स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

June 17, 2010

निर्वात

हर साल की तरह इस बार भी गरमी अपने पूरे शबाब पर है.फ़िर वही चिर परिचित धूल भरी गरम हवाएं.
समाचारों में देख रहे हैं कि भारत में तो बारिशें खूब हो रही हैं .कुछ महीने पहले यहाँ भी हुई थी बारिश एक पूरा दिन !
दो तीन दिन लगातार होती तो कम से कम ये सड़कें ,इमारतें ,पेड़ पौधे सब अच्छी तरह धुल तो जाते !
देखीये इन चित्रों में एक दिन की हलकी मगर पूरे दिन हुई बारिश से क्या हाल हुआ था..



सुबह और शाम के चित्र




निर्वात
-----

रास्ते ठहरे हुए हैं ,
सूर्य भी धुन्धला गया ,
दिन बुनती हूँ तो
रात की चादर बनता जाता है!
तक रही हूँ आसमाँ ,
शायद कभी रोशन भी हो,
खोजती हूँ वो सितारे ,
जो कभी ,
बिखरे थे आकाश में !

शब्द थे साथी मगर ,
वो भी कहीं जा सो गए,
भाव थे हमराह पर ,
किस राह जाने खो गए ,
है शिथिल देह ,
और मन निर्जीव सा
हर तरफ फैला हुआ है
मौन' किस निर्वात का ,
शून्य में ठहराव ये
अंत ही होता मगर ,
ज़िन्दगी...
चलते रहने के बहाने ढूँढ़ ही लेती है !

-------------अल्पना वर्मा ------------------


एक त्रिवेणी
फ़ूल सारे खिल गए हैं ,


हवा भी गाने लगी है,


एक बच्चे को हँसते देखा है अभी .


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64 comments:

  1. बहुत सुन्दरचित्र-बेहतरीन कविता .और त्रिवेणी का तो क्या कहना..."

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  2. सकारात्मकता के साथ चलती हुई आपकी रचना खूबसूरत लगी ....जिंदगी राह ढूंढ ही लेती है ....बहुत खूब!

    त्रिवेणी भी सुन्दर है...

    शुभकामनाएं..

    ReplyDelete
  3. अल्पनाजी
    कभी कभी ऐसा ही होता है सब कुछ होते हुए भी निराशा घेर लेती है और आपने उन्हें सुन्दर अभिव्यक्ति दे दी है |
    और फिर त्रिवेणी ने सारी नीरसता धोकर नई स्फूर्ति जगा दी है |एक सुन्दर से गीत का इंतजार है आपका गाया हुआ ?
    और हाँ अभी कहीं पर भी बहुत बरसात ज्यादा नहीं हुई है समाचार थोडा बढ़ चढ़ कर ही ही बताते है |
    उमस जारी है |
    शुभकामनाये |

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  4. मालवा मे तो अभी बारिश नही हो रही है बस हल्की बूंदे पड़ी थी कल

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  5. Anonymous6/17/2010

    सच से अंत किया आपने।
    जब तक जीवन को बहते जाना है
    तब तक यह सब बाधाओं को पार करके
    आगे बढ़ने की जुगत भिड़ा ही लेता है।

    बच्चे की निश्चल हँसी तो चम्पा चमेली की सुगंध की तरह
    फैलती जाती है...
    उदास कवि को भी खिला देगी, बल्कि खिला ही दिया होगा।

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  6. यह आवश्यक भी है की जिन्दगी ठहर न जाए ! शुभकामनायें !

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  7. बहुत सुन्दर दृश्य और कविता... जिन्दगी चलने के बहाने ढूंढ़ ही लेती है...

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  8. जीवन्त्तता की ही पर्याय है जिन्दगी -कविता अपने बेहद उत्कृष्ट शिल्प और भाव में एक गहरी उदासी संप्रेषित कर रही है !
    ऐसा तो नहीं होने देना हैं न !

