पिछले कुछ दिनों से समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या लिखूं?
यूँ तो ब्लॉग पर सूचना पट लगा दिया था कि ब्रेक टाइम है!कुछ परिस्थितियां भी ब्लॉग लेखन के लिए अनुकूल नहीं हो पा रही थीं.ब्लॉग की दुनिया में महीने भर से मेरी अनियमितता बनी हुई थी.
अब स्थिति सामान्य हुई है तो सोचा यह बंद भी खोल दिया जाये.आज मुहूर्त निकल ही गया :)और यह कविता प्रस्तुत है..
यूँ तो ब्लॉग पर सूचना पट लगा दिया था कि ब्रेक टाइम है!कुछ परिस्थितियां भी ब्लॉग लेखन के लिए अनुकूल नहीं हो पा रही थीं.ब्लॉग की दुनिया में महीने भर से मेरी अनियमितता बनी हुई थी.
अब स्थिति सामान्य हुई है तो सोचा यह बंद भी खोल दिया जाये.आज मुहूर्त निकल ही गया :)और यह कविता प्रस्तुत है..
-तुम्हारी प्रिया हूँ - बरस जाओ बन मेह नेह का तुम, बिखरने लगी हैं ये व्याकुल सी अलकें,लरज कर लता सी सिमट जाऊँगी मैं. जो पल भर भी देखो,संवर जाऊँगी मैं. मैं कोमल कुमुदनी सी दिख तो रही हूँ, पवन बन जो आओ महक जाऊँगी मैं, कभी भीगें नैना और बिखरे जो काजल, मधुर हास देना ,बदल जाऊँगी मैं. तुम्हारी छुअन ने बनाया है चन्दन, यूँ हीं धड़कने तो , नवल पाऊँगी मैं . न जाओगे अब दूर,वचन मुझ को दे दो, विरह वेदना अब न सह पाऊँगी मैं. बरस जाओ बन मेह नेह का तुम, -लरज कर लता सी सिमट जाऊँगी मैं. ..अल्पना वर्मा .. |
अब है गीत की बारी -- प्रस्तुत है गीत'तेरी आँखों के सिवा' [फिल्म-चिराग]-- Teri Aankhon ke siwa[Chirag] Download or play Mp3 click Here यह गीत पिछले साल रिकॉर्ड किया था.इन दिनों कोई नया गीत भी रिकॉर्ड नहीं कर सकी इस लिए इसे ही यहाँ कविता के साथ पोस्ट कर रही हूँ.उम्मीद है पसंद आएगा. |
न जाओगे अब दूर,वचन मुझ को दे दो,
ReplyDeleteविरह वेदना अब न सह पाऊँगी मैं.
सुंदर प्रणय निवेदन खुबसूरत....
regards
बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत खुबसूरत है यह नेह निवेदन ............खो से गये कही .....अतिसुन्दर
ReplyDeleteAti sundar.
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDelete"पिछले कुछ दिनों से समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या लिखूं?"
ReplyDeleteगुस्ताखी के लिए क्षमा कीजिये अल्पनाजी, मगर जब बिना समझ आये इंसान इतनी बढिया रचना लिख ले तो फिर उसे कुछ समझने की जरुरत क्या है ? :-))
मैं कोमल कुमुदनी सी दिख तो रही हूँ,
ReplyDeleteपवन बन जो आओ महक जाऊँगी मैं,
ati sundar
Wah alpna g achhi rachna.......
ReplyDeletekhoob soorat ehsaas ka bakhoobi bayaan
ReplyDeletewaah !
सुन्दर रचना। गीत भी लाजवाब
ReplyDeleteकितना कोमल एहसास समेटा है आपने अपनी इस रचना मे.
ReplyDeleteबरस जाओ बन मेह नेह का तुम,
लरज कर लता सी सिमट जाऊँगी मैं.
बहुत सुन्दर
सुन्दर रचना। बधाई
ReplyDeleteवाह जी वाह तुसी तो चा गए....
ReplyDeleteसच में अल्पना जी क्या कविता लिखी है...
क्या भावः हैं और क्या शब्द हैं... सच में आपकी मेहनत दिखती है...
मीत
न जाओगे अब दूर,वचन मुझ को दे दो,
ReplyDeleteविरह वेदना अब न सह पाऊँगी मैं.
