'फसाना-ए-शब-ए-ग़म' ---------------------- जुर्म -ए-तमन्ना की सज़ा यूँ मिला करती है मुझे , खिंचती हैं रंगे पलकों की, जब दर्द कफस में अंगड़ाईयाँ लेता है, सर्द आहों में दम तोड़ती हैं उम्मीदें, नक्श ज़हन में उभरने लगते हैं, परत दर परत उघड़ती हैं सब यादें, होने लगती है... मेरे सब्र की आज़माईश! बह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले, पर पशेमान से सुबक़ते हैं और आँखों में ही सो जाते हैं! मशवरे देती है सबा.. की यूँ बेज़ार ना हो, आगोश में तुझको ,कज़ा के ही अब तो चैन आएगा! -------------- [लिखित -अल्पना वर्मा],[चित्र साभार-श्री देव प्रकाश जी] कुछ उर्दू शब्दों के अर्थ फसाना=कहानी, शब=रात,कफस=पिंजरा,पशेमान= |
एक ग़ज़ल -------- फिल्म-शगुन,गीत -साहिर लुधियानवी,संगीतकार -ख़ैयाम, मूल गायिका -जगजीत कौर,picturised on Nivedita 'तुम अपना रंजोग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो, तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो' Download or Play Mp3 Here |
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खूबसूरत कविता और अंदाजे बया ,सुमधुर गीत भी -शुक्रिया ! कुछ उर्दू शब्दों की हिन्दी भी दे दें तो बहुतों का भला हो जायेगा ! मुझे ही कुछ शब्दों को लेकर अक्सर अर्थ का अनर्थ जैसा भ्रम हो जाता है और कविता की सहज प्रवाहमयी समझ बाधित हो जाती है .
ReplyDeleteमशवरे देती है सबा..
ReplyDeleteकी यूँ बेज़ार ना हो,
आगोश में तुझको ,कज़ा के ही
अब तो चैन आएगा!
-आह!! वाह...बहुत सुन्दर और अन्त में जो गज़ल लगा दी...क्या कहने!!
आगोश में तुझको ,कज़ा के ही
ReplyDeleteअब तो चैन आएगा!
" चैन मिले न मिले और मिले भी तो कजा की आगोश में , बेहतरीन इन पंक्तियों में एक कशिश है...कई बार पढ़ते रहे...."
regards
सुंदर रचना. आभार.
ReplyDelete""सर्द आहों में दम तोड़ती हैं उम्मीदें,
ReplyDeleteनक्श ज़हन में उभरने लगते हैं,
परत दर परत उघड़ती हैं सब यादें,
होने लगती है...
मेरे सब्र की आज़माईश!
बह जाएँ अश्क
तो कुछ सुकून मिले,""
गहन भावों से घनीभूत लाइनें ,बेहद उम्दा,बेहद खूबसूरत.
Bahut hi sundar rachna. Padkar accha laga.
ReplyDeleteमुझे दोनों बहुत अच्छे लगे आपकी लेखनी और आपकी आवाज.
ReplyDeleteबह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
ReplyDeleteपर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं!
सुंदरतम रचना, उर्दू शब्दों के मायने लगा कर इसका अर्थ सभी के लिये समझना आसान होगया है जिससे रचना की खूबसूरती और बढ गई है.
गीत बेहद कर्णप्रिय और मधुर है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
सुंदर अभिव्यक्ति के साथ ...बहुत सुंदर रचना....
ReplyDeleteखिंचती हैं रंगे पलकों की,
ReplyDeleteजब दर्द कफस में अंगड़ाईयाँ लेता है,
वाह! बेहतरीन
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
ReplyDeleteपर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं...
उमड़ते हुवे जज्बातों की बेहतरीन दास्तान ........... लफ़्ज़ों को हगरे एहसास में पिरोया है आपने ....... सच है शब-ए-गम में अश्क बह नही पाते और जब दर्द की इंतेहा हो जाती है कज़ा के बाद ही चैन आता है ........... बहुत ही बेहतरीन नज़म ......
आपकी गायी हुई ग़ज़ल भी कमाल की है ......
बह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
ReplyDeleteपर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं!
मेम बहुत सुंदर लिखा है...
