बहुत दिनों से तुमने मुझे खुद से दूर रखा है पर यह तुम भी जानती हो कि छाया के बिना तुम भी अकेली हो.
छाया तुम्हारी अनुकृति ही तो है..तुम्हारी भावनाओं से अछूती नहीं है फिर भी तुम अँधेरे जा बैठी हो.
अँधेरा जो छाया को निगल जाता है ,अँधेरा जो तुम्हें भी एक दिन अपना ग्रास बना लेगा .
माया ,प्रकाश में आओ..वहीँ ये ..छाया तुमसे जुड़ पाएगी ,,
अन्यथा वह चाहकर भी तुम्हारा साथ नहीं दे पाएगी.
तुम्हारी छाया
प्रिय छाया ,
वक़्त राहों में मायाजाल फैलाता है मैं उनमें उलझती हूँ ..गिरती हूँ ..संभलती हूँ .
मैं इतनी कमज़ोर भी नहीं कि हर बार चोट खाती रहूँ.
हर घाव ने मुझे सबक दिया है.
अँधेरे मुझे अब भाने लगे हैं.अभ्यस्त हो रही हूँ मैं ,इसलिए अब यहाँ से बाहर नहीं आना चाहती.
वक़्त साथ न दे तो भी .
और हाँ ,रौशनी भी तेज़ हो जाए तो दृष्टि कमज़ोर कर देती है.उसका साथ सच्चा नहीं है.
अँधेरा एक सा रहता है .वह मुझे समो लेगा खुद में एक दिन इस में कोई झूठ नहीं.
मैं सच के साथ हूँ .ऐसे ही रहने दो मुझे.
तुम्हारी माया
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और छाया लुप्त हो गयी ...अब माया अकेली है !
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--अल्पना वर्मा
छाया माया के मध्य ही मानव जीवन व्यतीत हो रहता है.
ReplyDeleteBahut hi khoobsurat alpana ,Abhi man nahi bhara phir se padungi
ReplyDelete'माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय'...लम्बे अंतराल के बाद सुन्दर और प्रभावी लेखनी के साथ आपकी उपस्तिथि अच्छी लगी।
ReplyDelete'माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय'...लम्बे अंतराल के बाद सुन्दर और प्रभावी लेखनी के साथ आपकी उपस्तिथि अच्छी लगी।
ReplyDeleteवक़्त इन्सान पे ऐसा भी कभी आता है
ReplyDeleteराह में छोड़ के साया भी चला जाता है
दिन भी निकले ग कभी रात के आने पे न जा
वैसे हम आत्मविश्वास और सकारात्मकता की बातें करते हैं परन्तु सच्चाई जीवन में माया व छाया के रूप में ही प्रकट है,बिलकुल वैसे ही जैसे आपने वर्णित किया है। इतने दिनों के बाद दस्तक दी है। सब ठीक है ना?
ReplyDeleteVery true story ,touched my heart . Thanks for such a nice post .
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteआभार!
इसी प्रकार अपने अमूल्य विचारोँ से अवगत कराते रहेँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
माया और छाया ही जीवन की सच्चाई है। इसे बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है आपने...
ReplyDeleteBahut sunder. Jeevan ki sachchaee.
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है अल्पनाजी ।
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है अल्पनाजी ।
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