अक्सर सभी के साथ ऐसा होता होगा जब अपनी राह चलते चलते हम ठिठक कर रुक जाते हैं,मुड कर देखते हैं ,कोई नज़र आता नहीं ...कितने लोग सफ़र में साथ चले तो थे मगर वे अपनी अपनी राह पर ऐसे गए कि फिर कभी मिले ही नहीं.
एक ग़ज़ल आनंद बक्शी साहब की लिखी हुई--'चिट्ठी न कोई संदेस जाने वो कौन सा देस-जहाँ तुम चले गए' दिल की गहराईयों में उतर जाती है. आज वही सुना रही हूँ मगर उस से पहले एक कविता कुछ इसी तरह के भाव व्यक्त करती हुई,आशा है आप को पसंद आएगी-
एक ग़ज़ल आनंद बक्शी साहब की लिखी हुई--'चिट्ठी न कोई संदेस जाने वो कौन सा देस-जहाँ तुम चले गए' दिल की गहराईयों में उतर जाती है. आज वही सुना रही हूँ मगर उस से पहले एक कविता कुछ इसी तरह के भाव व्यक्त करती हुई,आशा है आप को पसंद आएगी-
समय का भंवर ---------- ------ क्यों समय के भंवर से कोई निकल पाता नहीं, वो लोग जाते हैं कहाँ कुछ भी समझ आता नहीं! तम घना है रीते मन का,रक्त रंजित भाव हैं, कल्पनाएँ थक गयी हैं,स्वप्न भी सब सो गए! है कठिन ये वक़्त,क्यूँ जल्दी गुज़र जाता नहीं! हैं सुरक्षित स्मृति चिन्ह,कुछ भी कभी धुलता नहीं, पीर भेदे हृदय पट को , पर कभी खुलता नहीं! अतीते के चित्रों से ,मन अब क्यूँ बहल पाता नहीं! सोचती हूँ मैं बना दूँ एक सीढ़ी, इस जहाँ से उस जहाँ , लौट पायें वे सभी जिनके बिना, ज़िंदगानी का सफ़र अब और तो भाता नहीं! क्यों समय के भंवर से कोई निकल पाता नहीं, वो लोग जाते हैं कहाँ कुछ भी समझ आता नहीं! -------------------------- |
'चिट्ठी न कोई संदेस'....एक गीत[ फिल्म-दुश्मन,गीत -आनंद बक्शी,संगीत -उत्तम सिंह]
यह मूल गीत नहीं है.
download here
Or Play-
इसी गीत पर मैं ने यह विडियो बनाई है.टीवी सीरियल की क्लिप्स मिक्स करके एक कहानी की तरह दिखाने का प्रयास है.
यह मूल गीत नहीं है.
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इसी गीत पर मैं ने यह विडियो बनाई है.टीवी सीरियल की क्लिप्स मिक्स करके एक कहानी की तरह दिखाने का प्रयास है.
अल्पना जी
ReplyDeleteचिट्ठी न कोई सन्देश सुना .
मन भाव विभोर हो गया
ब्लॉग के साथ ही आपकी आवाज़ भी मीठी और मधुर है
- विजय
कहाँ जान पाते हैं,वो अपने,वो प्रिय कहाँ गए.....मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteso nice
ReplyDeletei love it
__________badhai_________
चिठ्ठी ना कोई सन्देश ये गीत खुद में एक मुकम्मल ज़िन्दगी की सारी बातें कह देती है पहले भी सूना बहोत बारी और आज फिर सुनके बहोत अच्छा लगा .... मैं हमेशा ही कहता हूँ के आपकी आवाज़ मुझे बहोत पसंद है कुछ तो दो एक बातें है जो मुश्किल से कही कहीं दिखती है ... आपकी कविता के साथ ये संगीत और फिर ये विडियो मिक्सिंग कमाल की बात है आप तो बहुमुखी प्रतिभा की धनि है ....
ReplyDeleteआभार आपका
अर्श
क्यों समय के भंवर से कोई निकल पाता नहीं,
ReplyDeleteवो लोग जाते हैं कहाँ कुछ भी समझ आता नहीं!
बेहद सटीक भाव है. समय के भंवर से शायद ही कोई निकल पाया हो. असंभव..
गीत बेहद सुंदर और सुमधुर आवाज..बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत ही सटीक अल्पना जी बधाई.
