आप की कही हर बात मेरे लिए महत्वपूर्ण है और सभी के विचारों को और अपना भी मत ध्यान में रखते हुए क्या निर्णय ले पाए हैं..२-३ महीने में बता सकूंगी.
माहोल को बदलते हुए एक नज़्म कहने की कोशिश है.
अधूरी तहरीर ------------- अब भी ख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात हर घडी , और माज़ी में धडकती हैं कई यादें, अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल, चांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है , अब भी जागी आँखें टांकती हैं सितारे , आसमाँ के दामन में ! अब भी किसी आवाज़ पर पलट ,दूर चली जाती हूँ, सब कुछ तो वही है मगर.. अब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर, वक्त का दरया भी है खामोश इश्क़ की तहरीर अधूरी सी , किस का इंतज़ार किया करती है? थाम रखा है अब तक आस का दामन , रोशनी राह में यादें किया करती हैं, जो कभी मेरी निगेहबां हुआ करती थीं, वो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार, फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से! आस का दामन थामे भटकती है रूह , इस भरम में अब भी ! हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भी ! -----अल्पना ----- |
चलते चलते एक त्रिवेणी-
आज हाथ झटक कर मेरा , मेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने, मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे ! |
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बहुत दिन आपके ब्लॉग पर आया bada अच्छा लगा
ReplyDeleteमेम, आपने इतनी मार्मिक रचना कही है की क्या कहूँ... पहले ही आपकी पिछली पोस्ट से उदास था और अब यह...
ReplyDeleteखैर बहुत सुंदर है... एक दम दिल पर असर करने वाली...
और चलते चलते तो आपने एक लम्हा सा सामने रख दिया...
हमसे यूँ ही जुड़े रहिएगा,..
मीत
"बहुत सुन्दर शब्द चुने आपने इस नज़्म के लिये.."
ReplyDelete"आज हाथ झटक कर मेरा ,
ReplyDeleteमेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,
मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे !"
kya baat hai ji,
"इस भरम में अब भी !
हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भी !"
ji bahut badhiya...
kunwar ji,
वो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार,
ReplyDeleteफ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!
.........कितना डूब कर लिखती हैं आप !!! अल्पना जी मुझे लगता है जैसे आपके भीतर छुपा बैठा है कोई सागर ...जो उमगता है और अपनी लहरों मे समेट लेना चाहता है पूरी पृथ्वी को ,उसके कतरे -कतरे मे हिलोरें लेता है बहुत मासूम सा चाँद ,वह चाँद, जो जब भी आता है बाँसुरी बजता है किसी के इंतजार मे ।
गज़ब. वारि वारि जाऊं.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर , गीत जैसे साकार हो उठा हो , पहली दो पंक्तियों को आख़िरी पंक्तियाँ बनने का अधिकार भी दीजिये ....
ReplyDeleteअब भी ख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात हर घडी ,
और माज़ी में धडकती हैं कई यादें
... मन आनन्दित हो गया ।
नज़्म और चलते चलते .....वाह .......!!!
ReplyDeleteगज़ब ढाने लगी हैं अल्पना जी ......
बहुत खूब ....!!!!!!!!
अब भी ख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात हर घडी ,
ReplyDeleteऔर माज़ी में धडकती हैं कई यादें,
अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल,
चांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है ,
अब भी जागी आँखें टांकती हैं सितारे ,
Alpana ji,
bahut khoobasuratee se sajaya hai apne Tmpalet aur kavita donon ko.prakriti aur shabdon ka adbhut kolaj hai apkee yah kavita---thoda dikkat huyee comment kee jagah dhoondhane men---mujhe lagata hai apko tempalet/font kisi ek ka rang badalana chahiye.
बहुत ही शानदार नज्म और चलते चलते में तो नायाब अभिव्यक्ति है. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
जिन्दगी के आस और विश्वास नहीं टूटने चाहिए -यहेई तो जिन्दगी है ! सुन्दर मन को छूती कविता !
ReplyDeleteअच्छी मार्मिक नज्म ।
ReplyDeleteसुंदर शब्दों के साथ... बहुत सुंदर नज़्म...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,
ReplyDeleteधन्यवाद
कितनी सीधी, सदा, सच्ची बातें बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ......... आप की गजल बेहतरीन है.
ReplyDeletewow !!!!!!!!
ReplyDeletebahut khub
shkehar kumawat
wow !!!!!!!!
