स्कूलों में गरमी की छुट्टियाँ शुरू,कल बच्चों का ओपन हाउस था...मतलब उनकी परीक्षा के परिणाम आए थे।
और इन छुट्टियों के साथ शुरू हुआ लोगों का अपने अपने देश जाने का सिलसिला.हम तो इस बार भारत नहीं जा रहे हैं।
बस अब सिलसिला शुरू होगा मिलने मिलाने का...गल्फ का जीवन ही ऐसा है..बच्चों के जन्मदिन पर मिल लेते हैं नहीं तो मिलने मिलाने के अवसर ढूढने पड़ते हैं - सब अपने में व्यस्त हैं.कोई किसी के यहाँ बिना पूर्व सूचना दिए नहीं आता जाता..इस बार तो हमारी मित्र मंडली पूरे ६ महीने बाद इकट्ठा होंगी..
यहाँ हमारे रिश्तेदार नहीं हैं सो हमारे मित्र ही रिश्तेदार से भी बढ़कर हैं।कई साल हो गए यहाँ रहते हुए और कुछ बहुत अच्छे नए-पुराने मित्र भी मिले..हम ६ परिवार हैं जो बहुत घनिष्ठ मित्र हैं.इनमें से दो परिवार तो अब ओमान में ट्रान्सफर हो गए..अब हम ४ बचे हैं.नए साल पर सब एक साथ मिल कर बैठे थे...और अब बच्चों की छुट्टियाँ शुरू हुई हैं तो आजसे मिलना मिलाना शुरू...शुरुआत है हमारे घर से..संक्षेप में--आज हमारे घर में शाम को सब आ रहे हैं..और बच्चे तो बहुत उत्साहित हैं और मैं भी!
१-२ दिन सब के साथ कैसे बीत जायेंगे पता ही नहीं चलेगा..और जब जाने का समय आता है.. तब सब से ज्यादा बच्चों को तकलीफ होती है..यही है गल्फ की सामाजिकजिंदगी का एक पहलू ...सभी अपने घरों में बहुत हद्द तक सिमित ! अब मिलवाती हूँ हमारे मित्र परिवार के सब से छोटे सदस्य -आर्यन से -
एक युगल गीत फ़िल्म-अभिमान से -'तेरी बिंदिया रे'-
इस गीत में मेरा साथ दिया है राजा पाहवा ने -
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स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India
'वन्दे भारत मिशन' के तहत स्वदेश वापसी Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...
June 25, 2009
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बडे़ शहर.. भारत हो या विदेश ये ही होता है.. दोस्तों से मिलना ही नहीं होता.. कभी कुछ कभी कुछ..
ReplyDeleteआर्यन बहुत क्युट है...
बहुत सुन्दर कविता लिखी आपने अल्पना जी, अच्छा लगा पढ़कर... सचमुच गर्मी बहुत तेज़ पड़ रही हैं और बारिश है की आने का नाम नही ले रही
ReplyDeleteजेठ दुपहरी
ReplyDeleteइस गर्मी में भी
ठंडक का अहसास
दे रही है।
कविता का कमाल है।
jeth ki dupahari ka achchha chitran........too good
ReplyDeleteहां विदेश में ही अपनों की कमी अखरती है. ये भी सच है, कि बाहर मित्र ही सगे समान होते हैं.आर्यन बहुत-बहुत प्यारा है. और कविता! ठीक आर्यन की तरह...बधाई.
ReplyDeleteबरखा आये रस घोले!
ReplyDeleteबस हमें भी इन अंतिम पंक्तियों का ही इंतज़ार है...
उम्मीद है आपकी कविता पूरी हो...
मीत
मित्रों से मिलना रिश्तेदारों के मिलने से कहीं अधिक सुखद होता है.
ReplyDeleteवाकई, बहुत दुखदायी है ये बच्चों के लिए। जेठ की तपन आपकी कविता में बखूबी महसूस हो रही है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अल्पना जी देश के बाहर अपने देश के लोगों से मिलने का आनंद मैं समझ सकता हूँ...बच्चे एक दुसरे को बहुत मिस करते हैं...आप इस बार भारत नहीं आ रहीं ये तो ठीक बात नहीं...मानसून रूठ गया टी क्या आपभी देश से रूठ बैठीं हैं? गर्मी का शिद्दत से एहसास कराती आपकी कविता बेजोड़ है...
ReplyDeleteनीरज
आर्यन बहुत प्यारा है उसे काला टीका लगा कर रखिये...इश्वर से प्रार्थना है की उसे लम्बी और स्वस्थ उम्र दे.
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुंदर कविता .. आपने तो जेठ की तपन का वर्णन किया है .. पर इस बार का आषाढ भी काफी तपन दे रहा है।
ReplyDeleteअलसाया आँगन है,
ReplyDeleteऔर तपीं सारी भीतें,
द्वार थके धूप में तपते,
ताल सभी दिखते रीते.
bahut sunder chitran hai.
