स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

July 25, 2017

कित गए बदरा पानी वारे ?



अखबार में ,टी वी में खबरें सुन रहे थे कि इस बार बारिश बहुत हो रही है ,दिल्ली में बारिश हो रही होगी,नहीं हुई तो हो जाएगी ,यही मन में लिए अमीरात की भयंकर गर्मी से निकल कर भारत की ओर चले .

भारत भूमि पर क़दम रखते ही सोचा इस बार सावन के महीने में बरखा रानी का आनंद मिलेगा.
गर्मी के मौसम से राहत  मिलेगी,परन्तु इतनी उमस भरी गरमी से दो चार होना पड़ रहा है ,जिसे देखकर लगता है कि अगर यही हाल रहा तो आगे 'सावन का महीना, पवन करे सोर' गीत सब झूठ ही लगने लगेंगे.
न पवन न बादल किसी का शोर नहीं .

आसपास कहीं से कोयल ज़रूर कूकती सुनायी देती है ,मैंने पूछा कि जब सावन में बरखा की झड़ी नहीं तो ये क्यूँ कूक रही है ,तब पता चल कि कूक कर यह अपने बच्चे को बुलाती है.
वहीँ कहीं गीत बज रहा है 'सावन के दिन आए ,सजनवा आन मिलो'..रेडिओ वालों के लिए ये गीत अवसर के अनुसार बजते हैं ,अब सच में  इस सजनी से पूछें कि क्या साजन इस उमस भरे मौसम में मिलने के लिए बुलाये जा सकते हैं?

सावन का महीना झूलों के लिए जाना जाता था ,लेकिन अब झूले दीखते नहीं ,गाँव देहात में भी नहीं.उत्तर प्रदेश में घेवर खाने का महीना भी यही है ,अब यह मिठाई भी गिनी -चुनी दुकानों में मिलती है.
मौसम में परिवर्तन के लिए पर्यावरण प्रदूषण और न जाने कितने अन्य कारणों को गिनवाया जा सकता है लेकिन जो  सांस्कृतिक परिवर्तन भी हो रहे हैं उसका क्या ?
बादल छाकर चले जाते हैं ,हल्का-फुल्का  कभी बरस भी गए तो उसके बाद इतनी उमस कर जाते हैं कि पूछो न!

देखें राखी बाद , भादों लगते मौसम बदलेगा या नहीं  ?


July 1, 2017

पैरों के पर !

कविवर ब्लॉगर राजेंद्र स्वर्णकार जी का सन्देश मिला कि आज ब्लॉग दिवस है तो सभी ब्लॉगर अपनी एक पोस्ट अवश्य पोस्ट करें .पोस्ट लिखने का मन नहीं था लेकिन 'ब्लॉग जगत के पुराने दिन लाने के जो प्रयास किये जा रहे हैं ,उसमें अपना योगदान दिए बिना न रह सकती थी  इसलिए यही आत्मालाप पोस्ट के रूप में प्रस्तुत है -

जून १६ से १७ 

--------२०१६ ,जून महीने से २०१७ का जून महीना ...
इस पिछले एक साल में इतना कुछ अनुभव किया जिसपर आराम से एक किताब लिखी जा सकती है!
बहुत बार ग्रहों -नक्षत्रों की चाल पर यूँ ही विश्वास नहीं जागने लगता ,क्योंकि इतना अनापेक्षित घटने लगता है कि अचानक एक दिन आप
अपने दिमाग की सभी खिड़कियाँ बंद करके यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं अब मैं सिर्फ अपने काम करता जाऊँगा ..क्या होगा  क्या नहीं ,ऊपर वाला जाने ! और यही तो गीता  का भी उपदेश है कि कर्म किये जाओ फल की इच्छा न करो ...

लेकिन इस स्थिति पर पहुँचने के लिए या इस स्थिति को समझ कर ग्रहण करने के लिए आपको कई ऐसे अनुभवों से गुज़रना पड़ता है जिनसे आप सीखते भी जाते हैं और उन सीखों को साथ -साथ जीवन में उतारते चले जाते हैं.हाँ पहली बार भगवद गीता का पूरा पाठ और पुनर्पाठ भी किया ताकि अपने प्रश्नों के उत्तर पा सकूँ लेकिन लगता है इस पुस्तक को फिर से पढ़ना होगा .कई अनुत्तरित प्रश्न अब भी हैं.

  इस एक साल  में मैंने यात्राएँ  भी इतनी की कि लगने लगा है कि मेरे पाँव में पहिये बाँध दिए गए हैं.
एक हफ्ते बाद फिर से यात्रा की तैयारी है ! आशा है इस बार यह कुछ अच्छी खबर और अच्छे अनुभव दे कर जाएगी.
यात्राओं के अनुभव चित्र सहित अगली बार ...
तो अब ब्लॉग जगत को पुराने रूप में वापस लाने के 'ताऊ रामपुरिया जी ' के इस प्रशंसनीय प्रयास में सहयोग देते हुए  'हिंदी  ब्लॉग दिवस' पर  ब्लॉग -यात्रा पर निकला जाए ...राम-राम !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग