स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

November 3, 2010

'एक वो भी दिवाली थी… एक ये भी दिवाली है'

कार्तिक मास की अमावस क्यों खास होती है यह बताने की आवश्यकता ही नहीं..रोशनी के त्यौहार दिवाली से कौन अनजान होगा ?
कुछ सालों पहले तक दिवाली की तैयारियों में जो उत्साह उमंग दिखाई दिया करता था , क्या वह आज भी कायम है?अगर नहीं तो इसके कई कारण हो सकते हैं.इन संभावित कारणों
को हम आप बहुत कुछ जानते भी हैं..दोहराने से क्या लाभ..?मुख्य कारण तो मंहगाई ही है लेकिन बढ़ते आधुनिकीकरण का प्रभाव रीती रिवाजों के साथ साथ त्योहारों  पर भी पड़ रहा है.बीते कल में और आज में बहुत परिवर्तन आ गया है.आने वाले कल में और कितना परिवर्तन आएगा या कल हम रिवर्स में भी जा सकते हैं?
याद है ….हर साल मिट्टी के १००-१५०  नए दिए लाए जाते ,पानी में उन्हें डुबा कर रखना फिर सुखाना ,रूई की बत्तियाँ बनाना,आस पड़ोस में देने के लिए दिवाली की मिठाई की थाल के लिए नए थाल पोश बनाना,रंगोली के नए डिजाईन तलाशना ,कंदीलें बनाना[अब कंदीलें गायब हैं] ,उन दिनों रेडीमेड कपड़ों का कम चलन था सो महीने दो महीने पहले ही नए कपडे ले कर दर्जी से सिलवाना.. आदि आदि…

हफ्ते भर पहले ही बच्चे हथोड़ा लिए बिंदी वाले पटाखे बजाते नज़र आते..रोकेट चलाने के लिए खाली बोतलें ढूंढ कर रखी  जातीं.पटाखों में भी बहुत बदलाव आया है.घर की पुताई साल में दीवाली पर ही होती थी तो स्कूल से १-२ दिन की छुट्टी इसी बहाने से लिए ली जाती..अब डिस्टेम्पर आदि तरह तरह के आधुनिक एडवांस रंगों ने हर साल की पुताई पर कंट्रोल किया है.मिठाईयाँ नमकीन की कहें तो घर में ही सभी मिष्ठान बनते थे ..लड्डू -मट्ठी तो महीना भर के लिए बन जाते थे और मम्मी को मिठाई पर  ताला भी लगाना पड़ता था [ताला लगाने की वजह मैं “मीठे की चोर”   हुआ करती थी.अब केलोरी फ्री /शुगर  फ्री मिठाई का फैशन है .सच कहूँ तो उन दिनों ‘डिज़ाईनर मिठाईयों/उपहारों ’ का चलन भी इतना नहीं था,घर की बनी मिठाई  ली दी  जाती थी.

सिर्फ दिवाली ही नहीं दिवाली के साथ शुरू हुई त्योहारों की श्रृंखला पास पड़ोस /सम्बन्धी/मित्रों के साथ मिलकर धूम धाम से मनाई जाती थी.
अब हम सिमट रहे हैं अपने अपने दायरों में और दिवाली एस एम् एस /ईग्रीटिंग/मिठाई /उपहारों का औपचारिक आदान प्रदान /औपचारिक दिवाली मिलन समारोह जैसा १-२ घंटे का कार्यक्रम कर अपने दायित्व की इति श्री कर लेते हैं.मैं ने जो कुछ लिखा ज़रुरी नहीं उस से सभी सहमत हों लेकिन लगता ऐसा ही है हम में से अधिकतर  अपने तीज त्यौहार  आज औपचारिकतावश मना रहे हैं.त्योहारों के आने का वो उत्साह /वो उमंग/ वो उल्लास जो १५-२० साल पहले हुआ करता था अब कहाँ देखने  को मिलता है  ?
जो कहना रह गया वो चित्र कह रहे हैं-:
कल
आज
diwalimuddiya diwaliwaxcandlesburningdiwaliwax candles
diwaliRANGOLI diwalistickers
diwalibijalibulbs
 diwali-sweetstogiftdiwalikheelbatasha diwalisweetsDiwaliGiftHamper
diwalicrackers diwalicrcker
 diwali-lakshmi-pooja1diwali puja thali diwalipuja kitdiwalipujacassette
आरती की थाली खुद सजाते थे ,रेडीमेड  की ज़रूरत नहीं होती थी.घर में सभी बैठकर एक साथ विधिवत पूजा किया करते थे .किताब या केसेट चला कर पूजा  की ज़रूरत नहीं होती थी . अब हर चीज़ रेडीमेड मिलती है ,केसेट .सी डी पर ही नहीं ऑनलाइन पूजा भी हो जाती है.
शायद बदलते वक्त की मांग ही यही है ?
'ज्योति मुखरित हो,हर घर के आँगन में,
कोई भी कोना ,ना रजनी का डेरा हो,
खिल जाएँ व्यथित मन,आशा का बसेरा हो,
करें विजय तिमिर पर ,अपने मन के बल से,
दीपों की दीप्ती यह संदेसा लाई है,

