कार्तिक मास की अमावस क्यों खास होती है यह बताने की आवश्यकता ही नहीं..रोशनी के त्यौहार दिवाली से कौन अनजान होगा ?
कुछ सालों पहले तक दिवाली की तैयारियों में जो उत्साह उमंग दिखाई दिया करता था , क्या वह आज भी कायम है?अगर नहीं तो इसके कई कारण हो सकते हैं.इन संभावित कारणों
को हम आप बहुत कुछ जानते भी हैं..दोहराने से क्या लाभ..?मुख्य कारण तो मंहगाई ही है लेकिन बढ़ते आधुनिकीकरण का प्रभाव रीती रिवाजों के साथ साथ त्योहारों पर भी पड़ रहा है.बीते कल में और आज में बहुत परिवर्तन आ गया है.आने वाले कल में और कितना परिवर्तन आएगा या कल हम रिवर्स में भी जा सकते हैं?
याद है ….हर साल मिट्टी के १००-१५० नए दिए लाए जाते ,पानी में उन्हें डुबा कर रखना फिर सुखाना ,रूई की बत्तियाँ बनाना,आस पड़ोस में देने के लिए दिवाली की मिठाई की थाल के लिए नए थाल पोश बनाना,रंगोली के नए डिजाईन तलाशना ,कंदीलें बनाना[अब कंदीलें गायब हैं] ,उन दिनों रेडीमेड कपड़ों का कम चलन था सो महीने दो महीने पहले ही नए कपडे ले कर दर्जी से सिलवाना.. आदि आदि…
हफ्ते भर पहले ही बच्चे हथोड़ा लिए बिंदी वाले पटाखे बजाते नज़र आते..रोकेट चलाने के लिए खाली बोतलें ढूंढ कर रखी जातीं.पटाखों में भी बहुत बदलाव आया है.घर की पुताई साल में दीवाली पर ही होती थी तो स्कूल से १-२ दिन की छुट्टी इसी बहाने से लिए ली जाती..अब डिस्टेम्पर आदि तरह तरह के आधुनिक एडवांस रंगों ने हर साल की पुताई पर कंट्रोल किया है.मिठाईयाँ नमकीन की कहें तो घर में ही सभी मिष्ठान बनते थे ..लड्डू -मट्ठी तो महीना भर के लिए बन जाते थे और मम्मी को मिठाई पर ताला भी लगाना पड़ता था [ताला लगाने की वजह मैं “मीठे की चोर” हुआ करती थी.अब केलोरी फ्री /शुगर फ्री मिठाई का फैशन है .सच कहूँ तो उन दिनों ‘डिज़ाईनर मिठाईयों/उपहारों ’ का चलन भी इतना नहीं था,घर की बनी मिठाई ली दी जाती थी.
सिर्फ दिवाली ही नहीं दिवाली के साथ शुरू हुई त्योहारों की श्रृंखला पास पड़ोस /सम्बन्धी/मित्रों के साथ मिलकर धूम धाम से मनाई जाती थी.
अब हम सिमट रहे हैं अपने अपने दायरों में और दिवाली एस एम् एस /ईग्रीटिंग/मिठाई /उपहारों का औपचारिक आदान प्रदान /औपचारिक दिवाली मिलन समारोह जैसा १-२ घंटे का कार्यक्रम कर अपने दायित्व की इति श्री कर लेते हैं.मैं ने जो कुछ लिखा ज़रुरी नहीं उस से सभी सहमत हों लेकिन लगता ऐसा ही है हम में से अधिकतर अपने तीज त्यौहार आज औपचारिकतावश मना रहे हैं.त्योहारों के आने का वो उत्साह /वो उमंग/ वो उल्लास जो १५-२० साल पहले हुआ करता था अब कहाँ देखने को मिलता है ?