हम भी यही कहेंगे की इतना रुक के देर से पोस्ट न किया करे ..आप का लिखा हमेशा अपना सा लगता है ,,बहुत सुन्दर रचना आपकी कलम से बहुत दिनों के बाद पढना बहुत अच्छा लगा ..आवाज़ तो आपकी सदा ही भाती है दिल को शुक्रिया :)
बहुत खुबसूरत अहसास और अभिव्यक्ति है.....आपकी
ReplyDeleteरचनाओं का इंतज़ार रहता है.....डॉ.अमरजीत कौंके
अमृततुल्य सुस्वादु भोजन कर कोमल शय्या पर मृदुल समीर मध्य मीठी नींद में जो सुखद अनुभूति होती है,बिलकुल ऐसा ही लगा आपकी इस रचना को पढ़ने के उपरांत गीत सुनना...
ReplyDeleteएक तो आपकी सुन्दर प्रेम रस में सराबोर कविता का भोग और फिर मधुर स्वर में मधुर गीत का आनंद ....... वाह !!! आनंद आ गया सचमुच....
इस तरह आनंद प्रदान करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार....
अल्पना जी जैसे ही आपके ब्लॉग पे आया सबसे पहले निचे गया देखने के अगर गीत नहीं लगी है तो वापिस लौट जाऊंगा मगर नज़र तुंरत अटक गयी आपकी कविता पे ... बस दो लाइन पढा हूँ और अवाक रह गया ... अगर ब्रेक इस तरह की उम्दा सोच और ख्यालात देता है तो मैं भी जाने के लिए तैयार हूँ... निचे को गीत आपने लगा रखा है वो आपकी आवाज़ की सबसे पसंदीदा गीत है मेरे लिए ... आभार और बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteअर्श
इतने दिनों बाद इस गीत से आगाज सुखद है .एक नारी के भीतरी जज़्बात उकेरे है...तेरी आँखों के सिवा गीत मुझे भी बेहद पसंद है
ReplyDeleteमैं कोमल कुमुदनी सी दिख तो रही हूँ,
ReplyDeleteपवन बन जो आओ महक जाऊँगी मैं,
तुम्हारी छुअन ने बनाया है चन्दन,
यूँ हीं धड़कने तो , नवल पाऊँगी मैं .
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है .............. लाजवाब गीत और उतनी ही लाजवाब अओकी रचना ......... मन को महका गयी, किसी के होने का एहसास भी क्या कुछ कर जाता है ............ मन में उमंग, उल्लास का झरना सा बहता हुवा लगता है ......... बहुत ही मधुर, गुदगुदाता ...... रस से भरी रचना है आपकी ......... शुक्रिया
मार्मिक कविता है.
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक बेहतरीन रचना। शब्दों के चुनाव में आपका जवाब नहीं। एक से एक बेहतरीन शब्द। मेह शब्द तो कई दिन से मेरा पीछा कर रहा है। खैर आपकी रचना ने बहुत सुन्दर भाव कह दिये। और गीत तो हमें भी पसंद है।
ReplyDeleteबरस जाओ बन मेह नेह का तुम,
ReplyDeleteलरज कर लता सी सिमट जाऊँगी मैं
नारी मन की अनुभूतियों को बहुत सुन्दर रूप में अभिव्यक्त किया है। बधाई।
नेह और समर्पण की भावभीनी कविता -शिल्प और कथ्य में भी प्रभावपूर्ण ! शाबाश !
ReplyDeleteओह ,गीत तो सुनाई नहीं पड़ रहा !
मनमोहक रचना है
ReplyDelete---
मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
मैं कोमल कुमुदनी सी
ReplyDeleteबरस जाओ बन मेह नेह का
लरज कर लता सी
ध्वनि और लय इन शब्दों में बखूबी उभरी है
अल्पना जी
सुन्दर कविता और
आपका गायन हमेशा पसंद आता है
देर से आयीं आप ...
पर, रस वर्षा कर गयीं
स्नेह,
- लावण्या
अति सुन्दर रचना!! गीत तो बिल्कुल कर्णप्रिय बन पडा है!!
