स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

April 22, 2010

अधूरी तहरीर

पिछली पोस्ट पर आये आप सभी के विचार ,सलाह और सुझावों का दिल से आभार.

आप की कही हर बात मेरे लिए महत्वपूर्ण है और सभी के विचारों को और अपना भी मत ध्यान में रखते हुए क्या निर्णय ले पाए हैं..२-३ महीने में बता सकूंगी.

माहोल को बदलते हुए एक नज़्म कहने की कोशिश है.




अधूरी तहरीर
-------------
भी ख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात हर घडी ,

और माज़ी में धडकती हैं कई यादें,

अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल,

चांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है ,

अब भी जागी आँखें टांकती हैं सितारे ,

आसमाँ के दामन में !


भी किसी आवाज़ पर पलट ,दूर चली जाती हूँ,

सब कुछ तो वही है मगर..

अब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर,

वक्त का दरया भी है खामोश

इश्क़ की तहरीर अधूरी सी ,

किस का इंतज़ार किया करती है?


था रखा है अब तक आस का दामन ,

रोशनी राह में यादें किया करती हैं,

जो कभी मेरी निगेहबां हुआ करती थीं,

वो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार,

फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!

का दामन थामे भटकती है रूह ,

इस भरम में अब भी !

हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भी !
-----अल्पना -----


चलते चलते एक त्रिवेणी-



आज हाथ झटक कर मेरा ,

मेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,

मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे !


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85 comments:

  1. बहुत दिन आपके ब्लॉग पर आया bada अच्छा लगा

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  2. मेम, आपने इतनी मार्मिक रचना कही है की क्या कहूँ... पहले ही आपकी पिछली पोस्ट से उदास था और अब यह...
    खैर बहुत सुंदर है... एक दम दिल पर असर करने वाली...
    और चलते चलते तो आपने एक लम्हा सा सामने रख दिया...
    हमसे यूँ ही जुड़े रहिएगा,..
    मीत

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  3. "बहुत सुन्दर शब्द चुने आपने इस नज़्म के लिये.."

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  4. "आज हाथ झटक कर मेरा ,
    मेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,

    मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे !"
    kya baat hai ji,

    "इस भरम में अब भी !

    हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भी !"

    ji bahut badhiya...

    kunwar ji,

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  5. वो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार,
    फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!
    .........कितना डूब कर लिखती हैं आप !!! अल्पना जी मुझे लगता है जैसे आपके भीतर छुपा बैठा है कोई सागर ...जो उमगता है और अपनी लहरों मे समेट लेना चाहता है पूरी पृथ्वी को ,उसके कतरे -कतरे मे हिलोरें लेता है बहुत मासूम सा चाँद ,वह चाँद, जो जब भी आता है बाँसुरी बजता है किसी के इंतजार मे ।

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  6. गज़ब. वारि वारि जाऊं.

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  7. बहुत सुन्दर , गीत जैसे साकार हो उठा हो , पहली दो पंक्तियों को आख़िरी पंक्तियाँ बनने का अधिकार भी दीजिये ....
    अब भी ख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात हर घडी ,
    और माज़ी में धडकती हैं कई यादें
    ... मन आनन्दित हो गया ।

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  8. नज़्म और चलते चलते .....वाह .......!!!

    गज़ब ढाने लगी हैं अल्पना जी ......

    बहुत खूब ....!!!!!!!!

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  9. अब भी ख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात हर घडी ,
    और माज़ी में धडकती हैं कई यादें,
    अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल,
    चांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है ,
    अब भी जागी आँखें टांकती हैं सितारे ,
    Alpana ji,

    bahut khoobasuratee se sajaya hai apne Tmpalet aur kavita donon ko.prakriti aur shabdon ka adbhut kolaj hai apkee yah kavita---thoda dikkat huyee comment kee jagah dhoondhane men---mujhe lagata hai apko tempalet/font kisi ek ka rang badalana chahiye.

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  10. बहुत ही शानदार नज्म और चलते चलते में तो नायाब अभिव्यक्ति है. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  11. जिन्दगी के आस और विश्वास नहीं टूटने चाहिए -यहेई तो जिन्दगी है ! सुन्दर मन को छूती कविता !

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  12. अच्छी मार्मिक नज्म ।

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  13. सुंदर शब्दों के साथ... बहुत सुंदर नज़्म...

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर रचना ।

    ReplyDelete
  15. बहुत सुंदर रचना,
    धन्यवाद

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  16. कितनी सीधी, सदा, सच्ची बातें बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ......... आप की गजल बेहतरीन है.