करें मिल कर स्वागत,दीवाली आई है.'

“आप सभी को दीपावली  के इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ”
--अल्पना  वर्मा

85 comments:

  1. इंसान अपनी लग्जरी पे ध्यान देने के लिए जो समय दे रहा है उसकी वजह से उन लग्जरीस का उपयोग भी नहीं कर पा रहा है,,. दरअसल मानव बहुत परिवर्तनकारी है.. उसे हर चीज़ स्थायी रूप में पसंद नहीं आती.. परिवर्तन संसार का स्थायी नियम है.. फिर चाहे ये परिवर्तन अच्छे हो या बुरे..
    दिवाली विषय पर अन्य पोस्ट्स से इतर पोस्ट.. बहुत सही विषय चुना

    ReplyDelete
  2. yatharth hi to likha hai aapne
    chtron ne man aandolit kar diya
    kahan diwali kahan holi,matr aupcharikta hi to nibha rahe hain ham sab

    ReplyDelete
  3. बहुत अच्छा लेख!

    आप सब को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
    हम आप सब के मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली की कामना करते हैं.

    ReplyDelete
  4. बचपन की दीवाली याद आ गयी.......आपको और आपके परिवार को दीपावली के शुभ पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ
    regards

    ReplyDelete
  5. सचमुच सोचनीय स्थिति है!
    दीपावली की ढेर सारी शुभकामना!

    ReplyDelete
  6. बहोत ही अच्छा लिखा है आपने, सचमुच बदलते परिवेश के साथ दिवाली मनाने की परंपरा भी बदल गयी है.........
    आपको सपरिवार दिपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  7. 6.5/10

    प्रकाश-पर्व पर ये पोस्ट कुछ अलग और ख़ास सी है.
    देखते-देखते कितना कुछ बदल चुका है.
    चित्र अक्सर हजार शब्दों पर भी भारी पड़ते हैं. आपकी पोस्ट समय के इस बदलाव को बहुत शिद्दत से अहसास कराती है.

    ReplyDelete
  8. दीवाली पर अनगिन दीप पुंजों की ज्योति रश्मियों सी मेरी शुभकामनाएं!
    इस बार हर घर में बने दीपों की एक अल्पना !

    ReplyDelete
  9. आपने तो दीवाली का माहौल उत्पन्न कर दिया है ब्लॉग पर।
    अब .....
    बहुत अच्छी प्रस्तुति। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई! राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
    राजभाषा हिन्दी पर – कविता में बिम्ब!

    ReplyDelete
  10. वाकई में बहुत परिवर्तन आ गया है.पहले १५ दिन पहले से ही बाज़ार सजने शुरू हो जाते थे.और अब धनतेरस के दिन से ही रौनक शुरू होती है वो भी भाई दूज आते आते गायब हो जाएगी.महज एक औपचारिकता मात्र बनकर रह गए हैं त्यौहार;फिर चाहे वो दिवाली हो या होली.
    बहुत ही अच्छा प्रकाश डाला आपने.
    दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  11. हम तो आज भी आप वाली *कल* की दिपावली ही मनाते हे, घर मे बनी मिठाई, मिट्टी के दिये, ओर साधारण सी पुजा, इस बार हमारी पुजा मे हमारा हेरी नही होगा, आठ साल से वो भी बच्चो की तरह से हमारे साथ बेठता ओर पुजा मे पुरा हिस्सा लेता था
    स्परिवार आप को दिपावली की शुभकामनयें