ReplyDeleteहमें भी कभी कभार पुराने गीतों को सुनना अच्छा लगता है और सच कहूँ तो ये वाला गीत हमारी फेवरेट सूची में भी है।
मैं कोमल कुमुदनी सी दिख तो रही हूँ,
ReplyDeleteपवन बन जो आओ महक जाऊँगी मैं,
कभी भीगें नैना और बिखरे जो काजल,
मधुर हास देना ,बदल जाऊँगी मैं.
waah prem ras mein dubi ye khubsurat rachana bahut manbhavwanrahi,itane dino ki saari kasar puri ho gayi.lajawab.
बेहद सुंदर और प्रभावशाली गीत, और उतनी ही कुशलता पुर्वक गाया गीत. लेखन और गायन का सुंदर संयोजन. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
bahut manmohak/madhur geet.
ReplyDeletealpana ji , sabhi panktian moti jadi.
bahut pasand aya ye geet. dheron badhai.
कुछ खटकता तो है पहलू में मेरे रह रह कर ,
ReplyDeleteअब खुदा जाने तेरी याद है या दिल मेरा .
ब्रेक के बाद वाकई एक बेहतरीन वापसी. अच्छी लगी रचना आपकी.
ReplyDeleteबेहतरीन!!!
ReplyDeleteबहुत उम्दा!
रिकार्डिंग अभी सुनी..बहुत सुन्दर गाया है!! बधाई
ReplyDeleteसुन्दर्।
ReplyDeleteकविता अभी पढ़ी। अच्छी लगी। गाना सुनकर बहुत बहुत अच्छा लगा। आपकी आवाज बहुत अच्छी है जी। :)
ReplyDeleteबरस जाओ बन मेह नेह का तुम,
ReplyDeleteलरज कर लता सी सिमट जाऊँगी मैं.
बहुत ही सुन्दर, इन दिनों हिंदी के गीतों की स्मृतियाँ आपकी पोस्ट से तजा हुआ करती है. कल तलत महमूद की आवाज़ में मधुकर राजस्थानी का गीत सुन रहा था "क्या इतना भी अधिकार नहीं ..." आज आपके गीत ने फिर उसकी याद दिला दी.
टेम्पलेट, उसका रंग संयोजन, आपकी तस्वीर, विजेट्स यानि सब कुछ बहुत सुन्दर दीख रहा है. भीतर का कलाकार कभी बाहर आ ही जाता है.
मनोहारी कविता और कर्णप्रिय गीत.. ब्रेक टाइम ओवर तो उम्मीद करते हैं कि अब हमें ये एंटरटेनिंग डबलडोज़ लगातार मिलती रहेंगी.. हैपी ब्लॉगिंग
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता..
ReplyDeletesirf itna ki ....ab se pehle aapko kyun nahin padha maine kabhi..main tha kahaan jo aapke is blog par nahin pahunchee nazar ...so follower soochee se jod liya hai khud ko ..aapko padhna-sunna yaadgaar rahega...
ReplyDeletesundar rachna,madhur aawaaz .....aap aayin bahar aayi
ReplyDeletebahut dino baad aapne kuchh likha/ me roz aapke blog par apane samaynusaar aataa thaa aour lout jaataa thaa/ aaj mila kuchh aour har baar ki tarah behtreen/
ReplyDeleteare me bhool gayaa ji...20 aug. aapka janmdin/ ishvar aapko sukhi-prasnna aour hamesha svasth rakhe/ meri aatmiya shubhkamnaye he/ AAMIN.
सुंदर कविता रची है आपने।
ReplyDeleteआपकी आवाज मधुर है। मेरे मन में एक सवाल कई दिनों से है। आपने गीत रिकार्ड किया है पर बैकग्राउण्ड म्यूजिक के लिए सारा एरेंजमेंट कैसे करती हैं? आवश्यक समझें तो मेरे मेल पर जानकारी देने की कृपा करें।
alpnaji bhut dno bad aapki bhigi hui kavita padhkar acha lga .khte hai aadt buri hoti hai vaise hi kuch blog niymit dekhne ki aadat ho gai hai shayd kuch nya mile .
ReplyDeletebhut achi rachna .
abhar
sunder kavita hai
ReplyDeletebahut bahut sunder
सुन्दर रचनाओं के लिए साधुवाद...
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteकई बार यहां आ कर मायूस सा लौटा, मगर आज यहां फ़िर यह कविता देख कर और पढ कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteकविता का यह भाग अच्छा लगा..