    ReplyDelete
  17. wow !!!!!!!!

    bahut khub


    shkehar kumawat

    ReplyDelete
  18. wow !!!!!!!!

    bahut khub


    shkehar kumawat

    ReplyDelete
  19. फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!

    आस का दामन थामे भटकती है रूह ,

    इस भरम में अब भी !
    आशा का संचरण,ही भविष्य की अवश्यम्भवी दिक्कतों से लड़ने का हौसला देता है. बहुत सुन्दर नज़्म.

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  20. Mere paas alfaaz nahi..kya kahun? Nishabd kar diya aapne!

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  21. ऐसा कुछ लगा अल्पना जी,
    के -
    आओ फिर शाम को मिल बैठें समन्दर के क़रीब,
    डूबता आफ़्ताब देखा करें,
    साए जब दूर - बहुत दूर तलक फैल चुकें,
    जब उजाले की हो ख़ुशफ़हमी के वो बाक़ी है,
    और कुछ ख़ुश्बुएँ लेकर गुज़र रही हो हवा…

    सर टिकाने चलें तो याद आए वो काँधा-
    जिसपे दुश्वारियों को भूल के दिल पाए सुकूँ,
    और वो काँधा जिसपे अश्क न गिरने पाए,
    अपनी आँखों में उन्हें लेके लौट आना पड़ा,
    जैसे टकरा के बन्द दर से लौटती हो हवा…

    ऐसे माहौल में मिल कर पुरानी यादों से,
    ख़ुश रहे शाम ढले तक के दिन गुज़र ही गया,
    आपके साथ जो गुज़रा - बड़ा अच्छा था वो वक़्त,
    उसे फिर याद करें और उदास हो जाएँ!
    नारियल के दरख़्त जाने क्यूँ लरजते हैं-
    सरसराती हुई बैचैन भटकती है हवा…

    आपकी नज़्म इतनी अच्छी लगी के ये नज़्म आपको नज़्र कर बैठा। ये कोई पुरानी नहीं, आपकी नज़्म से इन्स्पायर्ड नज़्म है, अभी कही है…
    और कुछ दे नहीं सकता सिवाय इसके कि…
    शुभकामनाएँ।

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  22. भ्रम में रुहे यूँ ही भटका करती है ..बहुत सुन्दर नजम और उस से सुन्दर त्रिवेणी लगी ..लिखती रहे अल्पना यूँ ही बेहतरीन ,बहुत कुछ अपना सा लगता है आपके लिखे लफ़्ज़ों में ..

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  23. आपने भाव विभोर कर दिया... क्या खूब शब्द बुने हैं..

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  24. "अब भी जागी आँखें टांकती हैं सितारे,आसमाँ के दामन में !"
    "अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल"
    "चांदनी रात में अब भी गिरा करती है ओस "

    किस किस पंक्ति की चर्चा करूं ?

    एक जीनियस में इतने कोमल भावों वाली कवयित्री !!
    ख़ूबसूरत जज़्बातों की ख़ूबसूरत तर्जुमानी !

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  25. आप जब भी लिखती गहरा लिखती है। और हम उस गहराई में उतरते चले जाते है। और शब्दों का असर दिलोदिमाग पर छा जाता है। और आज की त्रिवेणी भी बेहतरीन है।

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  26. मार्मिक रचना!

    ReplyDelete
  27. चांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है ,

    अब भी जागी आँखें टांकती हैं सितारे ,

    आसमाँ के दामन में !

    बहुत खूब, बहुत गहरी रचना,
    मान गए आप को

    Ravish,
    http://alfaazspecial.blogspot.com

    ReplyDelete
  28. behad khubsurat nazm ... bhaav achhe hain ...lekin rachna ka flow bahut achha hai .. :) bahut kam aazad tehreeren aisi milti hain jinka flow itna khubsurat ho .....
    :)

    ReplyDelete
  29. अब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर,
    वक्त का दरया भी है खामोश
    इश्क़ की तहरीर अधूरी सी ,
    किस का इंतज़ार किया करती है?

    ये नज़्म यादों के जखीरे में ले जाती है ... माजी में बार बार लौटा ले जाती है ... पढ़ता पढ़ते गहरा एहसास भर जाता है ... कुछ देर शांत बैठने को मन करता है ... जिंदगी में कुछ अधूरी इच्छाएँ, अधूरी प्यास .... या अधूरी तहरीरें जीने की वजह भी बन जाती हैं ...

