भारत में ग्रीष्मावकाश के बाद नए सत्र में स्कूल खुल रहे हैं और यहाँ स्कूल के पहले सत्र की परिक्षाओं के बाद २२ जून से गरमी की दो महीने की छुट्टियाँ शुरू हो रही हैं और छुट्टियों में बच्चों को व्यस्त रखना एक बड़ी चुनौती होती है.
जब दुबई fesitival सिटी[शौपिंग काम्प्लेक्स] जाना हुआ था तब वहां ली गयीं तस्वीरों में से दो यहाँ दे रही हूँ.
पहली तस्वीर में एक बहुत ही बड़ा झूमर देख सकते हैं जो इस मॉल के प्रवेश द्वार पर है. Click on pictures for a better & bigger view.
दूसरी तस्वीर में पहले तल पर जाने वाली सीढियों की बनावट आकर्षित कर रही है.
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अब प्रस्तुत है यह कविता--: सावन की पड़ी फुहार तो बाँवरी बिरहन का मन उस से क्या बोल उठा? इस रचना में कहने का प्रयास किया है.
बरखा और बाँवरी -------------------
उमड़ घुमड़ कर छाये बादल, रिमझिम रिमझिम जल बरसायें, हौले आती बोल बाँवरी, काहे को यूँ ही अलसाए?
भीजे पात हरे सगरे, हैं फूल मगन,कलियाँ मुस्काए, बरखा के संग नाच बाँवरी, काहे को यूँ ही शर्माए?
छपक छपाक गूंजे सरगम सी बूँद छम्म से जो गिर जाये, झूम पवन संग आज बाँवरी , काहे को यूँ ही घबराए?
भरते सूखे नदी ताल सब, देख देख कुदरत हरषाए, रब से तू भी मांग बाँवरी, परदेसी घर वापस आये! परदेसी घर वापस आये! ------------------------ |
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बरखा और बावरी को पढ कर मन बारिश में भीगने के मचल उठा है, पर कमबख्त बारिश है कि होने का नाम ही नहीं ले रही।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
चित्र सुन्दर है और कविता बहुत ही प्यारी लगी ..अभी तो दिल्ली में बहुत गर्मी है ..आपकी लिखी यह कविता सुखद फुहार दे गयी
ReplyDeleteछपक छपाक गूंजे सरगम सी
बूँद छम्म से जो गिर जाये,
शब्द संयोजन बहुत सुन्दर है शुक्रिया
बारिश आए परदेशी संग किया खूब मनुहार।
ReplyDeleteजीवन में ऐसा होता जब बन जाता उपहार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
bahut hi khoobsoorat rachna hai aapki.
ReplyDeleteभरते सूखे नदी ताल सब,
देख देख कुदरत हरषाए,
रब से तू भी मांग बाँवरी,
परदेसी घर वापस आये!
kudrat kush hai is liye sachmuch banvari ko kuch mang lena chahiye.
यहाँ तो परदेसी वापस आते नजर नहीं आते .....कभी किसी रात आते भी है तो आंधी डांट के भगा देती है .दो बार से ताडी पार है ...देखिये अब कब जुगत बैठे.....
ReplyDeleteकविता बहुत मन भई, बहुत सुंदर,
ReplyDeleteऐसी झमाझम बारिश हो जाए तो फ़िर किसका मन बावरा नहीं होगा....दुबई की ताजातरीन खबरें भी मिल गयी और कविता की फुहारें भी....एक पंथ दो काज.....हाँ बांवरी का परदेसी आ जाए तो वह भी खुश हो ले......
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
भरते सूखे नदी ताल सब,
ReplyDeleteदेख देख कुदरत हरषाए,
रब से तू भी मांग बाँवरी,
परदेसी घर वापस आये!
परदेसी घर वापस आये
अल्पना जी
इन पंक्तियो मे कमाल के भाव और शब्द समायोजन है .......जिसका कोई जबाव नही.....बहुत सुन्दर
आपकी यह रचना मन भीगा गयी....
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
बरखा ओ ऐसा विषय है, जिसके सोचने भर से ही मन भीग जाता है...
बहुत सुंदर...
मीत
वाह! कालिदास और मेघदूत याद हो आये।
ReplyDeleteआपकी रचनाओं के भाव और शब्द संयोजन बिल्कुल साहित्यिक होता है.बहुत ही उच्च कोटि की रचना. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
भरते सूखे नदी ताल सब,
ReplyDeleteदेख देख कुदरत हरषाए,
रब से तू भी मांग बाँवरी,
परदेसी घर वापस आये!
