मार्च ५,२००९ को यहाँ एक 'गंगा-जमुनी' मुशायरा हुआ था जिसमें तमाम यू.ऐ.ई से शायर आमंत्रित थे.
इस मुशायरे में पाकिस्तान और हिंदुस्तान के शायरों ने अपनी रचनाएँ पढीं.
मुझे भी इस मंच से पढने का मौका मिला.
सदर ऐ मुशैरा अजमल साहब और मुख्य अतिथि सलाहुद्दीन साहब
जो ग़ज़ल मैंने वहां पढ़ी थी..आप के समक्ष प्रस्तुत है.
इस ग़ज़ल पर मशहूर शायर अजमल नक्शबंदी साहब का आशीर्वाद है.इस ग़ज़ल का आखिरी शेर मैं उन्हीं को समर्पित करती हूँ.आप इस मुशायरे के सदर भी थे.आप की अब तक ग़ज़लों की १२ किताबें छप चुकी हैं.
अहसास
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जाने क्यूँ वक़्त के अहसास में ढल जाती हूँ,
जाने क्यूँ मैं अनजान डगर जाती हूँ.
टूट कर जुड़ता नहीं माना के नाज़ुक दिल है,
गिरने लगती हूँ मगर खुद ही संभल जाती हूँ.
ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
अपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,
दर्द के साए से मैं देख निकल जाती हूँ.
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
[-अल्पना वर्मा ]
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इस ग़ज़ल पर मशहूर शायर अजमल नक्शबंदी साहब का आशीर्वाद है.इस ग़ज़ल का आखिरी शेर मैं उन्हीं को समर्पित करती हूँ.आप इस मुशायरे के सदर भी थे.आप की अब तक ग़ज़लों की १२ किताबें छप चुकी हैं.
अहसास
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जाने क्यूँ वक़्त के अहसास में ढल जाती हूँ,
जाने क्यूँ मैं अनजान डगर जाती हूँ.
टूट कर जुड़ता नहीं माना के नाज़ुक दिल है,
गिरने लगती हूँ मगर खुद ही संभल जाती हूँ.
ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
अपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,
दर्द के साए से मैं देख निकल जाती हूँ.
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
[-अल्पना वर्मा ]
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यह ग़ज़ल तरन्नुम में यहाँ सुनिए.[mp3]
अहसास-एक ग़ज़ल by Alpana
यहाँ से भी डाउनलोड करके सुन सकते हैं
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ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
ReplyDeleteवक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
ख़ूबसूरत ख़यालात को बहुत ही करीने से परोसा है आपने..
बहुत खूब..
बेहतरीन अंदाज़े बयाँ । अल्पना जी आपने तो कमाल ही कर दिया । दिल के जज़्बात आपने बेहतरीन लफ़्ज़ों में पिरोये हैं ।
ReplyDeleteज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
ReplyDeleteवक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
WAH ALPANA JI , KHOOBSURAT GAZAL HAR SHER MUKAMMIL,SOCHA PAHLE COMMENT KAR DUN PHIR TARANNUM MEN SUNTA HUN. BAHUT KHOOB, MUJH UPROKT DONO SHER BAHUT PASAND AAYE.
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
अल्पना जी....बेमिसाल शेर है...मैं खडा हो कर तालियाँ बजा रहा हूँ...वाह...वा...काश उस मुशायरे का कोई वीडियो आप दिखा पातीं...
नीरज
टूट कर जुड़ता नहीं माना के नाज़ुक दिल है,
ReplyDeleteगिरने लगती हूँ मगर खुद ही संभल जाती हूँ.
ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
waah jaise alag alag ehsaason se gujre ho khubsurat sher,mushayere mein padhne ka awsar mila aapko iski bahut badhai.
beautiful gajal...
ReplyDeleteमैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
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बिल्कुल! जब हम कुछ क्रियेटिव करते हैं तो किसी अंश में बच्चे ही होते हैं।
और कौन कहता है कि आपकी उम्र है बड़ी? फोटो से नहीं लगता।
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
सुंदर गज़ल
अभिनंदन अल्पना जी मेरे ब्लोग पर भी पधारें।
http://razia786.wordpress.com
http://raziamirza.blogspot.com
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
सुंदर गज़ल
अभिनंदन अल्पना जी मेरे ब्लोग पर भी पधारें।
http://razia786.wordpress.com
http://raziamirza.blogspot.com
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
बहुत बढ़िया अल्पना जी ..
