स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

June 18, 2011

‘आम’ जो हमेशा ख़ास है !



जब भी  गर्मियाँ आती हैं तो याद आते हैं वे दिन  …

स्कूल के दिनों में गर्मी की छुट्टियाँ मई और जून में पड़ा करती थीं ..जुलाई में स्कूल खुला करते थे.
छुट्टियाँ शुरू क्या होती थीं उससे पहले ही छुट्टियों के प्लान बनने शुरू हो जाते थे .अगर दादी गाँव में होती तो मैं कुछ दिनों के लिए ही सही अपने गाँव उन के पास जाना पसंद किया करती थी. अगर पापा के पास छोड़ कर आने को समय न होता तो अकेली जाने को तैयार रहती..

उन दिनों आजकल की तरह डर नहीं होता था.लोग एक- दूसरे का आदर किया करते थे.एक दूसरे से कही बात का महत्त्व हुआ करता था .पापा गाँव जाने वाली बस में बिठा कर कंडक्टर को जगह बता दिया करते थे कि वहाँ उतार देना…गाँव को जाने वाली गिनती की बसें होती थीं इसलिए भी अक्सर जान पहचान वाला कोई न कोई मिल ही जाता था इसलिए बस से अकेले जाने में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई..न ही स्टॉप पर उतर कर वहाँ से घर पहुँचने में ही कभी कोई परेशानी हुई .वहाँ  हमारे एक ताऊ जी थे वे हर रोज़ बारह बजे शहर अपनी दुकान के लिए जाया करते थे उनके हाथ सन्देश पहुँच जाता था कि मैं सकुशल पहुँच गयी हूँ.

घुम्मकड़ी और खेल कूद के अलावा गाँव जाने का एक लालच ‘आम’ भी हुआ करते थे. हमारा आम का बाग था. वहाँ जाना और जा कर तरह तरह की आम की किस्मों को देखना- जानना और खाना..कच्चा -पक्का जो मिल जाए ! ‘हाथी चिंघाड’ नाम का आम मैं कभी नहीं भूल सकती क्योंकि उसे देखकर मुझे बहुत अधिक आश्चर्य हुआ था और इतना बड़ा आम!..खुद को आम खाने का चेम्पियन मानने वाली मैं भी उस दिन उसे पूरा नहीं खा सकी थी.

'आम खाने का चेम्पियन' …से याद आया ..कि ..आम खाने का सबसे अधिक मज़ा होता था बाग़ से टूटे ताज़े आम और उन्हें बोरी में भर कर नहर या बम्बे के पानी में डाल दिया जाता था और वहीँ बैठकर खाया जाता …कभी गिनते ही नहीं थे कि कितने खाए ..धड़ी के हिसाब से आम रखे जाते थे…धड़ी यानि ५ किलो …उस से याद आया कि हर गर्मी में घर में भी आम धड़ी के हिसाब से आया करते थे..और बाल्टी में पानी भर कर उन्हें रख दिया जाता था ..और फिर दोपहर के खाने के बाद उन पर अटेक होता था… आम की गुठलियाँ गिन कर देखते कि किसने कितने खाए !   हर बार मैं ही बाज़ी जीतती थी…