    ReplyDelete
  12. दीपावली के शुभ पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  13. वक़्त के साथ सब तेजी से बदलता जा रहा है ...फास्ट है सब ...दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएं आप को और आपके परिवार को

    ReplyDelete
  14. वक्त सब बदल ही देता है।
    दीप पर्व की हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  15. समय के साथ काफ़ी कुछ बदलता है अल्पना जी...
    सम सामायिक पोस्ट, बहुत अच्छी जानकारी है...
    आपको परिवार सहित दीपावली की शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  16. I agree 100% . Your post has made me nostalgic about the way we used to celebrate with excitement and the deepavali now people celebrate without any spirit!

    ReplyDelete
  17. पूर्णतया दीवालीमय पोस्ट।

    ReplyDelete
  18. bachapan ke din yaad aagaye...
    aapko tathaa aapke pure parivaar ko diwali ki dhero shubhkamanayen aur badhaayeeyaan...

    arsh

    ReplyDelete
  19. Anonymous11/03/2010

    बहुत ही अच्छी पोस्ट लिखी है अल्पना .
    चित्रों ने बहुत कुछ खा दिया.
    पूजन की आरती की केसेट तो हम भी चलाते हैं :).
    सच यही है हम दोनों काम करते हैं और सब मित्रों सम्बन्धियों के पास जाना संभव नहीं होता तो दिवाली गिफ्ट और बधाई कुरियर के द्वारा भेज देते हैं .क्या करें?विकल्प ही नहीं हैं .
    समय के साथ साथ हम अपनी सहूलियतों के हिसाब से त्योहारों को मनाने के तरीके बदल रहे हैं.
    दिवाली की शुभकामनाएँ.
    -रेनू और राज

    ReplyDelete
  20. सच है अल्पना जी. बचपन की दीवाली बहुत याद आती है. आधुनिकता की इस दौड़ में परम्परायें कहीं बहुत पीछे छूट गईं हैं.
    दीवाली मुबारक हो. यहां होतीं, तो मै ज़रूर घर की बनी मिठाई खिलाती.

    ReplyDelete
  21. बेहतरीन आलेख!!



    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल 'समीर'

    ReplyDelete
  22. शुभ पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
    समय समय की बात है !
    .....और मिठाई तो अभी भी मुझे घर की ही बनी अच्छी लगती है |

    ReplyDelete
  23. बहुत ही सुन्दर और उम्दा प्रस्तुती....

    ReplyDelete
  24. Anonymous11/04/2010

    Hi Alpana ,
    Like you post very much.
    Wish you a very happy deepawali and new year.

    -Jyoti Shah

    ReplyDelete
  25. Anonymous11/04/2010

    Hi Alpana ,
    Like your post very much.
    Wish you a very happy deepawali and new year.

    -Jyoti Shah

    ReplyDelete
  26. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!

    ReplyDelete
  27. दीपावली पर आपका विचारोत्तेजक लेख चित्र मन को भा गया शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  28. वक्त का पहिया सब कुछ पीछे छोडता चला जाता है....
    .
    .
    जीवन में प्रकाश ही प्रकाश हो,व्यवहार एवं कर्म की पवित्रता हो,ह्रदय में मधुरता का वास हो, इस मंगलकामना के साथ आपको सपरिवार दीपोत्सव की अनन्त शुभकामनाऎँ!!!

    ReplyDelete
  29. aap bilkul sahi hain,
    par ham aaj bhi kal wali ki diwali manaten hain.

    aapko s-pariwar diwali ki hardik subhkamnaye.

    ReplyDelete
  30. पता नहीं कैसे, आज इस ब्लाग पर पहुंच गया। क्षितिज के पार से व्योम के पार तक। ​कई रचनाएं पढ. डालीं। "आत्मदाह" ने भावुक कर दिया। समय मिले तो ब्लाग-दर्शन अवश्य करें।
    कविता की पंक्ति चार पर​
    ​चला स्वयं को वार कर​
    ​कटा ह्रदय मचल गया​
    ​पाषाण मन पिघल गया।​

    ReplyDelete
  31. bahut sahi aur sundar likha hai tumne ,mujhe banasthali ki yaad aa gayi mera lamba waqt wahi gujra .tumhe bhi dhero badhaiyaan is deep parv ki saparivaar .sandesh ati uttam .

