स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

June 7, 2013

खुद को छलते रहना..


 --१--

धूप में चलते हुए,
इस ख़ुश्क ज़मीन पर
 क़दम ठिठके 
ज़रा छाँव मिली
लगा किसी दरख्त के नीचे आ पहुंची हूँ.
मगर नहीं ,
यह  तो बादल का एक टुकड़ा है जो 
ज़रा बरसा और पानी बन कर बह गया,
धूप अब और तेज़ लगने लगी है मुझको !
----अल्पना -----
..............................................................................................






-२-

पलकों में बंद किये सब मोती ,
दिल की एक गिरह बाँधकर 
उस में छुपा ली हैं  सब यादें, 
 मुट्ठी में कैद किये हैं  सपने 
कर लिया है चेहरे को भावों से खाली,
और खामोशियों को दे दी है जुबां ,
कारवां चले न चले साथ मगर 
चलना ही होगा अब,  
कि रास्ता मुश्किल 
और मंजिल बहुत दूर दिखती है !
-----अल्पना --------
..............................................................................................


48 comments:

  1. Umda Bhao Liye Hue.
    Jab Iski Khabar Ho Jaye Ki Manjil Bahut Dur Hai Tab Bahut Kuchh Aasan Bhi Ho Jata Hai...

    ReplyDelete
  2. अतिसुन्दर। सार्थक।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (07-06-2013) को पलटे नित-प्रति पृष्ट, आज पलटे फिर रविकर चर्चा मंच 1268 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  4. बादलों का साथ जब तक, है भरोसा,
    छत सदा, ठहरी वहाँ, बन जड़ खड़ी।

    ReplyDelete
  5. मन की भावनायें कागज पर.

    ReplyDelete
  6. दोनों रचनाएँ भाव पूर्ण

    ReplyDelete
  7. "कारवां चले न चले साथ मगर चलना ही होगा अब, कि रास्ता मुश्किल और मंजिल बहुत दूर दिखती है !" बहुत सुन्दर परन्तु ऐसी तन्हाई से किसी का भी वास्ता न पडे.

    ReplyDelete
  8. पहली कविता मन की वह अवस्था खूबसूरती से बयां हुई है जब हम किसी अस्थायी टौर को पकका मान लेते हैं और मालूम पडता है यह तो दुनियां की तरह क्षण भंगुर है, सार्थक रचना.

    रामराम.

    ReplyDelete
  9. दूसरी कविता जीवन की सच्चाई है, जिसे बहुत ही दार्शनिक भाव से आपने अभिव्यक्त किया है, बहुत ही सुंदर रचना.

    रामराम

    ReplyDelete
    Replies
    1. खुद को छलते रहना फिर भी चलते रहना ..यही तो जीवन है न!
      आभार.

      Delete
  10. छांव,बादल,धूप
    पलक,दिल,यादें
    ...................कोई नहीं है फिर भी है आपको ना जाने किसका इंतजार..........।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बड़े ही खूबसूरत गीत की याद दिला दी आपने ..आभार.

      Delete
    2. कहां हैं। बहुत दिनों से खबर नहीं है आपकी। स्‍वास्‍थ्‍य तो ठीक है ना।

      Delete
  11. गहन सार्थक अभिव्यक्ति!!

    ReplyDelete
  12. भावपूर्ण गहन भाव अभिव्यक्ति ...

    ReplyDelete
  13. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  14. बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

    ReplyDelete
  16. कारवां चले न चले पर हमें चलना होगा सकारात्मकता को लेकर आता है। आशावादी रहकर अपना काम ईमानदारी से करना बहुत जरूरी है आपकी लघु कविता बता रही है।

    ReplyDelete
  17. जीवन की यात्रा है चले बिना गुज़र भी तो नहीं !

    ReplyDelete
  18. राबर्ट फ्रास्ट की कविता याद आई
    ...और अभी तो मीलों मुझको मीलों मुझको चलना है !
    आपकी यह यात्रा वांच्छित फल दे -यही कामना है !
    कविता गहन सम्वेदात्मक भावों से भरी है!

    ReplyDelete
  19. वाह ! बहुत सुन्दर क्षणिकाएं। जिंदगी में छाँव कम , धूप ज्यादा होती है।

    ReplyDelete
  20. दोनो कविताएं सुंदर अलग सी ।

    ReplyDelete
  21. सुन्दर अभिव्यक्ति। सच्ची अनुभूति बयाँ करती।

    ReplyDelete
  22. दोनों क्षणिकाएँ अदभुत चित्र खींचती है इस मौसम का. सुंदर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  23. अच्छी छुटकी कवितायें। :)

    ReplyDelete
  24. अकेले में चलना हो तो सभी चीजें जरूरी होती हैं ...
    यादें संबल होती हैं ... जब खामोशी बाते करे तो तन्हाई कैसे रहेगी ....कारवां भी तो साथ रहेगा ...

    ReplyDelete
  25. अति सुन्दर भावपूर्ण रचनाएँ। सच्चा चितरण प्रस्तुत करने के लिए बधाई। सस्नेह

    ReplyDelete
  26. चितन को प्रेरित करती शसक्त रचना ..सदर बधाई के साथ

    ReplyDelete
  27. man ko choone waalee rachnaon ke liye hardik badhayee ..saadar

    ReplyDelete
  28. सच,सुंदर अनुभूति
    बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

    आग्रह है- पापा ---------

    ReplyDelete
  29. अत्यंत सुन्दर कवितायेँ | बधाई

    ReplyDelete
  30. आपकी यह रचना निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

    ReplyDelete
  31. khud ko chhalna asaan nahi hota..zakhmon ki tees kahin na kahin bani rehti hai..aise zakhm jo dikhte to nahi hain par naasoor ban humesha saath rehte hain...

    ReplyDelete
  32. सुन्दर भाव...बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  33. उन्ही रास्तों में ऐसा गुम होना भी ठीक नहीं ! :-(

    ReplyDelete
  34. छोटी पर सारगर्भित कवितायेँ . बहुत सुन्दर .

    ReplyDelete
  35. सुन्दर! एक महीने में एक पोस्ट का हिसाब है क्या ? :)

    ReplyDelete
  36. सारगर्भित सुन्दर अभिव्यक्ति।..

    ReplyDelete
  37. gati (chalanaa)hi jivan hai.
    aur prateeksha men aahlad !

    ReplyDelete
  38. सार्थक,सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  39. Anonymous7/25/2013

    बेहतरीन

    ReplyDelete

आप के विचारों का स्वागत है.
~~अल्पना