*****बहुत दिनों बाद ब्लॉग की चुप्पी को तोडा जाए .:).............*****
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चित्र -साभार : शायक आलोक |
कुछ चित्र बोलते हैं और मुझे ऐसा ही एक चित्र यह लगा ! शायक आलोक जो स्वयं एक उम्दा कवि हैं लेकिन जब तस्वीरें खींचते हैं तो वे भी छवि न रहकर कविता बन जाती है ,इसी चित्र पर मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं।
आशा है कि एक मुकम्मल कविता बन पायी है ।
पीठ की लकीर
स्त्री! तुम्हारी पीठ की लकीर रखनी होगी
तुम्हें हमेशा सीधी!
क्योकि यही करेगी तुम्हारे काँधे के बोझ का संतुलन
और यही रखेगी तुम्हारा सर ऊँचा !
स्त्री !तुम्हारी पीठ की लकीर बनाएगी तुम्हें श्रद्धेय
और दिलाएगी तुम्हें तुम्हारा उचित स्थान !
स्त्री!यही करेगी तुम्हें सदियों की दासता से मुक्त
और दिलाएगी तुम्हें अपनी पहचान !
स्त्री !इसी से मिलेगी तुम्हारे ठहरे क़दमों को गति
और बनाएगी तुम्हें मनु की संतान !
स्त्री! तुम्हें करना होगा पोषित इसे नियमित
क्योंकि इसी से उगेंगे तुम्हारे नए पंख
अंकुरित होंगे यहीं से नए हौसले
और कर पाओगी विस्तृत नभ में ऊँची उड़ान !
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{अल्पना वर्मा }
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