स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

March 31, 2008

आग नफ़रत की


आग नफ़रत की
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आग की लपटें उठीं,
कैसा कहर बरपा गया,
हर तरफ़ काला धुआँ
आसमां ज़मीन को खा गया ,

उड़ रहे थे चीथड़े
कंक्रीट और इंसानो के ,
लो और एक खेल हैवानीयत का ,
इंसान फिर दिखला गया !

आज के इस दौर में
इंसान की क़ीमत कुछ नहीं ,
जां की क़ीमत कुछ नहीं ,
ईमान की क़ीमत कुछ नहीं ,

हर कोई ये जानता है-
मौत सब को आनी है ,
फिर ना जाने क्यूं कोई कब,
कैसे क़ातिल हो गया ?

सरहदों के दायरे
और दायरों के ये भंवर,
जाने कुछ ,अनजाने कुछ ,
हर कोई शामिल हो गया ,

कौन कर पाएगा यक़ीन
एक शहर बसता था यहाँ!
बारूद , हथियारों का जहाँ,
एक जंगल बन गया !

सब्र का मतलब तो बस
अब कागज़ी रह जाएगा,
प्यार बस एक शब्द
किताबों में लिखा रह जाएगा.

खो रहे हैं चैन और अमन
क्यूं हम दिलो दिमाग़ से,
इस तरह तो जिस्म ये
ख़ाली मकान रह जाएगा.

आओ बुझाएँ आग नफ़रत की ,
प्यार की बरसात से...

नहीं तो ...
देखते ही देखते,
ये जहाँ,
उजड़ा चमन रह जाएगा!
----अल्पना वर्मा [यह कविता मैंने ९/११ के हादसे पर लिखी थी.]


12 comments:

  1. Anonymous3/31/2008

    this is good one about truth and evil...

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  2. Anonymous4/01/2008

    good poem.
    -akriti

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  3. soch hi raha tha ....kis manzar par aapne likhi hai....aor shayad ek hi baithak me puri bhi ki hai.

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  4. Anonymous4/01/2008

    हर कोई ये जानता है-
    मौत सब को आनी है ,
    फिर ना जाने क्यूं कोई कब,
    कैसे क़ातिल हो गया ?

    bahut hi sahi kaha alpana ji,gehre bhav se bhari bahut achhi kavita hai

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  5. कदर करता हूँ आप की कविता की..
    दिल में लहलहाते आग के समंदर की...
    इसी तरह मशाल को जलाए रखिये..
    कभी तो जरूरत पड़ेगी मुर्दों को भी रोशनी की
    कवि कुलवंत
    http://kavikulwant.blogspot.com

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  6. aapke har shabd may sachhai hai...
    shayad isay puhr ker hum sab ye koshish kare ki hum kaisay apnay khali makan ko ghar banaye...
    kyuki makan may keval insan rehtay hain.. aur ghar may pyar,chain aur aman hota hai..

    wonderful as ever... Sarad

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  7. अल्पना जी कविता तो सारी ही तारीफ़ के काबिल हे, एक नगां सच हे जो आप ने अपनी कल से बोल दिया हे,ओर एक दिन...खो रहे हैं चैन और अमन
    क्यूं हम दिलो दिमाग़ से,
    इस तरह तो जिस्म ये
    ख़ाली मकान रह जाएगा.
    बहुत धन्यवाद

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  8. आज के इस दौर में
    इंसान की क़ीमत कुछ नहीं ,
    जां की क़ीमत कुछ नहीं ,
    ईमान की क़ीमत कुछ नहीं ,


    सोच रहा हू इसे पहले क्यो नही पढ़ा.. बहुत सुंदर रचना.. बधाई

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  9. Anonymous4/17/2008

    Alpana Ji...
    Hello...read ur poems..
    really ur a gr8 writer...I like ur feelings...
    I m also a small writer...not so big as ur...
    Thanks..

    ANil
    Jaipur

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  10. Anonymous4/30/2008

    बेहद खूबसूरत एवं संवेदनशील...

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  11. alpana:

    This poem of yours caught my attention. I have tried to tune only the first 4 lines. Is there an equivalent word for concrete in hindi
    (shuddh hindi)? Only that word stands like a sore thumb in and otherwise moving theme.

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  12. ब्लॉग बहुत अच्छा है । कवितायें अच्छी हैं । आप कभी हमें www.srijangatha.com के लिए भी भेज सकती हैं ।

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आप के विचारों का स्वागत है.
~~अल्पना