प्रेम /प्यार /मोहब्बत !आह!
इस भाव के न जाने कितने नाम हैं ..
कहते हैं ,कभी बेनाम भी रह जाया करती हैं कहानियाँ जिन में ये भाव प्रमुख होते हैं ..
मगर क्या आज इस शब्द का कोई अर्थ बचा है ?क्या आज भी सच्चा प्रेम जैसा कुछ होता है?
यहाँ उस अहसास के लिए इस्तमाल किये जाने वाले शब्द की बात हो रही है जिसे हम रूह से देह तक महसूस किये जाने का अहसास कहते हैं ..मन से तन तक का सफ़र तय कराने वाला अहसास जिसे लोग मोहब्बत भी कहते हैं 'लव या प्रेम !
ये प्रेम दिवस वाला ' प्रेम ' सिर्फ विपरीत लिंग वाले दो प्रेमियों के बीच का ही प्रेम है ..कुछ ऐसा ही आभास होता है इस प्रेम दिवस के आने भर की आहट से !
'इश्क ' वो जज्बा है जो छुपाने से भी छुपा नहीं करता'' ऐसा कहा जाता है लेकिन अब तो लोग छुपाने के लिए नहीं दिखाने के लिए इश्क्बाज़ियाँ करते हैं !
'प्यार'' क्या आप को यकीन है इस शब्द पर ?
कम से कम मुझे तो नहीं होता ....कोई जाना पहचाना कहे तो मैं पहले कारण पूछती हूँ कि बताईये किस बात ने प्रभावित किया और आप का उद्देश्य क्या है ?और कोई अजनबी मुझ से कभी कहे कि उसे मुझ से प्यार है तो मेरी ओर से गहरी शक की छाया उस व्यक्ति को घेर लेती है क्योंकि मेरे विचार में बिना किसी की किसी बात से प्रभावित हुए कोई भाव आप के दिल में कैसे आ सकते हैं ?
और जो ऐसा कहता है कि बिना देखे प्यार हो गया ..बिना जाने ,,,वो महज बकवासबाजी ही मानी जायेगी .
''प्यार '' वास्तव में एक किताबी शब्द है जिसका उपयोग कम ,दुरूपयोग अधिक हुआ है .
''यह एक ऐसा शब्द है जिसे सबसे अधिक प्रताड़ित किया गया है ''अगर मैं ऐसा कहूँ तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
लोग इस शब्द का वज़न जाने बिना इस का प्रयोग स्वार्थपूर्ति हेतु करते हैं और सदियों से करते आये हैं .
किसी प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष लाभ के लिए इस एक शब्द का उपयोग करना आजकल बहुत ही साधारण बात हो गयी है ,'प्यार ' के नाम की आड़ में कृत्रिम सुखों को भोगना भी आज के आधुनिक युग में फैशन हो गया है .
इस बेचारे एक शब्द का इतना शोषण शायद किसी और युग में नहीं हुआ होगा जितना आज होने लगा है !
इस प्यार शब्द से प्यार करने वाले बिरले ही हैं.
सोशल मिडिया की बात अगर कहें तो 'आयी लव यू '' मैं प्यार करता हूँ..या प्यार हो गया है जैसे कितने ही जुमले बड़ी आसानी से कहीं भी किसी के इनबॉक्स में फेंक दिए जाते हैं ! निशाना लग गया तो सही वर्ना और आगे बढ़ा जाए !
फेसबुक के किसी के पन्ने पर लिखा पढ़ा था कि 'प्रेम नुक्कड़ पर बिकने वाले घड़ी डिटर्जेंट जितना सस्ता हो गया है ''..अगर ऐसा आज का युवा वर्ग सोचता है तो उसके पीछे कारण होंगे और येही वजह है कि इस दिवस को मनाने की ज़रूरत आन पड़ी ?
पता नहीं लेकिन ढाई आखर के इस शब्द से कितने बड़े -बड़े खेल लोग खेल जाते हैं ,कितने लोग बर्बाद भी हो जाते हैं ,..
मेरी नज़र में यह शब्द मात्र एक खाली अभिव्यक्ति रह गया है .
बस जीवन को अपनी जिम्मेदारियां पूरी करते हुए जिए जाओ ....इस शब्द के छलावे से दूर क्योंकि इस शब्द के भाव शून्य हो चले हैं .
सही अर्थ वाले 'प्यार ' को न शब्दों की ज़रूरत होती है न दिखावे की ...आप के हाव -भाव आप का व्यवहार ही बता देगा कि आप के अगले के प्रति कैसे भाव हैं !
सच्चा प्यार करनेवाले को इतना शोर मचाने की ज़रूरत ही नहीं होती न बार-बार जताने की .अगर भावनाएँ सच्ची हैं तो दिल से दिल को राह मिल ही जायेगी ..काहे बेचारे 'प्यार /प्रेम /मोहब्बत ' शब्द को पीट -पीट कर अहसास जगाने का प्रयास करते रहेते हैं !
खैर...प्रेम दिवस मुबारक हो! चलन है तो मैंने भी सभी शोर मचाकर प्यार करने वालों को मुबारकबाद दे दी है .