अब भी आम का मौसम आते ही मैं हर दिन आम ज़रूर लाती हूँ ..लेकिन अब अकेले खाने पड़ते हैं क्योंकि घर में आम को बर्फी की तरह खाते हैं --बस एक पीस दो पीस..बच्चे भी बहुत शौक़ीन नहीं हैं …मेरे विचार में आम खाने का मज़ा तो तभी है जब सब मिलकर खाएं वो भी चूसकर खाने में अलग ही रस आता है.लेकिन चूसकर खाने को कोई पसंद ही नहीं करता..हाँ ,मुझे देख- देख कर सब हँसते ज़रूर रहते हैं!
Dasheri Aam
यहाँ अलेन में दशहरी सिर्फ मेंगो फेस्टिवल पर ही मिलता है अन्यथा हमें बादामी /सिन्दूरी /अल्फोंसा[जो असली अल्फोंसा होता भी नहीं] से तसल्ली करनी पड़ती है .हम सब को एक ही आम पसंद है यहाँ और वो है बादामी आम.इन सभी के दाम १० दिरहम प्रति किलो के आसपास होते हैं .सस्ते आमों में पाकिस्तानी आम आता है जो ५-६ दिरहम प्रति किलो होता है मेंगो शेक के लिए अच्छा रहता है .
Badami aam
बादामी आम…..अपने उत्तर भारत में शायद इसकी पैदावार नहीं होती..कर्णाटक में होती है .लेकिन यह आम बहुत ही खूबसूरत और मीठा होता है .छिलका इतना पतला कि साथ ही खा सकते हैं :)..इस आम को चूसने के बजाय काट कर खाना बेहतर रहता है .
mango mania alain may2011mango mania lulu alain11
यहाँ की बड़ी मार्केट 'लू लू हायपर मार्केट' में हर साल २ हफ़्तों के लिए ‘मेंगो मेनिया ‘ के नाम से आम उत्सव लगता है इस साल भी  मई के आखिरी हफ्ते में लगा था.जिसमें दुनिया भर के आम रखे /बेचे जाते हैं ,तरह-तरह की प्रतियोगिताएँ होती हैं ..मैंने इन्हीं उत्सवों के दौरान देश-विदेश के कई तरह के आम खा कर देखे लेकिन …दशहरी आम के आगे मुझे कोई पसंद नहीं आता .उसके बाद मेरे लिए दूसरे नंबर पर बादामी आम है .
बाकि आम तो आम हैं कोई भी किस्म का आम  हो ,मेरे लिए तो  हमेशा ही ख़ास है !
आप को कौन सा आम पसंद है ज़रूर बताईयेगा..
mango mania lulu alain11winnersmango mania alain may2011

39 comments:

  1. बातों बातों में आपने आम के बारे में खास जानकारी भी दे दी.
    बहुत रोचक लगा आपका यह लेख.


    सादर

    ReplyDelete
  2. बहुत ही मजेदार लेख था. इसे पड़ते समय ये लगा की ये मेरी ही कहानी है.
    -----------------------------------------
    मुझे जूता लेना है !

    ReplyDelete
  3. ज्यादा आम खाने से फोडे-फुन्सिया भी होती थी मराठी मे उसे घामगणडे कहा करते थे.हमारे नानाजी सप्ताह मे एक बार सभी बच्चों को नीम की पत्ती का थोडा-थोडा रस पिलातेथे और जो नही पीता था उसे आम नही मिलते थे.खूब मज़ा आता था गर्मियों की छ्हुट्टियों का अब तो बस जैसे तैसे कट जाती है.ना ननिहाल का मज़ा और ना दादा-दादी के घर जाने का मज़ा.पता नही कंहा भागे जा रहे हैं हम.

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छी जानकारी मिली ..मुझे दशहरी के बाद लंगड़ा आम पसंद है ..वैसे बादामी आम कभी खाया नहीं ...तो उसके लिए क्या कहूँ ?

    ReplyDelete
  5. जिंदगी मे एक ही फल है भाया
    जिसे मैंने रज रज के है खाया
    आम के सीजन मे ओसतन अपुन डेढ़ मन आम डकारा जाता हूँ आज से नहीं बचपन से आम की तो शक्ल देख कर खट्टा मिठ्ठा फीका बता देता हूँ ,आम का विशेषशज्ञ
    अभी तक खाई जा चुकी वेरायटी सफेदा ,तोतापुरी,नीलम,सिंदूरी ,अलफ़ॉन्ज़ो,बाम्बेग्रीन
    जल्द आ रहे हैं लखनऊ सफेदा दशहरी,नूरा ,चौसा लंगड़ा मालदा फजली रसगुल्ला
    आमो के शौकीन बनो आम बचाओ अभियान
    नए बाग लगाओ ,आज अभी लंच के बाद बारी है सिंदूरी की आ हां
    आज आ गये मलीहाबादी दशहरी -बड़ा आकार हल्का पीला गज़ब का मीठा
    पता नहीं कुदरत ने भी इतने बढ़िया आमों के पेड़ वहां क्यूँ लगा दिए
    वाह वाह यम यम ...
    आम वेरायटी क्रमांक ७ सन २०११
    बकाया वेरायटी ११
    आज चूजे चूजे से लोकल दशहरी आम भी देखे मार्किट मे धक्के से पकाए हुऐ ...१० रूपये किलोग्राम तक बिकेगा लोकल दशहरी आम इस बार गरीब भी खा सकेगा आम ...बधाईयाँ
    आपका अपना आमों का दीवाना दर्शन

    ReplyDelete
  6. शब्द शब्द से रस छलके, अद्भुत है रसराज की रचना।
    फलों का राजा है आम,देख ललचा जाय रसना॥

    ReplyDelete
  7. आम तो अपनी भी कमजोरी है। खासकर चौसा आम तो मेरा फेवरेट है।

    वैसे आम किसे पसंद नहीं होता। शायद इसीलिए इसे फलों का राजा भी कहा गया है।

    ---------
    ब्‍लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
    2 दिन में अखबारों में 3 पोस्‍टें...

