कभी -कभी कुछ चित्रों को देखकर अभिव्यक्ति शब्द बुनने लगती है,ऐसे ही कुछ शब्द त्रिवेणी बनकर इन चित्रों के लिए उभर आए हैं।
ये चित्र श्री सुब्रमनियम जी के बाग़ के हैं उन्हीं के द्वारा खींचे हुए हैं, मैंने इनके पिक्सल कम करके यहाँ लगाए हैं। इनके मूल आकार उनके फेसबुक अल्बम में देख सकते हैं।
सुबह होते ही ओस फ़ना हो जाती है,
झूठ है कि सूरज सबको जीवन देता है।
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आसमां नीला ,पत्ते हरे और श्वेत पुष्प बिन आस ,
सुनो ! सफ़ेद में सब रंग शुमार होते हैं।
------अल्पना ------------
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हवा चली ,झूल गयी डाल और उड़ गया भंवरा,
एक भंवरे का मकसद तो पराग पाना भर है।
-------अल्पना ---------
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बहुत खूब! क्या बात है~!
ReplyDeleteसुन्दर फूल। और अत्यंत सुन्दर त्रिवेणियाँ।
ReplyDeleteवाह, शब्द और चित्र का सशक्त संयोजन..
ReplyDeleteवाह :)
ReplyDeleteशब्द और चित्र दोनों ही एक दूसरे के पूरक .....झूठ कि सूरज सबको जीवन देता है ...बेहतरीन त्रिवेणी ।
ReplyDeleteसूरज का सौतेलापन, सफेद फूल की उदारता, फूल से भंवरे का विश्वासघात........प्यार से उकेरा गया सब कुछ।
ReplyDeleteIt is so beautiful ,really written well . Keep writing .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteचित्र को देखकर भाव का पैदा होना एक नैसर्गिक प्रतिभा है.
ReplyDeleteतीनों ही त्रिवेणी अपने आप में अद्वितीय हैं. बहुत ही खूबसूरत भाव और वो भी सटीकता के साथ, शुभकामनाएं.
रामराम.
वाह !!! बहुत उम्दा लाजबाब भावपूर्ण प्रस्तुति,,
ReplyDeleteRECENT POST: गुजारिश,
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteतीनों एक से बढ़कर एक
(जी वैसे आप बहुत दिनों बाद दिखाई दीं )
बढ़िया वर्णन और चित्रण ..
ReplyDeleteरात के आँसू पत्तों पर चमकते मोती ,
ReplyDeleteसुबह होते ही ओस फ़ना हो जाती है,
झूठ है कि सूरज सबको जीवन देता है।
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तीनों ही त्रिवेणी अर्थपूर्ण और बहुत लाजवाब हैं
सुन्दर सृजन
बधाई / आभार
ब्लॉग पर आइए....घर के पीछे या आगे ..किसी गांव के मोड़ पर..या किसी मंदिर के प्रांगन में...या शहर के किसी पार्क में....गली के किसी नुक्कड़ पर...मन्नतों के धागे से बंधे पीपल के पत्तों पर ठहरी हुई बूंदों मिलेंगी और देश की खूशबू आपको देगी...
ReplyDeleteझूठ कि सूरज सबको जीवन देता है ...शब्द और चित्र दोनों ही एक दूसरे को मात देरहे हैं ..खुबसूरत प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत खूब ... भँवरे का मकसद तो पराग ही है ... जैसे सूरज का मतलब ऊर्जा देना है फिर चाहे आंसू रहे या ओस उड़ जाए ...
ReplyDeleteसभी त्रिवेनियाँ कमाल का अर्थ समेटे ...
Very thoughtful!
ReplyDeleteत्रिवेणी में डुबकी लगाना अच्छा लगा
ReplyDeleteप्रकृति के ये रूप बड़े निराले होते हैं
साभार
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत खूब बन पड़ी चित्र और उसकी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteक्या भंवरे का परागपान, फूलों के रस कि सार्थकता
सिद्ध करने का कारण नहीं बन जाती है ?
आभार---
@नहीं Einstein जी .मैं नहीं मानती.स्वार्थ पूर्ति के लिए किसी का उपयोग उसके गुण की सार्थकता हुई क्या?
Deleteआप का कथन तो कुछ ऐसा ही हुआ जैसे कि किसी रूपसी के शोषण को आप उसके रूप की सार्थकता कह दें.
Deleteमाफ़ करें अल्पना जी मेरा ये अर्थ तो कदापि नहीं था।
मेरा आशय ये था कि जब मधुमक्खियाँ फूलों का रस पान
करती है तो उस रस को स्वादिष्ट मधु के रूप में हमें प्रदान
करती है । क्या मधुमक्खियाँ फूलों का शोषण करती है ?
क्या फूलों के रस का मधु में परिवर्तित हो जाना उसके सार्थकता
को सिद्ध नहीं करती है ? यदि आपके पास समय हो तो मेरे विचारों
की दुनियाँ में आपका स्वागत है @ http://einsteinkunwar.blogspot.in/2009/04/blog-post_8201.html
good one
ReplyDeleteAvaneesh
आदरणीया सादर अभिवादन
ReplyDeleteएक चित्र सैकड़ों संभावनाओं कों व्यक्त करता हैं |
उम्दा लेखन |
मनभावन संयोजन |
आदरणीया
ReplyDeleteअति सुंदर शब्द संयोजन,
मनभावन चित्र
डॉ अजय
निसंदेह साधुवाद योग्य लाजवाब अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसुन्दर अति सुन्दर...
ReplyDelete:-)
behatreen abhivyakti...
ReplyDeletevery nice 'triveni'...........please keep writing & bless readers like me with your fantastic writing work
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