    ReplyDelete
  32. बहुत ही सटीक मुद्दा ऊठाया आपने, कुछ समय पूर्व तक मनाई जाने वाली दीपावली का सजीव खाका आपने खींचा जो बरबस ही उन दिनों में लौटा लेगया. लेकिन आज हमारे त्योंहार भी मार्केटिंग की गिरफ़्त में आचुके हैं, और इनकी पहुंच टी वी इत्यादि के माध्यम से इतनी गहरी है कि हम जान कर भी कुछ नही कर सकते.

    त्योंहारों की मूल भावना खोती जा रही है.

    आपको परिवार एवं इष्ट स्नेहीजनों सहित दीपावली की घणी रामराम.

    रामराम

    ReplyDelete
  33. बहुत सुन्दर पोस्ट !
    सारगर्भित चित्र
    ******************
    परिवर्तन और प्रगति की पगडंडियों पर चलते हुए हम कहाँ से कहाँ तक आ गए, यह बात आपकी पोस्ट बखूबी बता रही है ! विडंबना है कि बदलते समय और माहौल के चलते अब इन पर्वों की परिभाषा भी परिवर्तित होने लगी है।

    पुरातन काल में जिन पर्वों का जन्म समाज उवं राष्ट्र कल्याण के लिए हुआ था। वे पर्व चाहे राष्ट्रीय-सामाजिक-धार्मिक-सांस्कृतिक-ऐतिहासिक आदि कोई भी क्यों न हो उन सब पर बाजार हावी हो चुका है ! इन पर्वों का अर्थ और चेहरा ही बदल गया है !

    हर पीढी का अपना नजरिया होता है जो इन पर्व - परम्पराओं को आगे बढ़ाता है | पिछले दस - बारह वर्षों में ही लगता है कि पूरी पीढ़ी की सोच ही बदल गयी है |
    ********************************

    दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं

    जन जन के मन में हो प्रकाश
    कुटियों में किरणें फूट पड़ें
    अज्ञान तिमिर की राहों पर
    दीपों की टोली निकल पड़ें।

    ऐसा जिस दिन हो जाएगा
    यह जग जगमग हो जाएगा
    है कठिन, मगर होगा ज़रूर
    वह दिन निश्चय ही आएगा।

    ReplyDelete
  34. deepavali par bhavpoorn prastuti.
    deepotsav ki hardik shubhkamnayen.

    ReplyDelete
  35. Your comprehension regarding Changing scenario in Deepawali celebration is right.Happy Diwali.

    ReplyDelete
  36. आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
    मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ

    ReplyDelete
  37. दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  38. wish u a happy diwali and happy new year

    ReplyDelete
  39. bahut hi jivant hai .atharth ke najdik hai.

    ReplyDelete
  40. achha lekh......Happy Diwali!

    ReplyDelete
  41. कहते है न ज्यू ज्यू सभ्यता विकसित हुई....आदमी का ह्रास होता गया .दरअसल अब हम सेल्फ सेंटर्ड हो गए है

    ReplyDelete
  42. दिवाली ही नहीं बल्कि इंसान से जुड़े हर ज़ज्बात और त्योंहार का बाजारीकरण हो गया है और बाजार में मानवीय रिश्तों और भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं होती...आपने सच ही लिखा है.

    दिवाली की शुभकामनाएं
    नीरज

    ReplyDelete
  43. Diwali ki hardik shubhkamnaye.

    ReplyDelete
  44. True!
    Everything is changing nowadays.
    Diwali these days is not the Diwali we celebrated as children.
    We made sweets at home then.
    We buy them now.

    We cleaned up our homes with enthusiasm. I wonder how many still continue with this practice.
    Rangoli was a fine art.
    Today it is mechanised.
    Lighting with lamps had it's own charm. Electrification has killed this practice.

    I am happy about one significant change. I never approved of noisy crackers. The noise this year in Bangalore where I live was considerably toned down and I welcome it.

    Thanks for a nostalgic post.

