दीप तुल्य बन जाएँ हम , हो ज्योति का विस्तार ,
हर आँगन आलोकित हो और खुशियाँ मिलें अपार.
--अल्पना वर्मा
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और यही कारण ब्लॉग न पढ़ पाने [/टिप्पणियाँ न लिख पाने ]के भी हैं ....
फ़िर भी एक जुड़ाव सा तो है जो ब्लॉगजगत से जोड़े रखता है ...
'वन्दे भारत मिशन' के तहत स्वदेश वापसी Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...
दीप तुल्य बन जाएँ हम , हो ज्योति का विस्तार ,
हर आँगन आलोकित हो और खुशियाँ मिलें अपार.
--अल्पना वर्मा
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मन की गिरह मन की गिरह में बाँध कर तेरी यादें , अब अपने रस्ते चल दी हूँ मैं , खुलेगी नहीं ये किसी भी ठोकर से, यूँ पत्थर सी बन गयी हूँ मैं , जब कभी बहती हवा थम जायेगी, जब कभी झूमती नदी रुक जाएगी , जब कभी वेवक्त सांझ गहराएगी, जब कभी खिली चाँदनी धुन्धलाएगी , जब कभी अजनबी सदा बुलाएगी , जब कभी ख़ामोशी भी डराएगी, जब कभी चाहना स्वप्न बोयेगी जब कभी बेवजह आँख रोएगी , जब कभी थक जाऊँगी चलते -चलते , और कोई चिराग बुझेगा जलते - जलते तब ही किसी दरख्त की छाँव तले , तेरी मौजूदगी का आभास किये, खोल दूंगी इस गिरह को मैं , आँखों में भर कर तेरी यादों को , अपनी रूह में जज़्ब कर लूंगी मैं, फ़िर जब भी रुकेंगी साँसे, मुझे अलग ये हो न पाएंगी, रहेंगी साथ सदा और जायेंगी संग, उस जहाँ में भी.... हाँ, रहेंगी साथ सदा उस जहाँ में भी.... --------------अल्पना वर्मा --------------- |
इसे भीतर से देखने के लिए जाति -देश-धर्म आदि का कोई बंधन नहीं है .न ही कोई प्रवेश शुल्क और न ही फोटोग्राफी पर प्रतिबन्ध.इस इबादतगाह की खूबसूरती सभी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है.भवन के भीतर का सौंदर्य तो बेहद मनमोहक है. हम शाम के वक्त यहाँ पहुंचे थे तब शाम की नमाज़ का समय था इसलिए हम तब तक बरामदे ओर वहाँ के खम्बों ओर फव्वारों का आनंद लेते रहे.उसके बाद मस्जिद का भीतरी भाग देखा और वहाँ की खूबसूरती को इन तस्वीरों में क़ैद किया.
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यह तस्वीर गिनिस रिकॉर्ड साईट से साभार ली है |
भारत को समझना तो जानिए इसको
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देश का स्वाभिमान है आधार है हिंदी।।