बहुत सुंदर रचना है अल्पना जी। आभार इस प्रस्तुति के लिए।
ReplyDeleteअल्पना जी ,लाजवाब गजल । पढ़कर दिल खुश हुआ ।
ReplyDeleteज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
ReplyDeleteवक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
" khubsurt gazal......ye sher kahin dil ko chu gya or sacchai ke bhut karib le aaya..."
Regards
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
अल्पना जी
शायद उस दिन आपके शहर न आ कर मैंने बहुत कुछ मिस किया. इतनी लाजवाब ग़ज़ल वो भी आपको साक्षात् सुनने का मौका. बहुत की शानदार है यह ग़ज़ल और तरन्नुम में तो और भी बेहतरीन हो गयी है.
बहुत ही सुन्दर
पहले तो गजल पढी। जोकि बहुत ही सुन्दर लफ्जों से लिखी गई है।
ReplyDeleteमैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
ये शेर कुछ ज्यादा ही असर कर गया। फिर गजल सुनने के साथ दो गाने भी सुन लिए 'तेरे लिए पलको की....। कई बार सुना। ये गाना बहुत दिनों के बाद सुना दिल खुश हो गया। तीसरे गाने के बाद तो गाने आते ही नही।
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
बधाई हो अल्पना जी...
पूर्व सूचना के ना होने से हमने तो आपके शहर में होते हुए आपको सुनने का मौका गवाँ दिया |
एक छोटी सी गुज़ारिश है कृपया इस प्रकार के किसी भी कार्यक्रम की जानकारी एक छोटे से message के ज़रिए इस नंबर पर भेज दिया करें :- 0556178941
इंतज़ार रहेगा
सुन्दर, मनभावन!
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
बहुत लाजवाब ग़ज़ल आभार.
ReplyDeleteमैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
प्रस्तुत कविता में जो सकारात्मक नज़रिया परिलक्षित हो रहा है, उस फलसफ़े का स्वागत है.
साथ ही नायिका के अंतरमन की छुपी हुई पीडा को ज़माने से छुपाने का यत्न भी आपने बखूबी शब्दों के माध्यम से हम तक पहुंचाया है.
मगर ये अंतिम पंक्ति नें एक मुख्तसर सी बात को क्या कह डाला कि हम सभी अपने अपने बचपन की वासंती यादों को जीने लग गये और ये दिल फ़िर से मचल उठा.
साईट की तकनीकी कारण की वजह से ऒडियो नही सुन पाय नहीं तो उस माहौल के एम्बियेंस का और भी लुत्फ़ उठा लेते!!
क्या खूब कहा है-
ReplyDeleteज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ
तरन्नुम सुनकर बहुत ही सुन्दर अनुभूति हुई. वह एहसास बयां नहीं कर सकते.
ReplyDeleteमैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
अल्पना जी इस शे'र के क्या कहने कितनी बड़ी बात कही है आपने सुभानाल्लाह ...इस तरह के शे'र कभी कभी ही पढने को मिलते है किसी किसी शाईर का और वो उस अपने एक शे'र से ही जाना जाने लगता है... हो सकता है ये वही शे'र हो आपके लिए... बहोत खूब कही आपने... ढेरो बधाई आपको..
अर्श
ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
ReplyDeleteऔर
अपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,
और यह भी
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.....
बहुत सुन्दर .इन लाइनों की जितनी तारीफ की जाये कम है .
और आपकी आवाज़ क्या कहना है ,कितनी तरन्नुम में आप ने मन से गाया है
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
बहुत खूबसूरत रचना और बहुत ही सधी हुई मधुर आवाज ने शमां बांध दिया. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
इस गजल के बाद आपकी खूबसूरत आवाज मे एक और गीत साज सहित बज रहा है " आजा साजना" तेरे लिये पलकों ....
ReplyDeleteबेहद मीठी आवाज मे मंत्र मुग्ध कर रहा है..
बहुत शुभकामनाएं...
यहां आखिरी गाना सुनकर लौट रहा हूं आवाज तो कर्णप्रिय है ही. गानों का चुनाव बहुत ही लाजवाब है.
रामराम.
अपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,
ReplyDeleteदर्द के साए से मैं देख निकल जाती हूँ.
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
अल्पना जी,
आप तो हर विधा में पारंगत हैं ...नमन है आपको तो....ये दो अश्'आर अच्छे लगे....!!
तरन्नुम में खूबसूरत गजल की सिनर्जी के लिए वाह वाह -बधाई मुशायरे में शिरकत के लिए !
