स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

April 30, 2009

रुके रुके से क़दम और बेरोज़गार

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में आज तीसरे चरण के मतदान हो रहे हैं.इन चुनावों के माहोल की गरमी हो या मौसम की गरमी .दोनों ही पूरे जोरों पर हैं.
स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी देश में बेरोज़गारी एक समस्या बनी हुई है.आज़ादी के ५० साल पूरे होने के अवसर पर यहाँ से एक पत्रिका [souvnir-१९९७-९८ में] निकाली गई थी ,उस में छपी मेरी यह कविता आज प्रस्तुत कर रही हूँ।

बेरोज़गार
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अन्धकार में अकस्मात,
एक रोशनी की किरण चमकी तो थी,
मगर,लुप्त हो गई!

आज फिर सोना होगा,बेबसी की चादर तले.
थक गया हूँ द्वार खटखटाकर ,
हर खुले द्वार के पीछे मिले अन्धकार के साए!
समझ से परे है कि यहाँ रोशनी भी बेनूर है,

जीवन के पिछले बसंत कितने सुहाने थे,
जब इस यात्रा की तैयारी भर करनी थी,
डगर यूँ होगी कठिन ,यह अहसास न था

पांवों में पड़े छाले ,हाथों का खुरदरापन,
बोलने लगते हैं,
मैं ही तो था,पिता की अंतिम आशा!
उनकी अपेक्षाएं अब कन्धों पर बोझ बनी,
खुद की नज़रों में मुझे छोटा किये जाती हैं!

कमर पर डिग्रियां, गले में तमगे अर्थहीन लगते है अब,
काश इन की जगह होते कुछ हरे पत्ते और सिफारिशों के टुकड़े!
छू लेता आसमान मैं भी जिनके सहारे!
हँसता ,नियति के क्रूर चेहरे पर!

मगर मैं माध्यम वर्ग का अदना सा प्राणी-
हंसने की कोशिश में ,
रिसने लगता है खून जिस के होठों से!

चलो--
कल की आस पर,
पलट देता हूँ आज का पृष्ठ!

सो जाता हूँ ओढ़ कर बेबसी की झीनी चादर को,
सपनो की मीठी रोटी खा,
दिलासाओं का खारा पानी पी,

इस आशा में -कि-शायद-
कल का सूरज काला नहीं ,उजाला बन कर आएगा!

--------[लिखित द्वारा --अल्पना वर्मा १९९७] -


'आज प्रस्तुत है गीत-'रुके रुके से क़दम',जो फिल्म-मौसम से है,लिखा है -गुलज़ार साहब ने और संगीत मदन मोहन जी का है.
यह मूल गीत नहीं है
.




यह गीत यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं.[ Mp3]

यह विडियो २ मई को जोड़ा गया है.
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April 21, 2009

उम्मीद देश की

कविताओं के मिजाज़ में थोडा सा परिवर्तन करते हुए,आज एक बाल गीत प्रस्तुत है जिसे समूह गीत की तरह भी गाया जा सकता है। इसे मैंने सरल शब्दों में लिखा है। यह लय बद्ध है। मैं अभी इसे रिकॉर्ड कर के नहीं दे पा रही हूँ,जल्द ही इस के ऑडियो के साथ पोस्ट को अपडेट कर दूँगी ।
[ऑडियो २८ अप्रैल को जोड़ा गया है]
उम्मीद देश की [बाल गीत]
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ओ नौनिहाल देश के ,है जागना तुमको,
हो हर तरफ अमन ,है दुआ माँगनी  तुमको,

न भुखमरी हो,न ही गरीबी का राज हो,
सब हों खुशहाल,हर तरफ खुशियाँ आबाद हो.

ओ नौनिहाल देश के...
अब आखिरी उम्मीद देश की तुम्हीं तो हो,
और देश के भविष्य की तुम ही तो नींव हो,

तो क्यों नहीं करते तैयार अपने ये कदम,
करनी है पार जिस से तुमको ये डगर कठिन,

करनी है पार जिस से तुमको ये डगर कठिन,

ओ नौनिहाल देश के...
कांटे मिलेंगे फूलों की ,तुम चाह न करना,
हो घोर अँधेरा  कहीं ,पर,तुम नहीं डरना ,

आगे ही आगे ,बस ,तुम्हें आगे ही है बढ़ना,
होंगी कई बाधाएं ,मगर,तुम नहीं रुकना,

होंगी कई बाधाएँ  ,मगर तुम नहीं रुकना,

ओ नौनिहाल देश के...