    ReplyDelete
  30. हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भी !
    waah....
    geet ? aapki awaaz in nazmon ke saath chahiye thi

    ReplyDelete
  31. @रश्मि जी ,कई दिनों से कुछ नया रिकॉर्ड नहीं हो पा रहा है..अगली बार ध्यान रखूंगी.

    ReplyDelete
  32. फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!

    आस का दामन थामे भटकती है रूह ,

    इस भरम में अब भी !
    हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भी
    अल्पना जी जो आस का दामन थामे रहते हैं वही पार उतर पाते हैं. बड़ी सकारात्मक बात
    आभार

    ReplyDelete
  33. थाम रखा है अब तक आस का दामन ,
    रोशनी राह में यादें किया करती हैं,
    जो कभी मेरी निगेहबां हुआ करती थीं,
    वो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार,...
    बेहद खूबसूरत,यही जीवन के शाश्वत मूल्य भी हैं-चरैवेति -चरैवेति................

    ReplyDelete
  34. "आज हाथ झटक कर मेरा ,
    मेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,
    वाह हिस्से की खुशिया गिराने का प्रयोग अच्छा लगा
    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  35. अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल,
    चांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है...

    इश्क़ की तहरीर अधूरी सी...किस का इंतज़ार किया करती है?

    फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!

    आस का दामन थामे भटकती है रूह ,

    इस भरम में अब भी...हाँ, भटकती है रूह..इस भरम में अब भी.

    दिल को छूने वाली कृति....
    अल्पना जी, इस रचना में शब्दों का ऐसा ताना-बाना बुना है,
    कि बार बार पढ़कर भी मन नहीं भर रहा. बधाई स्वीकार करें.

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  36. आपकी रचना मन को छू गई।जाने क्यों मन ठहर सा गया

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  37. अब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर,

    वक्त का दरया भी है खामोश

    इश्क़ की तहरीर अधूरी सी ,

    किस का इंतज़ार किया करती है?
    अल्पना जी, सच में अपकी यह रचना बहुत खूबसूरत एहसास और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है---बढ़िया रचना।

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  38. माना थोड़ी देर से आई हूँ आपके ब्लॉग पर ,लेकिन त्रिवेणी ने मजबूर कर दिया ...मन छू गई ये पंक्तिया

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  39. नज़्म और फिर त्रिवेणी:

    आज हाथ झटक कर मेरा ,
    मेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,

    मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे !

    -क्या बात है!! बहुत खूब!

    ReplyDelete
  40. फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!

    आस का दामन थामे भटकती है रूह ,

    इस भरम में अब भी !

    हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भी

    वाह ।

    ReplyDelete
  41. वाह,वाह! हम भी वही बात कह रहे हैं जो रश्मि प्रभाजी ने कही। अपनी आवाज में कुछ पेश करें।

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  42. .जीवन है ही ऐसा कभी भटकना है तो कभी भटकाना है..... बस इंतजार की घडी ही सदा चलाये मान रहती है.....
    सुन्दर रचना...

    ReplyDelete
  43. Alpana ji bahut hi pyari najm ki aapne rachna ki hai..
    :)
    Hemant ji ko bata dijiye ki Google chrome me blog site kholen to koi dikkat nahin hogi. internet explorer me thodi si dikkat hai.
    .
    .
    aur Alpna ji mene apne blog life par Bharat Darshan ka template laga diya hai.
    Dhanywad.
    Roshani

    ReplyDelete
  44. मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे !

    बंद मुट्ठिया भी कितना डराती है ना ......

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  45. काफी दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया..
    बेहतरीन नज़्म..
    आभार

    ReplyDelete
  46. आस है तो सब है !
    मैं तो त्रिवेणी पढ़कर मुग्ध हूँ ! बेहतरीन !

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  47. दिल उदास हो गया... ... बहुत-बहुत उदास ! ऐसा क्यों लिखती हैं आप और कैसे? इतना अच्छा... अब अच्छा भी कैसे कहूँ? छोटा लगता है ये शब्द और त्रिवेणी तो...

    ReplyDelete
  48. जागी आंखे और ख्वाब ?हाथों में कोइ लकीर नहीं दिखती ""अपने हाथों की लकीरें तो दिखादूं लेकिन ,क्या पढेगा कोई ,किस्मत में लिखा ही क्या है ?आस का दामन थामना और रौशनी की राहों में याद करना "न उनके आने का बादा ,न यकीं न कोइ उम्मीद ,मगर क्या करें गर न इंतज़ार करें |मुट्ठी में खुशियाँ बटोर राखी थीं वह भी गिरादी गईं |(मजबूरी )भरम में रूह का भटकना | इंतज़ार कभी कभी निराश भी कर देता है कैसे =
    उठे .
    उठकर चले
    चल कर रुके
    रुक कर कहा होगा
    हमीं क्यों जाएँ ,बहुत है उनकी हालत देखने वाले

    ReplyDelete
  49. त्रिवेणी की तीसरी लाईन कमाल है..

