[चित्र साभार - गूगल ] वक़्त को कई बार रूप बदलते देखा है. |
चलते चलते एक त्रिवेणी लिखने की कोशिश -: वो चाँद ही था जो ले जाता था पैग़ाम मेरे , सुना है रुसवा बहुत चांदनी ने किया है उसे! |
'वन्दे भारत मिशन' के तहत स्वदेश वापसी Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...
[चित्र साभार - गूगल ] वक़्त को कई बार रूप बदलते देखा है. |
चलते चलते एक त्रिवेणी लिखने की कोशिश -: वो चाँद ही था जो ले जाता था पैग़ाम मेरे , सुना है रुसवा बहुत चांदनी ने किया है उसे! |
तीनो पन्ने लाजवाब
ReplyDelete'यह हमारा दोहरा व्यवहार है या विरासत में मिले ये शब्द जिन्हें चाहे अनचाहे दोहराते रहते हैं हम पीढ़ी दर पीढ़ी ,हर पीढ़ी ?'
बचपन वो शै है जिसे जिन्दा रखना जरूरी है.
सभी तो वेद वाक्य /सूत्र है जीवन के ....क्या कहूं किस पर कहूं -
ReplyDeleteहम खुद भीतर से बच्चे बने रहना चाहते हैं मगर अपने बच्चों को कायदे सिखाते हैं ऐसा करो वैसा न करो .तुम अब बड़े हो गए हो!
(सहज ही कितने मार्के की बात कही आपने )
और हाँ चांदनी ही जब चान्द की रुसवाई में लग जाय तो कहीं यह कयामत का सन्देश तो नहीं ?
त्रिवेणी में सरस्वती का यह तो प्रछन्न कहाँ, पूरा उत्फुल्ल प्रवाह है !
वो चाँद ही था जो ले जाता था पैग़ाम मेरे ,
ReplyDeleteअब तो वो भी ,सुनता नहीं सदायें मेरी,
सुना है रुसवा बहुत चांदनी ने किया है उसे!
--हमने तो सुना उस रोज दिवाली ही...
रात मावस की काली थी...
-बेहतरीन प्रस्तुति!!
बहुत बढ़िया रहे आपके तीनों पन्ने!
ReplyDeleteतीनों पन्ने, तीन सत्य ।
ReplyDeleteक्या हौसला करें, अब तो फैसला नहीं होता ।
तीन पन्नों मे सारा जहाँ .........अनुपम .
ReplyDeleteये शायद मेरा मन ही है जो वक़्त की श़क्ल धर लेता है.
ReplyDeleteमुझे तो पहले पन्ने का यही गूढ सारांश लगता है. मेरी निजी सोच कहलें या अनुभव कहलें..मुझे तिनों अवस्थाएं मन द्वारा ही सम्चालित लगती हैं. शायद हमारे मन के अंदर का अबोध शिशु कभी नही मरता और जिस रोज मर गया उस रोज चलती फ़िरती लाश के सिवा इंसान कुछ नही बचता.
दुसरे पन्ने से - हां यह सही है कि कागज की तस्वीरे कुछ ज्यादा मायने रखती है डिजिटल के मुकाबले. उनके पीले पदते पन्ने कितना कुछ कह जाते हैं?
और त्रिवेणी तो लाजवाब है : आज कल चांदनी का काम ही यही रह गया है.
कुल मिलाकर आज के तीनों पन्ने सुंदरतम और उत्कृष्ट सृजन है.
रामराम.
वर्तनी सुधार :
ReplyDeleteतिनों = तीनों
सम्चालित = संचालित
पदते = पडते
पढा जाये!
रामराम.
बेहतरीन , लाजवाब, उम्दा , बहुत खूब ।
ReplyDeleteत्रिवेणी बहुत बढ़िया है. लाजबाव.
ReplyDeleteनमस्कार ,बहुत सुंदर और सच्ची बातें,
ReplyDeleteब्धाई हो
सच बोलने का हौसला वाक़ई सब में नहीं होता
हर पन्ना अपनी कहानी बयान करता है.हमारे मनोभावों को उजागर करता यह पोस्ट सुन्दर बन पडा है.
ReplyDeleteतीसरे पन्ने की पन्क्तियां बहुत अच्छी लगी.
