हर वर्ष की भांति आज 26 जनवरी को हम अपना गणतंत्र दिवस मना रहे हैं ।
हम भारतीय कुछ अधिक ही आशावादी हैं,होना भी चाहिए लेकिन इन कुछ सालों में राष्ट्र का आशानुरूप उत्थान नहीं हो सका बल्कि पतन ही हो रहा है । इसलिए अब और नहीं !
हाल ही की कुछ घटनाओं,दुर्घटनाओं और नेताओं के कुछ गैर ज़िम्मेदार बयानों से जो नुकसान देश की छवि को पहुंचा है वैसा पहले कभी नहीं देखने को मिला ।
हम से लोग जब उन खबरों पर सवाल करते हैं तो कोई जवाब देते नहीं बनता।आज देश की ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है?
न केवल सत्ताधारी बल्कि वे लोग भी हैं जो चुनाव में अपने विवेक से मतदान नहीं करते या मतदान अधिकार का प्रयोग ही नहीं करते और बाद में गलत लोगों के हाथ में सत्ता चले जाने पर शोक मानते हैं ,अफसोस करते हैं। आज का भारत युवाओं का भारत है सारी दुनिया की निगाह इस पर टिकी है ,उनके लिए एक पुकार है क्योंकि देश को गणतंत्र बने इतने साल गुज़र गए मगर आगे ले जाने की बजाए देश को नैतिक, मौलिक व सांस्कृतिक पतन की ओर धकेला जा रहा है।
अब भी समय है जागने का ,युवाओं को अपनी शक्ति पहचानने का ,अपना स्वाभिमान जगाने अन्यथा फिर से गुलाम होते देर नहीं लगेगी ।
और इस बार गुलाम हुआ तो अगले 500 सालों तक भी कोई आज़ाद नहीं करा सकेगा। पाश्चात्य रंग में पूरा रंगने पर भी आप उनके देश में गैर ही हैं और अपनी धरती तब भी आप को अपना ही कहेगी।
हमें आज भी खुद के भारतीय कहने पर गर्व है ,आनेवाला कल भी इस मान को बनाए रखे इसके लिए मन से भी हरेक को पहले स्वयं को 'भारतीय' स्वीकारना होगा।
पुकार
मना रहे शुभ पर्व ,ये सन्देस कहना है तुम्हें ,
आज ही नहीं , हर दिन सजग रहना है तुम्हें ,
जो फैला रहे घृणा जन-जन में, उनको ढूंढ लो,
कर दो निर्मूल उसको, जिसमें ये विषफल फले ,
बाँटने को देश ,बढ़ रहे फिर से कई जो हाथ हैं ,
अपनी चतुराई और बाहुबल से उनको तोड़ दो ।
चलने लगी हैं आँधियाँ, नीड़ उजड़ने लगे ,
कर के काबू इन हवाओं के रूखों को मोड दो ।
माफ़ी की जगह नहीं , इस बार जो चुके कहीं ,
ये समझ लो आखिरी है युद्ध, फिर दूजा नहीं ।
हो चुका अन्याय बस ,और अब सहना नहीं ,
टूटने लगा है जो विश्वास, उसको जोड़ दो ।
खो रही है आस ,और कराहती है भारती ,
है बहुत अधीर मन , पुकारती है भारती ।
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