वाह वाह वाह। इस जालती गर्मी पर बहुत बेहतरीन लिख दिया। सच बस बरखा का इंतजार है पता नही कब आएगी। सुन्दर आर्यन की सुन्दर मुस्कराहट दिल को जीत रही है। वैसे हम भी आ रहे आपके यहाँ इंतजाम करके रखिएगा।
ReplyDeleteचलें धूल से भरी आंधियां,
ReplyDeleteझुलसायी धरती बोले,
बीते जल्दी जेठ महीना,
बरखा आये रस घोले!
अब तो यहां भी सख्त जरुरत है वर्षा की.
आपका सप्ताहांत मित्रों के सानिंध्य मे आनंद पुर्वक बीते. और आर्यन जैसे क्युट मेहमान साथ होंगे तो बहुत ही सुंदर समय व्यतीत होने वाला है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
ओह वतन नहीं आना हो पा रहा है -कविता ने तो गर्मी के अहसास को और बढा दिया उफ़ !
ReplyDeleteअल्पना जी नमस्कार,
ReplyDeleteलोग,सिमावों में और हदों में बांध के रह गए है ... ये बहोत ही सच बात कही है आपने...आर्यन को शुभाशीष और कविता बहोत ही प्यारी है
आखिरी लाइन बरखा आये रस घोले का यहाँ भी इंतज़ार रहेगा ..दिल्ली में भी बहोत गर्मी है ...
पोस्ट के सबसे निचे आपकी आवाज़ धुन्धता हूँ खली हाथ लौटा ऐसा क्यूँ....?
बधाई
अर्श
अल्पना जी आप ने सही कहा कि यहां मित्र रिश्तेदारो से बढ कर होते है, फ़िर मिलना अच्छा लगता है, बच्चे भी ओर हम सब भी रात को बहुत देर तक बेठ कर गप्पे मारते है... फ़िर बिछुडना बहुत चुभता है.
ReplyDeleteआर्यन बहुत प्यारा लगा, बहुत प्यार दे हमरी रतफ़ से .रे कविता भी बहुत सुंदर लगी.
धन्यवाद
alpana ji, dilli men bahut buri halat hai garmi ke karan.
ReplyDeleteaisi garmi men aapko manmohak kavita ne sheetalta pradaan ki hai. dhanyawaad, badhaai.
सच है इंतजार के कई रंग होते हैं.
ReplyDeleteआर्यन बहुत क्यूट है
आपकी कविता ही अब मरहम का काम करती है इन तपते और बिन बरसात वाले दिनों में, अभी सुना है हमारे रेगिस्तान में कोई बारिश से भरा तूफ़ान आने वाला है, उसकी उम्मीद कम ही है बस व्योम के पार को देख कर ही कुदरत के कुछ रंगों को अपना मान लेते हैं सुन्दर कविता बधाई
इस बार तो जेठ के साथ साथ आषाढ भी सूखा निकल रहा है, लेकिन 5 जुलाई के आसपास मौसम में परिवर्तन होगा और तभी इस चिलचिलाती गर्मी से थोडी निजात मिलेगी......
ReplyDeleteआपकी कविता बहुत बढिया लगी, पूरी तरह से गर्मी का अहसास कराती हुई.....ओर ये बच्चा आर्यन बहुत ही प्यारा लगा, बिल्कुल मेरे छोटे बेटे मालव जैसा।
बीते जल्दी जेठ महीना....
ReplyDeleteआपने तो मन की कह दी .
कविता के शब्दों से वातावरण निर्मिती करने में आप सक्षम हैं. ऐसा लगा कि जेठ की दोपहर में अमराई में बैठ धूप की आंच का एहसास हो रहा है.
ReplyDeleteआपके गायेन गीतों में अब नाद आ गया है, जो गाने को श्रवणीय बना रहा है. बहुत खूब!!
सुन्दर रचना.. आर्यन तो बड़ा प्यारा है.
ReplyDeleteगीत सुनकर आनन्द आ गया.
प्यारिसी कविता और प्यारा सा आर्यन |
ReplyDeleteआक्को और आपकी मित्र मंडली छुट्टियों की शुभकामनाये |
अल्पना दी, बहुत सुन्दर चित्रण किया आपने..
ReplyDeleteचलें धूल से भरी आंधियां,
झुलसायी धरती बोले,
बीते जल्दी जेठ महीना,
बरखा आये रस घोले
हमारे यहाँ तो बस बरखा आने ही वाली है.....
आर्यन को प्यार...
geet padh kar anand a gaya ..man abhibhoot ho gaya________
ReplyDeletebadhaai !
