बेनाम ग़ज़ल --------------- है चाहत, बस, लिखता है , घुटता ,बेनाम मिटता है. दर्द की इंतिहा हुई जब, हर ज़र्रा खुदा दिखता है . खुली आँखें,खामोश जुबान , जी! इन्साफ यहाँ बिकता है. भीड़ में लगता 'अपना सा', रोज़ आईने में मिलता है. जागती आंखों से सोने वालों , ख्वाब, छत से भी गिरता है. ---अल्पना वर्मा द्वारा लिखित -- ३१-१-२००९ को प्रसिद्ध गज़लकार आदरणीय श्री 'चन्द्रभान भरद्वाज जी 'ने मेरी इस ग़ज़ल को ग़ज़ल व्याकरण के अनुसार ,सुधार कर यह रूप दिया है और इस के लिए उन्हें धन्यवाद .मैं उन की आभारी हूँ.2222 222 पूरी गज़ल को इसी अरकान में बांधा है । है चाहत बस लिखता है; बेदम घुटता मिटता है। दर्द चरम पर पहुँचा तो, स्वयं खुदा सा दिखता है। आंख खुलीं खामोश ज़ुबां, न्याय यहाँ पर बिकता है। भीड़ में लगता अपना सा, आईने में मिलता है। खोल आंख सोने वालो, छत से भी ख्वाब उतरता है। |
अपना गाया Karaoke ]एक गीत भी सुनाती चलूँ---'चोरी चोरी जब नज़रें मिलीं'...फ़िल्म-'करीब' ]