शोभा डे
जन्म -१९४८, जन्म स्थान -महाराष्ट्र.,व्यवसाय- भूतपूर्व मॉडल,प्रसिद्ध कॉलमिस्ट और उपन्यासकार
वास्तविक नाम -शोभा राजध्यक्ष
शोभा डे एक विवादस्पद नाम है .लेकिन जो इन्हें करीब से जानते हैं वे मानते हैं कि उनमें गहरी अंतदृष्टि और शहरी संस्कृति की समझ है.
उन्हें लोग उनकी बेबाक अभिव्यक्ति के कारण भी जानते हैं .भारत में किताबों के ज़रिये सेक्स क्रांति लाने वाली महिलाओं में उनका नाम पहले लिया जाता है.
उनका लिखा एक लेख कल उनके ब्लॉग पर पढ़ा ,शायद बहुत लोग इस सच्चाई को जानते हों परन्तु मेरे लिए यह बहुत ही चौंकाने वाली थी.
अपनी एक मित्र के साथ इस लिंक को शेयर किया तो उस ने मुझे यही कहा कि ये बातें सब जानते हैं!शायद मैं दुनिया से कटी हुई हूँ जिसे ये बातें नयी लगीं.
मॉडल विवेक बाबाजी के दर्दनाक अंत ने एक बार फ़िर से ग्लेमर की दुनिया के राज़ दुनिया के सामने ला दिए.
शोभा डे का लिखा कोई नोवेल मैं ने पढ़ा नहीं ,लेकिन उनके ब्लॉग पर लेखों से उनको समझने की कोशिश ज़रूर की है.वे शायद अपने समय में उस समय से बहुत आगे थीं.
आज भी उनके लेखों में कटाक्ष / तीखापन और बेबाकी साफ़ दिखती है .
लोग कहते हैं वे पेज थ्री सेलेब्रिटी हैं उनकी सोच गिरी हुई है क्योंकि उन्होंने सेक्स विषय पर लिखा जिस पर बात करना आज भी बहुत बुरा माना जाता है.
कोलेज समय में हेराल्ड रोबिनस या सिडनी के नोवेल के कुछ ख़ास पन्ने [मुड़े हुए] छात्राओं के 'स्टडी आवर' में घूमा करते थे.क्यों ?शायद इसलिए क्योकि इस विषय में प्रयाप्त जानकारी नहीं होती थी और जहाँ कहीं भी थोड़ा लिखा मिलता वही पूरा ज्ञान लगता .
हमारी संकुचित सोच के लिए ज़िम्म्मेदार इस विषय पर पर्याप्त ज्ञान न होना ही है.
जिस देश में' पिल ए डे 'एक दिन की गर्भ निरोधक गोलियां परचून की या केमिस्ट की दुकानों में विक्स या हाल्स की गोलियों के साथ रखी मिलती हैं ,
विडम्बना है कि उस देश के लोग स्कूलों में सेक्स education का विरोध करते हैं.
क्या यह हमारा दोगलापन नहीं है?आज जो अधकचरा ज्ञान इन्टरनेट या अन्य ज़रिये से नयी पीढ़ी पा रही हैं क्या वह खतरनाक नहीं है?
क्या अधकचरा ज्ञान सेक्स सम्बन्धी बढ़ते अपराधों से सम्बंधित नहीं है?हम कौन सी आधुनिकता का अन्धानुकरण कर रहे हैं?
कामसूत्र को लिखने वाले लेखक भारतीय ही थे और खजुराहो या वैसे ही मंदिरों पर बने चित्र या उकेरे गए चित्र क्या इसी कड़ी में शिक्षा हेतु नहीं बनाये गए थे?
मेरी एक रोमन केथ्लिक ईसाई [भारतीय] सहेली ने बताया था कि उनके यहाँ शादी से पहले चर्च में १५ दिन इसी विषय पर विस्तार से क्लास ली जाती हैं और भावी दूल्हा दुल्हन दोनों को ये कक्षाएं पूरा करने पर ही चर्च विवाह की अनुमति देता है.
