गरमी इस बार भी अपनी हदों को पार किये जा रही है.कल भी पारा ५० से ऊपर ही था.धूल भरी गरम खुश्क हवाएं दिन भर कहर ढाती हैं.सुबह ९ बजे के बाद नलों में आते पानी को हाथ लगा नहीं सकते. इतना गरम हो जाता है!हर साल अलऐन शहर यू.ऐ.ई का सब से गरम शहर होता है इस बार भी अपना रिकॉर्ड बनाये रखेगा! मई तो गुजरने वाला है,जल्दी से जून और जुलाई भी गुज़र जाएँ तब ही इस मौसम से निजात मिलेगी.मौसम की बात दर किनार कर ,पेश करती हूँ कुछ ख्याल-:
भारत में आज कल गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही हैं.यहाँ अभी स्कूल चल रहे हैं और पहले सत्र की परिक्षाएं नज़दीक आ रहीहैं.[जून के पहले हफ्ते से परिक्षाएं आरंभ हैं.उस के बाद जुलाई-अगस्त ग्रीष्मावकाश होगा.] इसी के चलते आजकल मेरी ,समय के साथ रस्साकशी चल रही है.इस लिए नया कुछ लिख नहीं पाई. हम सभी जानते हैं कि 'जीवन में कभी कभी किसी की कही गयी एक बात जीवन की दिशा ही बदल देती है और बढ़ते बच्चों को माता -पिता का 'क्वालिटी 'समय ,देखभाल और स्नेह बहुत ही जरुरी है.नहीं तो वे दिशाहीन हो जाते हैं.आज एक ऐसी ही बच्ची की कहानी प्रस्तुत कर रही हूँ जिस के माता पिता के पास उस के लिए समय नहीं था लेकिन एक अध्यापिका के सही मार्गदर्शन ने उसे नयी राह दी.
यह कहानी मैंने यहीं अपने अध्यापन काल के दौरान स्कूल की वार्षिक पत्रिका (९८-९९ )के लिए लिखी थी. . मैं और मेरी छात्राएं.
रेखा ----- कक्षा पांच में पढने वाली रेखा अक्सर स्कूल से घर आ कर रोती थी कि उसकी कोई सहेली क्यों नहीं है?घर में उस के सवालों का जवाब देने के लिए मम्मी पापा के पास समय नहीं है.घर में नौकर हैं ढेर सारे खिलौने भी हैं,मगर उसे कुछ अच्छा नहीं लगता.लोग उसे अब जिद्दी भी कहने लगे हैं.
आज स्कूल में संगीत कि नयी टीचर आई हैं.सभी ने उनका स्वागत किया.एक दिन उनकी कक्षा में रेखा सुबक सुबक कर रो पड़ी. ''अरे!रेखा क्या हुआ?तुम्हारी तबियत तो ठीक है न? " नीरा टीचर ने पूछा. ''तुम तो अच्छी लड़की हो फिर रोती क्यूँ हो?उन्होंने फिर पूछा.
अच्छी!...हा !हा !हा!....कक्षा में छात्रों के हंसी ठहाकों कि गूंज भर गयी,मगर टीचर के डाँटते ही कक्षा में सन्नाटा छा गया.तभी घंटी बज गयी.''रेखा तुम मुझ से ब्रेक टाइम में आ कर मिलना.''कहती हुई टीचर चली गयीं. टीचर का स्नेह पा,रेखा ने उनसे अपनी मनोव्यथा कह डाली.
दूसरे दिन फिर रेखा को नीरा टीचर ने अपने पास बुलाया और उस से कहा ,"रेखा मैं ने तुम्हारी समस्या पर विचार किया ,कई बच्चों से अलग अलग बात भी की.जानना चाहती हो, कि तुम्हें कोई पसंद नहीं करता?" नीरा टीचर ने उसे समझाते हुए कहा,"देखो रेखा!सब से पहले तुम अपनी आदतें सुधारो,अपनी अमीरी या फिर खिलौनों का रौब कक्षा के दूसरे बच्चों पर जमाना ठीक नहीं है.सब से मिल कर रहना चाहिये.बड़ों का अदब करो.और हाँ अपने आप को भी देखो,तुम्हारे बाल बिखरे रहते हैं,नाखून भी कितने गंदे हैं.सुबह नहा धो कर साफ़ यूनीफोर्म पहन कर आया करो.अगर तुम दूसरे बच्चों से लड़ोगी,उन्हें अपशब्द कहोगी तो कोई तुम्हें पसदं नहीं करेगा.सभी के साथ मधुर,नम्र और समान व्यवहार रखो,किसी का अपमान मत करो.फिर देखो तुम्हें कितनी ख़ुशी मिलती है.हमेशा मुस्कराओ,बात बात पर चिडचिडाओ मत.फिर देखो तुम्हें कैसे कोई पसंद नहीं करता??गलती पता चलते ही उसे सुधार लेने में ही समझदारी है.''
