जून का तपता महीना..स्कूलों के बंद होने और गर्मी की दो महीने की छुट्टियाँ शुरू होने में अभी और एक हफ्ता बाकी है.भारत में शुरू हुई बरसात का फिलहाल यहाँ तो कोई असर नहीं दिख रहा है .
दुकानों में /शोपिंग मॉल ....हर जगह सेल लगी है ..जुलाई-अगस्त में अपने -अपने देश छुटियाँ जाने वाले खरीदारी में / पैकिंग में व्यस्त हैं.
अलेन में कृत्रिम नदी [नहर कहना ज्यादा सही होगा] और झरना बनाने की तैयारी ज़ोरों शोरों पर है .हमारे घर के सामने थोड़ी दूरी पर एक छोटी पहाड़ी को काटा जा रहा है शायद वह उस ओर से भी बह कर निकलेगी .इस नहर में पानी कहाँ से लाया जायेगा ,पूछने पर मालूम हुआ कि यह सारा पानी शहर का इस्तमाल किया हुआ पानी होगा जो केमिकल ट्रीटमेंट के बाद छोड़ा जायेगा.आश्चर्य हुआ कि क्या इतना पानी इस्तमाल होता है चार लाख की आबादी वाले इस शहर में कि इक बड़ी नहर को बनाया जा सके!
विस्तार से इस विषय में फिर कभी ,अभी इस जलती गर्मी पर एक कविता -
जेठ दुपहरी ------------- जेठ दुपहरी जलते हैं दिन, और झुलसती हैं रातें , इस दावानल में जल , मुरझाई मन की बातें. अलसाया आँगन है, और तपीं सारी भीतें, द्वार थके धूप में तपते, ताल सभी दिखते रीते. वहीँ आम की अमराई, खिलखिल के मुस्काती है, धर अमियाँ का रूप, विजय मौसम पर पा जाती है! चलें धूल से भरी आंधियाँ , झुलसायी धरती बोले, बीते जल्दी जेठ महीना, बरखा आये रस घोले! -अल्पना वर्मा |
फिल्म 'बाबुल 'में दिलीप कुमार और मुनव्वर सुल्ताना पर फिल्माया गया यह गीत बहुत ही लोकप्रिय गीत रहा है.
गायक तलत महमूद और शमशाद बेगम के गाये इस गीत को दिलीप कवठेकर जी और मैं अपने स्वरों में लाए हैं.
इस युगल गीत के लिए दानिश जी ने लिखा है -.--------------------------------------
बाबुल फिल्म का यह अनमोल गीत
दिलीप कवठेकर और आपकी आवाज़ में सुन कर
उतना ही लुत्फ़ हासिल हुआ
जितना कि तलत और शमशाद जी की आवाजों में
सुनकर मिला करता है ...
बहुत महनत से की है आप दोनों ने ....
दिलीप जी की आवाज़ से आज दिलीप साहब की आवाज़
भी बरबस ही याद आ गयी.
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इसी गीत को विडियो में देखें ..कोशिश तो मैंने पूरी की है कि मूल विडियो के साथ गाने की सिंकिंग अच्छे से हो सके. --
----------------------------इसी गीत को विडियो में देखें ..कोशिश तो मैंने पूरी की है कि मूल विडियो के साथ गाने की सिंकिंग अच्छे से हो सके. --
पिछली पोस्ट पर आई टिप्पणियों में आम की कई और बेहतरीन किस्मों के बारे में जानकारी मिली.
धन्यवाद .
बहुत ही सुन्दर गायन।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता भी और गायन भी
ReplyDeleteकविता जितनी सुंदर है उतनी ही सुंदर अलेन में नहर बनाने की बात है.
ReplyDeleteदेश और शहर का ही फर्क है ...
ReplyDeleteकहीं नाले पाटकर बिल्डिंग्स बनाई जाती हैं , कहीं पहाड़ियां काट कर नहरों का इंतजाम है ...
बरसात का मौसम शुरू होने पर गर्मी की यह कविता भी अच्छी लग रही है ...
गाने के विडियो के साथ आप का गाना ...
सब कमाल है !
कविता में गर्मी के हर रूप का सटीक वर्णन हुआ है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा गीत भी और कविता भी.
ReplyDeleteसादर
आपकी आवाज वाकई अच्छी है। गीत पढकर वाकई जून की तपिश ने झुलसा सा दिया। वैसे अब तो वर्षा देवी कुछ कुछ मेहरबान सी लगरही हैं।
ReplyDelete---------
विलुप्त हो जाएगा इंसान?
ब्लॉग-मैन हैं पाबला जी...
आपकी आवाज वाकई अच्छी है। गीत पढकर वाकई जून की तपिश ने झुलसा सा दिया। वैसे अब तो वर्षा देवी कुछ कुछ मेहरबान सी लगरही हैं।
ReplyDelete---------
विलुप्त हो जाएगा इंसान?
ब्लॉग-मैन हैं पाबला जी...
sundar sanyojan,
ReplyDeleteमिलते ही आंसू दिल हुवा दीवाना किसी का ...
ReplyDeleteवाह आज तो झूम उठे इस गात पर ... और आपकी कविता पढ़ कर भी गर्मियों की याद और मज़बूत हो गयी ...