    ReplyDelete
  8. आम तो अपनी भी कमजोरी है। खासकर चौसा आम तो मेरा फेवरेट है।

    वैसे आम किसे पसंद नहीं होता। शायद इसीलिए इसे फलों का राजा भी कहा गया है।

    ---------
    ब्‍लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
    2 दिन में अखबारों में 3 पोस्‍टें...

    ReplyDelete
  9. आम स्वयं में खास है। फलों में केवल आम है जिसका टुकड़ा यदि मुंह से गिर जाए,तो आदमी दुबारा उसे मुंह में लेता है। आम इसलिए फलों का राजा है।

    ReplyDelete
  10. आम-ज्ञान तो बहुत ले लिया
    ...अब जो मुंह मे पानी आ रहा है उसके लिए बाजार जाना पड़ेगा

    हंसी के फव्‍वारे में- हाय ये इम्‍तहान

    ReplyDelete
  11. सचमुच कितना रोमांटिक इत्तेफाक है :)
    इधर मैं आमरस में डूबा उधर आप
    आपसे तो आम सन्चूषण प्रतियोगिता का जी चाहता है!
    कबूल है ?
    यह पोस्ट तो आम के कारण ही कितनी ख़ास बन गयी है कि
    क्या बताऊँ ?
    हाँ सभी आम चूसने लायक नहीं होते इस बात से इत्तफाक रखता हूँ !

    ReplyDelete
  12. मुंह में पनी भर आया सजीव फोटो देख-देख कर।
    मेरा प्रिय है हीमसागर और मालदह।

    ReplyDelete
  13. आम के लिये गर्मी भी झेल जाते थे।

    ReplyDelete
  14. दशहरी, बम्बईया और अन्त में लंगड़ा. बस ये तीन बहुत अच्छे लगते हैं. बाकी फिर आम तो आम है.

    ReplyDelete
  15. बहुत ही सुन्दर आलेख...

    आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  16. मजा आ गया आपके इस संस्मरण को शेयर कर.....!!

    ReplyDelete
  17. चूसने वाले आमों की याद दिला दी! वैसे हमें तो लंगड़े के अलावा कुछ और पसन्‍द आता नहीं।

    ReplyDelete
  18. बढ़िया , पोस्ट के शीर्षक से मैंने सोचा ..हर आम आदमी खास है ....पढ़ा तो अच्छा ही लगा ..एक दिन मैं सोच रही थी की गैदरिंग में ये गेम रखा जा सकता है ..आम की किस्में लिखो ...जब याद करने लगी ..तो दशहरी , लंगड़ा , तोतापरी , सफेदा , सिन्दूरी ,चौंसा ही याद आये ,अब आप ने aur दर्शन लाल बवेजा ने भी कुछ इजाफा किया है ..बादामी ,नीलम ,अलफ़ॉन्ज़ो,बाम्बेग्रीन,नूरा , मालदा फजली रसगुल्ला ...
    शुक्रिया

    ReplyDelete
  19. आपने तो मुँह में पानी ला दिया ... पुरानी बातें याद दिला दीं .... चलिए कभी प्रोग्राम बनाते हैं आम खाने का ... हमें भी ऐसे ही मज़ा आता है मिल कर आम खाएँ ...

    ReplyDelete
  20. बहुत रोचक आलेख..

    ReplyDelete
  21. कभी बिहार का मालदह खाकर देखिये अल्पना जी! है तो काटकर खानेवाला लेकिन स्वाद में लाजवाब.

    ReplyDelete
  22. पहले का वह युग अब बीत गया है,अब लोगों को दूसरों के बारे में कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी है.आम खाने के बाद पहले दूध पीने का प्राविधान था जिससे फोड़े-फुंसी होने का भय समाप्त हो जाता था.

    आम अब आम खाद्य -पदार्थ भी नहीं रह गया है-यह अब' खास 'हो गया है और बहुतों के बूते की बात इसका भरपूर आनंद लेना भी नहीं रह गया है.