    Regards
    G Vishwanath

    I have been hearing your songs.
    Your voice is sweet.
    But in the Mera Dil Ne pukaare aajaa Song, you have gone off key at higher pitch. I request you to re record this song. Start off at a lower pitch if necessary.

    ReplyDelete
  45. बदलाव तय ज़रूर है, मगर परंपराओं का निर्वहन भी ज़रूरी है. इन्ही की वजह से हमारी सांस्कृतिक पहचान है.

    अमेरिका के पास क्या है?

    ReplyDelete
  46. alpana di,
    bahut badhya prastuti,baaki aapke khoob-surat chitron ne kah diya.
    bilkul hi yatharth likha hai aapne.

    'ज्योति मुखरित हो,हर घर के आँगन में,
    कोई भी कोना ,ना रजनी का डेरा हो,
    खिल जाएँ व्यथित मन,आशा का बसेरा हो,
    करें विजय तिमिर पर ,अपने मन के बल से,
    दीपों की दीप्ती यह संदेसा लाई है,
    bahut hi sundar kavita ,
    deepawali v bhia-duuj ki aapko bhi hardik badhai.
    shubh kamna
    poonam

    ReplyDelete
  47. समय के साथ जो बदल पाते हैं वही कायम रह पाते हैं . यह जरुरी है की दिवाली भी अपना रंग बदले , वरना आज के पीढ़ी के लिए यह outdated रह जाएगी

    ReplyDelete
  48. ये सही है की अब वो उमंग .. रौशनी .... वो भाव नहीं मिलते ... तेज़ी के इस दौर में त्योहारों की चमक वो मिठास खोती जा रही है ... अपने पन का एहसास ... कम्पूटर की स्क्रीन में खो गया लगता है ..... पर फिर भी त्यौहार का एक आकर्षण तो रहता ही है .... चाहे बाद में अफ़सोस हो जमाने की गति पर .... आपको और परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं ..

    ReplyDelete
  49. बहुत खूब अल्पना जी .

    दीपावली की मंगल कामनाएं ...

    ReplyDelete
  50. बचपन की दीवाली याद आ गयी, दीपावली की मंगल कामनाएं ..

    ReplyDelete
  51. बचपन की दीवाली याद आ गयी, दीपावली की मंगल कामनाएं ..

    ReplyDelete
  52. अब हम सिमट रहे हैं अपने अपने दायरों में और दिवाली एस एम् एस /ईग्रीटिंग/मिठाई /उपहारों का औपचारिक आदान प्रदान /औपचारिक दिवाली मिलन समारोह जैसा १-२ घंटे का कार्यक्रम कर अपने दायित्व की इति श्री कर लेते हैं"
    duality has become our way of life

    ReplyDelete
  53. Deewali - Kal aur aaj ka achcha khaka kheencha hai aapne. aapke sare chitr bahut hee mohak hain.

    ReplyDelete
  54. aaj aur kal ka vistrit vishlesan. purane time ki yad taza ho gayee. pahle jaisi mithas ab kaha milti hai.....

    ReplyDelete
  55. अल्पना जी कहाँ बचपन में ले गयीं आप तो दीपावली की ढेर सारी शुभकामना!

    ReplyDelete
  56. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  57. Aapka kahna bilkul sahee hai,yah fark logon ki sankuchit hotee ja rahee soch ke karan hai.Aaj fir puratan -vaidik paddhati ko apnane ki aavshyakta hai-tabhee aadamber se chhutkara milega.

    ReplyDelete
  58. कल और आज का फ़र्क़
    सिर्फ रस्मों में नहीं बल्कि
    हमारे ज़हनों में भी घर कर चुका है ...

    आपकी प्रस्तुति,,,
    "नायाब प्रस्तुति" ने
    हम सब पढने वालों को
    जाने किन-किन अपने-से बरसों की
    याद दिला दी है ...

    मेले हैं चराग़ों के हर बात निराली है
    वाक़ई ....
    इक वो भी दिवाली थी ,,,
    इक ये भी दिवाली है .....