चलते चलते--- तसवीरों के माध्यम से प्रस्तुती सुन्दर बन पडी है.तस्वीर स्थिर तो होते है लेकिन बहुत कुछ अनकहे रूप मे बयान कर जाते है.
सुबह सुबह तीन पन्नों में लिखी प्यारी और गहरी बातें पढने को मिल सच सुबह की ताजगी महसूस हो रही है। अभी इसी से मिलता जुलता एक विचार एक जगह लिख डाला है। और आपकी त्रिवेणी का तो जवाब नही। खूबसूरत।
ReplyDeleteतीसरे पन्ने का चित्र सबसे सुन्दर है ..मेरे मन के एलबम मे सहेज कर रख लिया है ..देखा करूंगा हर शाम ।
ReplyDeleteयादें चीर जाती हैं कहीं भीतर तक दिल को ...दिल में दर्द का दरिया जो जमी बरफ सा था अब तक .....अहसासों की गरमाहट से पिघलने लगता है.
ReplyDeleteकैसे समाये हुए हैं इतना सब कुछ हम अपने भीतर ?
आँखों में पलकों के पीछे छुपा धुंआ न जाने कैसे बादल बन बरसने लगता है!
वाह......और आह का संगम.
ये तस्वीर वाली बात बिल्कुल सही कही आपने, कोई प्रोब्लम हो, तो फ़ोर्मेट करते ही सब कुछ छूमंतर हो जाता है..
त्रिवेणी भी बहुत अच्छी रही.
वो चाँद ही था जो ले जाता था पैग़ाम मेरे अब तो वो भी ,सुनता नहीं सदायें मेरी,क्योंकि अब जाते नहीं हमारा उससे छत पर बतियाने. सब कुछ ई जो हो गया है, सभी के पते अब ईमेल आईडी हैं और पैगाम भी अब ई मेल हैं.
ReplyDeleteतीनो पन्ने लाजवाब दिल को छू गये। आभार्
ReplyDeleteकई बार
ReplyDeleteसोचता हूँ
कि
फलक पर
सीडीया लगा कर
चढ़ जायूँ
ओर जोर- जोर
से चिल्लाकर पूंछू
....कोई है ?
डिजीटल कैमेरे की आपने सही कही.
ReplyDeleteकल तक मैं भी यही करता था कि बहुत हुआ तो डिजीटल फ़ोटो लैपटाप में डालीं व भूल गए.
लेकिन एक बार मैंने रीडर्स डाइजेस्ट में किसी का एक लेख पढ़ा ठीक इसी मुद्दे पर.. तब से मैं हर यात्रा आदि के बाद फ़ोटो पैनड्राइव में डाल कर दुकान पर ले जा, अच्छे बच्चों की तरह डवैलप करवा लाता हूं :)
कुछ बताते हैं,कुछ छुपाते हैं,पूरा सच बताने का किस का हौसला होता है अल्पना जी!
ReplyDeleteत्रिवेणी सहित यह पोस्ट बहुत ही अच्छी प्रस्तुति लगी .
kadam dar kadam ke faaslon mein bahut kuch mila.......jo dil ke paas simatkar baith gaya
ReplyDeletetino panno me khas kar dusaraa panna mujhe jyada karib lagaa... aisaa lagaa sath hai mere... triveni bhi... padh to liya magar sunane ke liye.. :)
ReplyDeletearsh
are haan manish ji ne ek khubsurat geet post kiyaa hai ... aap jarur sune fir uspe baat karnege...
ReplyDeletearsh
फ्लैशबैक कैमरा
ReplyDeleteबचपन के चित्र घूमते हैं
काश खींच सकता
उन बीते पलों को !
मुझे नहीं पता ये पंक्तियाँ क्यों यहाँ आ उतरीं तीन पन्नों की सोहबत में।
त्रिवेणी में चांदनी का चाँद को रुसवा किया जाना वाकई ग़ज़ब का अनुभव है! पाठकों और चाँद, दोनों को बेहद संजीदा अनुभव दिया है आपने... तहेदिल से इस्तकबाल...
ReplyDeleteशुभ भाव
राम कृष्ण गौतम "राम"
teen panne...