जो कहना रह गया वो चित्र कह रहे हैं-:
'ज्योति मुखरित हो,हर घर के आँगन में, कोई भी कोना ,ना रजनी का डेरा हो, खिल जाएँ व्यथित मन,आशा का बसेरा हो, करें विजय तिमिर पर ,अपने मन के बल से, दीपों की दीप्ती यह संदेसा लाई है, करें मिल कर स्वागत,दीवाली आई है.'
“आप सभी को दीपावली के इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ”
--अल्पना वर्मा |
इंसान अपनी लग्जरी पे ध्यान देने के लिए जो समय दे रहा है उसकी वजह से उन लग्जरीस का उपयोग भी नहीं कर पा रहा है,,. दरअसल मानव बहुत परिवर्तनकारी है.. उसे हर चीज़ स्थायी रूप में पसंद नहीं आती.. परिवर्तन संसार का स्थायी नियम है.. फिर चाहे ये परिवर्तन अच्छे हो या बुरे..
ReplyDeleteदिवाली विषय पर अन्य पोस्ट्स से इतर पोस्ट.. बहुत सही विषय चुना
yatharth hi to likha hai aapne
ReplyDeletechtron ne man aandolit kar diya
kahan diwali kahan holi,matr aupcharikta hi to nibha rahe hain ham sab
बहुत अच्छा लेख!
ReplyDeleteआप सब को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
हम आप सब के मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली की कामना करते हैं.
बचपन की दीवाली याद आ गयी.......आपको और आपके परिवार को दीपावली के शुभ पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteregards
सचमुच सोचनीय स्थिति है!
ReplyDeleteदीपावली की ढेर सारी शुभकामना!
बहोत ही अच्छा लिखा है आपने, सचमुच बदलते परिवेश के साथ दिवाली मनाने की परंपरा भी बदल गयी है.........
ReplyDeleteआपको सपरिवार दिपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ
6.5/10
ReplyDeleteप्रकाश-पर्व पर ये पोस्ट कुछ अलग और ख़ास सी है.
देखते-देखते कितना कुछ बदल चुका है.
चित्र अक्सर हजार शब्दों पर भी भारी पड़ते हैं. आपकी पोस्ट समय के इस बदलाव को बहुत शिद्दत से अहसास कराती है.
दीवाली पर अनगिन दीप पुंजों की ज्योति रश्मियों सी मेरी शुभकामनाएं!
ReplyDeleteइस बार हर घर में बने दीपों की एक अल्पना !
आपने तो दीवाली का माहौल उत्पन्न कर दिया है ब्लॉग पर।
ReplyDeleteअब .....
बहुत अच्छी प्रस्तुति। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई! राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
राजभाषा हिन्दी पर – कविता में बिम्ब!
वाकई में बहुत परिवर्तन आ गया है.पहले १५ दिन पहले से ही बाज़ार सजने शुरू हो जाते थे.और अब धनतेरस के दिन से ही रौनक शुरू होती है वो भी भाई दूज आते आते गायब हो जाएगी.महज एक औपचारिकता मात्र बनकर रह गए हैं त्यौहार;फिर चाहे वो दिवाली हो या होली.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा प्रकाश डाला आपने.
दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं.
हम तो आज भी आप वाली *कल* की दिपावली ही मनाते हे, घर मे बनी मिठाई, मिट्टी के दिये, ओर साधारण सी पुजा, इस बार हमारी पुजा मे हमारा हेरी नही होगा, आठ साल से वो भी बच्चो की तरह से हमारे साथ बेठता ओर पुजा मे पुरा हिस्सा लेता था
ReplyDeleteस्परिवार आप को दिपावली की शुभकामनयें
दीपावली के शुभ पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteवक़्त के साथ सब तेजी से बदलता जा रहा है ...फास्ट है सब ...दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएं आप को और आपके परिवार को
ReplyDeleteवक्त सब बदल ही देता है।
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक बधाई।
समय के साथ काफ़ी कुछ बदलता है अल्पना जी...
ReplyDeleteसम सामायिक पोस्ट, बहुत अच्छी जानकारी है...