जैसे ही यह सब कह कर टीचर ने उसकी पीठ थपथपाई तो रेखा को एक सुखद सी अनुभूति हुई.उस ने उनकी सभी बातों को ध्यान से सुना था.वह सोचने लगी''पहले ये सभी बातें उसे किसी ने क्यों नहीं बताईं?हो सकता है कहा भी हो पर उस ने कब,किसी की बात सुनी है?
आज सालों बाद रेखा एक आकर्षक व्यक्तित्व वाली सफल व्यवसायी है.उस का अपना एक सफल बुटीक है.कभी कभी वह सोचती है कि उस समय अगर नीरा टीचर ने उसका मार्गदर्शन नहीं किया होता तो क्या होता?उस का वक्तितव कैसा होता?हर किसी को अपनी गलती पता चलते ही सुधार लेनी चाहिये. कहते हैं न 'सुबह का भूला अगर शाम को घर लौटे तो उसे भूला नहीं कहते.' ----------------------------------------------------------------------
एक फौजी जो बना महान संगीतकार-श्री मदन मोहन कोहली
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पहले जब कभी मैं गाने सुनती थी तब कभी गीतकार और संगीतकार के नामों पर गौर नहीं किया करती थी.
सिर्फ याद रहता था गाने वाले और फिल्म का नाम.इत्तिफाक से एक दिन म्यूजिक सी डी की दुकान पर अपने पसंदीदा गीतों को 'लता सिंग्स फॉर मदन मोहन 'नाम की सी डी में देख कर मालूम हुआ कि इन गीतों के संगीतकार मदन मोहन जी हैं.इन्टरनेट के आ जाने से जानकारी लेना देना इतना आसान हो गया है तो यहीं उन के बारे में बहुत कुछ जाना.आज आप को भी मिलवाती हूँ अपने पसंदीदा संगीतकार श्री मदन मोहन जी से..
श्री मदन मोहन कोहली -[संगीत निर्देशक]
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जन्म-जून २५,१९२४ ,जन्म स्थान-बगदाद,[इराक]
उनके पिता राय बहादुर चुन्नी लाल फिल्म व्यवसाय से जुड़े थे जो पहले बाम्बे टाकीज और बाद में फिल्मीस्तान जैसे बडे फिल्म स्टूडियो में साझीदार थे.घर का माहोल फ़िल्मी था और वह फिल्मों में बड़ा नाम कमाना चाहते थे.
अनके पिता जी फ़िल्मी दुनिया के स्वभाव को समझते थे इस लिए उन्होंने मदन जी को सेना में भर्ती होने देहरादून भेज दिया.मदन जी ने १९४३ में सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर कार्य करना शुरू भी कर दिया.दिल्ली बदली होने के बाद उनका मन संगीत की तरफ खींचता गया और वहां उन्होंने यह नौकरी छोड़ कर लखनऊ आकाशवाणी में काम शुरू किया.लखनऊ में आकाशवाणी में ही उन्हें संगीत जगत से जुडे़ उस्ताद फैयाज खान, उस्ताद अली अकबर खान, बेगम अख्तर और तलतमहमूद जैसी मानी हुई हस्तियों से मुलाकात का मौका मिला.लखनऊ से मुम्बई आने के बाद उन्होंने एस.डी.बर्मन, श्याम सुंदर और सी.रामचंद्र जैसे प्रसिद्व संगीतकारों के सहायक के रूप में कुछ समय काम किया.स्वतंत्र रूप से जिस फिल्म के लिए उन्होंने संगीत दिया वह थी-'आँखें '[१९५०].