ReplyDeletebahut sundar abhivyalti !badiyaa geet sunavane ke lie aabhaar.
ReplyDeleteअब क्या कहूं, कोई राह भी नही दिखती जिस तरफ़ देखे कि कहा गये, बस एक खाली पन छोड देते है, मिठ्ठी कडवी यादे, आप का यह गीत आंखो मे आंसु छोड गया.धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना अर्चना जी.
ReplyDeleteहैं सुरक्षित स्मृति चिन्ह,कुछ भी कभी धुलता नहीं,
ReplyDeleteपीर भेदे हृदय पट को , पर कभी खुलता नहीं!
सही कहा है..........कभी कभी कोई इंसान दुबारा नहीं मिलता पर उसकी याद मन में हमेशा एक कोना महकाती रहती है, गुदगुदाती रहती है. आपका गीत भी लाजवाब है................. मन को कहीं गहरे खींच कर ले जाता है यह गीत
आनंद बक्शी के शब्दों में और आशा भोसले की आवाज़, दोनों में ही उन्मुक्त पक्षी की उड़ान की सी आज़ादी है.
ReplyDeleteक्यों समय के भंवर से कोई निकल पाता नहीं,
ReplyDeleteवो लोग जाते हैं कहाँ कुछ भी समझ आता नहीं!
लाजवाब.... कितनी दार्शनिकता छुपी हुई है इन पंक्तियों में।
चिठ्ठी ना कोई सन्देश .. गाना तो वाकई अपने आप में बहुत खुबसूरत है..
ReplyDeleteआपने जो कविता लिखी है .. वह भाव कई लोगों के मन में होता है ..
सोचती हूँ मैं बना दूँ एक सीढ़ी,
इस जहाँ से उस जहाँ ,
लौट पायें वे सभी जिनके बिना,
ज़िंदगानी का सफ़र अब और तो भाता नहीं!
ये चार पंक्तिया वाकई बहुत बढ़िया बन पढ़ी हैं....
तम घना है रीते मन का,रक्त रंजित भाव हैं,
ReplyDeleteकल्पनाएँ थक गयी हैं,स्वप्न भी सब सो गए!
है कठिन ये वक़्त,क्यूँ जल्दी गुज़र जाता नहीं!
alpana ji, bahut khoob likha hai ,kathin waqt guzarna bahut bhari padta hai sukh ka samay jaldi beetta hai.bahut umda pankti hai ye. badhai sweekaren.
geet bhi sunta hun , swabhavik roop se hamesha ki tarah manbhavan hi hoga.
सुंदर कविता।
ReplyDeleteऔर यह संगीत तो मेरी पसंदीदा गीतों में से एक है, अपनी मधुर आवाज में सुनवाने के लिए आभार। सच कहूँ तो पहली बार में मुझे यह आवाज किसी सिद्धहस्त गायक की लगी।
सुन्दर। पोस्ट भी अच्छी है और ब्लॉग टेम्प्लेट भी!
ReplyDeleteतम घना है रीते मन का,रक्त रंजित भाव हैं,
ReplyDeleteकल्पनाएँ थक गयी हैं,स्वप्न भी सब सो गए!
भाव प्रधान इक बेहतरीन रचना ,बहुत ही पसंद आयी .
सुंदर संगीत का क्या कहना है ,बहुत उम्दा .
तम घना है रीते मन का,रक्त रंजित भाव हैं,
ReplyDeleteकल्पनाएँ थक गयी हैं,स्वप्न भी सब सो गए!
utkrisht panktiyaan...kavita bhi achhi ban padi hai :)
आपकी रचना आज अपनी सी लगी।
ReplyDeleteहै कठिन ये वक़्त,क्यूँ जल्दी गुज़र जाता नहीं!
कठिन वक्त इतना समय क्यों लेता है गुजर जाने में?
और हाँ ये गाना मुझे बहुत ही पसंद है।
आह एक पोस्ट में कितना कुछ है
ReplyDeleteबहुत से सितारों और नामों से सजी किसी मुम्बईया फिल्म सा हाल है जिसमे सचिन दादा टाईप संवेदनशीलता भी
यार कभी कोई फिल्म ही बना लो
लाजवाब्।
ReplyDeletenice poem
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
आनन्द आ गया.
ReplyDeleteयथार्थवादी अभिव्यक्ति की यह मार्मिक प्रतिनिधि कविता -मन को भा गयी !
