'फेयरवेल ' मुझे यह शब्द कतई पसंद नहीं है . मैं कभी नहीं चाहूँगी कि मुझे कोई फेयरवेल 'कही जाए .
सोचती हूँ मैं जब भी नौकरी छोडूँ या ज़िन्दगी .. तो चुपचाप चली जाऊं.बिना हो हल्ला किये .ऐसा हो पाना यूँ तो संभव नहीं है लेकिन सोचने में क्या हर्ज़ है ..एक तो फेयरवेल शब्द ही तकलीफ देता है ,पिछले फेयरवेल याद आ जाते हैं ,इतने लोग साथ रहे ,साथ काम किया ..एक बार वो जगह छोड़ देने के बाद आज तक कौन वापस मिला ..कोई भी नहीं ,,,सब बीते समय की बातें हो गए.
यूँ तो फेयरवेल में अब औपचारिकतायें ही अधिक होती हैं ,नाटकीयता अधिक फिर भी वे क्षण और माहौल ऐसा हो जाता है कि व्यक्ति भावुक हो ही जाता है .
कोई चुपचाप चला जाए तो उसके होने का या लौट आने का इंतज़ार रहता है या कहें कि उम्मीद सी रहती है लेकिन एक बार 'अलविदा' कह दें तो लगने लगता है कि यह आखिरी मुलाकात ही है .
इस एक शब्द के सुनते ही कुछ ही सेकंड्स में वे सभी पुराने साथी,जगहें और बातें याद आ जाती हैं,जिनकी स्मृति पीड़ा देती है.
और याद आ जाता है अपनी पहली फेयरवेल पर जूनियर्स का गाया वो गीत 'फॉर शी इज अ जॉली गुड फेलो ....सो से आल ऑफ़ अस '....और एक स्लाइड शो चल पड़ता है ,जिसका कोई चेहरा अब तक कभी सामने आया नहीं और आ भी गया तो पहचानूंगी कैसे ?
उन फेयरवेल में फर्क भी था वे होते थे कि आगे नया सफ़र या नयी जगह आपकी बेहतरी के लिए होगी ..सो नयी उर्जा नए जोश के साथ नए साथी बनाये जाते थे ,लेकिन अब इस एक शब्द से तमाम वो चेहरे नज़र आते हैं जो खो चुके हैं और अब जो साथ है वे भी इस एक शब्द के साथ खो जाएँगे ?
शायद पिछले अनुभव चुभते हैं कि जो जाता है फिर वापस नहीं मिलता ...दुनिया की भीड़ में सब खो जाते हैं !
आह !!!!!कितना कष्ट देता है यह एक शब्द!
ज़िन्दगी के संदर्भ में देखा जाए तो लगता है कि कितना सही लिखा है - अगर आप में 'अलविदा कह देने की हिम्मत है तो ज़िन्दगी आप को एक नए इनाम से नवाज़ेगी.यह हिम्मत भी तो बिरलों में ही होती है .
... Nostalgic लगता तो ज़रूर है पर ज़िंदगी नए सिरे से फिर शुरू हो जाती है.
ReplyDeleteहाँ काजल जी ,सही कहा आपने.
Deleteकम से कम इसी बहाने सब मिलजुल इकठ्ठा होकर हंस रो लेते हैं ..आखिर याद के तौर पर .....
ReplyDeleteशादी हुयी तो विदाई के क्षण भी आते ही है ...यही समझ लो फेयरवेल
बिलकुल कविता जी,लेकिन ये पल बहुत भावुक कर देने वाले होते हैं देर तक असर रखते हैं,
Deleteये कहने के लिए हिम्मत चाहिए जो हर किसी इंसान में नहीं होती ...
ReplyDeleteवैसे तो जब हम बाहर आये अपने देश से ये हिम्मत रही होगी तब ही आये पर शायद समय के साथ ये कम होती जाती है ... क्योंकि लौटना तो वहीं होता है जहां सब बहुत आगे जा चुके होते हैं ...
आशा है आप यु ए ई में ही रहने वाली हैं और कभी न कभी मुलाक़ात जरूर होगी फेयरवेल से पहले ...
:) हाँ दिगंबर जी ,यहाँ से जाना तो है ही न एक न दिन ! ईश्वर ने चाहा तो जाने से पहले ज़रूर एक बार मुलाक़ात होगी .
Deleteअच्छी लगी पोस्ट , सच कहा अलविदा शब्द ही भावुक कर देता है , पीछे मुड़ कर देखना दुखदाई तो होता ही है। कहते हैं आगे देखते चलना ही हमारी बेहतरी के लिए अच्छा होता है , क्योंकि उन राहों को या कहो वक्त को रिवाइंड नहीं किया जा सकता।
ReplyDelete@शारदा जी ,लगता तो है फिर भी कि काश कभी -कभी वक़्त को रिवाइंड कर सकते और बीते पलों को फिर से एक बार जी सकते .
Deleteso good . loved reading it .
ReplyDelete:) Thanks Shashi.
Deleteये अनुभ्ाूति अन्दर तक तो सिहरा ही देती है......और पुन: एक नया जीवन चल पड़ता है। चाहे मनचाहा या मनमारा।
ReplyDeleteहाँ ,विकेश जी यह सिहरन असहनीय होती है .
Deleteसुंदर प्रस्तुति....सच में बहुत मुश्किल होता है किसी को अलविदा कहना. विदाई का मतलब ही होता है दुःख. जुदाई और विदाई किसी की बेहतरी के लिए हो तो बात अलग है. फेयरवेल विदा होने वाले लोगों के साथ बिताये क्षणों को याद करने और उनकी नयी शुरुआत के लिए शुभकामनाएँ देने का तरीका भर है.
ReplyDeleteहिमकर जी ,अब हम मशीनी हो रहे हैं और यह मात्र औपचारिकता रह गयी है.फिर भी मुझे फेयरवेल नाम से अजीब सी घबराहट होती है.जैसे न जाने क्या छूट रहा है जो दोबारा कभी नहीं मिलेगा.
Deleteहम कुछ क्षणों और पलों को भी तो फेयरवेल कह दिया करते हैं.
ReplyDeleteहाँ गीतसंगीत जी,लेकिन वहाँ हमारी पूरी मर्ज़ी होती है.
DeleteYah bhee to jindadili ka ek hissa hai. Sunder lakh air koobsurat poster.
ReplyDeleteजी आशा जी ...यह भी ज़िन्दादिली का ही हिस्सा है.
Deleteव्योम के पार
ReplyDeleteऐसा होता है कि कुछ शब्दों से असहज-सा महसूस होता है, फिर भी ज़िंदगी है....यूं ही चलती रहती है...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
ऐसे पल कष्टदायी तो होते हैं लेकिन मन को समझाना पड़ता है। बधाई। सस्नेह
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