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न यहाँ कौरव थे , न शतरंज की बिसात
कातर स्वर और पुकार
क्यों कान्हा तुमने सुना नहीं?
देह उघडी,
हुई रूह छलनी ,
और शर्मसार मानवता .
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................................................अल्पना ............................................... |
स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India
'वन्दे भारत मिशन' के तहत स्वदेश वापसी Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...
April 23, 2013
प्रश्न!
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आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज मंगलवार (23-04-2013) के मंगलवारीय चर्चा --(1223)"धरा दिवस" (मयंक का कोना) पर भी होगी!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
सूचनार्थ...सादर!
वर्तमान में जो घटित हुआ है वह सहज अभिव्यक्त हुआ है। छोटी कविता के भीतर तार-तार कपडों की स्त्री की अवस्था देख कान्हा क्यों अवतरित नहीं हो रहे कहने पर भी कान्हा आने की संभावनाएं धुसर है या कहे नहीं है। हां अगर नारी के मन में आ जाएं तो दुर्गा जरूर बचाने के लिए आ सकती है।
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ReplyDeleteअनुभूति की बढ़िया प्रस्तुति !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को, अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?
भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार
ReplyDeleteवाकई शर्म आती है।
ReplyDeleteसच में शर्मसार है इंसानियत, मानवता ओर पुरुष समाज ... हद होती है वहशीपन की भी ...
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ReplyDeleteमार्मिक।
कौन कब कौरव बन जाये , क्या पता !
emotional and real truth in this poem .
ReplyDeleteभावनाओं कॊ बहुत ही मार्मिकता से प्रकट किया है, जो आपकी भावनाएं हैं वही हर भारतीय की भावनाएं हैं. अत्यंत दुखद घटनाएं हर जगह रोज घट रही हैं. कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नही है, आखिर कब तक सहा जायेगा?
ReplyDeleteरामराम.
वाकई में शर्मसार करती घटना ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,
वाकई में शर्मसार करती घटना ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,
न जाने कितने टुकड़ों में फैली दानवता।
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति !!
ReplyDeleteकान्हा तो नहीं आये..मगर दांव पर आखिर किसने लगाया????
ReplyDelete:-(
अनु
.....समय के विद्रूप।
ReplyDeletekalyug .. jungle ka qanoon .. bhediye .. haiwaniyet ..andhera .. shikaar ..masoomiyet.. laachari .. aatmhattya ...
ReplyDeleteउफ्फ!
ReplyDeletenishabd
ReplyDeleteछोटी लेकिन तीखी सटीक बात
ReplyDeleteवर्तमान का घिनोना सच
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
एक चिरन्तन दारुण कथा है यह! :-(
ReplyDeleteओह! बहुत सुंदर
ReplyDeleteumda prastuti ..vartmaan bhartiya parivesh ko chitrit karti ...kanhaa nhi ayenge ..ab khud striyo ko hi apni atmrakhsa ka upay karna hoga
ReplyDeletekam shabdo me aap ne bhuta kuch kah diya hai.
ReplyDeletevinnie