अपने लगभग ढाई दशक के सिने कैरियर में 100 से अधिक फिल्मों के लिए संगीत दिया[अफ़सोस यही है की उनमें ज्यातर फिल्में बी ग्रेड की थीं.]मदन मोहन जी के २० साल के संगीत के सफ़र में उनके साथ आशा भोंसले ने १९० और लता मंगेशकर ने २१० फ़िल्मी गीत गाये .
उनके महान संगीत की उत्तमत्ता इसी बात से आंकी जा सकती है कि हर वो गीत जो उनके संगीत में बस गया है..वो अपने आप में एक मिसाल बन गया और आज भी ताज़ा और दिल गहराईयों में उतर जाने वाला लगता है.
वह जहाँ संगीत के स्तर पर ध्यान देते थे वहीँ गीत के बोलों पर भी उतनी ही तवज्जोह!
अगर गीत के बोल अच्छे नहीं तो वह संगीत नहीं बनाते और अगर बोल बहुत अच्छे हुए तो वह बहुत खुश हो जाते थे .फिल्म -चिराग ' के 'तेरी आँखों के सिवा 'गीत के बोल जब लिखे गए..तब क्या हुआ..आप खुद ही लता जी की ज़ुबानी सुनिये
उनके बारे में कुछ और बातें-
१-गीतकारों में राजा मेहन्दी अली खान, राजेन्द्र कृष्ण ,साहिर लुधिआनवी ,मजरूह और कैफी आजमी को मदन जी ख़ास पसंद करते थे.
२-गायिकाओं में लता जी उनकी सब से चहेती गायिका थीं-लता जी के लिए कभी रिकॉर्डिंग के समय-मन्त्र मुग्ध मदन जी कह जाते थे --तुम कभी बेसुरी क्यूँ नहीं होती?कैसे जान लेती हो कि मुझे गीत में क्या चाहिये?कैसे हर शब्द को उसके सही सुर में बाँध लेती हो?
यह भी सच है कि नए आये इस संगीतकार के लिए शुरू में लता जी ने गाने के लिए मना कर दिया था.तब उन्होंने मीना कपूर से अपना पहला गाना गवाया था.उस के बाद तो लता जी और मदन जी ने खैर इतिहास ही बना दिया.
३-दिल के साफ़ मदन जी सीधी बात कहते थे..शायद इस लिए भी उन्हें बहुत सी आलोचनाएँ मिलीं.
आशा जी भी उनके संगीत से प्रभावित थीं और एक बार जब उन्होंने पूछा कि आप मुझ से क्यों नहीं गवाते..तब उन्होंने बेबाक कहा जब तक लता है मेरे गाने वही गाएगी.'
लेकिन इसी बात नहीं है की आशा जी से उन्हें कोई दुश्मनी थी...वह आशा जी की ख़ास गायकी जानते थे..उन्होंने उन्हें वैसे गाने दिए भी.उनके लिए आशा जी ने १९० गाने गाये हैं .फ़िल्म "नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे" में तो मदनजी के सारे गीत आशाजी ने गाये .
आशा जी की तारीफ़ में मदन जी ने क्या कहा ,आप खुद ही सुनिये
४-समझोता अपने गीतों के साथ वह कभी नहीं करते थे.उनके लिए संगीत सब से ऊपर था..पैसे के लिए उन्होंने कभी संगीत को ज़रिया नहीं बनाया.उनका कोई ख़ास एक पसंदीदा राग नहीं था.न ही उन्होंने कोई ओपचारिक शिक्षा संगीत में ली थी.फिर भी उन्होंने शास्त्री संगीत पर आधारित इतने ऊँचे स्तर के गीत बनाये हैं उदाहरन के लिए फिल्म-देख कबीरा रोया,
५-लता के अलावा उन्होंने और भी गायकों को यादगार गीत दिए जैसे-,तुम से कहूँ एक बात परों से हलकी,[दस्तक-रफी],तुम जो मिल गए हो[हीर-राँझा-रफी]में ये सोच कर[हकीकत],तेरीआँखकेआंसूपीजाऊं [तलत-जहानारा] बल्कि-मन्ना डे-से देख कबीरा रोया फिल्म में बेहतरीन गीत गवाए-हिंदुस्तान की कसम में गाया मन्ना डे का गीत -'हर तरफ अब ये ही अफ़साने हैं 'मेरा पसंदीदा गीत है.
