😢🙏अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि !सादर नमन!
सदियों तक आपके गीत इस धरती पर आपकी उपस्थिति बनाए रखेंगे।
दिली इच्छा थी कि आपको रूबरू देख सकूँ !
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'वन्दे भारत मिशन' के तहत स्वदेश वापसी Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...
😢🙏अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि !सादर नमन!
सदियों तक आपके गीत इस धरती पर आपकी उपस्थिति बनाए रखेंगे।
दिली इच्छा थी कि आपको रूबरू देख सकूँ !
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प्रस्तुत है एक मर्मस्पर्शी कविता जिसे निरुपमा जी ने लिखा है ।सरल ,सहज शब्दों में सशक्त अभिव्यक्ति उनकी रचना की पहचान है।
गत वर्ष जिस प्रकार एक नन्हे से वायरस से ना जाने कितने जीवन छीन लिए ,उस समय जिस विकराल रूप में यह हमारे समक्ष आ खड़ा हुआ था ,हर किसी का हृदय पल -पल अनजाने भय से आशंकित रहने लगा था।
उस काल के प्रहार से ,हर ओर के हाहाकार से आहत मन की अभिव्यक्ति को शब्द दिए हैं कवयित्री ने इस कविता में -:
मेरा जीवन:तुमको अर्पण -डॉ. निरुपमा सिंह मैं एक नन्हा-सा बीज,
जो माँग रहा था बस, इस धरा पर अपने हिस्से का कुछ अंश। हा,मनुष्य! तूने छीना मुझसे मेरा प्रांगण। प्रकृति के सब उपादानों को तूने समझा बस अपना धन, इस धरती ने दिया हमें जल, भोजन और जीवन, स्वार्थी बनकर करते रहे, तुम बस इस धरती का दोहन, प्रतिदान कुछ तो देना है,अत: प्राणवायु ही मेरा अर्पण हा, मनुष्य! तूने स्वयं ही नष्ट किए सब अपने जीवन साधन। मेरे पुरखों ने सदियों से किया तुम्हारा पालन-पोषण, निस्वार्थ भाव से किया अपना सब कुछ तुम्हें समर्पण। यह काल का है विकराल प्रहार, जिन वृक्षों को तुमने काटकर बनाए आकर्षण भवन, आज उन्हीं में बंद पड़े तुम माँग रहे अपना जीवन, कैसे भूल गए तुम मेरा निश्चल प्रेम और यह अर्पण। जिस प्राणवायु को मैं यूँ देता रहा हर-पल, आज उसी का कतरा-कतरा ढूँढ रहे तुम होकर विकल। हा, मनुष्य! अब बस बंद कर यह कातर क्रंदन, जो बोया था वो काटा है,यही सीख देता है भगवन! मुझे चाहिए मेरी धरती, मेरा प्रांगण हा, मनुष्य! कृत्रिम वस्तु पर जो करता था इतना घमंड न दे सका वह आज किसी को एक नया जीवन। मैं जो थोड़ी से धरती लेकर, देता तुमको शुद्ध पवन, पुनः करो यह मंथन, पुनः करो यह चिंतन। मेरा जीवन-तुमको अर्पण । ==================== |