ReplyDeletebarsoN-barsoN ki baat kr gaye
aur,,,
"kaise smaaye hue haiN itna kuchh
hm sb apne bheetar.."
shayad..
na-qaabil-e-bayaan
lekin.. apka likha...
na-qaabil-e-faraamosh
(avismaraneey)
and thanks
thanks for the consideration
regards,,,
'muflis'
अद्भुत शैली,
ReplyDeleteसहज भाषा,
गम्भीर भाव .
आपके तीनो पन्ने बहुत जाने पहचाने से लगे....लगा हरेक जिंदगी के अपने ही पल हैं!
ReplyDeleteतीनों ही पन्ने भाये, लेकिन आखिरी पन्ने की त्रिवेनी ने सब कसर पूरी कर दी। ले जा रहा हूँ चुरा कर इसे, मैम...
ReplyDeleteन जाने क्यूँ आपकी ये पोस्ट पढकर कहीं बहुत पहले किसी पुस्तक में पढी ये चन्द पंक्तियाँ दिमाग में गूंजने लगी कि "मन के विषय में मस्तिष्क सदैव झूठ बोलता है। मस्तिष्क इस मन को अभिनय करना सिखाता है--और जब कभी मन उस अभिनय को भूलने लगता है, तभी अपने तर्कों से मस्तिष्क उसके ऊपर प्रहार करने लगता है। मस्तिष्क मानता नहीं और लगा रहता है मन को दाव पेंच सिखाने में--इधर मन भी एक फूहड खिलाडी की भान्ती बस हारता चला जाता है"
ReplyDeleteमैं नहीं जानता कि उपरोक्त पंक्तियों कि आपकी इस पोस्ट के साथ कोई संगति बैठती है या नहीं...बस मन में आया तो लिख दिया...शायद यहाँ भी मस्तिष्क इस मन पर अपना प्रहार कर गया :-)
अल्पना मैडम, पन्ने तीन ही क्यूं हैं? हर पन्ने ने प्यास बढ़ा दी है। तीसरा पन्ना तो अल्टीमेट है। बहुत अच्छे लगे।
ReplyDeleteteenon panne behatareen.sunder bhavnayen sanjoye.
ReplyDelete....तीन पन्नों के रूप में अभिव्यक्ति कुछ "डिफ़रेंट" है ..... प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!!
ReplyDeleteअल्पना जी बधाई हो इस खुबसूरत पोस्ट की यहाँ तो हर पन्ना अपना सा लगा जैसे किसी ने मेरी ही चोरी पकड़ ली हो और अपने दिल के कैमरे में कैद कर ली हो
ReplyDeleteआपके ये बिल्वपत्र से तीन पन्ने बहुत ही खूबसूरत लगे जैसे मन के भाव आपने कागज पर उतार दिये ।
ReplyDeleteऔर त्रिवणी
वो चाँद ही था जो ले जाता था पैग़ाम मेरे ,
अब तो वो भी ,सुनता नहीं सदायें मेरी,
सुना है रुसवा बहुत चांदनी ने किया है उसे!
बहुत खूब ।
काफ़ी दिनो बाद आपके ब्लाग पर आया हू...ये नयी शैली अद्भुत है..जैसे दर्शन सिमट कर आपके इन तीन पन्नो मे रह गया हो..
ReplyDeleteतीन पन्नों का सत्य और हर रंग दिल में उतर गया और इस पर आपकी लिखी त्रिवेणी कमाल की है ..आज कई दिन बाद आना हुआ नेट पर .बहुत अच्छा लगा अल्पना जी आपका लिखा पढ़ कर ...
ReplyDeleteवाह और आह!! एकसाथ निकल गई आपकी इस पोस्ट को पढ़ कर... बहुत सुंदर लिखा है मेम
ReplyDeleteमीत
बच्चों को कायदा सिखाने पर से याद आया एक पिताजी ने बेटे के मुंह से गाली सुनी ,बच्चे को पीटने लगे ,गाली देना सीख गया है और मजेदार बात यह कि वे पीटते वक्त खुद भी गाली देते जा रहे थे | दूसरा पन्ना =ऐसा बताते है कि दिमाग का अभी तक दस प्रतिशत हिस्सा ही उपयोग में आसका है \मष्तिष्क में अपार सागर भरा हुआ है यादों का |कब किस बात पर क्या याद आजाये कहा नहीं जा सकता ,सपनों के वारे में भी कहा जाता है कि जाने कितने वर्ष पहले न जाने कौन सी बात दिमाग में बैठ चुकी थी | चाँद वाली बात अच्छी लगी ,अपराध चांदनी का और सजा भुगत रहे है हम |सही कहा है तुलसी दास जी ने कि "और करहि अपराध कोऊ ,और पाँव फल कोऊ |
ReplyDeleteवो चाँद ही था जो ले जाता था पैग़ाम मेरे ,
ReplyDeleteअब तो वो भी ,सुनता नहीं सदायें मेरी,
सुना है रुसवा बहुत चांदनी ने किया है उसे.....