=============================================
[प्रिय पाठक,आप मेरे विचारों से इत्तेफाक रखें यह ज़रूरी नहीं :)..आप अपनी बात खुलकर कह सकते हैं !]
इस भाव के न जाने कितने नाम हैं ..
कहते हैं ,कभी बेनाम भी रह जाया करती हैं कहानियाँ जिन में ये भाव प्रमुख होते हैं ..
मगर क्या आज इस शब्द का कोई अर्थ बचा है ?क्या आज भी सच्चा प्रेम जैसा कुछ होता है?
यहाँ उस अहसास के लिए इस्तमाल किये जाने वाले शब्द की बात हो रही है जिसे हम रूह से देह तक महसूस किये जाने का अहसास कहते हैं ..मन से तन तक का सफ़र तय कराने वाला अहसास जिसे लोग मोहब्बत भी कहते हैं 'लव या प्रेम !
ये प्रेम दिवस वाला ' प्रेम ' सिर्फ विपरीत लिंग वाले दो प्रेमियों के बीच का ही प्रेम है ..कुछ ऐसा ही आभास होता है इस प्रेम दिवस के आने भर की आहट से !
'इश्क ' वो जज्बा है जो छुपाने से भी छुपा नहीं करता'' ऐसा कहा जाता है लेकिन अब तो लोग छुपाने के लिए नहीं दिखाने के लिए इश्क्बाज़ियाँ करते हैं !
'प्यार'' क्या आप को यकीन है इस शब्द पर ?
कम से कम मुझे तो नहीं होता ....कोई जाना पहचाना कहे तो मैं पहले कारण पूछती हूँ कि बताईये किस बात ने प्रभावित किया और आप का उद्देश्य क्या है ?और कोई अजनबी मुझ से कभी कहे कि उसे मुझ से प्यार है तो मेरी ओर से गहरी शक की छाया उस व्यक्ति को घेर लेती है क्योंकि मेरे विचार में बिना किसी की किसी बात से प्रभावित हुए कोई भाव आप के दिल में कैसे आ सकते हैं ?
और जो ऐसा कहता है कि बिना देखे प्यार हो गया ..बिना जाने ,,,वो महज बकवासबाजी ही मानी जायेगी .
''प्यार '' वास्तव में एक किताबी शब्द है जिसका उपयोग कम ,दुरूपयोग अधिक हुआ है .
'lost love' Collage created by Alpana Verma |
लोग इस शब्द का वज़न जाने बिना इस का प्रयोग स्वार्थपूर्ति हेतु करते हैं और सदियों से करते आये हैं .
किसी प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष लाभ के लिए इस एक शब्द का उपयोग करना आजकल बहुत ही साधारण बात हो गयी है ,'प्यार ' के नाम की आड़ में कृत्रिम सुखों को भोगना भी आज के आधुनिक युग में फैशन हो गया है .
इस बेचारे एक शब्द का इतना शोषण शायद किसी और युग में नहीं हुआ होगा जितना आज होने लगा है !
इस प्यार शब्द से प्यार करने वाले बिरले ही हैं.
सोशल मिडिया की बात अगर कहें तो 'आयी लव यू '' मैं प्यार करता हूँ..या प्यार हो गया है जैसे कितने ही जुमले बड़ी आसानी से कहीं भी किसी के इनबॉक्स में फेंक दिए जाते हैं ! निशाना लग गया तो सही वर्ना और आगे बढ़ा जाए !
फेसबुक के किसी के पन्ने पर लिखा पढ़ा था कि 'प्रेम नुक्कड़ पर बिकने वाले घड़ी डिटर्जेंट जितना सस्ता हो गया है ''..अगर ऐसा आज का युवा वर्ग सोचता है तो उसके पीछे कारण होंगे और येही वजह है कि इस दिवस को मनाने की ज़रूरत आन पड़ी ?
पता नहीं लेकिन ढाई आखर के इस शब्द से कितने बड़े -बड़े खेल लोग खेल जाते हैं ,कितने लोग बर्बाद भी हो जाते हैं ,..
मेरी नज़र में यह शब्द मात्र एक खाली अभिव्यक्ति रह गया है .
बस जीवन को अपनी जिम्मेदारियां पूरी करते हुए जिए जाओ ....इस शब्द के छलावे से दूर क्योंकि इस शब्द के भाव शून्य हो चले हैं .
सही अर्थ वाले 'प्यार ' को न शब्दों की ज़रूरत होती है न दिखावे की ...आप के हाव -भाव आप का व्यवहार ही बता देगा कि आप के अगले के प्रति कैसे भाव हैं !
सच्चा प्यार करनेवाले को इतना शोर मचाने की ज़रूरत ही नहीं होती न बार-बार जताने की .अगर भावनाएँ सच्ची हैं तो दिल से दिल को राह मिल ही जायेगी ..काहे बेचारे 'प्यार /प्रेम /मोहब्बत ' शब्द को पीट -पीट कर अहसास जगाने का प्रयास करते रहेते हैं !