ReplyDelete'तम घना है रीते मन का,रक्त रंजित भाव हैं,
ReplyDeleteकल्पनाएँ थक गयी हैं,स्वप्न भी सब सो गए!'
'समय का भंवर'कविता दिल को छू गयी.
[चिठ्ठी न कोई संदेस'गीत और गीत पर आप का बनाया विडियो भी बहुत अच्छा लगा.
बहुत ही सुन्दर पोस्ट.
आपकी कविता ही पसंद नहीं आई बल्कि आपके द्वारा गया गया गीत भी बहुत पसंद आया......वैसे यह गीत मेरे पसंदीदा गीतों में से एक है......एक अलग अंदाज में सुनवाने के लिए धन्यवाद.....
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
अच्छी गजल, खासकर सीढी वाला बिम्ब शानदार है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
क्यों समय के भंवर से कोई निकल पाता नहीं,
ReplyDeleteवो लोग जाते हैं कहाँ कुछ भी समझ आता नहीं..kitne thode me aap boht kuchh kahti hai....
http://www.youtube.com/watch?v=RIXPfaS1AIw
ReplyDeleteमेरा पसंदीदा गानों में से एक बहुत अच्छी पसंद है आपकी:)....
आपकी रचना इन भवों पर बिलकुल सफल है ...बहुत ही बढ़िया लिखा है......
अतीते के चित्रों से ,मन अब क्यूँ बहल पाता नहीं
ये पंक्ति तो गजब की है....
अक्षय-मन
चिट्ठी न कोई संदेश...हमेशा से मेरी भी पसंअद रही है।
ReplyDeleteआपकी आवाज और और वो विडियो सुन नहीं पा रहा। नेट की गति साथ नहीं देगी। किंतु आश्चर्यचकित हूँ, कि आप इतना कुछ कैसे कर पाती हैं। सिरियल के क्लीप्स से खुद का विडियो तैयार कर पाना। अद्भुत..!
"सोचती हूँ मैं बना दूँ एक सीढ़ी
इस जहाँ से उस जहाँ ,
लौट पायें वे सभी जिनके बिना"
लाजवाब पंक्तियां।
...और अमलतास वाले प्रकरण से सकते में हूँ। कुछ ज्यादा ही नहीं होने लगी हैं ऐसी घटनायें इधर?
मानव मन की सँवेदनाओँ के प्रति सहानुभूति लिये
ReplyDeleteअपका प्रयास बहुत अच्छा लगा
अल्पना जी,
इस के पहले
जो आपकी कविता अनुमति के बिना
किसी ने छाप दी
ये बडा गलत किया उसका दुख है
- लावण्या
समय का भँवर एक बहुत ही भावमयी रचना है, और चिट्ठी न कोई संदेश जो कि आनन्द बक्षी साहब का लिखा गीत है को मेरे लाखों करोड़ों सलाम...
ReplyDelete---
आनंद बक्षी
अतीते के चित्रों से ,मन अब क्यूँ बहल पाता नहीं!
ReplyDeleteसोचती हूँ मैं बना दूँ एक सीढ़ी,
इस जहाँ से उस जहाँ ,
लौट पायें वे सभी जिनके बिना,
ज़िंदगानी का सफ़र अब और तो भाता नहीं
सचमुच अतीत की यादो की कसक हम कभी भूलना नही चाहते |
सोचती हूँ मैं बना दूँ एक सीढ़ी,
ReplyDeleteइस जहाँ से उस जहाँ ,
लौट पायें वे सभी जिनके बिना,
ज़िंदगानी का सफ़र अब और तो भाता नहीं!
और ये गीत.....!बहुत कुछ हो गया दुनिया में काश ये कल्पना भी सच हो सके...!
अभी कल रात ही तो गुनगुना रही थी, इस गीत को, अपनी संगीत गुरु की पुण्यतिथि पर उनके कुछ प्रिय लोगो के साथ मिल कर
aapne itni acchi kavita likhi hia jo man ko jhakjhor gaya .. man bheeg gaya hai , aapki awaaj me geet hamesha ki tarah hi madhur hai ..
ReplyDeletemeri badhai sweekar karen..
बहुत अच्छी पोस्ट.. नेट कनेक्शन स्लो होने के कारण वीडियो नहीं देख सके..
ReplyDeleteक्यों समय के भंवर से कोई निकल पाता नहीं,
ReplyDeleteवो लोग जाते हैं कहाँ कुछ भी समझ आता नहीं!
