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----आत्मालाप ----- |
अमर्त्य कुछ है ?
कुछ भी नहीं।
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तुम और मैं ; 'हम' नहीं हैं।
पर हम से कुछ कम नहीं हैं
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ऐसी बातें किताबों में अच्छी लगती हैं
किताबें लिखने वाले जिंदा इंसान ही होते हैं
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मैं नहीं चाहती चाहना उन जीवन वालों की किताबी बातें।
जानती हो इन किताबी बातों में ही अक्सर मुझे तुम मिलती हो .
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नहीं मैं अक्षर नहीं हूँ जो किताबों में रहूँ।
बताओ काली सफ़ेद छाया के सिवा और क्या हो?
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ऐसा क्यूँ कहा ?
क्योंकि जीवन इन्हीं दो रंगों में सिमटा है। .
अब इससे मेरा क्या संबंध ?
क्योंकि तुम मेरा जीवन हो।
आकाश मे विचरना छोडो।
ज़मीन पर रह कर क्या करूँ?
जो सब करते हैं ?
क्या ?
जीना सीखो.
किसलिए जीना सीखूं?किसके लिए ?तुम तो मृगतृष्णा हो ,एक परछाई !
मैं मृगतृष्णा नहीं कस्तूरी की गंध हूँ।
जो इस देह के साथ ही लुप्त हो जाऊँगी।
ओह ,अगर यही सच है तो तुम केवल साँसों तक साथ हो ।
मुझे भी समझ आ गया ,अमर्त्य कोई नहीं !
हाँ,
सब कुछ नश्वर है मैं भी ,
तुम भी ..
और 'हम 'भी !..
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पार्श्व में 'मेरा नाम जोकर 'फिल्म का एक गीत गूंजता सुनायी देता है...
'कल खेल में हम हों न हों ,
गर्दिश मे तारे रहेंगे सदा..,
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सुंदर प्रभावी अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleterecent post : बस्तर-बाला,,,
आदमी (अपवादों को छोड़कर) बहुत स्वार्थी जीव का नाम है. जब जैसी जरूरत वैसा बन जाता है. जो आपने लिखा है उतना ही सोच ले, तो झगड़ा - झंझट हो ही क्यों..
ReplyDeleteआदमी (अपवादों को छोड़कर) बहुत स्वार्थी जीव का नाम है. जब जैसी जरूरत वैसा बन जाता है. जो आपने लिखा है उतना ही सोच ले, तो झगड़ा - झंझट हो ही क्यों..
ReplyDeleteस्वार्थ का लोभ सवार है.
ReplyDeleteआत्मालाप की आवृत्ति से पता चल रहा है कि मन के गहरे से निकल रही है बातें।
ReplyDeleteसच है ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteमानव जीवन क्षण -भंगुर है लेकिन उसके सद्कर्मो की महक सदियों तक लोगो उर्जा और उष्मा देती है ,सार्थक संवाद युक्त नैसर्गिक साश्वत सत्य के परिचय युक्त सुन्दर भावाभिव्यक्ति करती रचना के लिए साधुवाद ,
ReplyDeleteबहुत खूब ... आज बहुत दिनों बाद आप पुराने अंदाज़ में दिखी हैं ... कशमकश ... स्वप्न ओर हकीकत से द्वंद करती लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteऐसे ही कभी कभी लिखते रहना अच्छा होता है ...
बहुत गहराई वाले तथ्य को शब्दों में पिरोया है आपने. दार्शनिक भी नही क्योंकि दार्शनिक और दर्शन भी अंत में नही बचेगा. अंतत: सब शून्य में विलीन.....
ReplyDeleteबहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
सुन्दर..प्रभावपूर्ण।।।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर..शुभकामनाएं
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteकितना कुछ बदलने को है इस जीवन में ..
ReplyDeleteस्वगत कथन अच्छे रहे!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत बढ़िया लगा आत्मालाप..कई बार इसकी जरूरत पड़ती है इंसान को
ReplyDeleteएकालाप भी आत्मालाप भी मगर वार्तालाप तो कदापि नहीं -हैं न ? :-)
ReplyDelete@अरविन्द जी ,यह अल्पना की कल्पना मात्र आत्मालाप ही है.
ReplyDeleteवार्तालाप कदापि नहीं ,यूँ भी ऐसे कथन किताबी/काल्पनिक होते हैं मन को बहलाने के ख्याल !वास्तविक दुनिया तो निरी व्यावहारिक है.
Sab kuch marty hai tum, main, hum ek usake siwa jo jad chetan sab ka prakash hai.
ReplyDeleteSunder adhyatmik wartalap or atmalap.
हे भगवान
ReplyDeleteso sweet !
ReplyDelete----सब कुछ मर्त्य नहीं है ...अपितु दृश्य-संसार मर्त्य है,शरीर .....आत्मा मर्त्य नहीं है.....राम, कृष्ण आदि मर्त्य नहीं हैं ....सत्कर्म सत्कृतियाँ मर्त्य नहीं हैं ....यही अमरता है...
ReplyDelete'न हन्यते हन्यमाने शरीरे ...'
गर्दिश में तारे रहेंगे सदा ...भी निराशावादी एवं अनुचित सोच है...
ReplyDelete--- हम तारों की बजे कर्म पर सोचें ---
superb.Nice lines.
ReplyDeleteNice expression.
ReplyDeleteVinnie