--१--
धूप में चलते हुए,
इस ख़ुश्क ज़मीन पर
क़दम ठिठके
ज़रा छाँव मिली
लगा किसी दरख्त के नीचे आ पहुंची हूँ.
मगर नहीं ,
यह तो बादल का एक टुकड़ा है जो
ज़रा बरसा और पानी बन कर बह गया,
धूप अब और तेज़ लगने लगी है मुझको !
----अल्पना -----
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-२-
पलकों में बंद किये सब मोती ,
दिल की एक गिरह बाँधकर
उस में छुपा ली हैं सब यादें,
मुट्ठी में कैद किये हैं सपने
कर लिया है चेहरे को भावों से खाली,
और खामोशियों को दे दी है जुबां ,
कारवां चले न चले साथ मगर
चलना ही होगा अब,
कि रास्ता मुश्किल
और मंजिल बहुत दूर दिखती है !
-----अल्पना --------
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Umda Bhao Liye Hue.
ReplyDeleteJab Iski Khabar Ho Jaye Ki Manjil Bahut Dur Hai Tab Bahut Kuchh Aasan Bhi Ho Jata Hai...
सच है.
Deleteअतिसुन्दर। सार्थक।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (07-06-2013) को पलटे नित-प्रति पृष्ट, आज पलटे फिर रविकर चर्चा मंच 1268 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बादलों का साथ जब तक, है भरोसा,
ReplyDeleteछत सदा, ठहरी वहाँ, बन जड़ खड़ी।
भरोसा....!
Deleteमन की भावनायें कागज पर.
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ भाव पूर्ण
ReplyDelete"कारवां चले न चले साथ मगर चलना ही होगा अब, कि रास्ता मुश्किल और मंजिल बहुत दूर दिखती है !" बहुत सुन्दर परन्तु ऐसी तन्हाई से किसी का भी वास्ता न पडे.
ReplyDeleteसहमत .
Deleteआभार.
पहली कविता मन की वह अवस्था खूबसूरती से बयां हुई है जब हम किसी अस्थायी टौर को पकका मान लेते हैं और मालूम पडता है यह तो दुनियां की तरह क्षण भंगुर है, सार्थक रचना.
ReplyDeleteरामराम.
दूसरी कविता जीवन की सच्चाई है, जिसे बहुत ही दार्शनिक भाव से आपने अभिव्यक्त किया है, बहुत ही सुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम
खुद को छलते रहना फिर भी चलते रहना ..यही तो जीवन है न!
Deleteआभार.
छांव,बादल,धूप
ReplyDeleteपलक,दिल,यादें
...................कोई नहीं है फिर भी है आपको ना जाने किसका इंतजार..........।
बड़े ही खूबसूरत गीत की याद दिला दी आपने ..आभार.
Deleteकहां हैं। बहुत दिनों से खबर नहीं है आपकी। स्वास्थ्य तो ठीक है ना।
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteप्रभावी !!!
ReplyDeleteशुभकामना
आर्यावर्त
गहन सार्थक अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteभावपूर्ण गहन भाव अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteLiked it .
ReplyDeleteकारवां चले न चले पर हमें चलना होगा सकारात्मकता को लेकर आता है। आशावादी रहकर अपना काम ईमानदारी से करना बहुत जरूरी है आपकी लघु कविता बता रही है।
ReplyDeleteजीवन की यात्रा है चले बिना गुज़र भी तो नहीं !
ReplyDeleteराबर्ट फ्रास्ट की कविता याद आई
ReplyDelete...और अभी तो मीलों मुझको मीलों मुझको चलना है !
आपकी यह यात्रा वांच्छित फल दे -यही कामना है !
कविता गहन सम्वेदात्मक भावों से भरी है!
वाह ! बहुत सुन्दर क्षणिकाएं। जिंदगी में छाँव कम , धूप ज्यादा होती है।
ReplyDeleteदोनो कविताएं सुंदर अलग सी ।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति। सच्ची अनुभूति बयाँ करती।
ReplyDeleteदोनों क्षणिकाएँ अदभुत चित्र खींचती है इस मौसम का. सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteअच्छी छुटकी कवितायें। :)
ReplyDeleteअकेले में चलना हो तो सभी चीजें जरूरी होती हैं ...
ReplyDeleteयादें संबल होती हैं ... जब खामोशी बाते करे तो तन्हाई कैसे रहेगी ....कारवां भी तो साथ रहेगा ...
अति सुन्दर भावपूर्ण रचनाएँ। सच्चा चितरण प्रस्तुत करने के लिए बधाई। सस्नेह
ReplyDeleteचितन को प्रेरित करती शसक्त रचना ..सदर बधाई के साथ
ReplyDeleteman ko choone waalee rachnaon ke liye hardik badhayee ..saadar
ReplyDeleteसच,सुंदर अनुभूति
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
सादर
आग्रह है- पापा ---------
अत्यंत सुन्दर कवितायेँ | बधाई
ReplyDeleteआपकी यह रचना निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
ReplyDeletekhud ko chhalna asaan nahi hota..zakhmon ki tees kahin na kahin bani rehti hai..aise zakhm jo dikhte to nahi hain par naasoor ban humesha saath rehte hain...
ReplyDeleteसुन्दर भाव...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteउन्ही रास्तों में ऐसा गुम होना भी ठीक नहीं ! :-(
ReplyDeleteछोटी पर सारगर्भित कवितायेँ . बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteसुन्दर! एक महीने में एक पोस्ट का हिसाब है क्या ? :)
ReplyDeleteसारगर्भित सुन्दर अभिव्यक्ति।..
ReplyDeletegati (chalanaa)hi jivan hai.
ReplyDeleteaur prateeksha men aahlad !
सार्थक,सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहतरीन
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