यह गीत मुझे बहुत पसंद है...
क्या आप बता सकती हैं जिस पर यह फिल्माया गया है वह कलाकार कौन है...
मीत
अल्पना जी
ReplyDeleteरचना तो निसंदेह अच्छी है
लेकिन आपकी आवाज़ तो बहुत अच्छी है
शुक्रिया कुबूल करें
मेम यह लिंक चेक कीजिये
ReplyDeletehttp://www.archive.org/details/TumApnaRanjoGhamByAlpana
मीत
मेम एक बात और आपकी आवाज में तो यह गीत मैंने डाउनलोड कर लिया क्या आप मुझे इसका वास्तविक एम् पी३ (जगजीत कौर की आवाज वाला) भेज सकती हैं...
ReplyDeleteअगर हाँ तो भेज दीजिये न...
बह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
ReplyDeleteपर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं!
.......kya baat hai !
tum apna ranzo gum apni pareshani mujhe de do
बह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
ReplyDeleteपर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं!
.......kya baat hai !
tum apna ranzo gum apni pareshani mujhe de do
मशवरे देती है सबा..
ReplyDeleteकी यूँ बेज़ार ना हो,
आगोश में तुझको ,कज़ा के ही
अब तो चैन आएगा!
बहुत खूब. और आपकी आवाज़ में ये गज़ल, सुभानल्लाह.
BAS......WAAH....WAAH....AUR WAAH....
ReplyDelete@Arvind ji,urdu Shbdon ke arth de diye gaye hain.
ReplyDeleteShukriya is sujhhav ke liye.
...........................
@Meet,aap ne jo jaankari chahi hai us ke saath Song details update kar diya hai.
-Archive site ka link hi is player code mein lagaya hai.:)
Abhaar.
बहुत बढ़िया प्रस्तुती एक एक शब्द एक एक पंक्ति मुखर हो उठी है आपकी कलम का साथ पा कर
ReplyDeletebahut sunder rachna alpna ji behatrin barambar badhayi maaf karna english me likhna pad raha hai jald hi hindi me chalu hote hi apne pyare blogjagat me wapas lautunga aap sabhi ka aashirwad aur pyar ki darkar
ReplyDeletemujhe esa lagtaa he ki- मेरे सब्र की आज़माईश!
ReplyDeleteyahi to vo mool tatv he jisake kaaran itani behatreen rachna banaai gai.yaa yah bhi kah saktaa hoo, isi ek baat ne marm ki peedaa ko darshayaa he. bahut khoob rachna he.
परत दर परत उघड़ती हैं सब यादें,
ReplyDeleteहोने लगती है...
मेरे सब्र की आज़माईश!....बेहद बेहतरीन लिखा है ..एहसासों को लफ़्ज़ों का जामा पहना दिया है ...
शीर्षक के अनुसार गम की "रात " का जिक्र नही आ पाया है और आपकी आखिरी चार लाइनों पर बहुत पुराना शेर याद आया ""यू तो घबराके वो कह देते है कि मर जायेंगे /मर कर भी चैन न पाया तो कहां जायेगे ? ""उक्त शेर मे जो भी कहा गया हो ,मगर हवा के माध्यम से आपने जो संदेश देना चाहा है ,हकीकत यही है कि मौत की आगोश मे ही चैन मिलता है ।
ReplyDelete@ Respected Brij Sir,
ReplyDeleteग़म के स्याह अंधेरो में डूबे व्यक्ति के लिए दिन भी 'ना ख़तम होने वाली रात 'ही है..यही सोच कर यह शीर्षक रखा था..
एक और शीर्षक सोचा था...'राह-ए -फ़ना की ओर'..फिर यह 'फसाना-ए-शब-ए-ग़म'
ज़्यादा सटीक लगा..
बह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
ReplyDeleteपर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं!
वाह वाह...अब ऐसी कमाल की रचना के लिए सिवा वाह वाह के और क्या कहूँ ...और आपने तुम अपना रंजो गम सुना कर मन विभोर कर दिया...
नीरज
रचना बेहद खुबसूरत बेहद ....और निचे आकर और मजा आगया
ReplyDeleteआपकी खुबसूरत आवाज़ में आपको सुनना ... तुम अपना ...