लेकिन हिन्दू धर्म में विवाह से पूर्व या विवाह उपरांत भी ऐसी सलाह की सुविधाएँ नहीं हैं.
तभी तो इसे केसेस भी आते हैं अस्पताल में-कि दस साल हो गए शादी को लेकिन निसंतान हैं.[यह गढ़वाल क्षेत्र से एक सच्ची घटना का उदाहरण है .]जब पूरी जानकारी अलग अलग ली गयी तब मालूम चला कि उनका पति पत्नी का कोई सम्बन्ध ही नहीं बना क्योंकि उन्हें मालूम ही नहीं था कि करना क्या है?
ऐसे में कौन दोषी है?
हम सब जानना तो चाहते हैं लेकिन इस बात को अस्वीकार करते हैं कि 'हम चाहते हैं 'क्योंकि इस विषय पर बात करना आज भी हेय दृष्टि से देखा जाता है।
शादियों में 'इन संबंधों में असंतुष्टि 'तलाक का एक महत्वपूर्ण कारण भी है.इसको भली भांति इस्लामिक महिला विदाद ने समझा और लोगों को शिक्षित करने में हमसे आगे निकल गयी हैं जानिये इस साहसी महिला के बारे में -:
विदाद नासीर लूता[Wedad Nasser Lootah ]
जन्म-१९६४, नागरिकता-एमारती
व्यवसाय -दुबई कोर्ट में विवाह सलाहकार[an Emirati researcher, writer and a marriage counselor at DCD’s Family Guidance and Reconciliation Section.]
प्रकाशित पुस्तक -Arabic sex guide -:Top Secret: Sexual Guidance for Married Couples, published in 2009.
[अरबिक भाषा में और अंग्रेजी में अनुवादित ]
यह इस विषय पर लिखी पहली किताब है.
उनकी इस किताब से बहुत से विवाद उठे,जान से मारने की धमकियां भी उन्हें मिलीं.
She caused a controversy in the Islamic world by discussing sensitive topics in her book, such as oral sex, the danger of anal sex, female orgasm, the necessity of sex education, and homosexuality in Islamic societies.
परन्तु उनके साहस और एक अच्छे उद्देश्य ने उन्हें इस किताब के प्रकाशित होने पर बाधाएँ नहीं आने दी.
दुबई में अनुमति मिलने के बाद यह किताब मार्केट में आ सकी.
मैं ने खुद यह किताब देखी है ,इस किताब में उन्होंने बहुत विस्तार से समझाया है कि किस तरह से विवाह उपरान्त पति पत्नी के अन्तरंग सम्बन्ध सफल हो सकते हैं .
बहुत से पन्ने सेंसर होने के बाद भी इस किताब में वह सब कुछ है जिससे एक विवाहित जोड़ा इस क्रिया को बेहतर समझ सकता है.
वीदाद के प्रयास हैं कि सेक्स सम्बन्धी शिक्षा स्कूलों में दी जा सके.
उनका पूरा इंटरव्यू यहाँ पढ़ सकते हैं -
http://www.nytimes.com/2009/06/06/world/middleeast/06dubai.html?_r=1&ref=global-home
http://weknowdubai.com/general-news/emirati-writer-of-top-secret-honoured-2.html
The Director General of Dubai Courts Department (DCD), Dr Ahmad Bin Hazim Al Suwaidi honoured Wedad Lootah
निष्कर्ष -
"छोटे कपडे पहन कर और अंग्रेजी बोल कर हम आधुनिक बनने का स्वांग करते हैं परन्तु अपनी मानसिकता को ,सोच को विस्तार नहीं देते .जबकि विदाद ने साबित किया कि अपनी परम्पराओं का निर्वाह करते हुए भी हम इस क्षेत्र में शिक्षा का प्रसार कर सकते हैं,ताकि विवाह/परिवार टूटे नहीं और एक सुदृढ़ समाज की स्थापना हो.''