परदेसी घर वापस आये!
sunder alpana ji, manbhavan shabd chitra.
hriday chura le gain mera barkha ki boonden,
khoj kari, dhoondha, sajan ke paas mila.
bahut sunder abhivyakti ke liye badhai.
बहुत सुन्दर काव्य
ReplyDeletesundar chitron के साथ...sundar rachnaa
ReplyDeleteumad ghumad kar aate baadalon से aati bheeni bheeni khushboo ki tarah is rachnaa ne भी barsaat ki yaad taaza kar दी...........
अद्भुत चित्र और लाजवाब रचना...वाह अल्पना जी वाह...
ReplyDeleteनीरज
उत्कृष्ट रचना.आभार. यहाँ तो आकाश से आग ही मिल रही है. बरखा का बेसब्री से इंतज़ार है.
ReplyDeleteरब से तू भी मांग बाँवरी,
ReplyDeleteपरदेसी घर वापस आये!har baar ki tarah sunder kavita...
अल्पना जी,बारिशें तो नहीं आयीं अभी तक..मगर आप की कविता ने ठंडक जरुर दी है..
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी कविता है.
सुरुचिपूर्ण किया शब्द संयोजन मन को भा गया.
बच्चों के साथ साथ ,गरमी की छुट्टियाँ आप भी खूब मजे से मनाईये.
आपकी इस कविता ने तो बरसात की चाह शिद्दत के साथ बढ़ा दी है -यहाँ भीषण गर्मीं पड़ रही है इन दिनों ! मौसम दगा दे गया है !
ReplyDeleteआपकी यह कविता पढकर बादल भी जल्दी से बरस जाए तो मजा आ जाए। बहुत ही उम्दा रचना।
ReplyDeleteछपक छपाक गूंजे सरगम सी
बूँद छम्म से जो गिर जाये,
झूम पवन संग आज बाँवरी ,
काहे को यूँ ही घबराए?
क्या कहें.....। इन सुन्दर फोटो के बीच अगर एक बरखा की बूंदो का सुन्दर फोटो भी लग जाता तो सच में और आनंद आ जाता है।
रब से तू भी मांग बाँवरी,
ReplyDeleteपरदेसी घर वापस आये!
परदेसी घर वापस आये!
बहुत सुंदर!
अल्पना जी ,
ReplyDeleteसुँदर चित्र व एक सुँदर कृति से बरखा का स्वागत किया है आपने जो प्रिय लगा !
सावन की फुहारों पर बाँवरी बिरहन के मन के बोल सुन कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteअरे हमारी छुट्टियाँ तो अब ख़तम होने वाली हैं ....और बारिश अब तक दगा दे रही है !!
ReplyDeleteसुन्दर है कविता!!
शुक्रिया!!!
Wah Alpna g behtreen rachna... behtreen chitra..
ReplyDeleteपानी को तरसते हमारे मनों को कुछ ठंडक पहुंची..
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों के साथ बेहतरीन कविता |
ReplyDeleteare vaah......kya gazab kiya....ajab kiya...man-mayur ko lakdak kiya....!!
ReplyDeleteछपक छपाक गूंजे सरगम सी
ReplyDeleteबूँद छम्म से जो गिर जाये,
झूम पवन संग आज बाँवरी ,
काहे को यूँ ही घबराए?
क्या मनभावन लाइनें लिखा है आपनें .भाव-विभोर करनें वाली रचना .
बरसात का मौसम मुझे बहुत पसंद है और भीगना मेरा शौक्।आपको पढ कर मन बावरा मचल गया है भीगने को मगर यंहा बरखा लगातार धोका दे रही है।पता नही आप जानती हैं या नही,यंहा छत्तीसगढ मे परदेस गये लोगो की वापसी बरसात मे ही होती है।तीन माह यंहा काम कर लाखों मज़ूर निकल पड़ते हैं रोजी-रोटी की तलाश मे देश के कोने कोने पर और फ़िर बरसात के आते ही अपने ही देस के ये परदेसी लौट आते हैं।
ReplyDeleteभीजे पात हरे सगरे,
ReplyDeleteहैं फूल मगन,कलियाँ मुस्काए,
बरखा के संग नाच बाँवरी,
काहे को यूँ ही शर्माए
लोक -गीतों की मिठास में पगा यह सुंदर गीत बारिश के लिए तरसते प्राणों को ठंडक देने वाला है .
प्रकृति में कविता और कविता में प्रकृति... मन मयूर हो जाता है ऐसी कविताओं को पढ़कर।
ReplyDeleteयहाँ तो सूरज महाशय कुछ ज्यादा ही इमानदारी से अपने काम में लगे हुए हैं ! एसी और कूलर चल-चलकर गरम हुए जा रहे हैं ... उधर कहीं गाना बज रहा है ...आज मौसम बड़ा बेईमान है ... हम सुनकर जल-भुन रहे हैं कि कमबख्त कब बेईमान होगा ?
