मन की गिरह मन की गिरह में बाँध कर तेरी यादें , अब अपने रस्ते चल दी हूँ मैं , खुलेगी नहीं ये किसी भी ठोकर से, यूँ पत्थर सी बन गयी हूँ मैं , जब कभी बहती हवा थम जायेगी, जब कभी झूमती नदी रुक जाएगी , जब कभी वेवक्त सांझ गहराएगी, जब कभी खिली चाँदनी धुन्धलाएगी , जब कभी अजनबी सदा बुलाएगी , जब कभी ख़ामोशी भी डराएगी, जब कभी चाहना स्वप्न बोयेगी जब कभी बेवजह आँख रोएगी , जब कभी थक जाऊँगी चलते -चलते , और कोई चिराग बुझेगा जलते - जलते तब ही किसी दरख्त की छाँव तले , तेरी मौजूदगी का आभास किये, खोल दूंगी इस गिरह को मैं , आँखों में भर कर तेरी यादों को , अपनी रूह में जज़्ब कर लूंगी मैं, फ़िर जब भी रुकेंगी साँसे, मुझे अलग ये हो न पाएंगी, रहेंगी साथ सदा और जायेंगी संग, उस जहाँ में भी.... हाँ, रहेंगी साथ सदा उस जहाँ में भी.... --------------अल्पना वर्मा --------------- |
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July 26, 2011
मन की गिरह
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बहुत ही अच्छे लगे ....फ़िर जब भी रुकेंगी साँसे,
ReplyDeleteमुझे अलग ये हो न पाएंगी,
आभार
और जायेंगी संग, उस जहाँ में भी....
ReplyDeleteहाँ, रहेंगी साथ सदा उस जहाँ में भी.
बेहतरीन शब्दों का संगम इस अभिव्यक्ति में ।
तेरी मौजूदगी का आभास किये,
ReplyDeleteखोल दूंगी इस गिरह को मैं ,
आँखों में भर कर तेरी यादों को ,
अपनी रूह में जज़्ब कर लूंगी मैं,..
गहरी उदासी लिए है आपकी नज़्म ... किसी की यादों को इस तरह से ज़ज्ब करना ... खुद को बना लेना और पत्थर हो जाना ... दर्द भरा नगमा है कोई ...
'दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा
ReplyDeleteजब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं'
इस पन्ने पर आज उदासियाँ बिखरी पड़ी हैं.
कोमल भाव व दृढ जीवट. सुंदर.
ReplyDeleteऔर जायेंगी संग, उस जहाँ में भी....
ReplyDeleteहाँ, रहेंगी साथ सदा उस जहाँ में भी.
...man ke gahan udas kshano mein saath nibhana yahi to jiwatta ka parichayak hai...
bahut badiya prastuti..
तब ही किसी दरख्त की छाँव तले ,
ReplyDeleteतेरी मौजूदगी का आभास किये,
खोल दूंगी इस गिरह को मैं ,
आँखों में भर कर तेरी यादों को ,
अपनी रूह में जज़्ब कर लूंगी मैं,
फ़िर जब भी रुकेंगी साँसे,
मुझे अलग ये हो न पाएंगी,
रहेंगी साथ सदा....
har pankti me ek alag sa dard hai..!!
itni udasi kyon alpana jee:)
जब कभी चाहना स्वप्न बोयेगी
ReplyDeleteजब कभी बेवजह आँख रोएगी ,
जब कभी थक जाऊँगी चलते -चलते ,
और कोई चिराग बुझेगा जलते - जलते
जीवन का राज समाया है इनमें.
रामराम.
एक सुगढ़ रचना मन की गिरह...
ReplyDeleteसादर...
"उदासी का एक तराना है
यह भाव सदा अनजाना है
जो रहता है भीतर दिल के
किसने इसको पहचाना है "
गहरे भावों को समेटे यह रचना।
ReplyDeleteऔर जायेंगी संग, उस जहाँ में भी....
ReplyDeleteहाँ, रहेंगी साथ सदा उस जहाँ में भी....
खूबसूरत भावों से सजी सुंदर रचना...
komal c kavita..bahut achhi lagi...
ReplyDeleteगिरह बंध गई तो समझों वह 'उस' जहां तक साथ रहना है. और अगर वो मन की हो तो रास्तों से होते हुए हवा, नदी, सांझ, चांदनी, स्वप्न, चिराग, दरख्त, रूह से होते हुए उतर जाती है इस पूरी प्रकृति में..चाहे रुक जाये सांसे भी, क्या फर्क? गिरह होती ही ऐसी हैं।
ReplyDeleteभावप्रधान शब्द कविता के रूप में..बहुत दिनों बाद पोस्ट हुए..., अच्छे लगे..।
तब ही किसी दरख्त की छाँव तले ,
ReplyDeleteतेरी मौजूदगी का आभास किये,
खोल दूंगी इस गिरह को मैं ,
आँखों में भर कर तेरी यादों को ,
अपनी रूह में जज़्ब कर लूंगी मैं,
फ़िर जब भी रुकेंगी साँसे,
मुझे अलग ये हो न पाएंगी,
रहेंगी साथ सदा
और जायेंगी संग, उस जहाँ में भी....