ReplyDeletebahut khub
shkehar kumawat
फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!
ReplyDeleteआस का दामन थामे भटकती है रूह ,
इस भरम में अब भी !
आशा का संचरण,ही भविष्य की अवश्यम्भवी दिक्कतों से लड़ने का हौसला देता है. बहुत सुन्दर नज़्म.
waah ! kya baat hai !
ReplyDeleteMere paas alfaaz nahi..kya kahun? Nishabd kar diya aapne!
ReplyDeleteऐसा कुछ लगा अल्पना जी,
ReplyDeleteके -
आओ फिर शाम को मिल बैठें समन्दर के क़रीब,
डूबता आफ़्ताब देखा करें,
साए जब दूर - बहुत दूर तलक फैल चुकें,
जब उजाले की हो ख़ुशफ़हमी के वो बाक़ी है,
और कुछ ख़ुश्बुएँ लेकर गुज़र रही हो हवा…
सर टिकाने चलें तो याद आए वो काँधा-
जिसपे दुश्वारियों को भूल के दिल पाए सुकूँ,
और वो काँधा जिसपे अश्क न गिरने पाए,
अपनी आँखों में उन्हें लेके लौट आना पड़ा,
जैसे टकरा के बन्द दर से लौटती हो हवा…
ऐसे माहौल में मिल कर पुरानी यादों से,
ख़ुश रहे शाम ढले तक के दिन गुज़र ही गया,
आपके साथ जो गुज़रा - बड़ा अच्छा था वो वक़्त,
उसे फिर याद करें और उदास हो जाएँ!
नारियल के दरख़्त जाने क्यूँ लरजते हैं-
सरसराती हुई बैचैन भटकती है हवा…
आपकी नज़्म इतनी अच्छी लगी के ये नज़्म आपको नज़्र कर बैठा। ये कोई पुरानी नहीं, आपकी नज़्म से इन्स्पायर्ड नज़्म है, अभी कही है…
और कुछ दे नहीं सकता सिवाय इसके कि…
शुभकामनाएँ।
भ्रम में रुहे यूँ ही भटका करती है ..बहुत सुन्दर नजम और उस से सुन्दर त्रिवेणी लगी ..लिखती रहे अल्पना यूँ ही बेहतरीन ,बहुत कुछ अपना सा लगता है आपके लिखे लफ़्ज़ों में ..
ReplyDeleteआपने भाव विभोर कर दिया... क्या खूब शब्द बुने हैं..
ReplyDelete"अब भी जागी आँखें टांकती हैं सितारे,आसमाँ के दामन में !"
ReplyDelete"अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल"
"चांदनी रात में अब भी गिरा करती है ओस "
किस किस पंक्ति की चर्चा करूं ?
एक जीनियस में इतने कोमल भावों वाली कवयित्री !!
ख़ूबसूरत जज़्बातों की ख़ूबसूरत तर्जुमानी !
आप जब भी लिखती गहरा लिखती है। और हम उस गहराई में उतरते चले जाते है। और शब्दों का असर दिलोदिमाग पर छा जाता है। और आज की त्रिवेणी भी बेहतरीन है।
ReplyDeleteमार्मिक रचना!
ReplyDeleteचांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है ,
ReplyDeleteअब भी जागी आँखें टांकती हैं सितारे ,
आसमाँ के दामन में !
बहुत खूब, बहुत गहरी रचना,
मान गए आप को
Ravish,
http://alfaazspecial.blogspot.com
behad khubsurat nazm ... bhaav achhe hain ...lekin rachna ka flow bahut achha hai .. :) bahut kam aazad tehreeren aisi milti hain jinka flow itna khubsurat ho .....
ReplyDelete:)
अब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर,
ReplyDeleteवक्त का दरया भी है खामोश
इश्क़ की तहरीर अधूरी सी ,
किस का इंतज़ार किया करती है?
ये नज़्म यादों के जखीरे में ले जाती है ... माजी में बार बार लौटा ले जाती है ... पढ़ता पढ़ते गहरा एहसास भर जाता है ... कुछ देर शांत बैठने को मन करता है ... जिंदगी में कुछ अधूरी इच्छाएँ, अधूरी प्यास .... या अधूरी तहरीरें जीने की वजह भी बन जाती हैं ...
हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भी !
ReplyDeletewaah....
geet ? aapki awaaz in nazmon ke saath chahiye thi
@रश्मि जी ,कई दिनों से कुछ नया रिकॉर्ड नहीं हो पा रहा है..अगली बार ध्यान रखूंगी.