ReplyDeleteलेकिन कुछ भी हो आपकी काव्य रचना मानसिक राहत तो दे ही रही है !
आपकी यह सुन्दर कविता को पढ़कर पता नहीं क्यों मुझे पुराने दिन याद आ रहे हैं जब मैं देखा करता था कि बरसात से पहले कुछ गाँव के लोग 'अल्ला मेघ दे ... अल्ला मेघ दे' कहते हुए आते थे तो लोग उन्हें गुड़ देते थे और उनके ऊपर पानी डालते थे (पता नहीं आपने ऐसा देखा है या नहीं )
कविता में आपने शब्दों का प्रयोग अत्यंत
खूबसूरती से किया जो प्रभावित करता है :
हौले आती बोल बाँवरी
भीजे पात हरे सगरे
छपक छपाक गूंजे सरगम सी
मुझे यकीन है कि परदेशी अगर ये रचना पढ़ ले तो पहली ट्रेन से ही वापस आ जाएगा !
आज की आवाज
रिमझिम फुहार और बारिश की सोंधी खुशबू-सी आपकी रचना.....
ReplyDeletelok geet jaisa feel aa rahaa thaa....bahut achha laga sunkar...
ReplyDeleteभरते सूखे नदी ताल सब,
ReplyDeleteदेख देख कुदरत हरषाए,
रब से तू भी मांग बाँवरी,
परदेसी घर वापस आये!
अल्पना जी ,
आपकी कविता मन को स्पर्श करती है पढ़ कर बहुत अच्छा लगा...आपकी रचनाएं ब्लॉग जगत की उच्च स्तरीय लेखन में शुमार है...मेरी बधाई स्वीकार करें..!
प्रकाश सिंह
भरते सूखे नदी ताल सब,
ReplyDeleteदेख देख कुदरत हरषाए,
रब से तू भी मांग बाँवरी,
परदेसी घर वापस आये!
अल्पना जी ,
आपकी कविता मन को स्पर्श करती है पढ़ कर बहुत अच्छा लगा...आपकी रचनाएं ब्लॉग जगत की उच्च स्तरीय लेखन में शुमार है...मेरी बधाई स्वीकार करें..!
प्रकाश सिंह
tasveer bahut hi acchi hain........
ReplyDeleteaur ye shabd ye rachna bhi bahut..hi sundar hain.....
lekin abhi yahan to barish hui nahi....
aapki rachna padkar uska intzaar aur besabr kar raha hai...
मन देख और पढ कर तर् गया/ किंतु असल बात ये है कि बरखा रानी का बेसब्री से इंतजार है यन्हा/ बेहद गरमी और ऊमस से परेशान/
ReplyDeleteकिंतु आप्की कविता हर बार की तरह लाज़वाब, और तस्वीरे जैसे खुद उस जगह हो...//
बस अब लगता है कुछ इसी तरह से बारीश हो और मन झूम उठे/
Nice Picture...nice Geet.Barsat ke mausam ke intzar ki bekrari apki is post ne badha di.
ReplyDelete_____________________________
अपने प्रिय "समोसा" के 1000 साल पूरे होने पर मेरी पोस्ट का भी आनंद "शब्द सृजन की ओर " पर उठायें.
भीजे पात हरे सगरे,
ReplyDeleteहैं फूल मगन,कलियाँ मुस्काए,
बरखा के संग नाच बाँवरी,
काहे को यूँ ही शर्माए?
अल्पना जी ,
बहुत सुन्दर गीत ...इसमें एक अच्छे गीत के सभी तत्व मौजूद हैं .
हेमंत कुमार
छपक छपाक गूंजे सरगम सी
ReplyDeleteबूँद छम्म से जो गिर जाये,
झूम पवन संग आज बाँवरी ,
काहे को यूँ ही घबराए?
बहुत सुन्दर बरखा का गीत
साथ ही हमने दुबई की सैर भी कर ली .शायद इस गीत को सुनकर ही बरखा भारत में अपनी कुछ बुँदे ही बिखेर दे |
क्या ही सुखद संयोग है. आज अभी अभी छत्रपती शिवाजी के रायगढ किले पर इस वर्ष की पहली बारीश में भीग कर आ रहा हूं, और आपकी कविता नें ambiance या वातावरण में और सुखद अनुभूतियां घोल दी है.
ReplyDeleteछपक छपाक गूंजे सरगम सी
बूँद छम्म से जो गिर जाये,
झूम पवन संग आज बाँवरी ,
काहे को यूँ ही घबराए?