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  9. ज़िन्दगी...
    चलते रहने के बहाने ढूँढ़ ही लेती है !
    वाह अलपना जी दिल को छू गयी रचना बधाई

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  10. आपके अल एन में तो बारिश हो गयी ... दुबई वाले तो तरसते रह गये ....
    वीत रागी की तरह आपकी रचना ... निवीकार जीवन में निरन्तर कर्म तो करना ही पड़ता है ... बहुत बार मन कुछ उदास सा हो जाता है ... शब्द, भाव, रोशनी गुम सी होने लगती है ... पर जीवन का क्रम चलता रहता है ...

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  11. त्रिवेणी एक अचल सत्य है ... बच्चे की मुस्कान जीवन को प्रवाह-मेय कर देती है ....

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  12. खूबसूरत रचना...और बहुत ही सुन्दर त्रिवेणी....बधाई

    ReplyDelete
  13. chalti ka naam hi jindagi hai, beshak kabhi kabhi padaw aa jaate hain, kabhi kabhi thak jata hai pathik........lekin chalna to hai hi...........:)


    ek bhawpurn rachna!!

    ReplyDelete
  14. chalti ka naam hi jindagi hai, beshak kabhi kabhi padaw aa jaate hain, kabhi kabhi thak jata hai pathik........lekin chalna to hai hi...........:)


    ek bhawpurn rachna!!

    ReplyDelete
  15. त्रिवेणी में बहुत ही सुंदर भाव हैं.
    ...ब्लाग के दाईं तरफ लगा श्री वायलार रवि का चित्र शर्तिया जून 2010 से पहले का है.

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  16. दिन बुनती हूँ तो
    रात की चादर बनता जाता है!
    ..............
    पढ़ती हूँ हर बार और कितनी सारी भावनाओं के आगे थम जाती हूँ, कहना चाहती
    हूँ , पर कमेन्ट बॉक्स खुलता ही नहीं

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  17. फोटो लेख रचना और त्रिवेणी...सब कुछ लाजवाब...
    नीरज

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  18. बहुत सुन्दर!
    यहाँ तो वर्षा ने मौसम खूब सुहावना कर दिया है।
    घुघूती बासूती

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  19. फूल सारे खिल गए हैं ,


    हवा भी गाने लगी है,


    एक बच्चे को हँसते देखा है अभी .
    waah bahut khoob ,itni khoobsurat rachna par kuchh kaha nahi jaa raha abhi filhaal shayad khamoshi behtar hai is sundar ahsaas aur didar par .shabdo ne man moh liya .

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  20. अल्पनाजी
    पहले त्रिवेणी में व्यक्त कोमल - मा'सूम भावों के लिए बधाई !
    मैं त्रिवेणी विधा को अभी समझ रहा हूं , सच कहूं तो नेट पर ही आप सहित दो तीन अन्य रचनाकारों को त्रिवेणियां रचते देखा है ।
    न समझ पाने के उपरांत भी मन को बहुत कुछ महसूस तो होता ही है …
    … और यहीं आपकी त्रिवेणी मन को बहुत प्रभावित कर रही है ।

    ज़िन्दगी...
    चलते रहने के बहाने ढूँढ़ ही लेती है !


    रचना निर्वात एक सहज भावबोध की कविता है , जिसका आशावादी समापन इसकी विशेषता है , उपलब्धि है ।
    सुंदर सृजन के लिए बधाई !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  21. शब्द थे साथी मगर ,
    वो भी कहीं जा सो गए,
    भाव थे हमराह पर ,
    किस राह जाने खो गए ,

    alpana ji namaskaar , upar ki panktian man ko bha gain. bahut sunder rachna hai. bahut din baad aapse sampark kar raha hun, kuchh din blog se door chala gaya tha , is beech kuchh naya bhi to nahin likha gaya. aaj ka bhajan bhi pahle ka hi likha hai, aapka dhanyawaad.

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  22. नमस्कार.
    सुन्दर रचना. साथ ही त्रिवेणी बहुत अच्छी लगी.