ReplyDeleteफ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!
ReplyDeleteआस का दामन थामे भटकती है रूह ,
इस भरम में अब भी !
हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भी
अल्पना जी जो आस का दामन थामे रहते हैं वही पार उतर पाते हैं. बड़ी सकारात्मक बात
आभार
थाम रखा है अब तक आस का दामन ,
ReplyDeleteरोशनी राह में यादें किया करती हैं,
जो कभी मेरी निगेहबां हुआ करती थीं,
वो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार,...
बेहद खूबसूरत,यही जीवन के शाश्वत मूल्य भी हैं-चरैवेति -चरैवेति................
"आज हाथ झटक कर मेरा ,
ReplyDeleteमेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,
वाह हिस्से की खुशिया गिराने का प्रयोग अच्छा लगा
बहुत सुन्दर
अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल,
ReplyDeleteचांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है...
इश्क़ की तहरीर अधूरी सी...किस का इंतज़ार किया करती है?
फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!
आस का दामन थामे भटकती है रूह ,
इस भरम में अब भी...हाँ, भटकती है रूह..इस भरम में अब भी.
दिल को छूने वाली कृति....
अल्पना जी, इस रचना में शब्दों का ऐसा ताना-बाना बुना है,
कि बार बार पढ़कर भी मन नहीं भर रहा. बधाई स्वीकार करें.
आपकी रचना मन को छू गई।जाने क्यों मन ठहर सा गया
ReplyDeleteअब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर,
ReplyDeleteवक्त का दरया भी है खामोश
इश्क़ की तहरीर अधूरी सी ,
किस का इंतज़ार किया करती है?
अल्पना जी, सच में अपकी यह रचना बहुत खूबसूरत एहसास और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है---बढ़िया रचना।
माना थोड़ी देर से आई हूँ आपके ब्लॉग पर ,लेकिन त्रिवेणी ने मजबूर कर दिया ...मन छू गई ये पंक्तिया
ReplyDeleteनज़्म और फिर त्रिवेणी:
ReplyDeleteआज हाथ झटक कर मेरा ,
मेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,
मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे !
-क्या बात है!! बहुत खूब!
फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!
ReplyDeleteआस का दामन थामे भटकती है रूह ,
इस भरम में अब भी !
हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भी
वाह ।
वाह,वाह! हम भी वही बात कह रहे हैं जो रश्मि प्रभाजी ने कही। अपनी आवाज में कुछ पेश करें।
ReplyDelete.जीवन है ही ऐसा कभी भटकना है तो कभी भटकाना है..... बस इंतजार की घडी ही सदा चलाये मान रहती है.....
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
Alpana ji bahut hi pyari najm ki aapne rachna ki hai..
ReplyDelete:)
Hemant ji ko bata dijiye ki Google chrome me blog site kholen to koi dikkat nahin hogi. internet explorer me thodi si dikkat hai.
.
.
aur Alpna ji mene apne blog life par Bharat Darshan ka template laga diya hai.
Dhanywad.
Roshani
मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे !
ReplyDeleteबंद मुट्ठिया भी कितना डराती है ना ......
काफी दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया..
ReplyDeleteबेहतरीन नज़्म..
आभार
आस है तो सब है !
ReplyDeleteमैं तो त्रिवेणी पढ़कर मुग्ध हूँ ! बेहतरीन !
दिल उदास हो गया... ... बहुत-बहुत उदास ! ऐसा क्यों लिखती हैं आप और कैसे? इतना अच्छा... अब अच्छा भी कैसे कहूँ? छोटा लगता है ये शब्द और त्रिवेणी तो...
ReplyDeleteजागी आंखे और ख्वाब ?हाथों में कोइ लकीर नहीं दिखती ""अपने हाथों की लकीरें तो दिखादूं लेकिन ,क्या पढेगा कोई ,किस्मत में लिखा ही क्या है ?आस का दामन थामना और रौशनी की राहों में याद करना "न उनके आने का बादा ,न यकीं न कोइ उम्मीद ,मगर क्या करें गर न इंतज़ार करें |मुट्ठी में खुशियाँ बटोर राखी थीं वह भी गिरादी गईं |(मजबूरी )भरम में रूह का भटकना | इंतज़ार कभी कभी निराश भी कर देता है कैसे =
ReplyDeleteउठे .
