स्वागत गीत
अथ स्वागतम , शुभ स्वागतम आनंद मंगल मंगलम |
नित प्रियम भारत भारतम ||
नित्य निरंतारता, नवता , मानवता, समता , ममता |
सारथी साथ मनोरथ का, जो अनिवार नहीं थमता ||
संकल्प अविजित अभिमतं | आनंद मंगल मंगलम ||
कुसुमित नई कामनायें, सुरभित नई साधनाएँ |
मैत्रिमत क्रीडांगन में , प्रमुदित बंधू भावनाएं ||
शाश्वत सुविक्षित अति शुभम | आनंद मंगल मंगलम ||
स्वागतम , शुभ स्वागतम आनंद मंगल मंगलम |
संस्कृत भाषा में इस गीत को लिखने वाले सुप्रसिद्ध कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा जी हैं .
इस गीत की धुन पंडित रवि शंकर जी ने बनायी थी .
इस गीत की धुन बनाने वाले 'सितार' का पर्याय पण्डित रविशंकर जी का परिचय [विकिपीडिया से साभार ] :
एक सितार वादक और संगीतज्ञ थे। उन्होंने विश्व के कई मह्त्वपूर्ण संगीत उत्सवों में हिस्सा लिया है। उनके युवा वर्ष यूरोप और भारत में अपने भाई उदय शंकर के नृत्य समूह के साथ दौरा करते हुए बीते।
रविशंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उस्ताद अल्लाऊद्दीन खाँ से प्राप्त की। अपने भाई उदय शंकर के नृत्य दल के साथ भारत और भारत से बाहर समय गुजारने वाले रविशंकर ने 1938 से 1944 तक सितार का अध्ययन किया और फिर स्वतंत्र तौर से काम करने लगे।उन्हें १९९९ में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। रवि शंकर को कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन् १९६७ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
भारतीय संगीत को दुनिया भर में सम्मान दिलाने वाले भारत रत्न और पद्मविभूषण से नवाजे गये पंडित रविशंकर को तीन बार ग्रैमी पुरस्कार से भी नवाजा गया था। उन्होंने भारतीय और पाश्चात्य संगीत के संलयन में भी बड़ी भूमिका निभाई।
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इस गीत के गीतकार सुप्रसिद्ध कवि पण्डित नरेंद्र शर्मा जी के बारे में उनकी सुपुत्री लावण्या जी से ही जानिये-
संत हृदय कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा जी जन्म १९१३ में खुर्जा के जहाँगीरपुर नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र और अंग्रेज़ी मे एम.ए. किया।
१९३४ में प्रयाग में अभ्युदय पत्रिका का संपादन किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में हिंदी अधिकारी रहे और फिर बॉम्बे टाकीज़ बम्बई में गीत लिखे। उन्होंने फिल्मों में गीत लिखे, आकाशवाणी से भी संबंधित रहे और स्वतंत्र लेखन भी किया।
उनके १७ कविता संग्रह एक कहानी संग्रह, एक जीवनी और अनेक रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
इस गीत के बारे में उनकी सुपुत्री लावण्या जी अपने ब्लॉग पर यह बताती हैं -उन्होंने ये गीत लिखा था और दिल्ली भिजवाया था उस समय मँद स्मित से सजी पापा जी की मुखमुद्रा का, आज भी, स्मरण हो आता है ।
उन्होंने ये भी कहा था, " सँस्क़ृत के शब्दोँ से सजा ये गीत, भारत के हरेक प्राँत के विभिन्न भाषा बोलनेवालोँ को एक सूत्र मेँ पिरो पायेगा -- इसका मुझे विश्वास है । दक्षिण की भाषाएँ और उत्तर की , पूर्व की होँ या पश्चिम की, भारत के हर प्राँत की भाषा , मेरी सँस्कृत भाषा को ' माता ' कहती है ।
हमारे भारतवर्ष की यह आदी भाषा है और हर प्राँतिय भाषा मेँ , कई सारे सँस्कृत निष्ठ शब्द हैँ जिन्हेँ हर प्राँत मेँ समझा जाता है और उनका प्रयोग भी किया जाता है " --
ये पापा के उस समय कहे शब्द , आज याद कर रही हूँ ।''
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लावण्या दी, आप की बात बिलकुल सही हुई.३० जनवरी को हमारे स्कूल के उत्सव के आरम्भ हेतु हमने इसे प्रस्तुत किया और इस समूह गीत को बेहद सराहा गया.भारत के अलग-अलग प्रान्त के रहने वाले बच्चे जिनकी उम्र 12 से 15 की थी ,जो अब इस खाड़ी देश में पढ़ रहे हैं उन्होंने इस गीत को बड़ी खूबी से सीखा और प्रस्तुत किया .यह ध्यान देने वाली बात है कि इन में कोई भी संगीत सीखा हुआ नहीं है और न ही संस्कृत कभी सीखी सुनी..