आपको परिवार सहित दीपावली की शुभकामनाएं.
I agree 100% . Your post has made me nostalgic about the way we used to celebrate with excitement and the deepavali now people celebrate without any spirit!
ReplyDeleteसमय की महिमा है..
ReplyDeleteपूर्णतया दीवालीमय पोस्ट।
ReplyDeletebachapan ke din yaad aagaye...
ReplyDeleteaapko tathaa aapke pure parivaar ko diwali ki dhero shubhkamanayen aur badhaayeeyaan...
arsh
बहुत ही अच्छी पोस्ट लिखी है अल्पना .
ReplyDeleteचित्रों ने बहुत कुछ खा दिया.
पूजन की आरती की केसेट तो हम भी चलाते हैं :).
सच यही है हम दोनों काम करते हैं और सब मित्रों सम्बन्धियों के पास जाना संभव नहीं होता तो दिवाली गिफ्ट और बधाई कुरियर के द्वारा भेज देते हैं .क्या करें?विकल्प ही नहीं हैं .
समय के साथ साथ हम अपनी सहूलियतों के हिसाब से त्योहारों को मनाने के तरीके बदल रहे हैं.
दिवाली की शुभकामनाएँ.
-रेनू और राज
सच है अल्पना जी. बचपन की दीवाली बहुत याद आती है. आधुनिकता की इस दौड़ में परम्परायें कहीं बहुत पीछे छूट गईं हैं.
ReplyDeleteदीवाली मुबारक हो. यहां होतीं, तो मै ज़रूर घर की बनी मिठाई खिलाती.
बेहतरीन आलेख!!
ReplyDeleteसुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
शुभ पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteसमय समय की बात है !
.....और मिठाई तो अभी भी मुझे घर की ही बनी अच्छी लगती है |
बहुत ही सुन्दर और उम्दा प्रस्तुती....
ReplyDeleteHi Alpana ,
ReplyDeleteLike you post very much.
Wish you a very happy deepawali and new year.
-Jyoti Shah
Hi Alpana ,
ReplyDeleteLike your post very much.
Wish you a very happy deepawali and new year.
-Jyoti Shah
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteदीपावली पर आपका विचारोत्तेजक लेख चित्र मन को भा गया शुभकामनाएँ
ReplyDeleteवक्त का पहिया सब कुछ पीछे छोडता चला जाता है....
ReplyDelete.
.
जीवन में प्रकाश ही प्रकाश हो,व्यवहार एवं कर्म की पवित्रता हो,ह्रदय में मधुरता का वास हो, इस मंगलकामना के साथ आपको सपरिवार दीपोत्सव की अनन्त शुभकामनाऎँ!!!
aap bilkul sahi hain,
ReplyDeletepar ham aaj bhi kal wali ki diwali manaten hain.
aapko s-pariwar diwali ki hardik subhkamnaye.
पता नहीं कैसे, आज इस ब्लाग पर पहुंच गया। क्षितिज के पार से व्योम के पार तक। कई रचनाएं पढ. डालीं। "आत्मदाह" ने भावुक कर दिया। समय मिले तो ब्लाग-दर्शन अवश्य करें।
ReplyDeleteकविता की पंक्ति चार पर
चला स्वयं को वार कर
कटा ह्रदय मचल गया
पाषाण मन पिघल गया।
bahut sahi aur sundar likha hai tumne ,mujhe banasthali ki yaad aa gayi mera lamba waqt wahi gujra .tumhe bhi dhero badhaiyaan is deep parv ki saparivaar .sandesh ati uttam .
ReplyDeleteबहुत ही सटीक मुद्दा ऊठाया आपने, कुछ समय पूर्व तक मनाई जाने वाली दीपावली का सजीव खाका आपने खींचा जो बरबस ही उन दिनों में लौटा लेगया. लेकिन आज हमारे त्योंहार भी मार्केटिंग की गिरफ़्त में आचुके हैं, और इनकी पहुंच टी वी इत्यादि के माध्यम से इतनी गहरी है कि हम जान कर भी कुछ नही कर सकते.