मैं कोमल कुमुदनी सी दिख तो रही हूँ,
पवन बन जो आओ महक जाऊँगी मैं...
नारी के स्वाभाविक समर्पण की भावनाओं को कम शब्दों में रखा है, और इसी मुख्तसर सी बात में महक गयी यह कविता.
गाना नहीं सुन पा रहा हूं, फ़िर कोशिश करूंगा.
बहुत दिन बाद सुना जी आपको। अच्छा लगा बहुत!
ReplyDelete"चाहत अगर साकार मिले तो समर्पण कौन नहीं चाहेगा", उपरोक्त विचार का अत्यंत मनोहर वर्णन आपने अपने गीत में किया है.
ReplyDeleteहार्दिक बधाई.
अल्पना जी,
ReplyDeleteआप सही कह रही हैं।कभी-कभी कुछ अच्छा नहीं लगता तो ब्लाग से भी दूरी बढ़ जाती है।मगर कुछ दिनों बाद पुनः हम वापस आ जाते हैं।शायद जीवन की एकरसता को कुछ विराम की आवश्यकता होती है।
सुन्दर रचना है...ये गीत तो मैं पहले भी आप की आवाज में सुन चुका हूँ....
लता लरज कर सिमटती नहीं है लता को एक सहारे की आवश्यता होती है नेह का मेह बरसेगा और लता सिमटेगी तो सिमटने के लिए उसे जमीन मिलेगी |सिमटने की जगह जो शब्द माकूल है उसे साहित्य में प्रयोग करना भी लगभग अनुचित सा है इसलिए सिमटना ही शब्द ठीक है |पवन बनने से कुमुदनी का महक जाना स्वाभाविक है किन्तु यहाँ तो कुमुदनी सी दिखना शब्द आया है दिखना और होने में अंतर है |'''यूँ हीं धड़कने तो , नवल पाऊँगी मैं ""इसका अर्थ मैं समझ नहीं पाया हूँ |दूर जाने पर विरह वेदना का न सह पाना विल्कुल स्वाभाविक बन पढ़ा है
ReplyDeleteटिप्पणी में कुछ बुरा लगा हो तो उस शब्द को डिलीट कर दीजियेगा
माननीय बृजमोहन सर जी,आप ने कविता पढ़ी और जिस तरह से इसे समझाया है..आप से टिपण्णी पाना अच्छा लगा..आप ने कहीं भी कुछ ऐसा नहीं लिखा जिस से मुझे बुरा लगे और मुझे टिप्पणी डिलीट करने की आवश्यकता हो..आप ने लिखा है..धड़कने वाली पंक्ति समझ नहीं आई..वह पंक्तियाँ हैं--
ReplyDeleteतुम्हारी छुअन ने बनाया है चन्दन,
यूँ हीं धड़कने तो , नवल पाऊँगी मैं.
यहाँ नायिका कहती है की नायक के छूने मात्र से वह चन्दन सी शीतल हो गयी है..और उसमें नयी धडकनों का संचार हुआ है..
इस प्रकार से नायक के सामीप्य से उसके स्पर्श से, नायिका के मन की अग्नि शीतल तो होती ही है उसमें जीने के नयी उमंगें भी जागती हैं.इस जीने की इच्छा को धड़कन का नाम दिया है.क्योंकि धड़कनों से ही तो जीवन है.
--
दूसरे-
मैं कोमल कुमुदनी सी दिख तो रही हूँ,
पवन बन जो आओ महक जाऊँगी मैं,
- 'दिखना ' लिखा अगर गलत लग रहा है तो यह ऐसे हो सकता है--
मैं कोमल कुमुदुनी सी इतरा रही हूँ../बहकी हुई हूँ/..
--lekin--
मैं ने यहाँ 'दिख'शब्द इस लिए इस्तमाल किया है -कारण - नायिका खुद को ऐसी कोमल कुमुदनी सा मान रही है ..जो बिना पवन के अपनी महक[या महत्ता को ]किसी को भी बता नहीं सकती..या बिना पवन के उसकी उपस्थिति का भान होना संभव है मगर उसकी खासीयत/विशेषता के बारे में किसी को ज्ञान नहीं ho pata है.