किशोर की आवाज़ में सिमटी सी शर्मायी सी [परवाना ]कर्णप्रिय है.आशा जी का 'झुमका गिरा रे [फिल्म मेरा साया]आज भी लोकप्रिय है.
६-उन के जीते जी उन्हें वह सम्मान और पहचान नहीं मिल पाई जिस के वह हकदार थे.आज हम उन्हें याद करते हैं और बहुत पसंद करते हैं और उनके संगीत को ज़िन्दा रखने का अपने अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं.उनकी रूह को जरुर तसल्ली मिल रही होगी.
उस ज़माने में भी पुरस्कारों में चीटिंग होती थीं,फिल्म फेयर पुरस्कार में 'वो कौन थी 'के लिए उनका नामांकन हुआ मगर कहते हैं वहां manipulations के कारण पुरस्कार उनके हाथ से निकल गया.जब उन्हें दस्तक फिल्म के लिए राष्ट्रीय सम्मान की घोषणा हुई तब वह अकेले नहीं गए,संजीव कुमार और रेहाना के साथ ही इस अवार्ड को लेने पहुंचे.
७-उन्हें क्रिकेट,badminton ,टेनिस खेलों की भी उतनी ही बढ़िया जानकारी थी जितनी संगीत की.
८-वह खाना भी बहुत अच्छा पकाते थे.उनको भिन्डी मसाला पसंद थी और लता जी को भी..जब भी लता जी उनके घर आतीं वह यह सब्जी उनके लिए खुद बनाते थे.
९-बेहद संवेदनशील थे इस लिए फ़िल्मी दुनिया के स्वार्थी पहलु ने उन्हें बेहद दुखी और निराश भी किया जिस से वह बहुत अधिक शराब पीने लगे और लीवर के cirrohosis के कारण ५१ की आयु में ही उनकी मृत्यु हो गयी.[14 July 1975]
१०-उनकी बेहतरीन फिल्में थीं-अदालत,अनपढ़,मेरा साया,दुल्हन एक रात की,हकीकत,हिंदुस्तान की कसम,जहानारा,हीर राँझा,मौसम,लैला मजनू,महाराजा,वो कौन थी आदि.
उनकी मृत्यु के बाद उनके संगीत निर्देशन वाली मौसम और लैला मजनू फिल्में आयीं और वीर-जारा[२००४] फिल्म के लिए यश चोपडा ने उनके बेटे के बताने पर उनकी अप्रयुक्त धुनों को फिल्म में इस्तमाल किया जो धीमा संगीत होने के बावजूद बेहद हिट हुआ.
आईये जानते हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की कुछ महान हस्तियों ने मदन जी या उनके संगीत के बारे में क्या कहा-
1-संजीव कोहली जो उनके बेटे हैं , जो HMV में काम करते थे फिर यश चोपडा के साथ जुडे ,[more than 30 yrs in film industry]filmfare पत्रिका में एक लेख में कहते हैं-मैं हमेशा उन्हें संगीतकार नहीं एक पिता के रूप में ही याद करता हूँ .उनके पिता भी यही कहा करते थे की फिल्म इंडस्ट्री ने उनको वांछित मान नहीं दिया..जो सच है.राज कपूर और देव आनंद उनके अच्छे मित्र थे मगर उन्हें बडे बैनर की फिल्में कभी नहीं मिलीं.'सत्यम शिवम् सुन्दरम 'फिल्म उनके पिता को ऑफर की गयी थी मगर कोई बात पूरी होने से पहले मदन जी की मृत्यु हो गयी.
-मदन जी और सुरैय्या आकाशवाणी में साथ गाते थे.
-यह उनका दुर्भाग्य था कि उनके संगीत निर्देशन वाली फिल्में अक्सर बॉक्स ऑफिस पर पिट गयीं,जिसका उन्हें हमेशा अफ़सोस रहा.
-उनके समय में भी फिल्म निर्देशकों और संगीतकारों में गुटबाजी और खेमे बाज़ी थी,जिसका नुक्सान मदन जी को हुआ.यूँ तो उनको चेतन आनंद ने काफी सहारा दिया.