लेकिन संस्कृत तो भारतीय भाषाओँ की माता है उसे सीखने में किसी को कष्ट कैसे होता बल्कि बहुत ही आनंद से सीखा और सुरीला प्रस्तुत किया.
मुझे यह बात भी बाँटते हुए बेहद हर्ष हो रहा है कि २७ बच्चों में केवल दो ही बच्चे ऐसे थे जिन्होंने पहले किसी स्टेज पर प्रोग्राम में भाग लिया था बाकि सभी स्टेज पर खासकर किसी वार्षिक समारोह में पहली बार भाग ले रहे थे .इनमें तमिल,हिंदी ,उर्दू,गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,कोंकणी,मलयालम आदि भाषाओँ के बोलने वाले छात्र शामिल थे.
मुझे बहुत प्रसन्नता है कि इस मधुर गीत को एक बार फिर से हम लोगों के बीच सुना सके,क्योंकि बहुत से ऐसे लोग थे [नयी पीढ़ी के ..जिन्होंने मुझ से इस गीत के बारे में और जानकारी माँगी थी .]
इस गीत की विडियो यहाँ दे रही हूँ जल्द ही इसी स्वागत गान की ऑडियो क्लिप भी पोस्ट करूंगी.
----------------विडियो मोबाइल से रिकॉर्ड की हुई है ,गीत प्रस्तुति में हुई किसी भी त्रुटि के लिए मैं क्षमा माँगती हूँ.----
अथ स्वागतम , शुभ स्वागतम आनंद मंगल मंगलम |
नित प्रियम भारत भारतम ||
नित्य निरंतारता, नवता , मानवता, समता , ममता |
सारथी साथ मनोरथ का, जो अनिवार नहीं थमता ||
संकल्प अविजित अभिमतं | आनंद मंगल मंगलम ||
कुसुमित नई कामनायें, सुरभित नई साधनाएँ |
मैत्रिमत क्रीडांगन में , प्रमुदित बंधू भावनाएं ||
शाश्वत सुविक्षित अति शुभम | आनंद मंगल मंगलम ||
स्वागतम , शुभ स्वागतम आनंद मंगल मंगलम |
संस्कृत भाषा में इस गीत को लिखने वाले सुप्रसिद्ध कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा जी हैं .
इस गीत की धुन पंडित रवि शंकर जी ने बनायी थी .
इस गीत की धुन बनाने वाले 'सितार' का पर्याय पण्डित रविशंकर जी का परिचय [विकिपीडिया से साभार ] :
एक सितार वादक और संगीतज्ञ थे। उन्होंने विश्व के कई मह्त्वपूर्ण संगीत उत्सवों में हिस्सा लिया है। उनके युवा वर्ष यूरोप और भारत में अपने भाई उदय शंकर के नृत्य समूह के साथ दौरा करते हुए बीते।
रविशंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उस्ताद अल्लाऊद्दीन खाँ से प्राप्त की। अपने भाई उदय शंकर के नृत्य दल के साथ भारत और भारत से बाहर समय गुजारने वाले रविशंकर ने 1938 से 1944 तक सितार का अध्ययन किया और फिर स्वतंत्र तौर से काम करने लगे।उन्हें १९९९ में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। रवि शंकर को कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन् १९६७ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
भारतीय संगीत को दुनिया भर में सम्मान दिलाने वाले भारत रत्न और पद्मविभूषण से नवाजे गये पंडित रविशंकर को तीन बार ग्रैमी पुरस्कार से भी नवाजा गया था। उन्होंने भारतीय और पाश्चात्य संगीत के संलयन में भी बड़ी भूमिका निभाई।
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इस गीत के गीतकार सुप्रसिद्ध कवि पण्डित नरेंद्र शर्मा जी के बारे में उनकी सुपुत्री लावण्या जी से ही जानिये-
संत हृदय कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा जी जन्म १९१३ में खुर्जा के जहाँगीरपुर नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र और अंग्रेज़ी मे एम.ए. किया।
१९३४ में प्रयाग में अभ्युदय पत्रिका का संपादन किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में हिंदी अधिकारी रहे और फिर बॉम्बे टाकीज़ बम्बई में गीत लिखे। उन्होंने फिल्मों में गीत लिखे, आकाशवाणी से भी संबंधित रहे और स्वतंत्र लेखन भी किया।
उनके १७ कविता संग्रह एक कहानी संग्रह, एक जीवनी और अनेक रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
इस गीत के बारे में उनकी सुपुत्री लावण्या जी अपने ब्लॉग पर यह बताती हैं -उन्होंने ये गीत लिखा था और दिल्ली भिजवाया था उस समय मँद स्मित से सजी पापा जी की मुखमुद्रा का, आज भी, स्मरण हो आता है ।