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  23. यह कविता आपके विशिष्ट कवि-व्यक्तित्व का गहरा अहसास कराती है।
    इस कविता की कोई बात अंदर ऐसी चुभ गई है कि उसकी टीस अभी तक महसूस कर रहा हूं।

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  24. ek bahut achchhi rachna ke liye badhayee ho

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  25. सुन्दर कल्पना का प्रस्तुतीकरण

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  26. बहुत ही ख़ूबसूरत रचना और अंतिम पंक्तियाँ तो लाजवाब हैं...चित्र और त्रिवेणी भी बहुत अच्छे हैं... आपके ब्लॉग पर आकर एक साथ बहुत कुछ मिल जाता है.

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  27. अंत ही होता मगर ,
    ज़िन्दगी...
    चलते रहने के बहाने ढूँढ़ ही लेती है !
    जितनी सुन्दर कविता ,उतने ही सुन्दर चित्र भी.

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  28. बेह‍द ही पसंद आयी आपकी रचना, बधाई।

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  29. बहुत बढ़िया रचना...

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  30. karnapriya geet, manbhavan kavitae.

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  31. जाने किस भारत मे हो रही है बारिश .....लखनऊ तो अभी भी बेतरह तप रहा है...... आपकी बारिश वाली तसबीरों ने तरावट दी .... आपके ऊब को सुंदर शब्द दिये हैं ....और अंत मे , निष्कर्ष तो खूबसूरत है ।

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  32. आप के अंतरंग में कई फ़ूल खिल रहे हैं,और आप अपनी सकारात्मक अभिव्यक्ति से हमें प्रेरणा और ऊर्जा देती रहतीं हैं.

    हमारे यहां तीन दिन पहले ही मौसम की पहली बारिश हुई. मगर सडकें धुली नहीं , मगर कीचड से सराबोर हो रहीं हं, क्योंखि सभी तरफ़ सडकें खुली हुई हैं.(Under Construction)!

    पिछले साल आपने एक मराठी गान (गारवा.....) भेजा था, इसी मौके के लिये, वह याद आया.

    !त्रिवेणी का भी जवाब नहीं..

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  33. सचमुच निर्वात....। जिंदगी खुद एक बहाना है। मौत को झुठलाने का बहाना...। झुठलाते-झुठलाते..कितनी लम्बी खींच लेने का उपक्रम..।
    और मन निर्जीव सा
    हर तरफ फैला हुआ है
    बहुत खूबसूरत पंक्ति है अल्पनाजी यह। दरअसल पता नहीं क्यों इसमे मुझे गहरी दार्शनिकता नज़र आती है। इसकी व्यख्या कर देने का मन होता है। मन का निर्जीव होना..और उसका.हर तरफ फैला हुआ होना....। कुछ अलग सी चीज बयां करती है..मानों चारों और बस सन्नाटा ही सन्नाटा..मुर्दसी ही मुर्दसी.....। खैर..मैं सम्भव है आपके विचार से विलग विचारों में भटकने लगा..किंतु आपकी यह रचना मुझे ज्यादा भायी। फिर त्रिवेणी..तो प्रफुल्लित कर देनी वाली है ही। गज़ल की वो लाइन याद आन पडी..कि ...चलो आज रोते हुए किसी बच्चे को हंसाया जाये...।


    - कुछ उलझने, कुछ सांसारिक ताने-बाने..तनाव और कभी हल्की से उम्मीद आदि जैसे तमाम तरह के दौर से गुजर रहा हूं तो ब्लॉग आदि पर सफर कम हो गया है..देर से आने के लिये मुआफी चाहता हूं।

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  34. पुनश्च:- राजेन्द्रजी की टिप्पणी सुखद है। उनमें कवि मानस है। उनकी ही टिप्पणी को आगे बढाने का मन हो आया सो-
    "रचना निर्वात एक सहज भावबोध की कविता है , जिसका आशावादी समापन इसकी विशेषता है , उपलब्धि है ।.."
    सिर्फ सहज भावबोध मुझे प्रतीत नहीं हुआ, भावबोध तो है ही किंतु सहज..नहीं, रचना की दार्शनिकता में उतर जायें तो सहजता नहीं बल्कि गम्भीरता नज़र आती है। मुझे एसा लगा। और..आशावादी समापन..इसकी विशेषता है..नहीं..मुझे लगा इसकी विशेषता है जीवन का कटु सत्य..उसकी मज़बूरी..उसकी पीडा...। खैर..।