अब क्या कहें..?
यूनान मिश्र रोमा.........,कुछ बात है की हस्ती मिटती नही हमारी....
इसी तरह लिखती रहें--वाह.
जी बहुत चाहता है सच बोलें,
ReplyDeleteक्या करें हौसला नहीं होता !'
लेकिन आपने सच बोलने की गुस्ताखी की है. बहुत सुन्दर. देर से पहुंची, माफ़ी चाहती हूं.
तीन अलग अलग खयालात तवज्जुह के काबिल हैं.
ReplyDeleteमन के भीतर का बालमन ही अंत तक जीवन की कडी़ सच्चाईयों से लढेगा और हमारी सेनीटी को बरकरार रखेगा. अनुशासन वह नांव है जिसपर बैठ कर ही पार जाया जा सकता है. फ़िर भी बचपना मन की संवेदनशीलता को, कोमल एहसासात को भीगे रखता है.
ओ पालन हारे का विडियो देखा. बेहद बढिया सिंक किया है.गीत तो गुनगुनाती धूप पर सुन ही चुका हूं.
गुडी पाडवा और नववर्ष की अनेक शुभकामनायें...
पन्नोंकी बात बाद में करती हूँ .....मुझे तो आज ही पता चला कि प्रकाश गोविन्द जी इतनी अच्छी पेंटिंग करते हैं ....बहुत सुंदर चित्र है जो आपने लगाया है .....उन्हें ढेरों मुबारकबाद ......कल ही सोच रही थी उनके बारे ....आजकल वे आते नहीं पहले नियमित आते थे ....यूँ सबके ब्लॉग पर जाना संभव भी नहीं हो पाता ......
ReplyDeleteखैर ....आज आप कुछ गुमसुम सी लगीं ......
@ कोई एक शब्द/ कोई वाक्य/ कोई तस्वीर किसी का चेहरा /किसी की आवाज़ याद दिला जाती है सब कुछ ...नहीं तो बहुत कुछ..... कोई तो बात है ....किन्ही तस्वीरों का पिटारा खोले बैठी हैं लगता है ......
@आँखों में पलकों के पीछे छुपा धुंआ न जाने कैसे बादल बन बरसने लगता है.....मुफलिस जी ने इस बार कि पोस्ट कि भूमिका में इक शे;र लिखा है याद है .....?
प्यार और बारिश एक-से होते हैं,,,बारिश पास रह कर
तन भिगोती है और प्यार दूर रह कर आँखें..."
सही कहा...
ReplyDeleteअपने अन्दर के बच्चे को कभी हम खुद ही तो कभी बहार वाले,निअरंतर ही बड़ा बनाने की चेष्टा में लगे रहते हैं और वह बच्चा है कि आँखों में अश्रुमिश्रित याचना लिए हमें देखता और कहता है..."प्लीज मुझे ऐसा ही रहने दो"
सभी भाग,त्रिवेणी,पूरा ही आलेख भावमय , अनुपम...
khoobsoorati se jo baat likhi jaaye vo hajam ho jaati he. aapke teen panno me se do vakai aapki gmbhirta, soch aour pusht vichaar ko parilakshit karate he.
ReplyDeletetriveni..dilchasp he.
जिन्दगी की किताब के पन्नों को पढाने का शुक्रिया सुमन ‘मीत’
ReplyDeleteवो चाँद ही था जो ले जाता था पैग़ाम मेरे ,
ReplyDeleteअब तो वो भी ,सुनता नहीं सदायें मेरी,
सुना है रुसवा बहुत चांदनी ने किया है उसे!
ek se badhkar ek ,ye sangam adbhut hai .bashir ji ki line bha gayi ,kamaal hai aur sach bhi .
"ये शायद मेरा मन ही है जो वक़्त की श़क्ल धर लेता है."