हाँ, रहेंगी साथ सदा उस जहाँ में भी....
gam ka khazana tera bhi hai mera bhi -gazal ki line yaad aa gayi ,bahut hi sundar likha hai mano mere khyaal ko apne shabdo me piro diya ,baat dil ko chhoo gayi ,adbhut .yakin nahi ho magar aese hi khyaal mere jahan me janm liye the tabhi padhkar taslli hui ,kuchh shabd uske tumhe likh rahi hoon ---jameen se hokar juda ek aur jahan banaye ......
tasvir bhi bahut pyaari hai ,
ReplyDeleteतब ही किसी दरख्त की छाँव तले ,
ReplyDeleteतेरी मौजूदगी का आभास किये,
खोल दूंगी इस गिरह को मैं ,
आँखों में भर कर तेरी यादों को ,
अपनी रूह में जज़्ब कर लूंगी मैं,
बहुत सुन्दर बेहतरीन पंक्तियाँ इस रचना की
तब ही किसी दरख्त की छाँव तले ,
ReplyDeleteतेरी मौजूदगी का आभास किये,
खोल दूंगी इस गिरह को मैं ,
आँखों में भर कर तेरी यादों को ,
वाह..कमाल की रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
खोल दूंगी इस गिरह को मैं ,
ReplyDeleteआँखों में भर कर तेरी यादों को ,
अपनी रूह में जज़्ब कर लूंगी मैं,
फ़िर जब भी रुकेंगी साँसे,
मुझे अलग ये हो न पाएंगी,
बहुत सुन्दर रचना.....
बहुत सुंदर..भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteजब कभी चाहना स्वप्न बोयेगी
जब कभी बेवजह आँख रोएगी ,
जब कभी थक जाऊँगी चलते -चलते ,
और कोई चिराग बुझेगा जलते - जलते
क्या कहने
मार्मिक कविता का संदेश अच्छा है ।
ReplyDeleteकितना सुन्दर लिखतीं हैं आप.
ReplyDeleteकल कल छल छल धाराप्रवाह सा
भाव और शब्द अति उत्तम हैं.
मन पर छाप छोडतें जाते है.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर दर्शन देकर शानदार टिपण्णी
से आपने मुझे निहाल कर दिया है.
बहुत बहुत शुक्रिया अल्पना जी.
दर्द है भीतर ..
ReplyDelete@मन की गिरह में बाँध कर तेरी यादें ,
ReplyDeleteअब अपने रस्ते चल दी हूँ मैं ,
खुलेगी नहीं ये किसी भी ठोकर से,
यूँ पत्थर सी बन गयी हूँ मैं ...
गहन भाव लिए बेजोड़ पंक्तियाँ , सुंदर रचना की प्रस्तुति के लिए आपको धन्यवाद.
गहन अभिव्यक्ति लिए रचना ...बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह कितनी कोमल और समर्पित भावनाओं की अभिव्यक्ति -कोई ऐसा चाहने वाला मिले तो जीवन सार्थक हो जाए!सुन्दर अभिव्यक्ति ,सुन्दर पुरकशिश कविता !
ReplyDeleteमन की गिरह में बाँध कर तेरी यादें
ReplyDeleteअब अपने रस्ते चल दी हूँ मैं
खुलेगी नहीं ये किसी भी ठोकर से
यूँ पत्थर सी बन गयी हूँ मैं
गीत
प्रारम्भ से ही अपना प्रभाव बना रहा है
हर पंक्ति के साथ ही हर पढने वाला
शब्द शब्द स्वयं को खोजने का प्रयास करता महसूस होता है
एक उत्तम रचना के सृजन पर बधाई स्वीकारें .
भाव, अभाव, साहस और जिजीविषा की कविता...
ReplyDeleteगहन भावों को समेटे कुछ उदास करती आध्यात्मिक चिंतन को दर्शाती अलौकिक
ReplyDeleteप्रेम की अभिव्यक्ति....!!
जिन पंक्तियों को मैं उद्धृत करना छह रहा था वे सब चुरा लिए गए हैं. बेहद खूबसूरत, भावनात्मक रचना. आभार.
ReplyDeleteआपके इस गुण से अबतक अनजान था. आपकी काव्य प्रतिभा विलक्षण है. इस गीत में आपकी कवित्व क्षमता खुल कर सामने आयी है.
ReplyDeleteवैसे यादों को तो मन जीवन पर्यंत संजोता है. प्रेम की बेल को मीरा की तरह आंसुओं से सींचना ही पड़ता है.
रात और दिन का एक खूबसूरत गीत याद आ रहा है. दिल की गिरह खोल दो, चुप न बैठो, कोई गीत गाओ...