उठकर चले
चल कर रुके
रुक कर कहा होगा
हमीं क्यों जाएँ ,बहुत है उनकी हालत देखने वाले
त्रिवेणी की तीसरी लाईन कमाल है..
ReplyDeleteमेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे !
ReplyDeleteबहुत बडिया लगी ये रचना....बहुत खूब!!
मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे
ReplyDeleteजबरदस्त त्रिवेणी... बाकी सब कुछ ऊपर लोगो ने कह दिया.. देर से आने के ये नुकसान भी होते है..
त्रिवेणी में कुछ तो बात है कि अच्छा-गहरा असर छोड़ गई...
ReplyDeleteHi..
ReplyDeleteEtni sundar nazm aur us par likhi gayin etni tippaniyan.. Wah..
Aaj pahli baar aapke blog par aaya.. Sahaj aur bhavnatmak likhti hain aap..
Aapka profile dekh ye smaran ho aaya..Kahin padha tha shayad.. Nehru ji ke shabd the ki,' yadi main ladki hota to main Banahsthali Vidyapeeth main hi padhta.."
aur ye to aapka adhyan sthal raha hai.. Wah..
Koshish rahegi ki barabar aapke blog par aata rahun..
DEEPAK..
पिछली पोस्ट को पढ़ने का मौका भी मिला। क्या कहूँ इस बाबत...
ReplyDeleteअधुरी तहरीर तो पूर्ण है अपनी संरचना और भाव-संप्रेषण में...
और त्रिवेणी तो माशाल्लाह है मैम। बहुत खूब...
bahut dino baad aap mere blog par nazar aain kuchh suna suna sa lag raha tha .aaj aapko punah apne blog par dekh kar khushi hui.
ReplyDeletebahut hi khoobsurat post lagi aapki saathhi ye panktiyan bhi-------
"आज हाथ झटक कर मेरा ,
मेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,
मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे !"
poonam
...behad prasanshaneey...laajawab !!!
ReplyDeleteकम ही लोगों में विचारों का इतना तारतम्य नजर आता है। सारे भाव बहुत सुंदर ढंग से एक-दूसरे से गूँथे हुए हैं।
ReplyDeleteत्रिवेणी खूबसूरत है ।
ReplyDeleteअब भी ख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात हर घडी ,
ReplyDeleteऔर माज़ी में धडकती हैं कई यादें,
अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल,
चांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है
behad sunder aur marmik, us duniya mein le gayi rachana jaha kabhi aaj bhi haqiqat mein khayal chale jate hai,jaise dil ke kone ka koi chupa hua sach.triveni bhi afrin.
alpnaji
ReplyDeleteham to mugdh ho gye apki is najm par .sab kuch apna sa lgta hai .
aapki pichli post bhi pdhi apki duvidha jayj hai .desh kal aur pristhiti ke anusar hi nirny lena hoga .
सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबधाई।
--------
गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
आज जाकिर अली जी के ब्लॉग पर आपका सम्मान :"ब्लॉग कोकिला "देख कर बहुत खुशी हुई
ReplyDeleteसब कुछ तो वही है मगर..
ReplyDeleteअब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर,
वक्त का दरया भी है खामोश
इश्क़ की तहरीर अधूरी सी ,
किस का इंतज़ार किया करती है?
bahut achchhi sataren hain..
Mubarak
सब कुछ तो वही है मगर..
ReplyDeleteअब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर,
वक्त का दरया भी है खामोश
इश्क़ की तहरीर अधूरी सी ,
किस का इंतज़ार किया करती है?
bahut behatreen satarein
mubarak
भावों के साथ साथ सुन्दर शब्द संयोजन-
ReplyDeleteख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात
अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल,
वक्त का दरया भी है खामोश
आदि.
Aapki agli rachnaka behad intezar hai..!
ReplyDeleteसांवेदना से भीगी आपकी नज़्म पढ़ी। आप दूर होकर भी भावनात्मक रूप बहुत क़रीब महसूसा होति हैं। अच्छी रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteसत्यनारायण पटेल
बिजूका लोक मंच, इन्दौर
maan gaye ..jee kamaal hai
ReplyDeleteबेहतरीन नज़्म!
ReplyDeleteत्रिवेणी माशाल्लाह!
नमस्कार, इतनी सुन्दर रचना प्रस्तुत करने के लिये आपको धन्यवाद.