इस पोस्ट पर टिप्पणी का विकल्प नहीं रखा था लेकिन फ़िर भी कुछ ख्याल /विचार माननीय पाठकों ने ईमेल से भेजे जिनमें से कुछ मैं यहाँ पोस्ट कर रही हूँ ,जो शायद इस पोस्ट के पूरक हैं .
बहुतों की राय को ध्यान में रख कर टिप्पणी का विकल्प आज से अगस्त २ ,2010से खोल रही हूँ लेकिन moderation के भीतर ही .[विवाद खड़ा कर सकने वाली टिप्पणी का प्रकाशन नहीं किया जायेगा.]
आप के विचार -: अमिताभ श्रीवास्तव जी ईमेल द्वारा कहते हैं - इस तरह के विषयों पर टिप्पणी बॉक्स रखना चाहिये था, खैर..बहुत सी बाते हैं जिन्हें रखी जा सकती थी।मगर मेरी एक बात पर ध्यान जरूर दीजिये जो शोभा डे जैसी लेखिकाओं के लिये है कि हम अपनी बातों को शीलता पूर्वक भी रख सकते हैं। जरूरी नहीं कि जो जैसा है उसे ठीक वैसे ही रूप में लिख कर शब्दों की पवित्रता को कलंकित करें, उपर से यह कहें कि जो लिखा वो वैसा ही था जो देखा या जो समाज़ में चल रहा है। शोभ डे को काफी पढा है..जो जैसा है वैसा ही लिखने के चक्कर में उन्होंने कई बार मानवीय उत्तेजनाओं को बढाने का कार्य किया है जिसने उनके मूल विचारों को कई बार हाशिये पर रख छोडा। खैर.. पर जिस मुद्दे पर आपने अपने विचार रखे..वे सराहनीय तो हैं साथ ही बेहद जरूरी भी। |
प्रकाश गोविन्द जी के विचार ईमेल से प्राप्त-: शोभा डे ने, महेश भट्ट ने, कृपलानी ने, ,,,,,, जो भी कुछ कहा वो ओशो के ही स्वर हैं ..उनका ही चिंतन है ...उनके ही विचार हैं ! हाँ उनके विचार समय से पहले आये हुए विचार थे ....लेकिन आज लोग यौन शिक्षा के पक्ष में लोग आ चुके हैं ! हम ठहरे परंपरावादी लोग ...हमको प्रत्येक परिवर्तन दुखदायी-कष्टकारी प्रतीत होता है ....लगने लगता है हमारी संस्कृति ,,,हमारी परंपरा नष्ट हो रही है ... आप जरा इतिहास उठा कर देखिये ! जब ब्रिटिश समय में घरों में नालों द्वारा पानी पहुंचाने की योजना बनायीं गई तो कितना विरोध किया गया ....ना जाने कितनी तरह की अफवाएं उड़ाई गयीं ! जब रेलगाड़ी शुरू हुयी तो लोगों ने जबरदस्त विरोध किया ....कहा कि इस तरह तो ना जाने कितने लोगों की जान चली जायेगी...हजारों जानवर बेचारे कट के मर जायेंगे ...गर्भवती औरतों के लिए संकट खड़ा हो जाएगा ! जब कैमरा आया तो बहुत अरसे तक लोग डर के मारे फोटो ही नहीं खिचवाते थे ... कहा जाता था कि फोटी खिंचवाने से ताकत कम हो जाती है ...आत्मा हमसे दूर हो जाती है कहने का मतलब है हर परिवर्तन हमको दुखदायी लगता है - - जहाँ तक सेक्स का प्रश्न है भारतीय समाज में यह शब्द सदा से अघोषित तौर पर प्रतिबंधित रहा है इधर मानव मन है कि जिस चीज को जितना ज्यादा छुपाया जाएगा वो चीज उतना ही ज्यादा आकृष्ट करेगी ! आपने एक चर्चित कहानी सुनी है ना ...खैर सुनाता हूँ संक्षेप में - 'एक राजा था सनकी टाईप ! एक बार बीमार पड़ा ! उसने घोषणा कर दी कि जो भी वैद्य ठीक कर देगा उसको मालामाल कर दिया जाएगा लेकिन अगर असफल रहा तो हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया जाएगा ! जबरन एक नामी वैद्य को बुलाया गया ! वैद्य बहुत होशोयार था ! उसने राजा से कहा कि ये तो बहुत ही साधारण बिमारी है दो दिन खुराक खायियेगा सुबह-शाम .....