ReplyDeleteत्योंहारों की मूल भावना खोती जा रही है.
आपको परिवार एवं इष्ट स्नेहीजनों सहित दीपावली की घणी रामराम.
रामराम
बहुत सुन्दर पोस्ट !
ReplyDeleteसारगर्भित चित्र
******************
परिवर्तन और प्रगति की पगडंडियों पर चलते हुए हम कहाँ से कहाँ तक आ गए, यह बात आपकी पोस्ट बखूबी बता रही है ! विडंबना है कि बदलते समय और माहौल के चलते अब इन पर्वों की परिभाषा भी परिवर्तित होने लगी है।
पुरातन काल में जिन पर्वों का जन्म समाज उवं राष्ट्र कल्याण के लिए हुआ था। वे पर्व चाहे राष्ट्रीय-सामाजिक-धार्मिक-सांस्कृतिक-ऐतिहासिक आदि कोई भी क्यों न हो उन सब पर बाजार हावी हो चुका है ! इन पर्वों का अर्थ और चेहरा ही बदल गया है !
हर पीढी का अपना नजरिया होता है जो इन पर्व - परम्पराओं को आगे बढ़ाता है | पिछले दस - बारह वर्षों में ही लगता है कि पूरी पीढ़ी की सोच ही बदल गयी है |
********************************
दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं
जन जन के मन में हो प्रकाश
कुटियों में किरणें फूट पड़ें
अज्ञान तिमिर की राहों पर
दीपों की टोली निकल पड़ें।
ऐसा जिस दिन हो जाएगा
यह जग जगमग हो जाएगा
है कठिन, मगर होगा ज़रूर
वह दिन निश्चय ही आएगा।
deepavali par bhavpoorn prastuti.
ReplyDeletedeepotsav ki hardik shubhkamnayen.
Your comprehension regarding Changing scenario in Deepawali celebration is right.Happy Diwali.
ReplyDeleteआप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
ReplyDeleteमैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeletewish u a happy diwali and happy new year
ReplyDeletebahut hi jivant hai .atharth ke najdik hai.
ReplyDeleteachha lekh......Happy Diwali!
ReplyDeleteकहते है न ज्यू ज्यू सभ्यता विकसित हुई....आदमी का ह्रास होता गया .दरअसल अब हम सेल्फ सेंटर्ड हो गए है
ReplyDeleteदिवाली ही नहीं बल्कि इंसान से जुड़े हर ज़ज्बात और त्योंहार का बाजारीकरण हो गया है और बाजार में मानवीय रिश्तों और भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं होती...आपने सच ही लिखा है.
ReplyDeleteदिवाली की शुभकामनाएं
नीरज
Diwali ki hardik shubhkamnaye.
ReplyDeleteTrue!
ReplyDeleteEverything is changing nowadays.
Diwali these days is not the Diwali we celebrated as children.
We made sweets at home then.
We buy them now.
We cleaned up our homes with enthusiasm. I wonder how many still continue with this practice.
Rangoli was a fine art.
Today it is mechanised.
Lighting with lamps had it's own charm. Electrification has killed this practice.
I am happy about one significant change. I never approved of noisy crackers. The noise this year in Bangalore where I live was considerably toned down and I welcome it.
Thanks for a nostalgic post.
Regards
G Vishwanath
I have been hearing your songs.
Your voice is sweet.
But in the Mera Dil Ne pukaare aajaa Song, you have gone off key at higher pitch. I request you to re record this song. Start off at a lower pitch if necessary.
बदलाव तो तय हैं
ReplyDeleteमहाजन की भारत-यात्रा
बदलाव तय ज़रूर है, मगर परंपराओं का निर्वहन भी ज़रूरी है. इन्ही की वजह से हमारी सांस्कृतिक पहचान है.
