आजकल के जो सामाजिक हालात हैं ऐसे में खुल कर, खिलकर खुलकर जी पाना /उत्सव मनाना शायद हर किसी के बस में नहीं या हर किसी के दिल में अब वो उत्साह भी नहीं है !कुछ लिखने का प्रयास किया है ,
कविता जैसा बन पड़ा है..संशोधन हेतु सुझाव आमंत्रित हैं.
आस का दीप
छा रहा आतंक का साया ज़मी पर
घुल रही हवा में बारूदी गंध है ,
मन भरे आक्रोश ,जो खुलते नहीं हैं,
मुट्ठियाँ भिंचने लगीं पर आवाज़ गुम है,
हर किसी को जाने -अनजाने घेरे हुए है
अजनबी से एक डर की वो छाया!
कोई गौतम ,कोई गांधी या पैगम्बर
कोई कृष्णा या कोई मसीहा
अब कहीं भी क्यूँ नज़र आता नहीं है?
धरती की बढ़ती पिपासा प्रेम की
कौन जाने कब कोई नानक यहाँ अवतार लेगा?
जल रहे हैं फूल ,रक्त रंजित हैं उपवन
मंडराए चहुँ ओर हा!गिद्ध अनगिन
धूप की उधारी अभी चुकता नहीं है
शाम माँगे और उष्णता गगन से!
है कहाँ सौहार्द की बातें ?
है कहाँ सद्भाव के गीत ?
है कहाँ 'एक हम हैं' की वो कसमें?
हर दहलीज पर देखा कि दुश्मन खड़ा है
क्यों नहीं कोई पहचान पाता उसे है?
लुट रहा है वो जिसे लूट सकता 'समय' है
छीनता है उससे ही कि जो नासमझ है।
कैसे -कैसे आरोपों में घिरने लगा है 'ईश्वर '
आज का इंसान बख्शता उसे भी तो नहीं है।
कब ख़तम होगी ये अनिश्चितता की आँधी
कब रुकेगा इन तूफानों का कहर?
बह रही अश्रु धारा धरा के नयन से
कि लौटे नहीं घर ,जो सुबह घर से गए थे
खेलूँ मैं होली या मनाऊँ ईद कैसे
घर के आँगन -द्वार सब सूने पड़े हैं
कर जतन कोई ,लौटा लाओ रंग फिर चमन के
कर जतन कोई, ख़ुशी की तरंग फिर से बहाओ
कुछ उम्मीदें यूँ तो अब भी शेष हैं मन में
उन पर अमन के महल फिर से बनाओ।
====अल्पना वर्मा ======
===========
====३१/३/१२०१५ ====
मुट्ठियाँ भिंचने लगीं पर आवाज़ गुम है,
हर किसी को जाने -अनजाने घेरे हुए है
अजनबी से एक डर की वो छाया!
कोई गौतम ,कोई गांधी या पैगम्बर
कोई कृष्णा या कोई मसीहा
अब कहीं भी क्यूँ नज़र आता नहीं है?
धरती की बढ़ती पिपासा प्रेम की
कौन जाने कब कोई नानक यहाँ अवतार लेगा?
जल रहे हैं फूल ,रक्त रंजित हैं उपवन
मंडराए चहुँ ओर हा!गिद्ध अनगिन
धूप की उधारी अभी चुकता नहीं है
शाम माँगे और उष्णता गगन से!
है कहाँ सौहार्द की बातें ?
है कहाँ सद्भाव के गीत ?
है कहाँ 'एक हम हैं' की वो कसमें?
हर दहलीज पर देखा कि दुश्मन खड़ा है
क्यों नहीं कोई पहचान पाता उसे है?
लुट रहा है वो जिसे लूट सकता 'समय' है
छीनता है उससे ही कि जो नासमझ है।
कैसे -कैसे आरोपों में घिरने लगा है 'ईश्वर '
आज का इंसान बख्शता उसे भी तो नहीं है।
कब ख़तम होगी ये अनिश्चितता की आँधी
कब रुकेगा इन तूफानों का कहर?