    ReplyDelete
  23. @ अनिल जी,आप ने सही कहा आज के बच्चों को ननिहाल और दादी के घर का वो मज़ा कहाँ जो हम लिया करते थे..अब उनकी छुट्टियों में उनकी दूसरी प्राथमिकताएँ रहती हैं.जो उनकी पढाई/और आज के समय की ज़रूरत भी बन गयी हैं .
    @संगीता जी बादामी ऍम हमने भी यहीं देखा..उत्तर भारत में सुना ही नहीं कभी इसके बारे में .
    @दर्शन जी,यह तो बड़ी अच्छी खबर दी आप ने कि आम की कीमत नियंत्रित कर दी गई है.
    @जाकिर जी , चौसा भी बहुत मीठा होता है लेकिन यहाँ कहीं दिखा नहीं..न ही किसी मेंगो फेस्टिवल .शायद यहाँ के लिए एक्सपोर्ट नहीं होता.
    @अरविन्द जी,अब आम थोडा कण्ट्रोल कर के खाए जाते हैं इसलिए स्पर्धा में भाग लेने का कोई विचार नहीं....आम अधिक खाने से डायबिटीज़ न हो जाये इस डर से अब कंट्रोल करना ही पड़ता है.
    @शारदा जी ,आम की १०० से अधिक किस्मों के नाम तो उस बोर्ड पर लिखी हुई हैं जो चित्र में लगा हुआ है.
    @दिगंबर जी,आप का स्वागत है सपरिवार अलेन पधारें.
    @देवेन्द्र जी ,बिहार का मालदह!! कभी नहीं खाया ..आप ने कहा है तो इस आम को भी ट्राई किया जायेगा.
    @विजय जी, बचपन में हमें भी आम के बाद हमेशा दूध दिया जाता था और खरबूजे खाने के बाद चीनी का शरबत......मुझे याद है कि हमें कभी फोड़े फुन्सियाँ नहीं हुए.
    कभी चेंपा गले में लगता था तो उसके लिए भी दूध ही इलाज होता था. दर्शन जी ने बताया है कि इस की कीमत इस साल १० रूपये प्रति किलो रखी गयी है तो लगता है इस साल अधिक लोगों तक पहुँच सकेगा.
    ................

    ReplyDelete
  24. @अल्पना जी ,किस शोध के हवाले से आपने यह उद्धृत किया है कि ज्यादा आम खाने से डायबिटीज हो जाती है?
    संदर्भ प्लीज! मुझसे बिना कोई कारण बताये भी असहमत हुआ जा सकता है :) लोग होते ही रहते हैं !

    ReplyDelete
  25. lekh padhkar munh men pani aa gya...aur aap ke is lekh se mujhe hafuj aam ki yad aa gayi...sundar lekh..

    ReplyDelete
  26. @अरविन्द जी ..आप का कहना सही है कि आम खाने से डायबिटीज़ नहीं होती.
    मैं ने अपने कमेन्ट में कहा कि डायबिटीज़ हो जाने के डर से ,आजकल ज्यादा आम खाने से बचती हूँ ,उसका कोई वैज्ञानिक आधार तो नहीं है.बस,इसे मेरा एक precautionary step समझिये .
    क्योंकि मधुमेह अगर परिवार में किसी को पहले से हो तो बाकि सदस्यों को भी सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है.
    दूसरे शब्दों में कहें तो कण्ट्रोल कैलोरी इनटेक पर है.

    ReplyDelete
  27. 'आम' की खासियत के बारे में पढ़ कर
    बहुत अच्छा लगा,,,,
    यूं तो आम खाना लगा ही रहता है
    लेकिन लगता नहीं कि "टपका" आम
    (पेड़ पर ही से पक कर , तैयार, टपका हुआ)
    कभी खाया होगा,,,, यक़ीन नहीं

    ReplyDelete
  28. इधर रोज ही भोजन मे आम का रस अनिवार्य है जब तक सीजन रहेगा तब तक> उसके बगैर भोजन का आनन्द ही नहीं आता।
    जानकारी और लेखन ने मुझे बागों व घरों में लगे आम के पेडों पर से पत्थर मारकर तोडने के दिन भी याद दिलाये...उन आमॉ का स्वाद वाकई बेहतरीन हुआ करता था।
    फिलहाल तो हमे 'हापुस' आम पसंद है...महाराष्ट्र का यह आम विख्यात है। वैसे जब जेब में पैसा कम होता है तो बादाम या केसर, या दशहरी से नीचे कुछ नहीं जमता।

    ReplyDelete
  29. लंगडा,मालदह और कृष्णभोग ये मुझे सबसे प्रिय हैं..आल्फंजो लाख मंहगा सही पर इस का स्वाद मुझे बाके सबके आगे पानी भरता लगता है...