ReplyDeleteअमेरिका के पास क्या है?
alpana di,
ReplyDeletebahut badhya prastuti,baaki aapke khoob-surat chitron ne kah diya.
bilkul hi yatharth likha hai aapne.
'ज्योति मुखरित हो,हर घर के आँगन में,
कोई भी कोना ,ना रजनी का डेरा हो,
खिल जाएँ व्यथित मन,आशा का बसेरा हो,
करें विजय तिमिर पर ,अपने मन के बल से,
दीपों की दीप्ती यह संदेसा लाई है,
bahut hi sundar kavita ,
deepawali v bhia-duuj ki aapko bhi hardik badhai.
shubh kamna
poonam
समय के साथ जो बदल पाते हैं वही कायम रह पाते हैं . यह जरुरी है की दिवाली भी अपना रंग बदले , वरना आज के पीढ़ी के लिए यह outdated रह जाएगी
ReplyDeleteये सही है की अब वो उमंग .. रौशनी .... वो भाव नहीं मिलते ... तेज़ी के इस दौर में त्योहारों की चमक वो मिठास खोती जा रही है ... अपने पन का एहसास ... कम्पूटर की स्क्रीन में खो गया लगता है ..... पर फिर भी त्यौहार का एक आकर्षण तो रहता ही है .... चाहे बाद में अफ़सोस हो जमाने की गति पर .... आपको और परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं ..
ReplyDeleteबहुत खूब अल्पना जी .
ReplyDeleteदीपावली की मंगल कामनाएं ...
बचपन की दीवाली याद आ गयी, दीपावली की मंगल कामनाएं ..
ReplyDeleteबचपन की दीवाली याद आ गयी, दीपावली की मंगल कामनाएं ..
ReplyDeleteअब हम सिमट रहे हैं अपने अपने दायरों में और दिवाली एस एम् एस /ईग्रीटिंग/मिठाई /उपहारों का औपचारिक आदान प्रदान /औपचारिक दिवाली मिलन समारोह जैसा १-२ घंटे का कार्यक्रम कर अपने दायित्व की इति श्री कर लेते हैं"
ReplyDeleteduality has become our way of life
Deewali - Kal aur aaj ka achcha khaka kheencha hai aapne. aapke sare chitr bahut hee mohak hain.
ReplyDeleteaaj aur kal ka vistrit vishlesan. purane time ki yad taza ho gayee. pahle jaisi mithas ab kaha milti hai.....
ReplyDeleteअल्पना जी कहाँ बचपन में ले गयीं आप तो दीपावली की ढेर सारी शुभकामना!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteAapka kahna bilkul sahee hai,yah fark logon ki sankuchit hotee ja rahee soch ke karan hai.Aaj fir puratan -vaidik paddhati ko apnane ki aavshyakta hai-tabhee aadamber se chhutkara milega.
ReplyDeleteकल और आज का फ़र्क़
ReplyDeleteसिर्फ रस्मों में नहीं बल्कि
हमारे ज़हनों में भी घर कर चुका है ...
आपकी प्रस्तुति,,,
"नायाब प्रस्तुति" ने
हम सब पढने वालों को
जाने किन-किन अपने-से बरसों की
याद दिला दी है ...
मेले हैं चराग़ों के हर बात निराली है
वाक़ई ....
इक वो भी दिवाली थी ,,,
इक ये भी दिवाली है .....
badhiya....yaad dilane ke liye kal ki deewali ko :)
ReplyDeletewaise sach me ham koshish karte hain,uss diwali ko yaad rakhen, abhi bhi...deepak hi jalayen jayen, lights ke badle...:)
deepawali to beet gayee,fir bhi bahut bahut subhkamnayen....post deewali ke liye....:)
सही कहा अल्पना जी, अब सारे त्यौहार औपचारिक से हो गये हैं।
ReplyDelete---------
मिलिए तंत्र मंत्र वाले गुरूजी से।
भेदभाव करते हैं वे ही जिनकी पूजा कम है।
आज हर चीज़ ही यूं बनी बनाई मिलती है कि बहुत कम लोग कोशिश करते हैं कि खुद भी कुछ बनाया जाए.
