चित्र-अल्पना |
मदनोत्सव [बसंत पंचमी ] से बसंत ऋतु का आगमन हुआ इसका स्वागत कर रही हूँ ,
दो स्वरचित कविताओं के पाठ के साथ ..
१.तुम्हारी प्रिया हूँ -
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2.मौन की भाषा -
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आपको यह प्रस्तुति कैसी लगी ,अवश्य बताइएगा.
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मेरे कंप्यूटर में सुविधा नहीं है। फिर भी समझ सकता हूँ।
ReplyDeleteमाफ़ी चाहती हूँ विकेश जी...विडियो देखने की सुविधा नहीं है तो कोई बात नहीं ..ये पहले पोस्ट की हुई रचनाएँ ही हैं जिन्हें स्वरबद्ध करके यहाँ प्रस्तुत किया है.आभार !
Deleteअच्छी लगी
ReplyDeleteमातृत्व की तैयारी
धन्यवाद अजय जी.
Deleteआहा....आनन्दम..
ReplyDeleteआभार वंदना जी...बहुत अरसे बाद आप यहाँ आईं..प्रसन्नता हुई !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-02-2016) को "आजाद कलम" (चर्चा अंक-2252) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरे ब्लॉग को अपनी चर्चा में स्थान देने हेतु
Deleteबहुत -बहुत आभार शास्त्री जी.
वाह उन्मुक्त प्रेम के एहसास और प्राकृति के विभिन्न रंगों को समेटे आपने मधुर आवाज़ में दोनों रचनाओं को लाजवाब बना दिया है ... बहुत बधाई ...
ReplyDeleteलाज़वाब
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति.....बहुत बहुत बधाई.....
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