स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

March 23, 2008

कुछ भटके हुए शब्द आप की नज़र!

१-तेरी चाहत ने
रिहा किया न मुझे,
यूं,
अपनी पहचान
खो रही हूँ मैं.
--------------------
२-संकरी हो गयी
कुछ इस क़दर,

पगडंडियाँ जीवन की ,

हर मोड़ पर,
ख़ुद से
टकरा जाती हूँ मैं!
-----------------------
३-वरक दर वरक ,
लिखती रही दास्ताँ मैं रात भर,
सुबह,
हर पन्ने पर तेरा ही नाम था!!
--------------------
4-यूं तो -
परत दर परत
खुलने लगी थी मैं,
ये उसकी कमनसीबी
जो बेखबर रहा!
[अल्पना वर्मा द्वारा लिखित.]

19 comments:

  1. न ! ये शब्द भटके हुए कहाँ हैं ?
    ये तो अपनी मंजिल की ओर रवां हैं

    लेकिन .... भटकन मंजिल से जुदा कहाँ है ??

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  3. वरक दर वरक ,
    लिखती रही दास्ताँ मैं रात भर,
    सुबह,
    हर पन्ने पर तेरा ही नाम था!!

    vah alpna ji....bahut khoob.

    ReplyDelete
  4. Anonymous3/24/2008

    वरक दर वरक ,
    लिखती रही दास्ताँ मैं रात भर,
    सुबह,
    हर पन्ने पर तेरा ही नाम था!!

    bahut barhiya

    ReplyDelete
  5. Anonymous3/24/2008

    वरक दर वरक ,
    लिखती रही दास्ताँ मैं रात भर,
    सुबह,
    हर पन्ने पर तेरा ही नाम था!!

    bahut barhiya

    ReplyDelete
  6. Anonymous3/24/2008

    वरक दर वरक ,
    लिखती रही दास्ताँ मैं रात भर,
    सुबह,
    हर पन्ने पर तेरा ही नाम था!!

    bahut barhiya

    ReplyDelete
  7. Anonymous3/25/2008

    bahut khoob, lekhnee mein dum hai.

    ReplyDelete
  8. charo kavita bemisal hai, saalon bad itni kubsoorat rachna parhi hai.

    Mera pas shab nahi hai... aschrya hai log abhi bhi aiesa likh paate hain

    ReplyDelete
  9. Anonymous3/26/2008

    वरक दर वरक ,
    लिखती रही दास्ताँ मैं रात भर,
    सुबह,
    हर पन्ने पर तेरा ही नाम था!!
    bahut hi sundar hai,jaise man ki aaj ho,awesome.

    ReplyDelete
  10. "संकरी हो गयी
    कुछ इस क़दर,
    पगडंडियाँ जीवन की ,

    हर मोड़ पर,
    ख़ुद से
    टकरा जाती हूँ मैं!"

    बहुत ही सुन्दर , अपनी -सी लगी ये पंक्तियाँ ....

    ReplyDelete
  11. अच्छी क्षणिकायें हैं।

    ReplyDelete
  12. Anonymous3/31/2008

    वरक दर वरक ,
    लिखती रही दास्ताँ मैं रात भर,
    सुबह,
    हर पन्ने पर तेरा ही नाम था!!
    sach me bahut sunder

    ReplyDelete
  13. बधाई..
    kavi.kulwant@gmail.com

    ReplyDelete
  14. वरक दर वरक ,
    लिखती रही दास्ताँ मैं रात भर,
    सुबह,
    हर पन्ने पर तेरा ही नाम था!!

    वाह ! बहुत ही सुंदर अभिबयक्ति क्या बात है..

    ReplyDelete
  15. 'संकरी हो गयीं कुछ इस कदर पगडंडियां जीवन की
    हर मोड़ पर खुद से टकरा जाती हूं मैं।'
    इससे बेहतर भला और क्या बात होगी,
    पलायन का ख्याल जो आया दिल में
    खुद से ही मुलाकात होगी।
    जीवन में जब तक आदमी खुद से मिलता रहता है वह आदमी बना रहता है। बहुत प्यारी लगीं आपकी ये क्षणिकाएं।

    ReplyDelete
  16. 'संकरी हो गयीं कुछ इस कदर पगडंडियां जीवन की
    हर मोड़ पर खुद से टकरा जाती हूं मैं।'
    इससे बेहतर भला और क्या बात होगी,
    पलायन का ख्याल जो आया दिल में
    खुद से ही मुलाकात होगी।
    जीवन में जब तक आदमी खुद से मिलता रहता है वह आदमी बना रहता है। बहुत प्यारी लगीं आपकी ये क्षणिकाएं।

    ReplyDelete
  17. Anonymous3/05/2009

    बहुत ही सुन्दर कवितायें हैं.
    बधाई!

    ReplyDelete

आप के विचारों का स्वागत है.
~~अल्पना