यापक हों तो उस के हरेक  छात्र  से अपनत्व हो जाता है। मैं जब कक्षा  नवीं की छात्राओं  से पहली बार मिली तो उनमें से अधिकतर मेरे लिए अपरिचित थीं,लेकिन धीरे -धीरे साल गुज़रते -गुज़रते  उन सब का इतना विश्वास मिल पाया  कि हर छोटी-बड़ी बातें मुझ से आकर बताया करती थीं। कमज़ोर छात्राओं पर भी मेरा विशेष ध्यान रहा। इस सत्र के आखिरी दिन उन सब ने मिलकर मुझे यह कार्ड दिया जिस में सब ने अपने हस्ताक्षर किये हैं । यह मेरे लिए एक खुशनुमा सरप्राईज़ था ,जिसे आप के साथ यहाँ बाँटना चाह रही हूँ ...
Card by Grade 9 Students


चाहे शरारती छात्र हों या मेधावी ,साल के आखिर आते-आते सभी से लगाव होना स्वाभाविक है। खासकर जब बात छोटी कक्षाओं की हो,तो आप पायेंगे कि वे बिना लाग लपेट के अपने मन की बात कह देते हैं। शायद उनका निश्चल मन ही इसका उत्तरदायी है।
हर साल के गुज़रते ही आखिरी दिन छात्रों के पत्र मिलने शुरू हो जाते हैं जिस में उनके अपने विचार होते हैं ,शुभकामनाएँ होती हैं ,सादा कागज़ पर लिखे या किसी कार्ड की शक्ल में मिले इन भावों को सहेज कर रखना मुझे बेहद पसंद है।
सब से अधिक मुखर  स्नेह मुझे पाँचवी कक्षा के छात्रों से मिलता रहा  है,जिन्हें मैंने  विज्ञान पढाया . जिनमें अधिकतर  शरारती तो बेशक बहुत  होते हैं लेकिन  उतने ही स्नेह और सम्मान  देने वाले भी उन्हें पाया है। मेरे अनुभव के अनुसार  ये १०-११ साल के बच्चे मोम की भांति होते हैं जैसे चाहो उन्हें ढाल लो ,सिर्फ सही मार्गदर्शन की ही तो इन्हें आवश्यकता होती है।

March 7, 2013

लघुकथा -२

यह एक ऐसी शृंखला शुरू की है  जिसमें  ऐसी बातें /घटनाएँ/किस्से  जो पहले सुने -कहे न गए हों ,हमारे आस-पास ,हमारे परिचितों या उनके सम्बन्धी/दोस्तों के साथ हुई बातें /घटनाएँ हों...इसकी -उसकी /इस से -उस से सुनी बातें...स्टाफ रूम की गप-शप इसका -उसका हाले दिल .... . उन सबको कहानी का रूप दे कर प्रस्तुत कर रही हूँ ...थोड़ी कल्पना और थोड़ी सच्चाई देखें शायद थोड़ी सी कहानी बन जाए!
पहली कहानी पर आप का स्नेह मिला उसके लिए धन्यवाद!

प्रस्तुत है -:
लघुकथा -२ 

आजकल रोज ज़रा जल्दी उठाना पड़ता है। दोपहर का खाना बना कर जो जाना होता है.सब्जी -दाल तो बनानी ही होती है।
'आजकल' इसलिए कहा क्योंकि आजकल माया के सास-ससुर उनके पास मिलने के लिए आये हुए हैं।अपनी सामान्य दिनचर्या में तो रात को अगले दिन की तैयारी करके रखी जाती है।
सास-ससुर के चार बेटे हैं इसलिए साल भर में कभी किसी के पास तो कभी किसी के पास रहने चले जाते हैं । वैसे  उन्हें अपना घर ही सब से प्रिय है वे कहीं भी स्थायी रूप से रहना नहीं चाहते ।
एक स्थान पर रहते -रहते उस स्थान से खास मोह या लगाव होना स्वाभाविक भी है।

माया को सुबह ६ बजे ऑफिस  के लिए निकल जाना होता है ,सुबह का नाश्ता और दोपहर के लिए दाल -सब्जी बना कर जाना होता है इसलिए चार बजे से थोड़ी देर भी हो जाए तो मुश्किल हो जाती है सब कुछ निपटाने में।
वह सारा काम व्यवस्थित कर के पूरा कर ही लेती थी।
सास -ससुर दोनों ही अपना काम स्वयं कर लेने में सक्षम हैं ।
उसने यही सोच कर दोपहर की चपातियाँ नहीं बना कर रखीं कि तब तक तो सूख  जायेंगी ,सासू माँ तो घर में  हैं ही ,दिन में खुद बना कर खा लेंगे। माईक्रोवेव का उपयोग करना भी उन्हें आता है।
उसने जाते हुए कहा कि मैं तो ४ बजे लौटूंगी ,आप लोग खाना खा लिजीयेगा ।

