मैं ढूँढती हूँ तुम्हारे भेजे पन्नों पर उन शब्दों को जिनसे तुमने मुझे खरीदा था।
हाँ,खरीदा ही तो था तुमने मुझे उन शब्दों से ,
किश्त दर किश्त मेरा मन उन शब्दों के बदले बिकता चला गया था ।
हार गयी थी मैं खुद को तुम्हारी बिछायी शब्दों की बिसात पर।
जब भी मैं अकेला पाती थी खुद को, तो उन्हीं शब्दों में तुम को पाया करती थी।
खुद को माला के धागे सा बना कर उन शब्दों को पिरो लिया था ।
सोचा था ,मुझ में पिरोये गए इन मोतियों को मुझ से बेहतर कौन संभाल पायेगा ,कौन सुरक्षित रख पायेगा?
लेकिन आज असहाय मन ,धागा तो है पर सारे मोती न जाने कहाँ गुम हो गए?
उन पन्नों को सहेज रखा था जिनमें उन शब्दों का कभी रहना होता था।
वहीं से तो चुने थे मैंने ....वे भी तो सभी कोरे लग रहे हैं.।
शब्द वहाँ वापस नहीं लौटे!
शब्द वहाँ वापस नहीं लौटे!
याद आता है ,उस सांझ के धुंधलके में ,न जाने कैसे हलकी सी आँख लगी और
उन कुछ पलों में ही सारे दृश्य बदल गए थे ।
उन कुछ पलों में ही सारे दृश्य बदल गए थे ।
बदल गया आकाश ,बदल गयी फिज़ा..
बादलों का रंग भी स्याह हो गया था ,ज्यूँ-ज्यूँ अँधेरा गहरा हुआ , बादल पानी बनते गए।
लगता है शायद उसी बरसात में वे मोती पिघल कर बह गए हैं ।
शब्द नि:शब्द
ReplyDeleteगोया कि शब्द भी समय के साथ अपना रूप दिखाते हैं !
ReplyDeleteअद्भुत! ऐसी रचनाओं को बस महसूस कर पीया जा सकता है..कुछ खोजना, चुनना और कहना बेमतलब की बात है।
ReplyDeleteबहुत आभार।
मन के भाव ब्लाग पर.
ReplyDeleteबेहद उम्दा भाव
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर एहसास
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बहुत ही सुन्दर एहसास,बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteअद्भुत !!
ReplyDeleteअद्भुत
ReplyDeleteNo words .. too deep to find bottom .. Pani m ghol ker pee lene wali rachna .. suna hai mann ke panne per likhe shabd anmit hote hain .. keep up the good work .. Regards...
ReplyDeleteखामोश सा अफसाना पानी पे लिखा होगा
ReplyDeleteना तुमने सुना होगा ना हमने कहा होगा
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (31-03-2013) के चर्चा मंच 1200 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा आपने.एक अंतहीन गहराई में जैसे उतर गयी ये पंक्तियाँ खासकर शुरुआत इस कविता की "मैं ढूँढती हूँ तुम्हारे भेजे पन्नों पर उन शब्दों को जिनसे तुमने मुझे खरीदा था।"
ReplyDeleteso beautifully written a beautiful creation of words ! Words which have deep meaning.
ReplyDeleteभावों को यूं शब्दों में बांध लेना आसान नही है, बेहद अदभुत शब्द संयोजन, जो पाठक पर सटीक छाप छोडता है, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशब्द, प्रतिशब्द,
ReplyDeleteचाप, निष्ताप।
गहन अभिव्यक्ति।बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteवाह बहुत सही और सार्थक सच को व्यक्त
ReplyDeleteकरती रचना
बहुत बहुत बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
jyoti-khare.blogspot.in
वाह बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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गहन..... शब्दों के रूप अनेक ...
ReplyDeleteपढ़कर उमादेवी (टुन टुन) का यह गाना यादआगया "अफसाना लिख रही हूँ"
ReplyDeleteबहुत खूब ... शब्द भी तो जिंदगी की तरह बदलते रहते हाँ आपना रूप ओर अंत में बरस जाते हैं उम्र की तरह ... फिर नहीं मिलते कभी ...
ReplyDeleteखयालात की अजनबी रास्तों पे उड़ान ऐसी ही होती है ...
गहन भावमयी अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteभावमयी ..निशब्द हूँ
ReplyDeleteभावपूर्ण..सुंदर प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteमन को गहरे छू लेती अद्भुत शिल्प की गद्य कविता !
ReplyDeleteशब्दों ने निःशब्द कर दिया
ReplyDeleteबहुत खूब, लाजवाब
साभार!
"मोती पिघल कर बह गए हैं" बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeletebahut pyara likha hai.... adbhut....
ReplyDeletebahut pyara likha hai ....Adbhut...........
ReplyDeletetouching and beautifully expressed .
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