ReplyDeleteबिलकुल इसी तरह ऐसे ही मन कचोटता है....
ReplyDeleteमन की पीड़ा को आपने बहुत प्रभावी ढंग से अभिव्यक्ति दे दी है आपने....
आदरणीया अल्पना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
दीवाली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !!
स्वास्थ्य और कुछ अन्य कारणों से आपकी दीपावली पोस्ट पर अब प्रतिक्रिया दे पा रहा हूं , हालांकि मेल द्वारा दीवाली की शुभकामनाएं प्रेषित की थीं , मिली ही होंगी ।
'एक वो भी दिवाली थी… एक ये भी दिवाली है' बहुत ही काव्यात्मक शीर्षक के साथ प्रस्तुत यह भावनात्मक आलेख अभिभूत कर गया ।
लगभग हर कहीं यही स्थिति है , सिमट रहे हैं हम सब ! सुविधाभोगी होते जा रहे हैं दिन प्रतिदिन !
… फिर भी कुछ आशाएं शेष हैं
ज्योति मुखरित हो,हर घर के आंगन में,
कोई भी कोना ,ना रजनी का डेरा हो,
खिल जाएँ व्यथित मन,आशा का बसेरा हो,
करें विजय तिमिर पर ,अपने मन के बल से…
इन सद्भावपूर्ण काव्य पंक्तियों के लिए आभार ! बधाई !
बहुत बहुत शुभाकांक्षाएं …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हमारे यहाँ तो अभी भी बायीं ओर वाली लिस्ट चलती है ।
ReplyDeleteपरिवेश बदलते हैं व्यवहार बदलते हैं
ReplyDeleteजब वक्त बदलता है त्यौहार बदलते हैं
हमारे अज़ीज़ न बदलें यही प्रार्थना है
दीपावली की अशेष शुभकामनाओं के साथ..
-कुमार
Shri Guru Nanak Dev ji de guru purab di lakh lakh vadhaian hoven ji
ReplyDeleteयही नोस्तल्जिया हमारी दादी नानी को हमारे माता पिता के त्योहार मनाने के तरीके पर होती होगी. परिवर्तन सबसे शाशवत सच है. पर हाँ बिन्दी वाले पटाखे ,कन्दीलों ,थाल्पोश जैसे लुप्तप्राय हो गये हैं पर अभी बायीन तरफ वाली लिस्ट बरकरार है कई घरों में . बहुत सुन्दर पोस्ट .देर से देखी पर देखी तो .
ReplyDeleteशीर्षक बहुत कुछ कह गया ...आपकी हर पोस्ट गजब की है ...शुक्रिया
ReplyDeleteचलते -चलते पर आपका स्वागत है
हर साल मिट्टी के १००-१५० नए दिए लाए जाते ,पानी में उन्हें डुबा कर रखना फिर सुखाना ,रूई की बत्तियाँ बनाना,आस पड़ोस में देने के लिए दिवाली की मिठाई की थाल के लिए नए थाल पोश बनाना,रंगोली के नए डिजाईन तलाशना ,कंदीलें बनाना[अब कंदीलें गायब हैं...
ReplyDeleteसही कहा अल्पना जी ....अब दिवाली पर बस रश्में पूरी की जाती हैं ....या घर की सफाई बस .....
हाँ दिलीप जी के ब्लॉग पे आपकी आवाज़ सुनी ......
बहुत अच्छा गातीं हैं आप .....!!
bahut sunder lekh.
ReplyDeleteआपने जितना शब्दों में कहा, उससे ज़्यादा आपके ये चुनिंदा चित्र कह गये हैं...बधाई...आपके इस चयन पर!
ReplyDeleteऔर हाँ...अब तक तो नयी पोस्ट आ ही जानी चाहिए थी...दीवाली बीते काफी वक़्त हो गया है...है न?
बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........
ReplyDeletehttp://saaransh-ek-ant.blogspot.com
देर से आ रही हूँ आपके ब्लाग पर क्षमा |
ReplyDeleteबहुत अच्छा अनुभव लिखा है हम सब भी तो यही अनुभव करते है |मै पिछले कुछ सालो से सोच रही हूँ की अब दीवाली पर कुछ नाश्ता नहीं बनाउंगी किन्तु जैसे ही दीवाली नजदीक आती मन पर कंट्रोल नहीं होता और वही सब दोहराती हूँ जो पिछले ५७ साल साल से देखा और किया है |
दीवाली ही क्यों ?अब तो शादियों में भी यही सब महसूस होता है कोई उमंग नहीं सबका ठेका दे रखा है शायद खुशियों का भी ?
pahli baar aapake bog par aayaa hun.achchha lga.........bahut sundar abhivyakti
ReplyDeleteआज आपका ब्लॉग देखा...अच्छा लगा...
ReplyDeletehttp://veenakesur.blogspot.com/
समय के साथ व्यक्ति इतना व्यस्त हो जाता है कि उसे पीछे मुड़कर देक्ल्हने का समय नहीं मिलता और जब कभी जीवन में वह समय मिलता है, तो अतीत की धुँधली रेखायें साफ होंने लगती हैं और हरपल की स्मृति हृदय में चुभन उत्पन्न करती है, कचोटती है हृदय को। इस प्रकार मानस विकल हो उठता है,,,,,,,,,,,,विह्वल हो उठता है................और कह उठता ह कि
ReplyDeleteकोई लौटा दे
वे मेरे बीते हुए दिन
वो सूरज की लाली,
वो बहती हवा
वो चड़ियों की बोली
वो कोयल की कूक
वो घनी अमराई
वो खुली हुई धूप
वो बचपन की किलकारियाँ
वो सखियों का प्यार
वो बड़ों की डाँट
तथा उनका दुलार
वो बचपन हा हठ
घण्टों मनुहार
कोई लौटा दे मुझकों
मेरे बचपन का प्यार
रंगों और दीयों से सजा
हर त्योहार।
मेरी दिवाली तो हर रोज होती है..खूब मस्ती.
ReplyDelete________________
'पाखी की दुनिया; में पाखी-पाखी...बटरफ्लाई !!
अल्पना जी, कुछ समय ब्लॉग जगत के लिए भी निकालें। काफी समय हुआ आपकी कोई रचना पढे हुए।
ReplyDelete---------
दिल्ली के दिलवाले ब्लॉगर।
shabd shabd sach..
ReplyDeletebeautiful & very nice post
ReplyDeleteबहोत खूबी से आपने यह दिवाली का भेद समजाय है.
ReplyDeleteसमयोचित एवं सराहनीय पोस्ट । आपके निष्कर्ष से पूर्णतया सहमत। जीने के लिए अधिक से अधिक संसाधन जुटाने की दौड़ में हम इतने व्यस्त और मदहोश हैं कि "जीना" ही भूलते जा रहे हैं या कहिये जीने के लिये भी हमारे पास समय नहीं है। तीज-त्योहार हो, शादी-विवाह हो या कोई अन्य अवसर, अधिकतर हम रस्म अदाई ही करते हैं। "कल" और "आज" के बीच त्योहारों को मनाने के तरीके में आये बदलाव को तो समझा जा सकता है लेकिन हमारे उत्साह, उल्लास, उमंग में आई कमी के लिये हम किसे दोष देंगे। क्या इसके लिये हमारी निरन्तर घटती संवेदनशीलता, मिलजुल कर उत्सव मनाने की भावना का ह्रास और बढ़ती आत्मकेन्द्रियता और दिखावे की प्रवृति भी ज़िम्मेदार नहीं है।
ReplyDeleteअतीत की यादे ताज़ा कर दी
ReplyDelete