Gahan bhavon ko sundar shabd deti rachana
ReplyDeleteकुछ यादें सदा के लिये बस जाती हैं मन में पर आप तो उसे उस पार भी ले गईँ । भावपूर्ण प्रेम कविता .
ReplyDeleteअल्पना जी
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद आया हूँ क्षमा.
आपकी इस कविता ने मन को भिगो सा दिया है .. क्या कहूँ शब्द नहीं है ..कुछ कहने के लिये ..
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
स्नेहमयी अल्पना जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
मन की गिरह क्या है … भावनाओं का ज्वार है ! एहसासात की उथल-पुथल रही होगी लिखते वक़्त भी वैसी ही , जैसी पढ़ते समय कोई भी महसूस कर सकता है …
अल्पना जी , क्या कुछ नहीं समाहित-समाविष्ट कर दिया आपने इस रचना में !!
मन की पीड़ा , ठेस पहुंचने से उत्पन्न प्रतिक्रिया , मर्माहत होने का भाव , करुणा , वेदना ,नैराश्य , स्वाभिमान , कुछ कर दिखाने का संकल्प , संतुष्टि , समर्पण भाव , निश्चय और विश्वास …
बहुत प्रभावित करने वाली रचना है … नमन !!
चलती रहे लेखनी यूं ही निर्बाध …
… साथ ही मधुर कंठ से भी सरस्वती का प्रसाद बांटती रहें … … …
हार्दिक मंगलकामनाएं !
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
gazab ka likha hai aapne...shabd ho ya jazbaat...sab kuchh..bas kamaal hai...!!
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
बेहद कोमल भावनाओं को सादगी से पिरो कर गहरी बात कही गयी है.
ReplyDeletekamaal ki bhavnaayon se ot-prot. prem ka ek roop ye bhi...
ReplyDeleteswatantrata divas ki badhai .
ReplyDeleteकहाँ खो गयी हैं आप .....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
मन पर प्रभाव छोडती हुई कविता.
ReplyDelete-रजनी प्रभाकर
shadon ke bahav main behta chala gya
ReplyDeletemam bahut hi accha likhaa har baar ki tarhaan
राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई,
ReplyDeleteराख में चिनगारियां ही देख अंगारे न देख।
dushyant ji ko padhkar maja aa gaya ,tippani ka vikalp rakhna chahiye hum apne vichar kase jahir kare ,post kitni achchhi hai tumahari .
नमस्कार....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
वहा से मेरे अन्य ब्लाग लिखा है वह क्लिक करके दुसरे ब्लागों पर भी जा सकते है धन्यवाद्
MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
ReplyDeleteनई पोस्ट पर अपने सुविचार प्रकट कीजियेगा.
तब ही किसी दरख्त की छाँव तले ,
ReplyDeleteतेरी मौजूदगी का आभास किये,
खोल दूंगी इस गिरह को मैं ,
आँखों में भर कर तेरी यादों को ,
अपनी रूह में जज़्ब कर लूंगी मैं,
देखो जैसे मैंने अलग नही किया खुद को आप लोगों से.मेल आई डी ब्लोक क्या हास्ब बहा लेगया.अते..पते...सब.
आई तो देखती हूँ प्रेम में पगी एक रचना जैसे मेरे भावों को अपने शब्द वसन से धक लेने को तैयार खड़ी है.
प्रेम बहता ही नही सोते-सा फूटता है तुम्हारी रचनाओं में से............
शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत मार्मिक सन्देश आपने इस शब्द्लाहरी के माध्यम से दिया है ..कृपया बधाई स्वीकार करें ....
ReplyDeleteआपकी नई पोस्ट की आशा में आपके ब्लॉग पर आया था.
ReplyDeleteनई पोस्ट का इंतजार है, अल्पना जी.
मेरी नई पोस्ट 'सीता जन्म आध्यात्मिक चिंतन-४'
पर आईयेगा. आपका इंतजार है.
नमस्कार,
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं |
आप के लिए "दिवाली मुबारक" का एक सन्देश अलग तरीके से "टिप्स हिंदी में" ब्लॉग पर तिथि 26 अक्टूबर 2011 को सुबह के ठीक 8.00 बजे प्रकट होगा | इस पेज का टाइटल "आप सब को "टिप्स हिंदी में ब्लॉग की तरफ दीवाली के पावन अवसर पर शुभकामनाएं" होगा पर अपना सन्देश पाने के लिए आप के लिए एक बटन दिखाई देगा | आप उस बटन पर कलिक करेंगे तो आपके लिए सन्देश उभरेगा | आपसे गुजारिश है कि आप इस बधाई सन्देश को प्राप्त करने के लिए मेरे ब्लॉग पर जरूर दर्शन दें |
धन्यवाद |
विनीत नागपाल
behatareen rachana lagi ....bahut bahut abhar Alpana ji
ReplyDeleteगहन रचना ,,छाप छोड़ रही है ...
ReplyDeleteशुभकामनायें ...