-मदन जी की अति संवेदनशीलता का परिचय इस घटना से मिलता है कि एक बार राईस खान [सितारवादक] जो कि उनके गीतों में सितार बजाते थे,]ने उन्हें अपने दोस्त के घर दावत में गाने को कहा और साथ ही यह भी पूछ लिया कि महफ़िल में गाने के कितने पैसे लोगे? मदन जी को बहुत चोट पहुंची,१९७२ के उस दिन के बाद से उनकी मृत्यु तक उन्होंने कभी फिर अपने गीतों में सितार इस्तमाल नहीं किया.
--गीतों की रिकॉर्डिंग के बारे में कुछ यादें बाँटते हुए संजीव जी कहते हैं-
१-फिल्म-'वो कौन थी'के गीत नैना बरसें 'को शूट करना था मगर लता जी की तबियत ठीक नहीं थी.तब मदन जी ने स्वयं अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड किया और बाद में डब करके लता जी का गाना फिल्म में जोड़ा गया.इस गीत की धुन उन्होंने १८ साल पहले बनाई थी-आप मदन जी की आवाज़ में सुनिए यह गीत और उनकी ज़ुबानी गीत की कहानी
२-'नैनो में बदरा छाये' गीत मेरा साया फिल्म में जोड़ा जाना था..लता जी के पास तारीखें नहीं थीं.इधर राज खोसला जल्दी कर रहे थे.मदन जी ने लता जी से निवेदन किया..अगले दिन की बात तय हुई.अगले दिन लता जी नहीं पहुंची उनकी तबियत नासाज़ थी.
मदन जी खुद गाड़ी ले कर लता जी को ले कर आये...रिकॉर्डिंग के दोरान एक साज़िन्दा बार बार सुर गलत लगा रहा था..सभी दवाब में थे..गुस्से में मदन जी ने रिकॉर्डिंग स्टूडियो की खिड़की का कांच ही तोड़ डाला..मगर इन सब के बावजूद गाना बना और बेहद हिट हुआ.
३-मदन जी अपने कलाकारों को समझते थे,'हंसते ज़ख्म 'के गीत 'आज सोचा तो आंसू भर आये'..को रिकॉर्ड करते समय लता जी रो पड़ीं ..तब मदन जी ने उन्हें घर भेज दिया और दूसरे दिन आने को कहा.
४-चिराग फिल्म के बेहद मुश्किल गीत' छाई बरखा बहार 'की रिकॉर्डिंग के समय साजिंदों के बार बार गलतियाँ करने के कारण लता जी को १५ बार टेक देना पड़ा..पहले रिकॉर्डिंग के लिए सिंगल टेक में ही गाने गाये जाते थे.[आज की तरह टुकडों में नहीं]
५-फिल्म-अनपढ़ के 'आप की नज़रों ने समझा गीत की धुन उन्होंने 2 मिनटों में बनायी ही थी.लिफ्ट में ग्राउंड से पांचवीं मंजिल तक पहुंचते हुए.
६-संजीव जी मानते हैं कि उनके पिता की कमर्शियल हिट भाई -भाई [१९५६]फिल्म थी.जिसमें गीता दत्त का गाया गीत 'ऐ दिल मुझे बता दे 'काफी लोकप्रिय हुआ था.
७-लता जी और मदन जी का रिश्ता भाई बहन का था.संजीव कहते हैं मदन जी की मृत्यु के बाद लता जी उनके परिवार के और निकट आ गयी थीं.
[मैं ने कहीं पढ़ा था -लता जी और मदन जी दोनों ने एक फिल्म के लिए भाई बहन पर फिल्माए जाने वाला एक गीत भी रिकॉर्ड किया था.जो फिल्म किसी कारन वश नहीं आ सकी]
2-- खुद लता जी से सुनिए जिन्होंने उन्हें ग़ज़ल ka shazada की उपाधि दी है
3-संगीतकार एस .डी.बर्मन ने 'हीर राँझा' के संगीत की तारीफ करते हुए यह कहा कि जैसा मदन जी ने फिल्म में संगीत दिया है मैं इसका आधा भी संगीत नहीं दे पाता.