    ReplyDelete
  59. badhiya....yaad dilane ke liye kal ki deewali ko :)

    waise sach me ham koshish karte hain,uss diwali ko yaad rakhen, abhi bhi...deepak hi jalayen jayen, lights ke badle...:)

    deepawali to beet gayee,fir bhi bahut bahut subhkamnayen....post deewali ke liye....:)

    ReplyDelete
  60. सही कहा अल्‍पना जी, अब सारे त्‍यौहार औपचारिक से हो गये हैं।

    ---------
    मिलिए तंत्र मंत्र वाले गुरूजी से।
    भेदभाव करते हैं वे ही जिनकी पूजा कम है।

    ReplyDelete
  61. आज हर चीज़ ही यूं बनी बनाई मिलती है कि बहुत कम लोग कोशिश करते हैं कि खुद भी कुछ बनाया जाए.

    ReplyDelete
  62. बिलकुल इसी तरह ऐसे ही मन कचोटता है....

    मन की पीड़ा को आपने बहुत प्रभावी ढंग से अभिव्यक्ति दे दी है आपने....

    ReplyDelete
  63. आदरणीया अल्पना जी
    नमस्कार !
    दीवाली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !!
    स्वास्थ्य और कुछ अन्य कारणों से आपकी दीपावली पोस्ट पर अब प्रतिक्रिया दे पा रहा हूं , हालांकि मेल द्वारा दीवाली की शुभकामनाएं प्रेषित की थीं , मिली ही होंगी ।
    'एक वो भी दिवाली थी… एक ये भी दिवाली है' बहुत ही काव्यात्मक शीर्षक के साथ प्रस्तुत यह भावनात्मक आलेख अभिभूत कर गया ।
    लगभग हर कहीं यही स्थिति है , सिमट रहे हैं हम सब ! सुविधाभोगी होते जा रहे हैं दिन प्रतिदिन !
    … फिर भी कुछ आशाएं शेष हैं
    ज्योति मुखरित हो,हर घर के आंगन में,
    कोई भी कोना ,ना रजनी का डेरा हो,
    खिल जाएँ व्यथित मन,आशा का बसेरा हो,
    करें विजय तिमिर पर ,अपने मन के बल से…

    इन सद्भावपूर्ण काव्य पंक्तियों के लिए आभार ! बधाई !
    बहुत बहुत शुभाकांक्षाएं …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  64. हमारे यहाँ तो अभी भी बायीं ओर वाली लिस्ट चलती है ।

    ReplyDelete
  65. परिवेश बदलते हैं व्यवहार बदलते हैं
    जब वक्त बदलता है त्यौहार बदलते हैं

    हमारे अज़ीज़ न बदलें यही प्रार्थना है

    दीपावली की अशेष शुभकामनाओं के साथ..

    -कुमार

    ReplyDelete
  66. Shri Guru Nanak Dev ji de guru purab di lakh lakh vadhaian hoven ji

    ReplyDelete
  67. यही नोस्तल्जिया हमारी दादी नानी को हमारे माता पिता के त्योहार मनाने के तरीके पर होती होगी. परिवर्तन सबसे शाशवत सच है. पर हाँ बिन्दी वाले पटाखे ,कन्दीलों ,थाल्पोश जैसे लुप्तप्राय हो गये हैं पर अभी बायीन तरफ वाली लिस्ट बरकरार है कई घरों में . बहुत सुन्दर पोस्ट .देर से देखी पर देखी तो .

    ReplyDelete
  68. शीर्षक बहुत कुछ कह गया ...आपकी हर पोस्ट गजब की है ...शुक्रिया
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  69. हर साल मिट्टी के १००-१५० नए दिए लाए जाते ,पानी में उन्हें डुबा कर रखना फिर सुखाना ,रूई की बत्तियाँ बनाना,आस पड़ोस में देने के लिए दिवाली की मिठाई की थाल के लिए नए थाल पोश बनाना,रंगोली के नए डिजाईन तलाशना ,कंदीलें बनाना[अब कंदीलें गायब हैं...
    सही कहा अल्पना जी ....अब दिवाली पर बस रश्में पूरी की जाती हैं ....या घर की सफाई बस .....

    हाँ दिलीप जी के ब्लॉग पे आपकी आवाज़ सुनी ......
    बहुत अच्छा गातीं हैं आप .....!!

    ReplyDelete
  70. आपने जितना शब्दों में कहा, उससे ज़्यादा आपके ये चुनिंदा चित्र कह गये हैं...बधाई...आपके इस चयन पर!