बहुत सही और सुन्दर कविता ..गाना यह बेहद पसंद है ...
आपका ब्लोग याने सृजनता का यशस्वी उपयोग.
ReplyDeleteसीरीयल के बिंबों का इतना अच्छा केलेडियोस्कोप बनाया आपने एक बेहद ही संवेदन भरे शब्दों से बने गीत को गाकर . आपकी प्रतिभा अनंत है.
आपके गायन में अब जो ठहराव आया है, वह सुरीले पन के साथ गाने में प्राण फ़ूंकता है. याने हमारे मन में सुप्त भावनाओं की अभिव्यक्ति हम उस गीत के माध्यम से मेहसूस करते है, कराते है.
साथ ही आपकी कविता भी एक अलग भाव को पेश करती है. सीढी वाली बात से तो यही कह उठता है दिल कि-
कहीं बेखयाल होकर , यूंहि छू लिया किसीने...
So senti song i luv it a lot but it makes me feel sad too ..don;t know why ..very nice ..i luv ur choice of songs ..beautifully sung
ReplyDelete-Archana
wahhh..what a lovely selection and bahot acha gaya hai...listeing to your voice after quite sometime....nice rendition ..plz keep singing and sharing more
ReplyDelete-H.
गीत बहुत ही अच्छा चुना जो हर दिल के करीब है , अच्छा गायन और साथ मे सटीक लेखन I फुर्सत मे कभी हमारे ब्लॉग पर भी दस्तक दे .I
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है. समस्या यह है कि कोई सीढी बनाता ही नहीं जो सबसे बड़ी जरूरत है. अरे वाह ये ग़ज़ल तो हमने सुनी ही नहीं थी. बहुत प्यारे बोल और हमारी कानों के लिए आवाज़ दी है अल्पना ने. शुद्ध शहद की बूँदें.
ReplyDeleteWowwww..Very good poem and good song selection..
ReplyDeleteExcellent effort...Lovely voice.
bohut acha laga apki awaaz mein geet sun kr..after 2 antara "alaap" was fantastic with perfect flow of curves..Keep it up...
सुरक्षित स्मृति चिन्ह,कुछ भी कभी धुलता नहीं,
ReplyDeleteपीर भेदे हृदय पट को , पर कभी खुलता नहीं!
दार्शनिकता का पुट लिए ,सुन्दर भावाभिव्यक्ति
kamal he aap ji,
ReplyDeletegeet,vedio aour kavita///
samay ke is bhanvar me main to rahnaa chahtaa hoo, jnhaa itani saadgi se teen chijo ka ek saath aanand liya jataa ho//
bahut khoob
सोचती हूँ मैं बना दूँ एक सीढ़ी,
ReplyDeleteइस जहाँ से उस जहाँ ,
लौट पायें वे सभी जिनके बिना,
ज़िंदगानी का सफ़र अब और तो भाता नहीं!
अल्पना जी,
बहुत सुन्दर भावों को अभिव्यक्ति दी है आपने।खासकर इन पन्क्तियों में
जिस जज्बे को आपने लिखा है वही हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
पूनम
"क्यों समय के भंवर से कोई निकल पाता नहीं,
ReplyDeleteवो लोग जाते हैं कहाँ कुछ भी समझ आता नहीं!"
बहुत सुंदर...मुकेश का यह गाना याद आ गया...जाने चले जाते हैं कहाँ......
समय के भंवर से अगर व्यक्ति निकल जाता,
ReplyDeleteतो फिर शायद वह इंसान न रह पाता।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
दिल को छूने वाली रचना. बधाई.
ReplyDeletebahut sundar kavita.
ReplyDeletepadhkar dil udas ho gaya.
jab koyi hamaara karibi door ho jata hai to dil karta hai kisi tarah ek baar usse mulakat ho jaye...hai na ?
ye wala song hamko bahut pasand hai.
हैं सुरक्षित स्मृति चिन्ह,कुछ भी कभी धुलता नहीं,
ReplyDeleteपीर भेदे हृदय पट को , पर कभी खुलता नहीं!
अतीते के चित्रों से ,मन अब क्यूँ बहल पाता नहीं!
अल्पना जी ,
बहुत कम शब्दों में आपने बहुत बढिया भावो को लिखा है.
अच्छी लगी आपकी ये कविता भी .