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  35. अमिताभजी मुझसे अधिक अनुभवी हैं , गुणी हैं !
    निश्चय ही डूब कर मनन - मंथन करने के पश्चात नतीज़े पर पहुंचे हैं ।
    मेरी अल्प बुद्धि कविता की इस अंतिम पंक्ति को आशावादी समापन ही माने हुए है …
    ज़िन्दगी...
    चलते रहने के बहाने ढूँढ़ ही लेती है !


    आदरणीय अमिताभजी से निश्चय ही कम अज कम मुझ जैसे ज्ञान-पिपासु को बहुत सारी प्रेरणाएं मिलने की संभावनाएं हैं ।

    आभार सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  36. आपने ठीक कहा उदासीनता के निर्वात में शब्द सो जाते हैं, भाव भी खो जाते हैं. परन्तु ये अंतरात्मा की आवाज ही है जो खोये भाव को ढूंढ़ कर धड़कन होने का आभास कराती है, पुन: शब्द जागते हैं. जीवन को गतिशील जैसे भी हो रहना ही है.

    त्रिवेणी ने बदले मौसम का अच्छा अहसास कराया.

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  37. शायद कभी रोशन भी हो,
    खोजती हूँ वो सितारे ,
    जो कभी ,
    बिखरे थे आकाश में ....

    या शायद ...वो सितारा जो कभी खो गया था आकाश में .....
    इस बार की रचना दिल के करीब है .....
    त्रिवेणी किसी मासूम की मुस्कान सी ......साफ और स्पष्ट .....!!

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  38. ज़िन्दगी...
    चलते रहने के बहाने ढूँढ़ ही लेती है !

    क्या बात है....वाह
    बहुत अच्छी त्रिवेणी से भी खूबसूरत लगी.

    ReplyDelete
  39. ज़िन्दगी...
    चलते रहने के बहाने ढूँढ़ ही लेती है !

    सच कहा आपने..
    जीवन और जल दोनों की प्रकृ्ति बिल्कुल एक समान...जिनका काम ही बहते जाना है. कोई चाहे कितना भी बांधने का प्रयास करें,ये अपने लिए कोई नया मार्ग ढूँढ ही लेते है..
    त्रिवेणी तो लाजवाब रही.....

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  40. वाह....
    मुग्धकारी लाजवाब....
    भावों को ऐसी मनमोहक अभिव्यक्ति दी है आपने कि क्या कहूँ....

    ReplyDelete
  41. हर तरफ फैला हुआ है
    मौन' किस निर्वात का ,
    शून्य में ठहराव ये
    अंत ही होता मगर ,
    ज़िन्दगी...
    चलते रहने के बहाने ढूँढ़ ही लेती है !
    Alpana ji,
    sach kaha hai apne jindagii chalane ka koi na koi bahana talash hee legee---har hal men kyon ki chalna hee to jindagee hai.

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  42. वो कागज की कश्ती , वो बारिश का पानी ... आपकी कविता ने जगजीत की ग़ज़ल की याद दिला दी.....

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  43. एक अद्भुत नज़ारा देखा अभी .वो बच्चा जिसे बोलना तक नहीं आता.....बारिश की बूंदों से खिलखिला उठता है.........त्रिवेणी खूबसूरत है ...

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  44. नपे तुले शब्दों में लिखी गई एक सुन्दर कविता.........

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  45. Kavita ne gehra asar choda.
    Triveni bachche ki hansi ki tarah hi sundar.