सर,आप ke prashno ya alochna se से mujhe सीखने को मिलता है .यहाँ प्रकशित पोस्ट सम्बंधित आप के हर प्रश्न या आलोचना का स्वागत है.
सादर,
अल्पना
वाह..... आपका ये बदला सा रूप अच्छा लगा .....ये पंक्तियाँ छू गयीं .....
ReplyDeleteकभी भीगें नैना और बिखरे जो काजल,
मधुर हास देना ,बदल जाऊँगी मैं.
न जाओगे अब दूर,वचन मुझ को दे दो,
ReplyDeleteविरह वेदना अब न सह पाऊँगी मैं.बहुत सुन्दर
कभी भीगें नैना और बिखरे जो काजल,
मधुर हास देना ,बदल जाऊँगी मैं. लाजवाब रचना और आवाज़ बहुत सुरीली है बहुत सुन्दर गीत चुना है बाधाई
क्या गज़ब ढाया है आपने ..हरेक पंक्ती मानो किसी बिरहन की चीत्कार -सी महसूस हुई ...जिसने ये भोग है...शायद,वही उस गहराई तक पहुँच पायेगा...प्रिया अपने प्रियतम के लिए क्या कुछ निछावर नही करती..?
ReplyDeleteWelcum bak...... kai baar aisa hota hai ki hamare samajh mein nahin aata ki kya likhen? vichaar bhi hote hain, pen bhi aur shabd bhi..... par kuch to aisa hota hai ki sab kuch hote huye bhi hum unhe uker nahi paate..... khair! aapne bahut hi achcha likha hai.......
ReplyDeleteबिखरने लगी हैं ये व्याकुल सी अलकें,
जो पल भर भी देखो,संवर जाऊँगी मैं.
मैं कोमल कुमुदनी सी दिख तो रही हूँ,
पवन बन जो आओ महक जाऊँगी मैं,
कभी भीगें नैना और बिखरे जो काजल,
मधुर हास देना ,बदल जाऊँगी मैं.
in lines ne dil ko chhoo liya hai...... bhaavnaon ko bahut hi acchhe se ukera hai aapne.......
Dhanyawaad.......
ये लंबा गैप कुछ अखर तो रहा था जरूर....
ReplyDeleteकविता बहुत सुंदर है...ऊपर से बृजमोहन जी की टिप्पणी के पश्चात की गयी आपकी व्याख्या ने सोने पे सुहागा का काम किया।
गीत सुन नहीं पा रहा...मेरा नेट इजाजत नहीं देता!
बिखरने लगी हैं ये व्याकुल सी अलकें,
ReplyDeleteजो पल भर भी देखो,संवर जाऊँगी मैं.
बहुत सुन्दर गीत लिखा है आपने
अच्छा लगा
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C.M. को प्रतीक्षा है - चैम्पियन की
प्रत्येक बुधवार
सुबह 9.00 बजे C.M. Quiz
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क्रियेटिव मंच
क्या कविता है....! समर्पण का भाव लिये...! प्रेम की अभिव्यक्ति लिये बहुत खूब....!
ReplyDeleteगीत पूरा नही सुन पा रही हूँ मगर इस गीत का "ठोकर जहाँ मैने खाई" वाला अंतरा मुझे बहुत पसंद है...!
कविता अपने भावों में पूरी तरह डूबी हुई है.
ReplyDeleteतेरी आँखों के सिवा गीत मुझे बेहद पसंद है.
- सुलभ ( यादों का इंद्रजाल)
बहुत खूब
ReplyDeleteवाह सुंदर सी प्यारी सी हिंदी ग़ज़ल
ReplyDeleteशब्द शब्द छू रहा है
अंतर के व्योम को
कर दिया रस सिक्त
प्राण रोम रोम को .....
मैं कोमल कुमुदनी सी दिख तो रही हूँ,
ReplyDeleteपवन बन जो आओ महक जाऊँगी मैं,
कभी भीगें नैना और बिखरे जो काजल,
मधुर हास देना ,बदल जाऊँगी मैं.
तुम्हारी छुअन ने बनाया है चन्दन,
यूँ हीं धड़कने तो , नवल पाऊँगी मैं .
न जाओगे अब दूर,वचन मुझ को दे दो,
विरह वेदना अब न सह पाऊँगी मैं.
Alpana ji,
Adhunik bharamar geet kaisa hota hai....