हेमंत कुमार
wah alpna g sunder prastuti
ReplyDeleteAlpnaji
ReplyDeletedhanywad
apne mhilao ke utthan ko bhut hi suruchipurn dhag se pribhashit kiya .uske liye hrday se abhari hu .
shubhkamnaye
lijiye aapka lekhan dobara se khich laaya mujhe aapke blog par......:)/...........all da best......
ReplyDeletegeet aur kabita anootha sangam
ReplyDeleteshabda nahi tarif ke
ak acha aur safal prayash
asaha hai jald hi aur bhi geetke
swar kanon ko madhurat pradan karenge
kishore kumar jain
माफी ! देर हुयी आने में , पर वही आनंद . गीत भी और संगीत भी . और क्लिप्स का सुन्दर संयोजन . प्रस्तुति में निखर आ रहा है !
ReplyDeleteफौरी तौर पे टिपण्णी करने की आदत कम है ...मन कुछ अजीब से मूड से था ओर आपकी पोस्ट भी मेरे ब्लॉग पे नहीं दिख रही है...जिंदगी के सफ़र से हम कितने लोगो को चढ़ते उतरते विदा होते देखते है....जिंदगी उसी बेराह्मी से अपना सफ़र जारी रखती है ओर हम भी....कुछ कसक .कुछ याद जरूर दिल से बाकी रहती है हमेशा..गाहे बगाहे किसी बेजान चीज से भी उसका ताल्लुक रहता है ...जब कभी कोई वाक्य उससे जुडा गुजरता है .हम एक पुराने सफ़र से फिर गुजरते है...
ReplyDeleteनतमस्तक है आपके रचना के आगे...
ReplyDeleteअल्पना जी,
ReplyDeleteगीत को ऊँचाईयों पर ले जाती हुई यह पंक्तियाँ दिल को छू लेती हैं :-
अतीते के चित्रों से ,मन अब क्यूँ बहल पाता नहीं!
बधाईयाँ,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
इतनी सुंदर रचना मैंने कैसे मिस कर दी, चलो देर से ही पढ़ी पर बहुत अच्छी लगी...
ReplyDeleteऐसा लगता है जैसे मेरी ही कहानी है...
मीत
ये स्मृतियां ही हैं जो हमें दर्द और अवसाद से भर देती हैं
ReplyDeleteये स्मृतियां ही हैं जो हमारा संबल बनती हैं
ये स्मृतियां ही हैं जो हमें प्रेरणा और ऊर्जा से भर देती हैं !
हैं सुरक्षित स्मृति चिन्ह,कुछ भी कभी धुलता नहीं,
पीर भेदे हृदय पट को , पर कभी खुलता नहीं !
अत्यंत ह्रदयस्पर्शी रचना और उसी भाव भूमि पर म्यूजिक वीडियो !
सोचो तो जिन्दगी और है भी क्या ....
कुछ वादे .. कुछ यादें ... कुछ सपने ...
किसी का मिलना .. किसी से बिछड़ना
नादाँ था कोई
जो पूछ रहा था मुझसे
जिन्दगी का मतलब
Jindagi ke falsae par behad sundar kavita.
ReplyDeleteअल्पना जी ,
ReplyDeleteएक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....
kitna achha laga padhkar ye shabdo me bayan nahi kar sakta
ReplyDeleteअल्पना जी...मुझे आपका ब्लॉग कितना अच्छा लगा कह नहीं सकता....चिठ्ठी न कोई सन्देश..ये तो मेरा पसंदीदा गीत है जिसे सुनकर मन भाव भिवोर हो गया साथ में आपकी कविता सच कहूँ उसने धीरे से कहीं मेरे मन को छू लिया....मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteआभार आपका!!
aहैं सुरक्षित स्मृति चिन्ह,कुछ भी कभी धुलता नहीं,
ReplyDeleteपीर भेदे हृदय पट को , पर कभी खुलता नहीं!
अतीते के चित्रों से ,मन अब क्यूँ बहल पाता नहीं!
sach jaise dil k i baat keh di ho aapne.kuch aziz milkar bichad jaate hai.
ye video clips ke saath,chithhi na koi sndes tho behad khubsurat sangam bana hai alpana,aur us mein shahad si ghuli aapki aawaz,beinteha khubsurat.link bhejne ke liye shukran,varna to hum isko kabhi padh hi na paate.sunder.