ReplyDeleteआज हाथ झटक कर मेरा ,
ReplyDeleteमेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,
मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे
khoobsoorat
अधूरी तहरीर
ReplyDelete-------------
अब भी ख्वाबों में टहलते हैं जज़्बात हर घडी ,
और माज़ी में धडकती हैं कई यादें,
अहसास के दरख्तों पर खिलते हैं नए फूल,
चांदनी रात में अब भी ओस गिरा करती है ,
अब भी जागी आँखें टांकती हैं सितारे ,
आसमाँ के दामन में !
अब भी किसी आवाज़ पर पलट ,दूर चली जाती हूँ,
सब कुछ तो वही है मगर..
अब नहीं दिखती हाथों में कोई लकीर,
वक्त का दरया भी है खामोश
इश्क़ की तहरीर अधूरी सी ,
किस का इंतज़ार किया करती है?
थाम रखा है अब तक आस का दामन ,
रोशनी राह में यादें किया करती हैं,
जो कभी मेरी निगेहबां हुआ करती थीं,
वो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार,
फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!
आस का दामन थामे भटकती है रूह ,
इस भरम में अब भी !
हाँ,भटकती है रूह ,इस भरम में अब भ
title sahit poori rachana bha gayi ,bahut khoobsurat meri andaaz ki hai maja aa gaya yahan aakar .
bhagen bhi to kab....bahot achchi lagi.ekdam sahi chitran.
ReplyDeleteबहुत खूब...बेहतरीन रचना..बधाई.
ReplyDelete***************
'शब्द सृजन की ओर' पर 10 मई 1857 की याद में..आप भी शामिल हों.
थाम रखा है अब तक आस का दामन ,
ReplyDeleteरोशनी राह में यादें किया करती हैं,
जो कभी मेरी निगेहबां हुआ करती थीं,
वो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार||
वाह!वाह!वाह!
किसी के मन की थाह लेना बहुत कठिन काम है। यह काम शायद मैं कभी नहीं कर सकता क्योंकि मैं शायद उतना संवेदनशील नहीं हूं। आप ऐसा कर सकती है क्योंकि आप न केवल संवेदनशीलता के साथ चीजों को सामने रख सकती है (आपके ब्लाग में मौजूद रचनाओं को पढ़कर कह रहा हूं) वरन् उसमें समझदारी का टीका लगाकर उसे खूबसूरत बना सकती है। आप और अच्छा लिखे और छा जाए..। जब कभी तारा टूटेगा तो यही दुआ मागूंगा आपके लिए। बहुत ही खूबसूरत रचना के लिए बधाई। यह मत समझिएगा कि आप मेरे ब्लाग पर आई इसलिए मैं आया। एक न एक दिन तो मुझे आना ही था। मैं नहीं भी आता तो शायद आपकी रचना की खूशबू मुझे खीच लाती।
ReplyDeleteनज़्म अच्छी है
ReplyDeleteप्रभाव छोडती है...
अंदाज़ और लहजे में बदलाव
और नयापन भी नज़र आ रहा है...
इंतज़ार बना रहेगा .
अभिवादन .
जो कभी मेरी निगेहबां हुआ करती थीं,
ReplyDeleteवो निगाहें अब भी कहीं करती तो होंगी मेरा इंतज़ार,
फ़िर मिलेंगी कभी कहीं इत्तेफाक़ से!
बहुत सुंदर, और त्रिवेणी तो कमाल की है ।
आज फिर आपकी नज्म पढ़ी और कमेंट किये बिना न रह सका। वाकई संवेदनाओं को छू गयी रचना।
ReplyDelete--------
बूझ सको तो बूझो- कौन है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
kya likhti ho !gazab!
ReplyDeletekya ho tum... kya hua tha jo itni gahri baat likhi....kya kuchh daba rakha hai....seene mein....jo yeh triveni likhi--
आज हाथ झटक कर मेरा ,
मेरे हिस्से की खुशियाँ गिरा दीं उसने,
मेरी मुट्ठियों में उसे 'राज़' नज़र आते थे
aankhen bhar aayin
"सम्वेदना और शिल्प दोनो दमदार है.."
ReplyDeleteअच्छा लगा आपको पढकर...
डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
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aaj bhi hoon usi bhara mein!accha likha hai !
ReplyDeleteअभी तक अपनी आवाज में नहीं लाई इसे। पाठक की बात का कुछ तो ख्याल किया जाये।
ReplyDeleteसुंदर शब्दों के साथ..
ReplyDelete