बधाई कुबुलें...
अर्श
बह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
ReplyDeleteपर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं!
मशवरे देती है सबा..
की यूँ बेज़ार ना हो,
आगोश में तुझको ,कज़ा के ही
अब तो चैन आएगा!
YADON KE ZAKHM JISKE PAS HAIN WO YAHI TO KAHEGA , BAHUT SHAANDAAR ABHIVYAKTI HAI ALPANA JI, GEET SUNTA HUN. BADHAAI.
बाद मुद्दत के आपकी एंट्री बहुत अद्भुत हुई है. गीत मेरी पसंद का है और हमेशा रहेगा. आप जो लिखती हैं वो सबसे हट के होता है, कहिये किस बात की तारीफ की जाये ?
ReplyDeleteजब दर्द कफस में अंगड़ाईयाँ लेता है,
ReplyDeleteसर्द आहों में दम तोड़ती हैं उम्मीदें,
नक्श ज़हन में उभरने लगते हैं,
परत दर परत उघड़ती हैं सब यादें,
ओये होए ......!!
अल्पना जी इस बार तो गज़ब ढाया है ......!!
आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी । पहले तो समझ मे न आया । पर नीचे लिखे अर्थ के होने से समझ में आ गया । आपका आभार एवं शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteएक बहुत सुंदर रचना जो अपने में अनेक भाव समेटे हुए है । रचना हेतु बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बढिया लगी ये रचना......साथ में उर्दू शब्दों के दिए अर्थ के कारण भाव अच्छे से समझ में आ गए...
ReplyDeleteगीत भी बेहद कर्णप्रिय लगा.......
आभार्!
वाकई में इस बार की गज़ल बडी गहराई लिये हुए है.
ReplyDeleteबस यही कहा जा सकता है कि सब्र ही एक मात्र रास्ता है.
आपका गीत हमेशा की तरह बढियां रहा. इन अलग सी आवाज़ों पर आपकी आवाज़ सूट भी करती है. अब भावों का भी प्रादुर्भाव हो गया है, जो गज़ल की रूह को छू ले जाती है.
अल्पना जी, आदाब.
ReplyDeleteजब दर्द कफस में अंगड़ाईयाँ लेता है,
सर्द आहों में दम तोड़ती हैं उम्मीदें,
खूबसूरत नज्म की यादगार पंक्ति है..
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
बेहद दिलकश नज़्म..अपने साथ बहाती से ले जाती है किसी अनजान किनारे पर..जुर्मे-तमन्ना की यह नाउम्मीदी ही सबसे बड़ी सज़ा होती है..और अश्कों का थक कर आँखों मे ही सो जाना....क्या कहूँ!!!!!
ReplyDeleteअल्पना जी, ताऊ रामपुरिया की पहेलियों पर आपके द्वारा प्रदत्त सारगर्भित जानकारियों से प्रभावित होकर आपका भारत दर्शन ब्लोग देखा और यकीन मनिये नेट पर समय बिताना सफ़ल हो गया। घर बैठे-बैठे अपने देश की जानकारी इतने रोचक ढंग से प्राप्त हुई कि सच में अभिभूत हूं। कभी-कभी लगता है कि कुछ लोग असाधारण रूप से प्रतिभासंपन्न हैं और आप उनमें से एक हैं। आप बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। कामना है आप इसी ऊर्जा से अपना काम करती रहें।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteकविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।
ReplyDeleteबह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
ReplyDeleteपर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं!
बहुत बढिया लगी ये रचना.
बह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
ReplyDeleteपर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं!
अति सुन्दर !
आपके स्वरों में कुछ बात है।
ReplyDeleteऔर हाँ. इतनी क्लिष्ट उर्दू, आजकल सीख रही हैं क्या?
--------
अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
आपके ब्लोग पर आकर दो दो चीजें मिल जाती है एक बढिया सुन्दर रचना और एक प्यारा गीत आपकी आवाज में। और आपकी पोस्ट लगते ही दोडे चले आते है वैसे आजकल देरी हो रही है। हमेशा की तरह आज की पोस्ट भी पसंद आई।
ReplyDeleteबह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
पर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं!