कविता और आर्यन बाबू दोनों ही खूबसूरत लगे अल्पना जी
ReplyDelete- लावण्या
अल्पना वर्माजी
ReplyDeleteचलें धूल से भरी आंधियां,
झुलसायी धरती बोले,
बीते जल्दी जेठ महीना,
बरखा आये रस घोले!
वैसे इस कविता से मुम्बई मे इस वर्ष बारिस कि कमी याद आगई.....
बहुत सुन्दर कविता.. वैसे मे आपकी कविताओ का फैन हू।
आपकी छुटिया अच्छे से बिते यह कामना
आभार/मगलकामना
महावीर बी सेमलानी "भारती"
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
अरे आर्यन से तो मैने बात ही नही की। बडा ही क्यूट लग रहा है।
ReplyDeleteआभार/मगलकामना
महावीर बी सेमलानी "भारती"
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
चलें धूल से भरी आंधियां,
ReplyDeleteझुलसायी धरती बोले,
बीते जल्दी जेठ महीना,
बरखा आये रस घोले!
अल्पना जी ,
इस रचना में अIपने जो कामना की है काश वो जल्द पूरी हो जाये .भारत में तो गर्मी के मारे बुरा हाल है ...जेठ के महीने का सरल शब्दों में अच्छा वर्णन .शुभकामनाएं
पूनम
आर्यन से मिलकर अच्छा लगा !
ReplyDeleteजेठ दुपहरी जलते हैं दिन,
ReplyDeleteऔर झुलसती हैं रातें ,
यह कविता या गीत नहीं ...
यह तो लखनऊ के मौसम का सजीव चित्रण है !
वहीँ आम की अमराई,
खिलखिल के मुस्काती है,
ये पंक्तियाँ पढ़कर अपने फार्म की याद आ गयी !
बच्चा सामने यूँ ही हँसता रहे ......
सारे मौसम सुहाने हो जाते हैं !
(आर्यन को मेरी तरफ से एक चाकलेट जरूर दीजियेगा !)
"अपनी बातें - अपने लोग" का अहसास बाहर जाने पर ही हो पाता है !
अगली पोस्ट में आत्मीयता से भरी 'गेट टू गेदरिंग' की तस्वीरों को अवश्य लगाईये .... इस बहाने हम भी शरीक हों सकेंगे !!
आज की आवाज
बीते जल्दी जेठ महीना,
ReplyDeleteबरखा आये रस घोले!
वाकई इस बरखा के मौसम का बेसब्री से इन्तजार है ..दूर देश क्या अब अपने ही देश में सबसे मिलना मुश्किल हो जाता है ..सब बहुत व्यस्त हो चुके हैं ..न जाने कैसे हो चुके हैं अब नजदीक के भी रिश्ते ..आप सब लोग मिल तो लेते हैं वही अच्छा है .:) आर्यन बहुत प्यारा लगा और तेरी बिदियाँ रे ..गाना बहुत पसंद है .शुक्रिया
समझ नही आ रहा किसकी तारीफ करूँ...नटखट से दिखते आर्यन की...सुंदर सी कविता की या मीठी आवाज़ की...???? सब एक से बढ़के एक..!
ReplyDeleteआर्यन बहुत ही प्यारा और मनमोहक है....
ReplyDeleteचलें धूल से भरी आंधियां,
झुलसायी धरती बोले,
बीते जल्दी जेठ महीना,
बरखा आये रस घोले!
" उम्मीद से भरी ये पंक्तियाँ मन को खुब भाई.."
regards
यहाँ की दोपहरों पे बहुत कुछ लिख चूका हूँ....बिजली का आलम ये है की अभी इनवर्टर पे टिपण्णी कर रहा हूँ.....आर्यन मेरे बेटे का भी नाम है...ये भी प्यारा है...
ReplyDeleteजेठ दुपहरी जलते हैं दिन,
ReplyDeleteऔर झुलसती हैं रातें ,
इस दावानल में जल ,
मुरझाई मन की बातें
तपती रेट और गल्फ का तपता मोसम ....... साकार हो रहा है आपकी कविता में........... मेघ का इन्तेअर सबको है.......... पर गल्फ में ऐसा होता नहीं ............ लोग इंतज़ार न कर के............ महग को ढूँढने विदेश चले जाते हैं..........
आपकी रचना बहूत ही लाजवाब है ...... सामयिक है
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeleteachhi kavita hai....badhai...
ReplyDeleteaapka mere blog par swagat hai...
आपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
ReplyDelete__________________________________
आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
haan wahan par watan ki yaad to aati hi hogi...par yahan par ham apne watan me rah kar bhi aam logon ke liye kuchh nahi kar pate hai..tab badi nirashaa hoti hai....
ReplyDeleteअच्छी कविता... आर्यन से मिल कर प्रसन्नता हुई..