बस बिमारी एकदम ठीक हो जायेगी ! राजा ने कहा कि लाओ दवा की खुराक दो ! वैद्य ने कहा कि दवा तो मैं डे ही रहा हूँ लेकिन इस दवा की एक खासियत है - दवा खाते समय मन में बन्दर का ख्याल नहीं आना चाहिए अन्यथा दवा असर नहीं करेगी ! राजा ने कहा बड़ी अजीब बात है ...मै बन्दर का ख्याल क्यूँ लाऊंगा ...लाओ दवा दो ! अब हुआ कि वैसे चाहे कभी बन्दर का ख्याल ना आता राजा के मन में ! लेकिन अब उसको हर समय बन्दर का ख्याल आने लगा ! तो ये मनोविज्ञान है ! जितना जिस चीज को छुपा के ...दबा के रखोगे उसके प्रति मन उतना ही ज्यादा आकर्षित होगा। - आपने जैसा कहा कि हिन्दू समाज में यौन शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं रही ...ऐसा कहना आंशिक रूप से कहना गलत होगा ! पहले के समय फेरे के उपरान्त दुल्हे को यौन सम्बन्ध में बताने का दायित्व पुरोहित अथवा पंडित का होता था.... वो वर को रतिक्रिया और उसका महत्त्व समझाता था ! वहीँ कन्या को समझाने का दायित्व माँ, मौसी, बुआ या भाभियाँ निभाती थीं ! आज के समय में इन सबकी आवश्यकता ही नहीं रही ! अखबार, पत्रिकाओं टीवी और इंटरनेट ने बच्चों को समय से पूर्व ही वयस्क बनाने का बीड़ा उठा रखा है ! बहुत अच्छा लिखा है आप ने .आप का गद्य हमेशा ही प्रभावित करता है.मेरे विचार में कमेन्ट का आप्शन हटाने का निर्णय सही नहीं है इस के स्थान पर महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाओं को ही स्थान देना का विकल्प देना चाहिए था . |
अच्छी पोस्ट है। कमेंट का विकल्प पहले ही खुला रखना था। अब लोग लौट के कम आयेंगे। सब हमारे जैसे पाठक थोड़े हैं जो पसंद के लेखक को बार-बार पढ़ें। :)
ReplyDeletemind blowing!
ReplyDeletesarthak sooch rakhti hai....
bht khoob pesh kiya hai alpana ji...
great:)
अच्छी प्रस्तुती।
ReplyDeleteVery nice presentation.Please visit my blog.
ReplyDeleteइससे पहले भी एक बार आपके ब्लॉग पर टिप्पणी कर चुका हूं संभवतः विदेश में रहकर देश के लिए तड़पन के संदर्भ में।
ReplyDeleteआधुनिकता के बारे में मेरा विचार सदैव यही रहा है कि व्यसन और वसन से आधुनिकता को आवरण देना है आधुनिकता का व्यवहार नहीं। आधुनिकता तो विकास के साथ आत्मिक और मौलिक स्वतंत्रता की ओर अग्रसर होना है, जीवन को सरस और सरल व आडंबर विहीन बनाना है। शोभा डे का परिचय तो शिक्षितों के लिए नया नहीं है परंतु नए डंग से प्रस्तुत करना अपने आप में अच्छा प्रयास है। साधुवाद।
पहले जब यह पोस्ट पढी थी तो यहां कमेंट का विकल्प नही था । हमारे यहां दसवी तक तो जीवशास्त्र (Biology) आवश्यक विषय है उसमें शरीर शास्त्र तथा गर्भधारणा और गर्भ विकास सब तो पढाया जाता है । बाकी काम हारमोन्स कर देते हैं । हां यदि कोई स्कूल ही ना जाये तो समस्या है ।
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