बहुत खूब। वैसे ये सच है कि रोने से सुकून तो मिलता ही।
jab bhi dil pareshaan hota hai... kya kahun kambakht aankh humesha nam hota hai... rona to achhi baat hai... mann ki aur tan ki dono gandgi bahar nikal jati hai... adbhutaas rachna...
ReplyDeleteBahut hi sundar rachna . Shubhkamnay
ReplyDeleteबस खामोश कर दिया आपने.
ReplyDeleteअश्क पशेमाँ है
बह जाए तो कुछ सुकून मिले,
सुबक़ते हैं पर
आँखों में ही सो जाते हैं!
मशवरे देती है सबा..
की यूँ बेज़ार ना हो,
आगोश में तुझको ,कज़ा के ही
अब तो चैन आएगा!
"तुम अपना रंजोग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो,.."
ReplyDeleteक्या खूब संगीतमय स्वर बाँधा है...
- सुलभ
बह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
ReplyDeleteपर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं!
मशवरे देती है सबा..
की यूँ बेज़ार ना हो,
आगोश में तुझको ,कज़ा के ही
अब तो चैन आएगा!
arse baad is mood me najar aayi......albatta is mood me kuch aor der rahe to behtar ho.....
bahut sundar alpna ji.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुती एक एक शब्द एक एक पंक्ति मुखर हो उठी है आपकी कलम का साथ पा कर
ReplyDeleteaapki pur-kashish aawaaz mei
ReplyDeletebahut hi khoobsurat geet sun`ne ko milaa....its one of my favourites..
thanks .
nazm mei mn ke khayaalaat
khud ubhar rahe haiN..
padhne se sukoon miltaa hai.
किसे बहुत सुन्दर कहें आपकी रचना या यह ग़ज़ल!
ReplyDeleteशुक्रिया अल्पना जी...
तुम अपना रंजोग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो,
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो'
होने लगती है...
ReplyDeleteमेरे सब्र की आज़माईश!
बह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
पर पशेमान से सुबक़ते हैं
और
आँखों में ही सो जाते हैं!
bahut khoobsurat nazm
ख्यालों का बहुत ही खूबसूरत प्रवाह देखने को मिला, बेहतर रचना के लिये बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteगज़ब की कशिश लिए बेहतरीन नज़्म .......और जगजीत कौर की आवाज़ को हूबहू ढाल दिया आपने अपने गाने में .
ReplyDeleteमशवरे देती है सबा..
ReplyDeleteकी यूँ बेज़ार ना हो,
आगोश में तुझको ,कज़ा के ही
अब तो चैन आएगा!
waah kya baat hai ,is baar andaaj kuchh naye hi hai ,kafi pasand aayi dono cheeje .
विलंब से आ रहा हूँ मैम.....इस खूबसूरत नज़्म से वंचित ही रह जाता
ReplyDelete"बह जाएँ अश्क तो कुछ सुकून मिले,
पर पशेमान से सुबक़ते हैं
और आँखों में ही सो जाते हैं"
...बहुत सुंदर पंक्तियाँ!
मशवरे देती है सबा..
ReplyDeleteकी यूँ बेज़ार ना हो,
ये तो आशा से भरपूर है पर
कज़ा के आगोश में चैन आ भी जाये तो क्या । चैन तो अभी चाहिये Right now in cash !
मशवरे देती है सबा..
ReplyDeleteकी यूँ बेज़ार ना हो,
आगोश में तुझको ,कज़ा के ही
अब तो चैन आएगा!
Aah ! Kis qadar dard samete hue hai yah rachana!
बहुत देर से आया लेकिन शुक्र है आ गया और 'फसाना-ए-शब-ए-ग़म' को पढ़ लिया
ReplyDelete"जब दर्द कफस में अंगड़ाईयाँ लेता है,
सर्द आहों में दम तोड़ती हैं उम्मीदें,"
...
आगोश में तुझको ,कज़ा के ही
अब तो चैन आएगा!
किस की तारीफ़ करू किसको छोडू? वाह वाह - लाजवाब.
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteबस इतना कहूंगा कि पढ़ने के बाद भीतर कुछ हलचल हुई है।
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