ReplyDeleteतेरे हरफ़ो के अर्थों में मुझे खो जाने दे...
ReplyDeleteइक ज़रा मुझको खुद में ही खो जाने दे!!
सामने बैठा भी नज़र ना आए तू मुझे
ऐसी बात है तो मुझको ही चला जाने दे !!
तेरी मर्ज़ी से आया तो हूँ अय मेरे खुदा
अपनी मर्ज़ी से मुझे जीने दे,चला जाने दे!!
आँख ही आँख से बातें दे करने दे तू मुझे
साँस को साँस से जुड़ने दे उसे समाने दे!!
मुझको मेरी ही कीमत ही नहींपता "गाफिल"
इक तिरे सामने महफ़िल अपनी जमाने दे!!
aapko sunkar raha naa gayaa....aur maine bhi kuchh kah diyaa..........!!
bahut sunder gajal ...
ReplyDeleteअल्पना जी ,
ReplyDeleteवैसे तो पूरी गजल ही बहुत सुन्दर है लेकिन इन पंक्तियों की बात ही अलग है
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
बहुत बढ़िया .
हेमंत कुमार
अल्पना जी
ReplyDeleteअति उत्तम गजल
बधाई
ख़ास टूर पर मुझे ये शेर भला लगा...
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
- vijay
टूट कर जुड़ता नहीं माना के नाज़ुक दिल है,
ReplyDeleteगिरने लगती हूँ मगर खुद ही संभल जाती हूँ.
वाह अल्पना जी जबाब नही, बहुत ही सुंदर कविता, अति सुंदर भाव, ओर आवाज भी बहुत सुंदर.
आप का धन्यवाद
बेहद सुन्दर गजल, पूरी पंक्तियाँ भावपूर्ण हैं।
ReplyDeleteअल्पना जी,
ReplyDeleteमजा आ गया बेहद प्यारी ग़ज़ल,,,,
एक गुजारिश है,,,,एक शब्द मेरी तरफ से दाल ले,,,
जाने क्यों मैं "किसी" अनजान डगर जाती हूँ,,,,
बस इतनी ही कमी लगी मुझे सो लिख दिया,,,
"किसी " शब्द लेने से वजन पूरा हो जता है,,,,,बाकी आप देखे
याद करती हूं जो बचपन को तो मचल जाती हूं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर, हम भी बचपन के लिये मचल्ते है मगर क्या करें………………?
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
क्या कहूँ......लाजवाब !!! वाह !! वाह !! वाह !!
रचना ने दिल को छू लिया....बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर....
एक जगह केवल एक शब्द के लिए सुझाव देना चाहूंगी-
"ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ."
उपर्युक्त पंक्ति में "वक्त के सांचे में मैं,खुद ही 'ढल' जाती हूँ" यदि करें तो कैसा रहे ?????देखियेगा.
ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
ReplyDeleteवक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
.......khoobsurat gazal,khubsurat swar......aapke naam ko ek alag pahchaan deta hai
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
सुभान अल्लाह .ये तो हर दिल की आवाज है....
मेरे दोस्त ने कुछ ऐसा ही एक बार कहा था की "उन खेतो में मेरा बचपन आज भी भीगता है "
हमारे यहाँ एक प्रदेश है 'मध्यप्रदेश 'उसमे एक नगर है 'गुना ' पहले हर साल आल इंडिया मुशायरा हुआ करता था वहां ,देश के प्रसिद्ध शायर पधारते थे ,भोर तक चलता था ,अब बंद है /फिर कुछ अरसा पहले तक एक उर्दू चेनल चलता थाउस पर हर शनिवार की रात मुशायरा दिखलाते थे .अब भी दिखलाते होंगे पता नहीं (क्योंकि आज सोचा तो आंसू भर आये ,मुद्दतें हो गई मुस्कराए /खैर ) शेर लिखा हुआ पढने और किसी के मुंह से सुनने में जमीन आसमान का अंतर होता है ,शेर तो सुन ने की ही चीज़ है साथ ही सुनाने की भी ;;क्योंकि किस शब्द पर जोर देना है किस शब्द को धीरे या जोर से बोलना है /वैसे एक बात और भी है शायर की मौत दो तरह से बतलाई है एक तो तब जब कोई जानकार शेर सुन कर चुप रह जाये और दूसरे तब जब कोई नाजानकर शेर सुन कर वाह वाह कह उठे
ReplyDeleteवैसे श्रोता भी चार प्रकार के होते है कुछ शकल देख कर ,कुछ मधुर आवाज़ पर वाह वाह करते है कुछ शेर समझ कर और कुछ इसलिए कि और लोग भी वाह वाह कर रहे है /खैर मैंने शेर गजल सुन नी चाही तो कम्प्यूटर page can not bee found
aapki ghajal bahut achchi lagi post ke liye shukria
ReplyDeleteआपकी आवाज में ढ़ल तरन्नुम में तो और भी सुंदर हो उठी है गज़ल...