४-संगीतकार नौशाद ने उनके गीतों -आप की नज़रों ने समझा[अनपढ़] और है इसी में प्यार की आबरू ' फिल्म-]के बदले अपनी सारी धुनें देने को तक कह दिया.
५-अब सुनिए मदन जी के बारे में जयदेव जी की ज़ुबानी-जो कह रहे हैं कि मदन जी जैसा महान संगीतकार दोबारा नहीं हो सकता
6-एक और फ़िल्मी हस्ती कहती हैं-[क्या Yash chopra ji हैं]
7-एक और फ़िल्मी हस्ती कहती हैं-[क्या आप पहचाने यह कौन हैं?]
8-संगीतकर ओ .पी .नैय्यर [जिन्होंने कभी लता ji को नहीं गवाया.] के अनुसार -जिस तरह लता जी जैसे गायिका दोबारा होना मुश्किल है वैसे ही मदन जी जैसा संगीतकार का भी दोबारा होना मुश्किल है.
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सुनिये-'माई री मैं कासे कहूँ अपने जिया की'फिल्म-दस्तक.
यह गीत जो लता जी और मदन जी दोनों की आवाज में आप को मिल जायेगा.यहाँ मदन जी का गाया गीत दे रही हूँ.यह मुझे भी बहुत पसंद है.इस गीत में जिस तरह से हर शब्द को सुरों के ज़रिये स्त्री के गहन मनोभावों को ढाला गया है वह अद्भुत है.
मदन जी द्वारा निर्देशित दो दुर्लभ गीत सुनिए,जो कभी रिलीज़ ही नहीं हो पाए -:
1-पहलेवाला प्लेयर बदल दिया है अब यह गीत ठीक सुनाई देगा -पहले मदन जी सिर्फ तबला और हारमोनियम पर यह ग़ज़ल गा रहे हैं और बाद में लता जी की रिकॉर्डिंग है.. 'मेरे अश्कों का ग़म न कर ऐ दिल..अपनी बरबादियों से डर ऐ दिल' सिलसिला रोक बीती बातों का ,वरना तडपेगा रात भर ऐ दिल!
[शायर - राजा मेहंदी अली खान]
मदन जी के बारे में जितना भी लिखा जाये कम ही है.आशा है ,मदन जी के चाहने वालों को यह पोस्ट जरुर पसंद आएगी.
-अल्पना वर्मा [May,2009]
Few more Cover songs you can listen here which are composed by Madan ji
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पिछली पोस्ट में एक कविता प्रकाशित की थी-'बेरोजगार'.
उसकी बहुत ही सुन्दर व्याख्याएं भी आयीं और साथ ही आया प्रकाश गोविन्द जी का एक प्रश्न भी ---'कि आप तो खुद इस स्थिति से नहीं गुजरी होंगी फिर आप ने एक बेरोजगार की स्थिति को कविता में कैसे चित्रित कर दिया ?
[मैं एक गृहिणी हूँ शायद इस लिए यह ख्याल उनके मन में आया होगा?]हो सकता है बहुतों के मन में यह प्रश्न उठता हो कि कोई कवि बिना उस स्थिति को अनुभव किये कैसे वर्णन कर सकता है? सभी के लिए मेरा यही उत्तर है कि अगर कल्पना कर के थोडी देर को स्वयं उस पात्र में जीने की कोशिश करें तो उन भावों को लिख पाना मुश्किल नहीं है.
मुझे जब भारत के स्वतंत्रता के ५० साल पूरे होने पर निकाली जाने वाली पत्रिका के लिए एक कविता भेजने को कहा गया तब इस सामाजिक समस्या को ध्यान में रख कर मैं ने 'बेरोजगार' कविता लिखी थी.
कई बार यूँ भी यकायक कुछ ख्याल आ जाते हैं और यह जरुरी भी नहीं होता कि हम उन्हीं परिस्थितियों से गुजरे हों..और बस कुछ कवितायेँ ऐसे भी बन जाती हैं.
प्रतीक्षा
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सुरभित दीपित हो अन्धकार, बज उठें हिय के तार तार, छिड़ जाएँ फिर से मधुर राग,
तुम शब्द नए बन आओ, मैं गीत नवल बन जाऊँगी,
तपती मरुभूमि , सब उपवन सूखे, व्याकुल व्यथित, हैं कल्पनाओं के मुख रूखे,