यह गीत मुझ से सबसे ज्यादा सुना गया है ,दो उर्दू अखबारों में प्रकाशित भी हो चुका है.
मुझे भी बेहद प्रिय है.
भूल जाएंगे तुम्हें
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जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
जब कभी सपने भी हम से रूठ जाएंगे,
भूल जायेंगे तुम्हें हम भूल जायेंगे .
हमने अपनी उम्र का सौदा किया जिससे,
वो मिलेगा फ़िर कभी तो पूछूंगी उस से,
बिन तुम्हारे अपना क्या हम मोल पाएंगे,
भूल जायेंगे तुम्हें हम भूल जायेंगे......
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
तुमने माना था हमी को प्यार के क़ाबिल,
फ़िर बने क्यों मेरे अरमानों के तुम क़ातिल,
जब कभी आँखों से आंसू सूख जाएंगे,
भूल जायेंगे तुम्हें हम भूल जायेंगे......
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
संग तुम्हारे कटते थे जो मेरे रात और दिन,
अब कटेगी कैसे कह दो ज़िंदगी तुम बिन,
जब कभी साँसों के बन्धन छूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे.
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
डूबती कश्ती ने तुमको समझा था साहिल,
लेकिन तुम ने दे दिया गैरों को अपना दिल,
जब कभी धड़कन से रिश्ते छूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे.
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे,
एक मुठ्ठी आसमां की चाह थी हमको ,
लेकिन तुमसे नाउम्मीदी ही मिली हमको,
जब फरिश्ते मौत के हम को सुलायेंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे.
जब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
भूल जाएंगे तुम्हें हम भूल जाएंगे
-written by Alpana Verma [2003]
January 16, 2008
गीत -- इक़रार
geet suniye meri awaaz mein.
इक़रार-एक गीत
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वो कहता है मैं तन्हा हूँ, करो कुछ प्यार की बातें,
मैं कहती हूँ नहीं मुमकिन, करूँ क्या प्यार की बातें,
1]-वो कहता है, अगर कह दो तो, ला दूं चाँद तारे भी,
मैं कहती हूँ ,अरे छोडो, हैं ये बेकार की बातें,
वो कहता है..........
2]-वो कहता है, बड़ी नाज़ुक है चाहत की तबीयत भी'
मैं ये जानूं ,वो रोता है सुन के, इन्कार की बातें,
वो कहता है............
3]-कहूँ कैसे के, इस दिल में, सदा तुम थे सदा तुम हो,
रुकी लब पे, आके हरदम, तुम से इज़हार की बातें,
वो कहता है............
4]-ये वादा, उम्र भर के साथ का, जो तुम ने कर डाला,
मैं कायल हूँ , तो अब कर लें, चलो इक़रार की बातें,
वो कहता है.............
-Alpana Verma[2005]
January 15, 2008
छोटी कविता- ' अहसास '
किस कहानी का सुरीला आगाज़ हो तुम ?
उड़ चला है मन मेरा न जाने कहाँ ,
क्या कोई परवाज़ हो तुम?
भेदना चाहूँ तो भी खुलता ही नहीं ,
सदियों से दफ़न गहरा
कैसा अजब राज़ हो तुम?
छू जाता है ,बिन आहट
मेरी रूह को अक्सर,
मीठा सा अहसास हो तुम!
-अल्पना वर्मा
उड़ चला है मन मेरा न जाने कहाँ ,
क्या कोई परवाज़ हो तुम?
भेदना चाहूँ तो भी खुलता ही नहीं ,
सदियों से दफ़न गहरा
कैसा अजब राज़ हो तुम?
छू जाता है ,बिन आहट
मेरी रूह को अक्सर,
मीठा सा अहसास हो तुम!
-अल्पना वर्मा
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