बह रही अश्रु धारा धरा के नयन से
कि लौटे नहीं घर ,जो सुबह घर से गए थे
खेलूँ मैं होली या मनाऊँ ईद कैसे
घर के आँगन -द्वार सब सूने पड़े हैं
कर जतन कोई ,लौटा लाओ रंग फिर चमन के
कर जतन कोई, ख़ुशी की तरंग फिर से बहाओ
कुछ उम्मीदें यूँ तो अब भी शेष हैं मन में
उन पर अमन के महल फिर से बनाओ।
====अल्पना वर्मा ======
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====३१/३/१२०१५ ====
Nice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Latest Government Jobs.
ReplyDeleteआज के माहोल को लिखा है आपने ... जब ऐसे लोगों का बोलबाला होता है तो राम, कृष्ण, ईसा कहाँ नज़र आयेंगे ...
ReplyDeletevery nice.
ReplyDeleteमन की पीड़ा कविता बनकर उभरी है। आजकल के हालात को बखूबी बयाँ किया है आपने यहाँ। हम ऐसे माहौल के आदि होते जा रहे हैं। कहीं कोई आशा की किरण नज़र नहीं आती। फिर भी आस का दीप न बूझे कभी, उम्मीदों के चिराग जलते रहें तो अच्छा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अल्पना जी..
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तति का लिंक 02-04-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1936 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteगीत या पद्य के भाव कल्याणकारी हैं। गीतों की रचना तो स्वयंमेव ही होती है। तो तब यह आमंत्रण किसी और से क्यों?
ReplyDeleteउम्मीद पर ही दुनिया कायम है .बढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteसंशोधन नहीं अनुमोदन है
ReplyDeleteआभार
बेहतरीन। बहुत समय बाद आया ब्लॉग पर। निश्चित ही ऑन लाइन पढ़ने का सुख यहीं हैं।
ReplyDeletesunder rachna
ReplyDeleteकोई गौतम ,कोई गांधी या पैगम्बर
ReplyDeleteकोई कृष्णा या कोई मसीहा
अब कहीं भी क्यूँ नज़र आता नहीं है?
यही तो आज की समस्या है कि जिनकी विरासत सम्भाले है उन्ही के आदर्शो को छोड चुके है
बहुत ही सुंदर, मन का आक्रोश कविता में ढला है।
ReplyDeleteumeed par duniya kayam hai !! ik patthar to shauk se ucchalo yaaron...
ReplyDeleteआपकी रचनाये पढ़ी। काफी अच्छी है |
ReplyDeleteक्या आप MeriRai.com के लिए लिखना पसंद करेंगी?
MeriRai.com | मेरी राय हिंदी जगत का विचार मंथन
हम भारत से हिंदी जगत से जुड़े कई लेखक, कवि, एवं विभिन्न ज्ञान क्षेत्रो से जुड़े लोगो से संपर्क कर के उनकी रचनाओ को प्रस्तुत करना चाहते है| हमारा प्रयास हिंदी जगत से जुड़े तमाम लोगो के लिए गंतव्य बनना है ।
खेलूं मैं होली या मनाऊँ ईद कैसे
ReplyDeleteघर के आँगन -द्वार सब सूने पड़े हैं .
कडवा सत्य ।
aaj bahut dino bad apke blog par aya mame...
ReplyDeletebehad achi rachna hai.. shabd teer se hain..
thnx
MEET
कर के जतन कोई ,लौटा लाओ रंग फिर चमन के
ReplyDeleteकर के जतन कोई, ख़ुशी की तरंग फिर से बहाओ
कुछ उम्मीदें यूँ तो अब भी शेष हैं मन में
उन पर अमन के महल फिर से बनाओ.
bahut hi behatreen v man ko udelit karti rachna---
bahut dino baad apne blog par fir se aa rahi hun di----sadar naman
hai kahan sohard ki baate ...aapne achcha likha hai
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