खैर...प्रेम दिवस मुबारक हो! चलन है तो मैंने भी सभी शोर मचाकर प्यार करने वालों को मुबारकबाद दे दी है .
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[प्रिय पाठक,आप मेरे विचारों से इत्तेफाक रखें यह ज़रूरी नहीं :)..आप अपनी बात खुलकर कह सकते हैं !]
सच्चा प्यार करनेवाले को इतना शोर मचाने की ज़रूरत ही नहीं होती न बार-बार जताने की .अगर भावनाएँ सच्ची हैं तो दिल से दिल को राह मिल ही जायेगी ..काहे बेचारे 'प्यार /प्रेम /मोहब्बत ' शब्द को पीट -पीट कर अहसास जगाने का प्रयास करते रहेते हैं !
ReplyDeleteबहुत सही.
reali bbat hai log aaj kal pyar ka durupyog kar rahe hai.pyar to koi karta nahi bas hawas bujhane ke liye pyar ka naam de diya.pyar to wo hai jo bichhad ke kare.
ReplyDeletepandit pandit sab kahe pandit bana na koi dhai akshar prem ka padhe so pandit hoi.mtlb aaj tak koi prem ka arth nahi jan paya jo jan lega wo sab se prem karega.
chahe dost ho ua dusman sabse prem karna chahiye.is yug me sirf maa aur bhagwan ka prem nihswarth hai baki sab swarth ke liye prem karte hai.
अमित जी ,,आपके कुछ बातो से सहमत हु,, लेकिन मेरा जहाँ तक मानना है वो प्यार ही क्या जो बिछड के की जाये ,,प्यार तो वो है जो बिछड़े हुए को मिला दे !! आभार
Deleteमें आपकी बात से काफी हद तक सहमत हु.. आभार अल्पना जी
ReplyDeletehttp://Jazbaat.in
अल्पना जी आपने जो विचार व्यक्त किया है,,बिलकुल सहमत हूँ !! आज कल प्रेम की परिभाषा ही बदल चूका है !!
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-02-2015) को "आ गया ऋतुराज" (चर्चा अंक-1889) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पाश्चात्य प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Dhnywaad Sir.
Deleteप्यार एक एहसास है ,अनुभूति है ...दिखावा करने की चीज नहीं !
ReplyDeleteमेरी नज़र में यह शब्द मात्र एक खाली अभिव्यक्ति रह गया है .
ReplyDeleteबस जीवन को अपनी जिम्मेदारियां पूरी करते हुए जिए जाओ ....इस शब्द के छलावे से दूर क्योंकि इस शब्द के भाव शून्य हो चले हैं .
बहुत सही.
आपने बहुत कुछ कह ही दिया है---
ReplyDeleteलेकिन मैं अभी भी इसे उधेडती रहती हूं?
शायद यह एक अंतहीन यात्रा हो---
बहुत ही शानदार ... प्रेम के मायने सोचने पर विवश करती रचना....
ReplyDeleteआज के नौजवान और तथाकथित युवा पीढ़ी अपने बुढ़ापे में उसके लिए अवश्य पछताएगी, जो हम लोग उनसे अपेक्षा करते हैं। पर दुर्भाग्य से तब इनके पास कुछ नहीं होगा। न अपना समय न इनकी भावी पीढ़ी का सहारा। अभी इनके पास हम जैसे लोगों का बुढ़ापे के रूप में सहारा है। आनेवाले समय में इनको इसका घोर पश्चाताप अवश्य होगा। लेकिन तब निरुपाय रहने के अलावा इनके पास कुछ नहीं होगा।
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने विकेश जी.
Deleteआप के विचारों की मैं कायल हूँ.
प्रेम के इस दिन के लिहाज से बहुत उम्दा और मौजू प्रस्तुति...प्यार एक रूहानी अहसास है। जब तक ये अहसास है तब तक प्यार है। आज के परिवेश में प्यार में अहसास कम दिखावा ज्यादा नज़र आने लगा है।
ReplyDeleteहाँ,हिमकर जी , यह बात समझानी अब मुश्किल है यह इंस्टेंट का ज़माना हैं.
Deleteप्रेम या प्यार उसी को समझ आता है...जिसकी समझ चली जाती है...लेकिन प्यार का मज़ा भी वही लोग ले पाते हैं...
ReplyDelete:) ....
Deleteये सच है की इस शब्द का दुरूपयोग हुआ है .. पर प्यार नाम का कुछ है ही नहीं है .. मेरा ऐसा मानना नहीं ... प्यार है, रहेगा और हर रूप में रहेगा ... हाँ आजकल कुछ कमर्शिअल हो गया है ... दिखावा हो गया है पर फिर भी ये एहसास दिल को गुदगुदाता है ...
ReplyDeleteयह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है... इस अहसास में उसके संस्कार, आदतें और उसका समाज भी उस पर प्रभाव डालता है.....
ReplyDeleteनयी पोस्ट@आप यहाँ पधारिये
एक अच्छी रचना।
ReplyDeleteप्रेम का गहन दर्शन प्रस्तुत किया आपने। आभार।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दो मे सार्थक प्रस्तुति
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