ReplyDeleteह्रदय छु कर गए जी तीनो पन्ने,
बड़ी इमानदारी से लिखते हो आप,
कुंवर जी,
वो चाँद ही था जो ले जाता था पैग़ाम मेरे ,
ReplyDeleteअब तो वो भी ,सुनता नहीं सदायें मेरी,
सुना है रुसवा बहुत चांदनी ने किया है उसे!
वाह बहुत खूब !!
विक्रम संवत 2076 और नवरात्रे की अनेक शुभकामनायें...
alpnaji
ReplyDeletebahut ache se aap sbke man ke bhvo ko janti hai tbhi to ham sab jud gye hai
in tasveero ke madhyam se ,bachpan ki masumiyat ki akanksha liye .
bahut hi khubsurt rachna hai ak imandar man ki bat .
बहुत खूब....अच्छी प्रस्तुति........बधाई.....
ReplyDeleteतीनों पन्ने आत्मालाप की स्थितियों के मार्मिक दस्तावेज हैं . सुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDeleteAlpan ji,
ReplyDeleteapne to in teen pannon ke madhyam se poora jeevan darshan prastut kar diya hai---bahut sundar prastuti.
Poonam
वो चाँद ही था जो ले जाता था पैग़ाम मेरे ,
ReplyDeleteअब तो वो भी ,सुनता नहीं सदायें मेरी,
सुना है रुसवा बहुत चांदनी ने किया है उसे!
.....बहुत ही खूबसूरत और मनभावन पंक्तियाँ..बधाई .
____________
''शब्द-सृजन की ओर" पर- गौरैया कहाँ से आयेगी
वो चाँद ही था जो ले जाता था पैग़ाम मेरे ,
ReplyDeleteअब तो वो भी ,सुनता नहीं सदायें मेरी,
सुना है रुसवा बहुत चांदनी ने किया है उसे
यादों की दहलीज लाँघ कर निकले तीनो पन्ने मान की संवेदनाओं का चित्रण हैं ...
बदलते समय के साथ साथ सब कुछ बदलता है ... सोचने का ढंग भी बदलता है ... पर जो सच है वो सच ही रहता है ...
आपने बहुत ईमानदारी से लिखा है ... दरअसल मन हमेशा बच्चा बना रहना चाहता है .. पर डरता है अपने ही बनाए नियमों से ... बहुत अच्छा लिखा ....
kamaal ki trivenee....
ReplyDeleteTriveni aur aalekh,donohi behad achhe hain..kya kahun? Alfaaz kam padte hain..
ReplyDeleteRamnavmiki anek shubhkamnayen!
तीन पन्नों मे सारा जहाँ ........
ReplyDeleteजिन्दगी की किताब के पन्नों को पढाने का शुक्रिया
ReplyDeletekyaa baat....kyaa baat....kyaa baat...laazavaab.....!!
ReplyDeletebehad khoobsurat kavitayen hain.
ReplyDeletealpnaji, itani gambhirta se kisi rachna ko padhhna..aapki saahityik ruchi ki aur ingeet kartaa he, yah ab bahut durlabh ho chalaa he, khaaskar is blogjagat me..aour yakeen maaniye me aapki us tippani ke chalte jisame aapne likhane va likhate rahne par jor diyaa thaa, amal kar rahaa hu, aur aap tathaa ap jeso chand saahityik premiyo ke liye hi likhunga.
ReplyDeletedhanyavaad..
कहां व्यस्त हैं अल्पना जी आप? कब से कोई पोस्ट नहीं डाली आपने...
ReplyDeleteये शायद मेरा मन ही है जो वक़्त की श़क्ल धर लेता है.
ReplyDeleteBahut kuch kah diya aapne.Shubkamnayen.
चाँद ही था जो ले जाता था पैग़ाम मेरे ,
ReplyDeleteअब तो वो भी ,सुनता नहीं सदायें मेरी,
सुना है रुसवा बहुत चांदनी ने किया है उसे!
waah behtarin, sach naa jane magar chand ruswa hona kab chodega.
jeevan ka kuch gudh samaya is lekhani mein,behad sunder,bas baar baar padhne ko jee kare hai.
उत्तम साहित्य की
ReplyDeleteउत्तम पुस्तक के
अगले तीन पन्नों की
प्रतीक्षा है ......