    ReplyDelete
  50. मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे !

    बहुत बडिया लगी ये रचना....बहुत खूब!!

    ReplyDelete
  51. मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे

    जबरदस्त त्रिवेणी... बाकी सब कुछ ऊपर लोगो ने कह दिया.. देर से आने के ये नुकसान भी होते है..

    ReplyDelete
  52. त्रिवेणी में कुछ तो बात है कि अच्छा-गहरा असर छोड़ गई...

    ReplyDelete
  53. Hi..
    Etni sundar nazm aur us par likhi gayin etni tippaniyan.. Wah..

    Aaj pahli baar aapke blog par aaya.. Sahaj aur bhavnatmak likhti hain aap..

    Aapka profile dekh ye smaran ho aaya..Kahin padha tha shayad.. Nehru ji ke shabd the ki,' yadi main ladki hota to main Banahsthali Vidyapeeth main hi padhta.."
    aur ye to aapka adhyan sthal raha hai.. Wah..

    Koshish rahegi ki barabar aapke blog par aata rahun..

    DEEPAK..

    ReplyDelete
  54. पिछली पोस्ट को पढ़ने का मौका भी मिला। क्या कहूँ इस बाबत...

    अधुरी तहरीर तो पूर्ण है अपनी संरचना और भाव-संप्रेषण में...

    और त्रिवेणी तो माशाल्लाह है मैम। बहुत खूब...

    ReplyDelete
  55. bahut dino baad aap mere blog par nazar aain kuchh suna suna sa lag raha tha .aaj aapko punah apne blog par dekh kar khushi hui.
    bahut hi khoobsurat post lagi aapki saathhi ye panktiyan bhi-------
    "आज हाथ झटक कर मेरा ,
    मेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,

    मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे !"
    poonam

    ReplyDelete
  56. ...behad prasanshaneey...laajawab !!!

    ReplyDelete
  57. कम ही लोगों में वि‍चारों का इतना तारतम्‍य नजर आता है। सारे भाव बहुत सुंदर ढंग से एक-दूसरे से गूँथे हुए हैं।

    ReplyDelete
  58. त्रिवेणी खूबसूरत है ।

    ReplyDelete
  59. अब भी ख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात हर घडी ,
    और माज़ी में धडकती हैं कई यादें,
    अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल,
    चांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है
    behad sunder aur marmik, us duniya mein le gayi rachana jaha kabhi aaj bhi haqiqat mein khayal chale jate hai,jaise dil ke kone ka koi chupa hua sach.triveni bhi afrin.

    ReplyDelete
  60. alpnaji
    ham to mugdh ho gye apki is najm par .sab kuch apna sa lgta hai .
    aapki pichli post bhi pdhi apki duvidha jayj hai .desh kal aur pristhiti ke anusar hi nirny lena hoga .

    ReplyDelete
  61. आज जाकिर अली जी के ब्लॉग पर आपका सम्मान :"ब्लॉग कोकिला "देख कर बहुत खुशी हुई

    ReplyDelete
  62. सब कुछ तो वही है मगर..

    अब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर,

    वक्त का दरया भी है खामोश

    इश्क़ की तहरीर अधूरी सी ,

    किस का इंतज़ार किया करती है?

    bahut achchhi sataren hain..
    Mubarak

    ReplyDelete
  63. सब कुछ तो वही है मगर..

    अब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर,

    वक्त का दरया भी है खामोश

    इश्क़ की तहरीर अधूरी सी ,

    किस का इंतज़ार किया करती है?

    bahut behatreen satarein
    mubarak

    ReplyDelete
  64. भावों के साथ साथ सुन्दर शब्द संयोजन-
    ख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात

    अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल,

    वक्त का दरया भी है खामोश

    आदि.

    ReplyDelete
  65. Aapki agli rachnaka behad intezar hai..!

    ReplyDelete
  66. सांवेदना से भीगी आपकी नज़्म पढ़ी। आप दूर होकर भी भावनात्मक रूप बहुत क़रीब महसूसा होति हैं। अच्छी रचना के लिए बधाई।

    सत्यनारायण पटेल
    बिजूका लोक मंच, इन्दौर

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  67. maan gaye ..jee kamaal hai

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  68. kavita5/07/2010

    बेहतरीन नज़्म!
    त्रिवेणी माशाल्लाह!