    और हाँ...अब तक तो नयी पोस्ट आ ही जानी चाहिए थी...दीवाली बीते काफी वक़्त हो गया है...है न?

    ReplyDelete
  71. बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........

    http://saaransh-ek-ant.blogspot.com

    ReplyDelete
  72. देर से आ रही हूँ आपके ब्लाग पर क्षमा |
    बहुत अच्छा अनुभव लिखा है हम सब भी तो यही अनुभव करते है |मै पिछले कुछ सालो से सोच रही हूँ की अब दीवाली पर कुछ नाश्ता नहीं बनाउंगी किन्तु जैसे ही दीवाली नजदीक आती मन पर कंट्रोल नहीं होता और वही सब दोहराती हूँ जो पिछले ५७ साल साल से देखा और किया है |
    दीवाली ही क्यों ?अब तो शादियों में भी यही सब महसूस होता है कोई उमंग नहीं सबका ठेका दे रखा है शायद खुशियों का भी ?

    ReplyDelete
  73. pahli baar aapake bog par aayaa hun.achchha lga.........bahut sundar abhivyakti

    ReplyDelete
  74. आज आपका ब्लॉग देखा...अच्छा लगा...

    http://veenakesur.blogspot.com/

    ReplyDelete
  75. समय के साथ व्यक्ति इतना व्यस्त हो जाता है कि उसे पीछे मुड़कर देक्ल्हने का समय नहीं मिलता और जब कभी जीवन में वह समय मिलता है, तो अतीत की धुँधली रेखायें साफ होंने लगती हैं और हरपल की स्मृति हृदय में चुभन उत्पन्न करती है, कचोटती है हृदय को। इस प्रकार मानस विकल हो उठता है,,,,,,,,,,,,विह्वल हो उठता है................और कह उठता ह कि

    कोई लौटा दे
    वे मेरे बीते हुए दिन
    वो सूरज की लाली,
    वो बहती हवा
    वो चड़ियों की बोली
    वो कोयल की कूक
    वो घनी अमराई
    वो खुली हुई धूप
    वो बचपन की किलकारियाँ
    वो सखियों का प्यार
    वो बड़ों की डाँट
    तथा उनका दुलार
    वो बचपन हा हठ
    घण्टों मनुहार
    कोई लौटा दे मुझकों
    मेरे बचपन का प्यार
    रंगों और दीयों से सजा
    हर त्योहार।

    ReplyDelete
  76. मेरी दिवाली तो हर रोज होती है..खूब मस्ती.

    ________________
    'पाखी की दुनिया; में पाखी-पाखी...बटरफ्लाई !!

    ReplyDelete
  77. अल्‍पना जी, कुछ समय ब्‍लॉग जगत के लिए भी निकालें। काफी समय हुआ आपकी कोई रचना पढे हुए।

    ---------
    दिल्‍ली के दिलवाले ब्‍लॉगर।

    ReplyDelete
  78. beautiful & very nice post

    ReplyDelete
  79. बहोत खूबी से आपने यह दिवाली का भेद समजाय है.

    ReplyDelete
  80. समयोचित एवं सराहनीय पोस्ट । आपके निष्कर्ष से पूर्णतया सहमत। जीने के लिए अधिक से अधिक संसाधन जुटाने की दौड़ में हम इतने व्यस्त और मदहोश हैं कि "जीना" ही भूलते जा रहे हैं या कहिये जीने के लिये भी हमारे पास समय नहीं है। तीज-त्योहार हो, शादी-विवाह हो या कोई अन्य अवसर, अधिकतर हम रस्म अदाई ही करते हैं। "कल" और "आज" के बीच त्योहारों को मनाने के तरीके में आये बदलाव को तो समझा जा सकता है लेकिन हमारे उत्साह, उल्लास, उमंग में आई कमी के लिये हम किसे दोष देंगे। क्या इसके लिये हमारी निरन्तर घटती संवेदनशीलता, मिलजुल कर उत्सव मनाने की भावना का ह्रास और बढ़ती आत्मकेन्द्रियता और दिखावे की प्रवृति भी ज़िम्मेदार नहीं है।

    ReplyDelete
  81. Anonymous11/11/2014

    अतीत की यादे ताज़ा कर दी

    ReplyDelete

आप के विचारों का स्वागत है.
~~अल्पना