ReplyDeleteबधाई
bahut khoob!
ReplyDeleteWah Ustadan Wah, kya khoob pesh ki hain....shubhan allah, Aapka chehra Aapki baate, Mushayre me ye jajbaaten....wallah wallah.
ReplyDeletemaja maja aa gaya
Sarvapratham aapko badhai....is manch ka hissa banne ke liye....aapki gazal ke vishaye mein kya likhu...bus ek hi shabd hai... subhan allah
ReplyDeleteअल्पना जी देरी के लिए माफी चाहता हूं शब्दों की कमी पड रही है मेरे पास आपको कहने में बहुत बेहतरीन
ReplyDeleteAdarneeya Alpanaji,
ReplyDeletebahut achchhee gajal ko acchhe svaron men sunana kafee achchha laga.
Poonam
Alpna ji,
ReplyDeleteek bar aapki gazal aapke swaron me fir se suni...mashaallah kya gatin hain aap ..maza aa gya...!!
जिंदगी की छुअन का एहसास कराती गजल।
ReplyDelete----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
Waah!Alpana ji,
ReplyDeleteaap ki gazal bahut pasand aayi aur aap ne apne swar mein prastut kar ke dil khush kar diya!
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
waise to aapki har rachana achhi hoti hai, lekin is gazal ki bat hi kuchh aur hai.
panktiyaan dil ko chhoo gayeen.
khali panne.
pehle to behnal-akvami mushayre mei shirqat ke liye mubarakbaad qubool farmaaeiN.
ReplyDeletephir ..ek khoobsurat ghazal se t`aaruf karvaane ke liye shukriya
Aur us par uss nayaab trannum ke liye ....bus...WAAH ! WAAH !!
bachpan wala sher bahut paakiza aur sachcha hai...badhaaee.
---MUFLIS---
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
Was the best... Keep it up.
~Jayant
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteaap ki ghazal padh kar laga ki sunder shabd sunder bhav milkar veh sab kah sakte hain jo vaakyi kaehnk hota hai.
ReplyDeletenavneet
खूबसूरत....
ReplyDeleteअपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,
ReplyDeleteदर्द के साए से मैं देख निकल जाती हूँ.
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
बहुत सुंदर ग़ज़ल है...
दिल को छू गई...
मीत
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
यह शेर दिल को छू गया
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
Bahut hi sundar Ghajal. Badhai.
Man ko chu gayi..
ReplyDeletekya kahne hain! bahut khoob.
ReplyDeleteबहुत खूब कहा है आपने, एहसास का दरिया बह चला है।
ReplyDelete-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ
wahhhhhhhhhh kya baat kahii hai..
khoobsurat sher pe aapko dhero bandhaii....dilkash
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
क्या कहने....।
ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
ReplyDeleteवक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
बहुत खूब
.
बहुत दिनों बाद इधर आ पाया हूँ लेकिन आना सार्थक हो गया.इन हासिले-ग़ज़ल शेरों पर आपको हार्दिक बधाई.
artha purna ehasaas bahut achche lage..........!!!!!!!!!
ReplyDeleteमैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
Wow....wt a beautyful and Realistic Line....!!!
Amazing...
मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
ReplyDeleteयाद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
wow...wt a beautyful and Realistic line...!!!
Its amazing..
ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
ReplyDeleteअपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,दर्द के साए से मैं देख निकल जाती हूँ.
Bahutt hii khoob au rbahut hee umda ehsaas ...
waqt k saath khud ko badal na jisne seekha ,, usne apni zindagi me ba-khoob jiya...waah Alpana ji waah
ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ....
ReplyDeleteअपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,//
दर्द के साए से मैं देख निकल जाती हूँ.
Bahut hii khoob aur bahut umdaa.
Badalte Waqt k saath jisne Jisne Sahi Se Jeena Seekh liya ,, usne ani zindagi ba-khoob jenaa seekh liya