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  46. kya baat hai alpna ji pardesh me baithe baithe desh ka sajiv chitran bahut khoob behatrin

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  47. ज़िन्दगी चलते रहने के बहाने ढूंढ़ लेती है यही पंक्ति दिल में बस गयी है ..और त्रिवेणी आप बहुत दिल से लिखती है ...बहुत पसंद आई .बच्चे सी मासूम

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  48. Anonymous6/24/2010

    वैज्ञानिक विचारों का काव्य रूप में सुंदर प्रस्फुटन।
    ---------
    क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
    अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।

    ReplyDelete
  49. behatarin...........prakriti ko samne laakr khadaa kar diya

    ReplyDelete
  50. bahot achcha likhtin hain aap.

    ReplyDelete
  51. bahut khub rachna...
    ek bachche ko hanste dekha hai abhi...

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  52. बहुत ही सुन्दर त्रिवेणी....बधाई

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  53. अल्पना जी, कहाँ बिजी हैं?
    इस शमा को जलाए रखें।
    ................
    अपने ब्लॉग पर 8-10 विजि़टर्स हमेशा ऑनलाइन पाएँ।

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  54. अल्पना जी बहुत दिनो से शेष फिर और् खानाबदोश पर आपका आना नही हुआ,कोई नाराज़गी है क्या?
    ब्लागिंग के टिप्पणी आदान-प्रदान के शिष्टाचार के मामले मे मै थोडा जाहिल किस्म का इंसान हूं लेकिन आपमे तो बडप्पन है ना...!

    डा.अजीत
    www.monkvibes.blogspot.com
    www.shesh-fir.blogspot.com

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  55. सूर्य भी धुन्धला गया ,
    दिन बुनती हूँ तो
    रात की चादर बनता जाता है!
    ye lines behad sunder lagi alpanaji,aur kavita bhi sunder. triveni ne tho hothon par ek masum si muskan hi bikhar di.sadar mehek
    (http://mehhekk.wordpress.com/)

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  56. बहुत बढ़िया रचना......

    ज़िन्दगी...
    चलते रहने के बहाने ढूँढ़ ही लेती है !

    वाकई अल्पना जी, ये बहाने ही जीवन के लक्ष्य होते है जो जीवन को एक अर्थ देते है .....

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  57. हर तरफ फैला हुआ है
    मौन' किस निर्वात का ,
    शून्य में ठहराव ये
    अंत ही होता मगर ,
    ज़िन्दगी...
    चलते रहने के बहाने ढूँढ़ ही लेती है !
    वाह, कविता और त्रिवेणी दोनो ही सुंदर ।

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  58. zindgi...jaise bhi ho, chalti hai...


    zindgi jaisi bhi ho, haseen hoti hai.

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  59. कीचड़ न हो तो बारिश का आनन्द ही आनद है , अब हम अपने यहाँ की क्या कहें

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  60. अल्पना जी,
    बहुत सुन्दर कविता। त्रिवेणी खूबसूरत है

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  61. नमस्कार...

    हमने बहुत चाह की आपका ब्लॉग अपने सेल पर खोल लें पर शब्द इतने छोटे नज़र आते थे की लगने लगता था की अब उम्र हो गयी...शायद चश्मा पहनने की...पर जहाँ छह वहां राह...आज काफी दिनों बाद ऑफिस का नेट ठीक हो पाया है और आज पहले दिन ही...मैंने सर्वप्रथम आपके ब्लॉग के दर्शन किये हैं... जैसे आपने लिखा है न जिन्दगी चलते रहने के बहाने ढूंढ लेती है... सो जिन्दगी तो चल रही है निर्बाध, गतिशील है... एक एक दिन बीतते जा रहे हैं और हम बढ़ रहे हैं एक अनजान पथ पर, जिसकी मंजिल का हमें अंदाजा तो है पर पता नहीं है...
    दीपक...

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  62. अच्छे फोटो! सुन्दर त्रिवेणी।

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  63. अच्छा लिखती है आप , ब्लॉग पढ़ा अच्छा लगा

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आप के विचारों का स्वागत है.
~~अल्पना