जल्दी ही छुट्टियों में इस बार आपकी गानों से महफ़िल सजाते हैं .. अब को कई और ब्लोगेर्स भी तैयार हैं इस महफ़िल को सजाने के लिए ..
kavita aavaj aur aapke vichaar sab achchhe lage ...
ReplyDeleteकविता तो बहुत सुन्दर है और आपकी आवाज तो वैसे ही दिल को छु लेती है ...बहुत सुन्दर दोनों
ReplyDeleteखुशी कि वहां रहते हुये भी जेठ फागुन याद है। दावानल बहुत पुराना शब्द। रीते शब्द अच्छा लगा। जल्दी बीते जेठ महीना क्योंकि शायद रोहणी इसी माह में तपती है।
ReplyDeleteबहुत पुराना हमारे जमाने का गाना सुना । आपकी आवाज महीनों बाद सुनी ।
धन्यवाद
कविता भी तपिश लिए हुए है. गीत ठीक से सुन नहीं पा रहे हैं. कहीं कोई समस्या है. वैसे शमशाद बेगम की नक़ल करना कठिन है परन्तु जितना भी सुना उससे यही लगा की परिश्रम सफल हुआ है.
ReplyDeletebadhiya ji..happy garmi...ha ha
ReplyDelete....
ReplyDeleteआदरणीया अल्पना जी
ReplyDeleteसादर अभिवादन !
यह हुई न लंबी प्रतीक्षा की भरपाई !! गीत सुना तो बस … सुनता ही गया । वीडियो देखते हुए भी सुना … वाह वाह वाह के अलावा कुछ प्रतिक्रिया ही नहीं आ रही भीतर से :)
गीत गाते हुए आपने हमेशा की तरह अपनी मखमली आवाज़ की मौलिक ख़ूबसूरती को बनाए रखा है …
आपके साथ दिलीप कवठेकर जी को भी बधाई !
… और आपकी ख़ूबसूरत रचना के लिए क्या कहूं ?
आपने हमारी हक़ीक़त बयान करदी है …
झुलस रहे हैं हम यहां …
आपके मधुर स्वर में गीतों की फुहारों से भीगते हुए आज का दिन तो राहत दे रहा है …
आता हूं तब आपके दो-चार पुराने गीत भी तो फिर से अवश्य सुनता हूं …
शुक्रिया ! नवाज़िश ! आभार !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शुक्रिया ...दिलीप जी कहाँ है इन दिनों..? अरसा हुआ...
ReplyDeleteaapka jabab nahi ...full package ho aap:)
ReplyDeletejitna behtareen likhte ho, us se jayda pyari aawaaaj:0
अरे साहब क्या करें-सुनते तो ये ही थे नदियाँ पहाड़ों से निकलतीं हैं अब पहाड़ी काटके उनमे वापस डाली जा रहीं हैं .शहरी जीवन अपव्यय का प्रतीक तो है ही इत्ता पानी की पुनर -चक्रित भी हो जाए ,नेहर भी बन जाए .चलो री -साइकिल का तो भान है आगे यही बचना है मूल स्रोत चुक जाने हैं ।
ReplyDeleteगीत दोगाना भी अच्छा था और जेठ की दुपहरिया का चित्र भी .
had hai....
ReplyDeletekitani mehanat .............!!!!
vedio baar baar dekhaa....bahut bahut mehanat ki gayi hai...naa sirf gaane mein balki vedio ke saath ekdam sahi bol baithaane mein bhi...
aap donon ko badhaayi..
agli prastuti ki pratikshaa mein...
saadar...
@बरखा आये रस घोले..
ReplyDeleteसुंदर रचना और सुंदर गायन,अब यहाँ तो बारिश का आनंद है.
बरखा आये रस घोले..
ReplyDeleteकविता और गीत दोनों ही सुंदर अतिसुन्दर , बधाई
ग्रीष्म का ऋतु-वर्णन लालित्यपूर्ण.उत्कृष्ट रचना.
ReplyDeleteबाबुल ,देखी हुई फिल्म.आडियो-वीडियो का प्रयोग अति सुन्दर.
बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी सुर के कद्रदानों का..
ReplyDeleteआभार अल्पनाजी का ,कि आपने इस Track को इतनी खूबसूरती से विडियो में Sink किया है. अचंभित हूं, कि इस बिसरे हुए गीत के ट्रेक पर हम दोनों ने अलग अलग गाया, और फ़िर भी इतनी अच्छी प्रस्तुति निकल आयी है, कि आप सभी को अच्छी लगी.
लगता है, और भी काम किया जा सकता है.
@ शुक्रिया अनुराग जी,
ReplyDeleteआपने याद किया , शुक्रिया. कुछ दिनों से इजिप्ट में प्रोजेक्ट के सिलसिले में व्यस्तता रही, और ब्लोग से दूर हो गया. अब फ़िर से लग रह है कि
आ अब लौट चलें......
कविता बेहद खूबसूरत है -आप्टिमिज्म कितना भला लगता है ना !
ReplyDeleteआपकी कवितायें इनसे संस्पर्शित होती हैं ...
pyari si rachna aur khubsurat gayan!
ReplyDeleteदुनिया भर में प्रसिद्ध सबसे बड़ा लोकतंत्र आज खोखला हो गया है.
ReplyDeleteयह कैसा लोकतंत्र है जिस में आज हमें बोलने की आज़ादी भी नहीं