शुक्रवार की शाम को मेरी सहेली हेमा का फोन आता है-
भाभी जी ,आप ने 'इग्लिश- विन्ग्लिश' देखी?
नहीं ,पता नहीं क्यों हेमा ,मुझे पुरानी श्रीदेवी पसंद है उनका नया लुक टोलरेट नहीं हो रहा,
इसलिए देखने नहीं गई।
अरे नहीं ,भाभी जी ज़रूर देखना ,देख लो अब तो ई-लाईफ [यहाँ का सरकारी टी वी चेनल ]पर भी खरीद कर देख सकते हैं।
कल देखी हम सब ने ,बिना पलकें झपकाए पूरी फिल्म देख कर ही उठे!
क्या फिल्म है!
अरे! ऐसा क्या है उस में ?
देखोगे, तब मालूम चलेगा ,न!
अच्छा,ठीक है देखूंगी।
मेरी उत्सुकता बढ़ गयी ऐसा क्या है जो सभी इतनी तारीफ़ कर रहे हैं?
श्रीदेवी का अभिनय तो अच्छा होता है इसमें कोई शक नहीं फिर क्या ख़ास वजह?
रिमोट हाथ में लिया कुछ बटन दबाये तो देखा, फिल्म उपलब्ध है।
और देखना शुरू किया तो लगा कि हेमा ने सही बात कही थी. पूरी फिल्म देखे बिना उठा नहीं गया।
श्रीदेवी उर्फ शशि |
शशि..
यही है उस फिल्म के पात्र का नाम जिसके इर्द -गिर्द सारी कहानी घूमती है।
शशि माने चन्द्रमा जिसकी चाँदनी सब को शीतलता देती है। जिसकी अपनी रोशनी नहीं है ,दूसरे की रोशनी से उसे चमकना होता है।
कहानी की शशि एक आम भारतीय नारी का प्रतिनिधित्व करती है,
जिसको बचपन से यही सिखाया जाता है कि खुद को दिए की तरह जलते रहना है।
बिना प्रतिरोध किये चुपचाप काम करते रहना ,सब को खुश रखने की कवायत में अपने को भूल जाना ।
स्त्री -मन के भावों के कई पहलूओं को छूते हुए कहानी आगे बढ़ती है।
जहाँ वह इस आशा में दिन -रात एक करती है कि शायद तारीफ़ के /प्यार के दो बोल उसे सुनने को मिलेंगे लेकिन ऐसा नहीं होता।
शशि लड्डू बनने में पारंगत है ,उसके लड्डुओं की माँग बहुत है ,घर में रहते हुए ,वह खुद बनाती है और ज़रूरत पड़ने पर घर-घर जा कर दे कर भी आती है,
उसकी कमाई होती है ,उसमें आत्मविश्वास बढ़ता है ।
इस बात को वह अपनों के साथ बाँटना चाहती है परंतु लड्डू बनाने को उसके पति व बेटी कोई बड़ा काम नहीं समझते ।
एक बार उसके पति कह देते हैं कि वह यह काम छोड़ दे तब वह कहती है कि यही एक उसका शौक है इससे खुशी मिलती है , इसे भी वह कैसे छोड़ दे?
बेटी, माँ को स्कूल टीचर्स -पेरेंट मीटिंग में ले जाना नहीं चाहती क्योंकि माँ को इंग्लिश बोलनी नहीं आती ,मजबूरन जब ले जाना ही पड़ता है ,
तब वह कई जगह माँ को अहसास कराती है कि वह कमतर है और इंग्लिश न जानना उसकी कमजोरी है।
इंग्लिश न आने पर बच्चों द्वारा बात-बात पर उपहास उड़ाना और उसमें उसके पति का भी साथ देना शशि में हीन भावना भर देता है।
उस के हुनर की तारीफ करने की बजाय पति का मेहमानों के सामने यह कहना कि वह सिर्फ लड्डू बनने के लिए पैदा हुई है ,क्या वह शशि का अनादर करना नहीं था ?
अगर आप का साथी आप के बराबर नहीं है तो उसे बराबर लाने के लिए प्रयास कौन करेगा ?प्रोत्साहन कौन देगा?
ऐसे में घरवालों से ही उम्मीद लगाई जाती है। अगर घरवाले ही आप का मजाक बनाते हैं तो किससे आप उम्मीद करेंगे ?
उसपर वह खुद कुछ सीखने की कोशिश करने लगे तो उस में भी आप की अनिच्छा जता दी जाती है या उसे हतोत्साहित कर दिया जाता है।
इसलिए तो शशि छुप-छुप कर इंग्लिश की कोचिंग जाने लगती है।
यह पुरुष का अहम ही है जो अपनी पत्नी को अपने बराबर या अपने से आगे नहीं देखना चाहता।
अपवादों को छोड़ें तो एक पुरुष कभी भी पसंद नहीं करेगा कि उसे उसकी पत्नी के नाम से जाना जाए।
उसे आगे बढ़ाने की बात वह सोचता भी नहीं है ।
पति के अपनी महिला मित्र को गले लगा कर विश' करने पर वह पूछती है क्या वह इतनी करीब है कि आप ने गले लगाया !
इस पर वह कहता है कि नहीं इस तरह विश करना आम बात है और ऐसे गले लगाने से कोई करीब
थोड़े ही हो जाता है !