    आपकी पोस्ट ने मुझे भी बचपन में गाँव में आम के बगीचे में बिताये पलों का स्मरण करा दिया...मन में हूक सी उठी है...

    ReplyDelete
  30. aam to mujhe bhi bahut pasand hai...bahut shauk se aam khati hun...aam ke baad lichi mera favorite hai...

    aapke kahne per maine aapni painting scan karke dubara post ki hai...ab aap aaram se dekh sakte ho use :)

    ReplyDelete
  31. Anonymous6/23/2011

    अल्पना जी उत्तर भारत का तो नहीं पता लेकिन मध्य भारत के मध्य प्रदेश में तो बादामी आम बहुत पाया जाता है, अभी तो मैं अमेरिका में रहता हूँ पर मुझे याद है की आम का मौसम आते ही सबसे पहले बाज़ार में बादामी आम ही आता था, दुसरे आम जो मध्य प्रदेश में मार्केट में पाए जाते हैं उनमे दशहरी, लंगड़ा प्रमुख हैं. बादामी milk shake बनाने के लिए अच्छा रहता है, पूर्वी मध्य प्रदेश में नीलम आम भी बहुत ज्यादा मिलता है. मुझे तो आम का ज्यादा शौक कभी नहीं रहा पर आपका लेख पढ़ कर मुझे अपनी बहन की याद आ गयी जिसे आम हद से ज्यादा पसंद है. मुझे याद है गर्मी की छुटियों में हमारे पडोसी उनके गाँव जाया करते थे, वे जब लौट के आते तो उनके चेहरे पर फोड़े फुंसियाँ बहुत होते थे , वे कहते थे उन्हें आम का "तोर" लग गया है. मेरी माताजी उन पर हंसा करती थीं. मेरी माताजी स्कूल teacher थीं उनकी एक स्टुडेंट का खेत भी था, वह हमारे घर आम्रपाली का पौधा ले कर आई थी, आम्रपाली का आम बहुत मीठा होता है, उसे दशहरे और लंगड़ा का breed मानते हैं. आम्रपाली का झाड़ ज्यादा ऊँचा भी नहीं होता है, तक़रीबन ६-७ फीट बस. हमारे आम्रपाली के झाड़ में बहुत मीठे आम्रपाली आम लगा करते थे.

    ReplyDelete
  32. अल्पना जी
    आम की बहुत खास जानकारी दी आपने
    बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
  33. आम खाने का असली मजा तो बचपन में ही आता था.आम के बगीचे से तोड़ कर और बीन कर लाये आमों को पानी भरी बाल्टी में डुबा कर रखना फिर बिना गिने छक कर चूस कर खाना.गरमी की ऋतु आमों के साथ साथ बचपन की स्मृतियाँ भी लेकर आती है.आम पर खास आलेख ने खास कर बचपन की यादों को ताजा कर दिया.

    ReplyDelete
  34. Aam ke upar aapka ye khas lekh bahut achcha laga. Aam ke kya kehane wah to khas hai hee.

    ReplyDelete
  35. सुन्दर प्रस्तुति. बागीचे को देख मन मचल गया.

    ReplyDelete
  36. अल्पना जी,
    नमस्कार,
    आप से गुज़ारिश है कि आप अपने ब्लॉग के हैडर पर ब्लॉग स्लोगन साफ़ नज़र नहीं आता | कृपया इसे ठीक कर लें | आप एडिट HTML पर जा कर ये निम्न कोड फाइंड करें :-
    .Header h1 a {
    color: #8c4a4f;
    }
    .Header .description {
    font: normal normal 16px Georgia, Utopia, 'Palatino Linotype', Palatino, serif;;
    color: #834237;
    }
    ये कोड ढूंडने के बाद इस कोड की जगह ये निम्न कोड पेस्ट कर दें :-
    .Header h1 a {
    color: #C60505;
    font-size: 60px;
    margin-left:20px;
    }
    .Header .description {
    font: normal normal 16px Georgia, Utopia, 'Palatino Linotype', Palatino, serif;;
    color: #C60505;
    font-size: 30px;
    margin-bottom:30px;
    margin-left:20px;
    }

    आपके ब्लॉग स्लोगन का रंग चेंज हो जाएगा |
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  37. Bahut hi sunder! these days mangoes are like a luxury in the US. But we enjoy it till in season. Sometimes it is even better than in India. But the taste of small mangoes bought in tokri by nani ji was amazing. Young and old never said no.

    ReplyDelete

आप के विचारों का स्वागत है.
~~अल्पना