माया शाम चार बजे घर लौटी ,मालूम हुआ कि दोनों ने खाना खाया नहीं !
पूछने पर कहा कि तुम्हारे आये पर ही खायेंगे। नाश्ता भारी कर लिया था इसलिए दोपहर को इतनी भूख भी नहीं थी।
चार बजे सुबह की जागी हुई ,ऑफिस का काम ..थकी तो  हुई थी लेकिन कुछ बोली नहीं चुपचाप कपडे बदल कर खाना गरम कर के चपातियाँ बनाने लगी।
खाना खिलाने के बाद आटे से सने हाथ धोने लगी ।
पतिदेव ५ ३० घर आते हैं और उनका खाना भी तभी बनता है ,आज सारा काम करते करते ५ बज ही गए थे ,एक हलकी सी नींद लेने का समय भी नहीं बचा था.उसने सोचा आधे घंटे की बात है रोटियां बना कर रख दूँ फिर थोडा लेट जाउंगी.शाम ७ बजे फिर रात के खाने की तैयारी जो करनी होगी।
गैस पर तवा रखा .सासू  माँ ने पूछा अभी किसके लिए ?माया ने बताया कि अभी थोड़ी देर में आयेंगे तो सोचा रोटियां बना कर रख दूँ।

सासू माँ ने छूटते ही कहा कि वो तो दिन- भर ऑफिस में काम करके  थका हुआ आएगा , तभी गरम बना कर खिला देना ,अभी से बना कर क्यूँ रख रही है?

माया चुप ही रही गर्दन हिला कर गैस बंद कर के अपने कमरे में चली गयी।
बिस्तर पर लेटी दीवार को ताकते हुए सोच रही थी कि 
एक स्त्री दूसरी स्त्री के प्रति इतनी संवेदनहीन कैसे हो सकती है ?क्या सिर्फ़ उनका बेटा ही ऑफिस में काम करता है जो वही थका हुआ होगा?क्या मैं ऑफिस से थकी -हारी  नहीं आई हूँ ?या एक स्त्री बाहर काम करने जाती है तो वह 'काम' कहीं गिनती में नहीं होता? 
उसे घर की भूमिका हर हाल में उसी तरह से निभानी होगी चाहे वह कामकाजी हो या न हो?
ऐसी बात उन्होंने कैसे सोची और कही ....क्या बहू इंसान नहीं मशीन होती है ?हो सकता है  बेध्यानी में यह  बात कही ..मगर कही तो है ही...जो  दिल में कहीं गहरे असर कर गयी है .और यही सब  सोचते -सोचते उंसकी आँख लग गयी।
picture courtesy-nbelferarts



March 2, 2013

लघुकथा-१

कहानी कहना मुझे बहुत अच्छा तो नहीं आता,लेकिन प्रयास कर रही हूँ ,
एक ऐसी शृंखला शुरू करने की जिस में  ऐसी बातें /घटनाएँ/किस्से  जो पहले सुने -कहे न गए हों ,हमारे आस-पास ,हमारे परिचितों या उनके सम्बन्धी/दोस्तों के साथ हुई बातें /घटनाएँ हों...इसकी -उसकी /इस से -उस से सुनी बातें..... . उनको कहानी का रूप दे कर प्रस्तुत करूँ..थोड़ी कल्पना और थोड़ी सच्चाई देखें शायद थोड़ी सी कहानी बन जाए!शुरुआत करती हूँ इस लघुकथा से -जिसका शीर्षक नहीं रखा।

लघुकथा-१

सुबह की ठंडक का अहसास घर के बाहर आने पर ही हुआ। 
वर्ना अंदर तो गरमाहट थी इसलिए तो स्वेटर भी नहीं पहना था उस ने!न ही कोई शाल ही ली। 
माया घर से थोड़ी दूर पर बने बस स्टॉप पर पहुँच गई थी। एक दो घंटे  और हलकी सी सर्दी रहेगी फिर तो धूप आ ही जायेगी,यह सोचते हुए उसने अपनी साडी के पल्लू से खुद को ढक सा लिया। 
बैग पर हाथ गया तो कुछ छूट गया है लगता है ?चेक किया तो पाया कि  वह  घर की रसोई में ही अपना लंच बॉक्स भूल आई है। 
उसके ऑफिस के आस-पास कोई केंटिन या खाने -पीने की जगह भी नहीं कि खरीद कर खा लेगी। अभी घर वापस जायेगी तो बस छूटने के पूरे चांस हैं। 
आज जाने कैसी जल्दी -जल्दी में काम हुए हैं कि नाश्ता भी नहीं किया। मन में कहा लो आज तो व्रत हो जाएगा! 
मगर वह यह भी जानती है कि भूखा उस से रहा नहीं जाता। 
परेशानी तो होगी ही..क्या करें ..सामने दूर  से आती बस भी उसके स्टॉप तक पहुँचने वाली थी। 
घर की तरफ़ देखते हुए उसे बचपन का एक दिन याद आया जब वह टिफिन भूल गई  थी  तो माँ दौडकर स्टॉप तक आयी  और  लंच बॉक्स दे कर गई थी। 

आसमान को अपलक देखते हुए सोचती है माँ क्यूँ हर समय साथ नहीं होती?

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