स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

March 22, 2012

जब मैं 'मैं' नहीं 'हम' होता है...


इसी नतीजे पे पहुँचते हैं सभी आखिर में,
  हासिल ए सैर ए जहाँ कुछ नहीं हैरानी है . ---------------------------------
जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने
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शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है
सोचता रोज़ हूं मैं घर से नहीं निकलूंगा
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सबका अहवाल वही है जो हमारा है आज
ये अलग बात है शिकवा किया तन्हा हमने
---शहरयार----

इन पंक्तियों के लिखने वाले मशहूर शायर शहरयार साहब थे. इन शेरों को पढ़ कर उनकी   छवि एक संवेदनशील शायर के रूप में दिमाग में बन जाती है और इन्हीं पंक्तियों के लिखने वाले के बारे में जब कोई ऐसा बयान आता है जो इस छवि के विपरीत हो..जैसा कि उनकी पत्नी ने उनके मरणोपरांत दिया था. कोई भी यकीन नहीं कर पाता .

यह भी काफी हद तक सच है कि एक स्त्री जो कई साल अपने पति के साथ रही है वह उस के मरने के बाद उसके लिए गलत नहीं बोल सकती.

March 15, 2012

की बोर्ड वाली....

कुछ दिनों पहले हिंदी की महिला ब्लोगरों पर डॉ. ज़ाकिर का लिखा एक बहुत अच्छा लेख लखनऊ के अखबार में छपा था 'की बोर्ड वाली औरतें '..
जिस  का ज़िक्र उन्होंने अपने ब्लॉग पर भी  किया.शीर्षक पढ़ कर थोडा अटपटा सा लगा .सच  कहूँ तो बुरा लगा..क्योंकि 'औरतें' शब्द सुनना खराब लगता है.उन पर की बोर्ड वाली औरतें!...'महिलाएँ' लिखा होता तो सही लगता ..एक  ब्लोगर ने टिप्पणी भी दी..'कि तथाकथित ब्लोगरों में से किसी  ने अभी तक इस शब्द पर आपत्ति क्यूँ नहीं की!
उस के जवाब में डॉ.ज़ाकिर का कहना था कि यह संपादक का दिया शीर्षक है .
मैं ने भी पोस्ट पढ़ी ,लिखना चाह रही थी लेकिन वहाँ कुछ लिखा नहीं न जाने क्यूँ  यह बात मन में घूमती रही..'की बोर्ड वाली औरतें!'
[ज्ञात हो कि की बोर्ड का कनेक्शन अंतर्जाल से भी  है .]
पिछले साल जब मैं भारत गयी तब साथी महिला ब्लोगरों से भी मिलना हुआ था ..बातों -बातों में यह बात भी सामने आई कि पुरुषों द्वारा  अंतर्जाल पर  फेसबुक पर/आने पढ़ने या लिखने वाली महिलों को 'उपलब्ध' अंग्रेज़ी में कहें तो 'available'! समझा जाता है.

ब्लॉग लिखना जिस जोश और उत्साह  से शुरू किया था वह धीरे धीरे ब्लॉग जगत /अंतर्जाल में महिलाओं के प्रति लोगों [सामन्यतः]के विचारों
को जानते हुए कम होने लगा.