तुम कामयाब हो न सकोगे तब तलक,
जब तक तुम्हारी आँखों में न कोई आस हो,

तो उठा लो क़दम अपने ,एक साथ तुम,
उम्मीद की लौ ,अपनी आँखों में बाल लो,

फिर देखना सफलता कैसे क़दम चूमेगी,
होगी विजय पताका तुम्हारे ही हाथ में,

होगी विजय पताका तुम्हारे ही हाथ में,

ओ नौनिहाल देश के ,है जागना तुमको,
हो हर तरफ अमन ,है दुआ माँगनी तुमको,

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इस गीत को नीचे दिए प्लेयर पर सुन सकते हैं या यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं


कल मेरे सुपुत्र तरुण का १३ वाँ जन्मदिन था.आप की शुभकामनाओं के अभिलाषी हैं[यह तस्वीर पहली पोस्ट की गयी तस्वीर से बना कर एक ब्लॉगर साथी ने भेंट की है.आप सभी के तरुण को दिए स्नेह और शुभकामनाओं के लिए तहे दिल से धन्यवाद करती हूँ.]




April 14, 2009

पाती नेह की



यह चित्र मुझे कल एक मित्र द्वारा भेजी ईमेल में मिला.इस ईमेल के अनुसार ,इस में उत्तरी ध्रुव पर सूर्य अस्त होते दिखाई दे रहा है.चंद्रमा धरती के सब से नज़दीक है.चंद्रमा के नीचे छोटी सी गोल आकृति सूर्य की है.यह सच में एक अद्भुत नज़ारा है.मगर यह सच नहीं है.वास्तव में धरती से चंद्रमा को सूर्य की तुलना में नग्न आँखों से इतना बड़ा आप देख ही नहीं सकते.और दोनों की धरती से दूरी भी यही कहती है.इस लिए यह तस्वीर एक छलावा मात्र है. सच नहीं!






पाती नेह की
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सावन के काले बादल संग,
पवन बसंती लाना,
प्रेम संदेसा भेज रही हूँ ,
प्रियतम तुम आ जाना.

कूक रही कोकिल का ,
भाये गीत सुहाना .
क्रीडा मग्न भ्रमर पुष्प संग ,
कलियों का इठलाना .

लहरों का उठ गिरना,
तट के पार कभी बह जाना.
अध मूंदी पलकों में ,
अनगिन स्वप्नों का बुन जाना.

तप्त भया शीतल मन,
घन बन मेह सरस बरसाना .
रीती नेह गगरिया ,
प्रियतम प्रेम सुधा भर जाना.

प्रेम संदेसा भेज रही हूँ ,
प्रियतम तुम आ जाना.
सावन के काले बादल संग,
पवन बसंती लाना..प्रियतम तुम आ जाना।

-अल्पना वर्मा


'हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू,
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो.'

-फिल्म-खामोशी का यह सदाबहार गीत प्रस्तुत है...मेरी आवाज़ में..
[यह मूल गीत नहीं है.]


Download mp3 Or play ,

April 2, 2009

'आत्मदाह'

मदन मोहन जी एक महान संगीतकार थे.उनके संगीतबद्ध गीत मुझे बहुत अच्छे लगते हैं.आज उन्हीं का एक गीत ले कर आई हूँ.लेकिन उस से पहले प्रस्तुत है यह कविता..जिस में है कुछ विवशता,कुछ बेचैनी -यह कविता आहत मन की वेदना को व्यक्त करते हुए है..-


'आत्मदाह'
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वक़्त की एक चाल

और -

बंध गया ,

हाथों की उन लकीरों में ,

जिन से कभी खेलता था

'वो' !

अधरों पर -
संबोधनहीन संवाद

और -

संज्ञा रहित पहचान लिए-

मृत कल्पना की सूचना से
'आहत '-

सूखे पत्ते सा,

शाख से टूट जब गिरता है

तब -

चला आता है,

देह की अटारी पर ,

'मन'

आत्मदाह के लिए!
----अल्पना वर्मा -----

'सुनिए फिल्म-'वो कौन थी' का यह गीत.[Cover version by Alpana]
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो'