होता है कई बार जब मन में विचारों का इतना उठाना-गिरना होता है कि लगता है कितनी टूट -फूट हो गयी है I
देह की भांति मन भी थक जाता है I वह कहीं दूर जाना चाहता है ,शायद कल्पनाओं के देश.... जहाँ उसकी अपनी दुनिया होती है जैसे चाहे वैसे सुकून पाता है ,जैसे चाहे मौसम बना लेता है ,हवा में जैसे चाहे रंग भर देता है मन जिसकी असीम ताकतें हैं,अनगिनत आँखें !एक साथ न जाने कितने सपने देख सकता Iमन के लोक में विचरना उसे दुरुस्त करना ही तो है ,आत्मालाप ,आत्मसंवाद मन की सेहत हेतु योगाभ्यास हैं !
एक कविता जैसी रचना ---सुधार की गुंजाईश हो तो मार्गदर्शन कीजियेगा I
देह की भांति मन भी थक जाता है I वह कहीं दूर जाना चाहता है ,शायद कल्पनाओं के देश.... जहाँ उसकी अपनी दुनिया होती है जैसे चाहे वैसे सुकून पाता है ,जैसे चाहे मौसम बना लेता है ,हवा में जैसे चाहे रंग भर देता है मन जिसकी असीम ताकतें हैं,अनगिनत आँखें !एक साथ न जाने कितने सपने देख सकता Iमन के लोक में विचरना उसे दुरुस्त करना ही तो है ,आत्मालाप ,आत्मसंवाद मन की सेहत हेतु योगाभ्यास हैं !
एक कविता जैसी रचना ---सुधार की गुंजाईश हो तो मार्गदर्शन कीजियेगा I
दीवाली का चाँद
दीवाली की उस रात
सबसे ऊँची छत पर
तुम और मैं ,
जब अँधेरे की गोद में उजाले भरने के लिए
तुमने माँग लिया था चाँद
पुकारा था रात भर जुगनुओं को मैंने
मगर वे मेरे पास नहीं आये थे !
मुझे कैद करके रखना था उन्हें
ताकि उतनी ही सी रौशनी पाकर
अमावस के अंधेरे में छुपा ,
आसमान में टंका चाँद उतार लाता ,
और भरता चाँदनी तुम्हारी आँखों में
मेरे अहसासों की गीली छुअन पा कर
सिमट जाती अपने वजूद को तलाशने मुझ में
हवाएँ गवाह होतीं और जुगनू अमर हो जाते
बन के सूरज ताउम्र यह चाँद जलाता रहता मैं !
प्रिया !अगली बार तुम जुगनुओं को पुकारना !
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-अल्पना वर्मा
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