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आज न कविता है न गीत।
आज कुछ विचार हैं जो मेरे मन में आए और चाहा कि उन्हें आप के साथ बाँट लूँ ।यहाँ महिला मुक्ति की बात नहीं की जा रही.
बस,कुछ सवाल हैं,जिनके जवाब नहीं मिलते.कुछ घटनाएँ कुछ किस्से अक्सर झकझोर जाते हैं कि क्यों पुरूष का अहम् एक अभेद दीवार जैसा होता है. जिस का सहारा भी हम लेना चाहते हैं और उस के पार जाने की ख्वाहिश भी रखते हैं.एक सामान्य स्त्री इस दुनिया में आज भी पुरूष के अधीन है और आधीन रहना पसंद करती है.यूँ तो स्त्री -पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं.लेकिन जब आप पढ़ी लिखी working स्त्रियों से भी पूछेंगे तो वो भी पुरूष को एक छत्र छाया के रूप में देखना पसंद करती हैं.एशियन और अरब स्त्रियों के साथ हुई बातचीत से मेरा अनुभव यही कहता है।
घर में जब पुरूष सदस्य नहीं होता तो बाहरी दुनिया अनजान लगती है ,भय लगता है।रात को कई बार आंख खुलती है सभी बालकनियों के और घर के दरवाज़े उठ उठ कर चेक किए जाते हैं.अपने पाँव पर खड़ी आर्थिक रूप से सक्षम महिला भी पुरूष के सहारे को अपना बल मानती है.
ऐसा क्यों है?इसे आप क्या कहेंगे?निर्भरता?या पुरूष के नारी का पूरक होने का प्रूफ़!
दुनिया में अच्छे पुरूष भी हैं जो महिलाओं के मन की भावनाओं का सम्मान करते हैं.मगर यहाँ मैं सिर्फ़ कुछ अलग से cases की बात कर रही हूँ.
समाज के दो रूप--:
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बस में चढते हुए देखा -'महिला सीटों पर पुरूष बैठे हैं!'
उतर कर एक किनारे चुपचाप खड़ी हो गई।[ड्राईवर ने पुरूष सवारियों को वहां से हटा कर पीछे की सीट पर भेज दिया।अब जगह खाली थी.
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गला खराब था,डॉक्टर की दिखने हस्पताल गई।कंप्यूटर में एंट्री करते समय रिसेप्शनिस्ट ने 'प्रेफेरेंस' पूछी--'महिला चिकित्सक या पुरूष चिकित्सक ? किसे दिखाना चाहेंगी?महिलाओं को अहमियत और उनको दिए जा रहे सम्मान को देख खुशी हुई।
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एक महिला को sms मिला-'i like you।you are beautiful'
पुलिस में शिकायत दर्ज हुई'-जुर्म-'privacy invasion'
-sms भेजने वाले पुरूष को २००० dhs जुरमाना और चेतावनी दी गई।
एक महिला की बात को इतनी अहमियत!कानून के दिल में महिलाओं के लिए हमेशा नरम कोना है.
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मगर क्या यह सम्मान या अहमियत क्या सिर्फ़ कानून को मानने का एक हिस्सा भर हैं?
फिलपींस से आई मारिया को यहाँ naukari kartey ३० साल हो गए...बहुत कमाया..अकेले रहती है..हर साल घर जाती है ..सोचती है इस बार उस का पति उसे घर वापस आने को कहेगा मगर नहीं वह हर बार उसे एक 'नए लोन 'के साथ नई जिम्मेदारी दे कर वापस भेज देता है।५८ की उमर में भी ९ घंटे की पूरी ड्यूटी करती है.उस के जैसी और भी कई फिलिपींस की महिलाएं यहाँ सालों से अकेला जीवन बिता रही ------us ki जिम्मेदारी सिर्फ़ पैसा kamaana रह गया है!
यह कैसा जीवन है?
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---- की रहने वाली नूरा...अपने पति से १९ साल छोटी है उस ki shaadi ke आठ साल में यह छठा बच्चा है।हम उसे समझाते हैं,जैसे उनके देश की असंतुलित स्थिति है ऐसे में थोड़ा प्लानिंग करे.वह कहती है-- 'वह सिर्फ़ अपने पति की इच्छा को जानती/मानती है!'
पढी लिखी समझदार वर्किंग नूरा के पास कोई और रास्ता नहीं है.
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ना जाने कितने ही किस्से याद आ रहे हैं - यही समझ आता की कोई समाज हो या देश...यह दुनिया मुख्यतः पुरूष प्रधान ही है और रहेगी।
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एक सवाल मुझसे एक अरब लड़की ने पूछा था-'भारत में अमूमन एक आदमी की कितनी बीवियां होती हैं।?मेरे जवाब कि अमूमन एक पति की एक पत्नी होती है.तो उसे विश्वास नहीं हुआ ।वह इसे सच मानी ही नहीं।[शायद जिस परिवेश में वह पली बढ़ी वहां इस बात की कल्पना भी झूठी लगती है.]
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जब भी ये गीत सुनायी देता है --'अब जो किए हो दाता फ़िर से न कीजो,अगले जनम मोहे ..]
ये सब किस्से फ़िर से याद आ जाते हैं
और यही सवाल उठता है कि क्या पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं के लिए दिखने वाला' यह सब सम्मान 'सिर्फ़ कानून और नियमों का पालन मात्र है?
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[सभी घटनाओं में 'नाम' बदल दिए गए हैं.पोस्ट को संशोधित किया गया है.]