उन्होंने ये भी कहा था, " सँस्क़ृत के शब्दोँ से सजा ये गीत, भारत के हरेक प्राँत के विभिन्न भाषा बोलनेवालोँ को एक सूत्र मेँ पिरो पायेगा -- इसका मुझे विश्वास है । दक्षिण की भाषाएँ और उत्तर की , पूर्व की होँ या पश्चिम की, भारत के हर प्राँत की भाषा , मेरी सँस्कृत भाषा को ' माता ' कहती है ।
हमारे भारतवर्ष की यह आदी भाषा है और हर प्राँतिय भाषा मेँ , कई सारे सँस्कृत निष्ठ शब्द हैँ जिन्हेँ हर प्राँत मेँ समझा जाता है और उनका प्रयोग भी किया जाता है " --
ये पापा के उस समय कहे शब्द , आज याद कर रही हूँ ।''
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लावण्या दी, आप की बात बिलकुल सही हुई.३० जनवरी को हमारे स्कूल के उत्सव के आरम्भ हेतु हमने इसे प्रस्तुत किया और इस समूह गीत को बेहद सराहा गया.भारत के अलग-अलग प्रान्त के रहने वाले बच्चे जिनकी उम्र 12 से 15 की थी ,जो अब इस खाड़ी देश में पढ़ रहे हैं उन्होंने इस गीत को बड़ी खूबी से सीखा और प्रस्तुत किया .यह ध्यान देने वाली बात है कि इन में कोई भी संगीत सीखा हुआ नहीं है और न ही संस्कृत कभी सीखी सुनी..
लेकिन संस्कृत तो भारतीय भाषाओँ की माता है उसे सीखने में किसी को कष्ट कैसे होता बल्कि बहुत ही आनंद से सीखा और सुरीला प्रस्तुत किया.
मुझे यह बात भी बाँटते हुए बेहद हर्ष हो रहा है कि २७ बच्चों में केवल दो ही बच्चे ऐसे थे जिन्होंने पहले किसी स्टेज पर प्रोग्राम में भाग लिया था बाकि सभी स्टेज पर खासकर किसी वार्षिक समारोह में पहली बार भाग ले रहे थे .इनमें तमिल,हिंदी ,उर्दू,गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,कोंकणी,मलयालम आदि भाषाओँ के बोलने वाले छात्र शामिल थे.
अंत में --इस गीत का कराओके जिन्होंने बनाया है वे भी अमेरिका में रहने वाले एक भारतीय श्री श्रीनिवास किशोर भरद्वाज जी हैं और बेशक उन्हीं के बनाये ट्रेक के कारण ही हम इतनी सुरीली प्रस्तुति कर पाए.उनके इस सहयोग के लिए दिल से उन्हें धन्यवाद.
मुझे बहुत प्रसन्नता है कि इस मधुर गीत को एक बार फिर से हम लोगों के बीच सुना सके,क्योंकि बहुत से ऐसे लोग थे [नयी पीढ़ी के ..जिन्होंने मुझ से इस गीत के बारे में और जानकारी माँगी थी .]
इस गीत की विडियो यहाँ दे रही हूँ जल्द ही इसी स्वागत गान की ऑडियो क्लिप भी पोस्ट करूंगी.
----------------विडियो मोबाइल से रिकॉर्ड की हुई है ,गीत प्रस्तुति में हुई किसी भी त्रुटि के लिए मैं क्षमा माँगती हूँ.----
शानदार पोस्ट..
ReplyDeleteजो महान विभूतियाँ जब एक साथ मिलती हैं तो जो प्रकाश फैलता है उसको देखने सुनने वाला भी उसमें खो के रह जाता है ... दोनों परिचय और सुंदर गीत का आनद ले रहे हैं आपके ब्लॉग पर ....
ReplyDeleteकालजयी रचना !
ReplyDeleteमैं भी ब्रह्माण्ड का महत्वपूर्ण हिस्सा हूँ !
newpost कहानी -विजयी सैनिक
ReplyDeleteबहुत खूब।
अनुपम प्रस्तुति...सुर, शब्द और संगीत का अद्भुत संगम...वाकई सुखद अनुभव रहा होगा.. आभार!!
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया जानकारी है . आपका धन्यवाद. . . .
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.
अच्छी जानकारी !
ReplyDeleteगोस्वामी तुलसीदास
बेहतरीन ब्लाग। संगीत के बेताज बादशाहों के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा। मेरे ब्लाग पर आप सभी लोगों का हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteसंत हृदय कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा जी ने ही शायद चित्रलेखा और सरस्वती चन्द्र हिन्दी पिल्मों के गीत लिखे थे, जिन्हें पार्श्व गायिका लता मंगेशकर ने गाया था। सखी रे..........वाला गीत तो कितना कर्णप्रिय है।
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteअल्पना जी, PLEASE VISIT@चन्दन सा बदन