ReplyDeleteprakriti ke kareeb laati hai ye rachna
ReplyDeleteबरखा आ गई हमारी मुम्बई मे.
ReplyDeleteभले ही जेठ माह की कविता हो किंतु इस्ने सावन सा रस घोल दिया.
आपकी कविताओ मे अलग आनंद प्राप्त होता है. यहां नैसर्गिक अनुभूति है.
इन दिनो मिलने-मिलाने मे व्यस्त होंगी आप. मित्र सबसे बेहतर रिश्ता होता है, शेष रिश्तेदारी नाम की होती जान पडती है इस काल मे.../ सो भले रिश्तेदार न हो मित्र है, काफी है.
Diary vidha mein bahut shaandaar likha hai aapne.......... waaqai mein baat sahi hai....... pardes mein dost hi apne rishtedaar hote hain.........
ReplyDeleteAur haan.......!!!!!!!!!! ARYAN se milke bahut khushi huyi........ lots of love to him.......
वहीँ आम की अमराई,
खिलखिल के मुस्काती है,
धर अमियाँ का रूप,
विजय मौसम पर पा जाती है!
aur kavita in lines ne kuch yaad dila diya......... bahut achchi ban padi hai kavita........
Thanx....... n
Regards
MAHFOOZ
aapne poori prkrti ko apne shabdon ke rang se ek naya hi roop de diya....
ReplyDeleteis baar bhi pichli baar ki tarhaan....
बहुत सुन्दर कविता लिखी आपने अल्पना जी,
ReplyDeletewatan se dur rahne par bhi watan ke prati prem kam nahi hota!!
ReplyDelete'जेठ दुपहरी -सरल शब्दों में लिखी सुन्दर कविता.
ReplyDeleteआर्यन को स्नेह.
गीत भी श्रवणीय है.
कविता का कमाल है। कविता भी बहुत सुंदर लगी.
ReplyDeleteधन्यवाद.
हिन्दीकुंज
जेठ दुपहरी की प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी.. आपके मेहमानों के साथ ये खास एक-दो दिन कैसे बीते.. एक पोस्ट इस पर भी हो जाए.. :) देर से टिप्पणी करने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं.. आभार
ReplyDeleteआपके निजी जीवन की थोडी सी झलकी मिली ....मिलनसार लोगों के ही मित्र बनते हैं .....कविता मौसम के अनुकूल है .....
ReplyDeleteचलें धूल से भरी आंधियां,
झुलसायी धरती बोले,
बीते जल्दी जेठ महीना,
बरखा आये रस घोले!
अब तो सावन का इंतजार है ...!!
कविता ........आपने शब्दों में मौसम उतार दिया .
ReplyDeleteआर्यन क्यूट है .........चस्मेबद्दूर .
सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता है, अल्पना जी। प्रकृति को बिम्बित करनेवाली रचनाएं मुझे वैसे भी बहुत भाती हैं।
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteआखिरकार यहाँ पर बारिश ने दस्तक दे ही डाली....कल रात को क्या झमाझम बारिश हुई कि बस पूछिए ही मत, सचमुच मज़ा आ गया......उम्मीद करते हैं आपके अबू धाबी को भी जल्द ही बारिश का तोहफ़ा मिले....
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
aapke kavya prem ka udaharan mujhe mila,
ReplyDeletemeri yaado vaali kavita par aapki tippani..jabki mene payaa he ki jo likhi jaa chuki rachnaye hoti he vo amooman koi nahi padhhta aour sab bs haaliya padhh kar gujar jaate he//
aapko koti koti dhnyavaad//
अल्पना जी ,
ReplyDeleteकुछ व्यस्तताओं की वजह से कमेन्ट देर से लिख पा रहा हूँ .गर्मियों का आपने बहुत अच्छा वर्णन किया है
अलसाया आँगन है,
और तपीं सारी भीतें,
द्वार थके धूप में तपते,
ताल सभी दिखते रीते.
सुन्दर रचना ....
हेमंत कुमार
सुंदर कविता मैम!
ReplyDeleteछुट्टियों का, मिलने-मिलाने का सिलसिला खूब जमेगा! इधर मेरा भी जम रहा है...
नन्हे आर्यन को खूब-खूब सारा स्नेह !
aah...apne mati, apne desh, apne boli se dur rehke bhi kaafi bakhubi samoya hua aapne bharat ko apni duniya me....
ReplyDeletehttp://bharatmelange.blogspot.com
kavita bhee sunder aaryan bhee sunder......
ReplyDeleteKai rang hote hain aapki har post par,aur har rang anutha.
ReplyDeleteवहीँ आम की अमराई,
ReplyDeleteखिलखिल के मुस्काती है,
धर अमियाँ का रूप,
विजय मौसम पर पा जाती है!
waah sunder,aur haa wo nanhe se aryan ki pic bahut cute hai.