इस पर शशि कहती है कि हम करीब हैं इसलिए हम ऐसे गले नहीं मिलते !उसका ऐसा कहना एक प्रश्न छोड़ जाता है।
एक पत्नी को सिर्फ शारीरिक प्यार की ज़रूरत नहीं उसे मन से भी चाहना/स्नेह चाहिये यह भी इस फिल्म में दिखाया गया है।
उसके लिए कहे गए कुछ अच्छे शब्द ,उसका मनोबल बढाने को काफी होते हैं।फिल्म में स्त्री मन के भावों का यह पक्ष भी शशि की एक फ्रेंच से दोस्ती की कहानी दिखाती है।
उम्दा अभिनय |
इस फिल्म का उद्देश्य है कि यह समझाया जाए कि एक स्त्री में भी भावनाएँ होती हैं, वह मशीन नहीं है ।
वह अपने घरवालों से सिर्फ मान और सम्मान चाहती है ,उसके काम की पहचान हो उसे भी वांछित प्यार मिले और उसका आत्म विश्वास न टूटे ।
एक आम स्त्री की कहानी जिसका न जाने कितनी बार परिवार में ,उसके अपनों द्वारा ही उपहास उड़ाया जाता है ,
वह चुपचाप मुस्करा कर रह जाती है और अकेले में आँसू बहाती है।
मन में रखे रहती है सोचती हुई कि काश उसे भी कोई साथी मिलता जो उसकी भावनाओं का सम्मान करता ,उसे समझता .
अगर उस में कोई कमजोरी है तो उसे बताता ,सुधार करता !
न कि बात-बात पर बच्चों के सामने या साथ बैठकर उसका मजाक बनाता ।
इस फिल्म में यही ताने और परिवार का रवैया उसे अपनी कमज़ोरी दूर करने के लिए प्रेरित करता है और मौका मिलते ही वह प्रयास करती है।
लेकिन ऐसा मौका हर स्त्री को नहीं मिल सकता इसलिए उसे तो घर से ही सपोर्ट की ज़रूरत होगी। न ही हर स्त्री शशि जैसी हिम्मती हो सकती।
इसलिए सभी से यह कहना है कि घर की स्त्री को कभी भी कमतर न आंको ,हर किसी में कोई न कोई गुर होता है ,उस में भी होगा ,उसे निखारने में मदद करो ।
उसकी सूरत ,उसके शरीर,रंग कम अकल ,हुनरमंद न होना या उसके काम करने के तरीके पसंद नहीं हैं तो उसे समझाओ कि कहाँ सुधार अपेक्षित है और कैसे किया जा सकता है। महज ताने देने से बीच की दूरियाँ बढ़ती हैं।
फिल्म में यह भी दिखाया है कि दिल को समझने के लिए ,प्यार करने के लिए किसी भाषा की ज़रूरत नहीं होती।
हमारे हाव-भाव ही एक-दूसरे को कहने -सुनने को प्रयाप्त होते हैं।
एक बहुत अच्छी फिल्म जिसे घरवालों के साथ ज़रूर देखना चाहिए।
सचमुच यह एक अच्छी फिल्म है
ReplyDeleteअभी तक देखि नहीं पर पत्नी ने जरूर देखि है ... ओर कह रही है जेरूर देखना ... अगली बार टी वी पे आएगी तो देखूंगा ...
ReplyDeleteहकीकत के बहुत करीब है इसकी कहानी ...
ReplyDeleteशुक्रिया इस सहज उद्देश्य परक समीक्षा के लिए .
मान्यता सभी को चाहिए घर हो या बाहर .
ReplyDeleteनूतन वर्ष अभिनन्दन .
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 खबरनामा सेहत का
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 दिमागी तौर पर ठस रह सकती गूगल पीढ़ी
स्पेम में गईं हैं टिप्पणियाँ भाई सा
ab tak dekha nahi, ye sameeksha padh kar fir se dekhne ki ikshha jagrit ho gayee :)
ReplyDeleteफ़िल्म का उद्देष्य बढिया है, काश लोग उस पर अमल करते हुये महत्व समझे, आपकी इस समीक्षा को पढकर मौका लगा तो अवश्य देखेंगे. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
प्रभावित कर गयी फिल्म।
ReplyDelete♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
वैसे नई फिल्में देखना समय की बरबादी लगता है प्रायः
आपने लिखा है तो अवश्य देखूंगा !
:)
आदरणीया अल्पना जी
वैसे मुझे कमल हसन -श्रीदेवी अभिनीत फिल्म सदमा बहुत पसंद आई थी ।
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। नव वर्ष 2013 की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ। धन्यवाद सहित।
ReplyDelete... फिर भी शायद न ही देख पाउं
ReplyDeleteकल ही तो मैंने भी देखी ,बेहतरीन फिल्म है! आपकी परिचयात्मक समीक्षा फिल्म के कथ्य को सटीक ढंग से अभिव्यक्त कर रही है!
ReplyDeleteआपने नारी के घरेलु पक्ष को उजागर करने ववाली फिल्म की और ध्यान दिलाया है | लगता है अब तो ये फिल्म देखनी पड़ेगी | वैसे फिल्म बहुत कम देखता हूँ |
ReplyDeletepost your greeting with your comments
नये साल पर कुछ बेहतरीन ग्रीटिंग आपके लिए
बेहतरीन फिल्म है यह ..कई बार देख ली :)
ReplyDeleteअल्पनाजी,
आप क लेख "शशि' एक आम स्त्री का प्रतिबिम्ब"पढ़ा.
सच में लेख में आपने सिद्ध कर दिया है कि औरत किसी से कम नहीं है।
विन्नी,