    ReplyDelete
  69. नमस्कार, इतनी सुन्दर रचना प्रस्तुत करने के लिये आपको धन्यवाद.

    ReplyDelete
  70. आज हाथ झटक कर मेरा ,
    मेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,

    मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे
    khoobsoorat

    ReplyDelete
  71. अधूरी तहरीर
    -------------
    अब भी ख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात हर घडी ,

    और माज़ी में धडकती हैं कई यादें,

    अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल,

    चांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है ,

    अब भी जागी आँखें टांकती हैं सितारे ,

    आसमाँ के दामन में !

    अब भी किसी आवाज़ पर पलट ,दूर चली जाती हूँ,

    सब कुछ तो वही है मगर..

    अब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर,

    वक्त का दरया भी है खामोश

    इश्क़ की तहरीर अधूरी सी ,

    किस का इंतज़ार किया करती है?

    थाम रखा है अब तक आस का दामन ,

    रोशनी राह में यादें किया करती हैं,

    जो कभी मेरी निगेहबां हुआ करती थीं,

    वो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार,

    फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!

    आस का दामन थामे भटकती है रूह ,

    इस भरम में अब भी !

    हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भ
    title sahit poori rachana bha gayi ,bahut khoobsurat meri andaaz ki hai maja aa gaya yahan aakar .

    ReplyDelete
  72. bhagen bhi to kab....bahot achchi lagi.ekdam sahi chitran.

    ReplyDelete
  73. बहुत खूब...बेहतरीन रचना..बधाई.

    ***************
    'शब्द सृजन की ओर' पर 10 मई 1857 की याद में..आप भी शामिल हों.

    ReplyDelete
  74. थाम रखा है अब तक आस का दामन ,

    रोशनी राह में यादें किया करती हैं,

    जो कभी मेरी निगेहबां हुआ करती थीं,

    वो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार||

    वाह!वाह!वाह!

    ReplyDelete
  75. किसी के मन की थाह लेना बहुत कठिन काम है। यह काम शायद मैं कभी नहीं कर सकता क्योंकि मैं शायद उतना संवेदनशील नहीं हूं। आप ऐसा कर सकती है क्योंकि आप न केवल संवेदनशीलता के साथ चीजों को सामने रख सकती है (आपके ब्लाग में मौजूद रचनाओं को पढ़कर कह रहा हूं) वरन् उसमें समझदारी का टीका लगाकर उसे खूबसूरत बना सकती है। आप और अच्छा लिखे और छा जाए..। जब कभी तारा टूटेगा तो यही दुआ मागूंगा आपके लिए। बहुत ही खूबसूरत रचना के लिए बधाई। यह मत समझिएगा कि आप मेरे ब्लाग पर आई इसलिए मैं आया। एक न एक दिन तो मुझे आना ही था। मैं नहीं भी आता तो शायद आपकी रचना की खूशबू मुझे खीच लाती।

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  76. नज़्म अच्छी है
    प्रभाव छोडती है...
    अंदाज़ और लहजे में बदलाव
    और नयापन भी नज़र आ रहा है...
    इंतज़ार बना रहेगा .
    अभिवादन .

    ReplyDelete
  77. जो कभी मेरी निगेहबां हुआ करती थीं,

    वो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार,

    फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!
    बहुत सुंदर, और त्रिवेणी तो कमाल की है ।

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  78. आज फिर आपकी नज्म पढ़ी और कमेंट किये बिना न रह सका। वाकई संवेदनाओं को छू गयी रचना।
    --------
    बूझ सको तो बूझो- कौन है चर्चित ब्लॉगर?
    पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?

    ReplyDelete
  79. Anonymous5/12/2010

    kya likhti ho !gazab!
    kya ho tum... kya hua tha jo itni gahri baat likhi....kya kuchh daba rakha hai....seene mein....jo yeh triveni likhi--
    आज हाथ झटक कर मेरा ,
    मेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,

    मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे
    aankhen bhar aayin

    ReplyDelete
  80. "सम्वेदना और शिल्प दोनो दमदार है.."

    अच्छा लगा आपको पढकर...

    डा.अजीत

    www.shesh-fir.blogspot.com
    www.monkvibes.blogspot.com

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  81. aaj bhi hoon usi bhara mein!accha likha hai !

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  82. अभी तक अपनी आवाज में नहीं लाई इसे। पाठक की बात का कुछ तो ख्याल किया जाये।

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  83. सुंदर शब्दों के साथ..

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आप के विचारों का स्वागत है.
~~अल्पना