आपके सुरों की फ़ुहार मिसींग है.
छपक छपाक गूंजे सरगम सी
ReplyDeleteबूँद छम्म से जो गिर जाये,
झूम पवन संग आज बाँवरी ,
काहे को यूँ ही घबराए?
बरखा और बावरी को पढ कर मन इतनी गर्मी में भी सावन सावन हो गया .....!!
dil khush ho gaya kavita padakar....
ReplyDeletedil khush ho gaya......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र है
ReplyDeleteगीत बहुत पसंद आया है, आप तो वैसे भी हमेशा मन लगा कर ही लिखती हैं
भरते सूखे नदी ताल सब,
ReplyDeleteदेख देख कुदरत हरषाए,
रब से तू भी मांग बाँवरी,
परदेसी घर वापस आये!
परदेसी घर वापस आये!
अति सुन्दर....आपकी कविताओं में तो लोकगीतों की झलक दिखलाई पडती है।
भरते सूखे नदी ताल सब,
ReplyDeleteदेख देख कुदरत हरषाए,
रब से तू भी मांग बाँवरी,
परदेसी घर वापस आये!
बेहतरीन गीत.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
सबसे पहले आपका शुक्रिया की आप मेरे ब्लॉग पे आईं...आपकी कविता को पढ़कर मन मयूर सा नाचने लगा...बहुत खुबसूरत रचना!!!!!!!!! बधाई..
ReplyDeletesawan ka shiddat se intazar hai....
ReplyDeleteछपक छपाक गूंजे सरगम सी
बूँद छम्म से जो गिर जाये,
झूम पवन संग आज बाँवरी ,
काहे को यूँ ही घबराए?
...is poem ne is tapti loo main halki baucharoon ka to anubhav to kara hi diya !!
रब से तू भी मांग बाँवरी,
ReplyDeleteपरदेसी घर वापस आये!
sundar bhav...!
magar ab aaye bhi ye bairee badal... had ho gai ab to
रब से तू भी मांग बाँवरी,
ReplyDeleteपरदेसी घर वापस आये!
... behad prabhavashaalee abhivyakti !!!!!
बारिश का इतने सरल शब्दों में कविता बन जाना, सराहना के लिए शब्द नहीं हैं. मानसून कोसों दूर हैं मगर आपकी रचना ने पसीने से भीगे बदन को शीतल तरावट का एहसास करा दिया. इस वर्षा में आपने जिन मनोभावों का चित्रण किया है, वो सब के सब केवल हमारे ग्रामीण परिवेश की धरोहर है. शहरों में तो बारिश को लेकर कोई एहसास ही नहीं बचा. मेरे ब्लॉग पर आने, अपनी सम्वेदना के जिंदा रहने और वास्तविक रचनाधर्मी के कर्तव्य निर्वहन का प्रमाण अंकित करने हेतु मैं आपको बधाई नहीं दूंगा , प्रार्थना करूंगा कि सम्वेदनाएँ जीवित रखें और दूसरों को भी प्रेरित करें. और हाँ, तस्वीरें अच्छी हैं, आप की फोटोग्राफी भी काबिले तारीफ है.
ReplyDeleteaha alpana ji ........... baarish ki puhaare yahan tak aa rahi hai.........
ReplyDeletepadhkar aanand ho gaya .....
badhai ho badhai..
सोचता हूँ इन पचपन टिप्पणियों तले दबी हमारी बात आप तक पहुँचेगी भी कि नहीं?
ReplyDeleteबरखा और बावरी ने मन मोह लिया है....और मेल का अलग से शुक्रिया...
भरते सूखे नदी ताल सब,
ReplyDeleteदेख देख कुदरत हरषाए,
रब से तू भी मांग बाँवरी,
परदेसी घर वापस आये!
परदेसी घर वापस आये
"ये पंक्तियाँ मन को छु गयी.....खुबसूरत भावनाओ का चित्रण खूबसूरती के साथ.."
regards
is baar mansoon aane mein lagbhag ek mahine ki deri ho rahi hai, par aapki kavita ne to antar-mann ko pura bhigo diya...
ReplyDeleteachhi rachna hai...
बहुत सुन्दर प्रकृति को परिभाषित करती शानदार रचना
ReplyDeleteबधाई
भरते सूखे नदी ताल सब,
ReplyDeleteदेख देख कुदरत हरषाए,
रब से तू भी मांग बाँवरी,
परदेसी घर वापस आये!
परदेसी घर वापस आये!
beinteha sunder,jaise barsat ki pehli fuhar ka harsh.