..iski kalpan karna chahoo to is geet ko 'udharan' banana chahoonga.
khaas taur par udrith 4 duplets behteerin hi nahi tazatareen lage.
waise comment main brijmohan ji ko bhi padha...
ReplyDelete...aur aapka uttar bhi.
saartakh vartalaap.
बहुत ही सुन्दर कविता के लिए आपको बधाई
ReplyDeletetum jab hanste ho din ho jaata hai, tum gale lage to, din so jaata hai......
ReplyDeleteDer aaye durust aaye.
ReplyDeleteसचमुच बहुत दिनों के बाद लेकिन बेहद रोमानी, नाज़ुक सी रचना.......
ReplyDeleteकोमल ,खुबसूरत एहसासों से गुंथी रोमानी रचना ,बहुत सुंदर.
ReplyDeleteअल्पना जी.
ReplyDeleteगीत'तेरी आँखों के सिवा' आज सुना,गीत पूरा सुनने को नही मिला,पर आवाज मे एक कशिश जरूर महसूस की, बधाई
pyari si rumaani kavita aur waisa hi sundar geet.badhaayi.
ReplyDeletenice
ReplyDeleteन जाओगे अब दूर,वचन मुझ को दे दो,
ReplyDeleteविरह वेदना अब न सह पाऊँगी मैं.
बरस जाओ बन मेह नेह का तुम,
लरज कर लता सी सिमट जाऊँगी मैं.
-
Alpana ji,
thoda der se aa payee lekin ....bahut sundar geet padhane ko mila......bhavnatmak panktiyan.
shubhakamnayen.
Poonam
हमे तो आपका कराओके वाला गीत अच्छा लगा
ReplyDeleteयह शौक मुझे भी है इसके लिये क्या करना होगा कृपया तकनीकी जानकारी प्रदान करें -शरद कोकास
कभी भीगें नैना और बिखरे जो काजल,
ReplyDeleteमधुर हास देना ,बदल जाऊँगी मैं.
शब्दों को कोमलता के भावों से सजाया है..एक औदात्य्पूर्ण समर्पण की चरम अभिव्यक्ति है यह कविता...आपने अपनी टिप्पणी में व्याख्या कर कविता के भावो को जिस तरह से समझाया है उसे भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता
आपकी आवाज में गीत सुना बहुत मधुर लगा कहीं कही राग पूरी तरह से लय में नहीं आ रहा था..
प्रकाश
वाह!! बहुत-बहुत खुबसूरत है यह रचना, अति-सुन्दर कविता के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteगीत सुन नहीं पाया, मेरा नेट इजाजत नहीं देता!
गीत'तेरी आँखों के सिवा' [फिल्म-चिराग]--
ReplyDeleteko suna aapki awaaz mein.... khoobsoorat .....
achcha laga........
aur download bhi kar ke save kar liya hai.....
बहुत सुंदर कविता के लिए बधाई
ReplyDeleteदेरी के लिए माफी
नोट : आजकल समस्त ब्लाग जगत के ब्लागर मुझसे पता नहीं किस बात पर नाराज हैं कि कभी मेरे मन की बात जानने की कोशिश भी नहीं करते खासकर बहुत सारे हैं नाम नहीं लूंगा अपने आप जान जाएंगे अगर इस नाचीज से कोई चूक हो गई हो तो माफी चाहूंगा और तनिक हमारे मन की गली में आकर हमारा मार्गदर्शन कर दें आप सभी
बेहद खूबसूरत, मुझे बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत, मुझे बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteएक सुन्दर नेह निवेदन.
ReplyDeleteअगली प्रस्तुति की प्रतीक्षा है जी।
ReplyDeleteअल्पनाजी, आपकी तरह पुराने हिंदी फिल्मी गानों का मैं भी बड़ा मुरीद हूं..मेरे ब्लॉग पर आकर जिस तरह आपने मेरा उत्साह बढ़ाया, आभार जताने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास...आशा करता हूं आगे भी पढ़ना-कहना चलता रहेगा
ReplyDeleteऐसे ब्लॉग बहुत कम हैं, जहां गद्य, पद्य और गीत एक साथ मिल जाए।
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )
Alpna ji behtreen geeet ,sahbhaavi veerubhai.blogspot.com
ReplyDelete