पिछली पोस्ट में एक कविता प्रकाशित की थी-'बेरोजगार'.
उसकी बहुत ही सुन्दर व्याख्याएं भी आयीं और साथ ही आया प्रकाश गोविन्द जी का एक प्रश्न भी ---'कि आप तो खुद इस स्थिति से नहीं गुजरी होंगी फिर आप ने एक बेरोजगार की स्थिति को कविता में कैसे चित्रित कर दिया ?
[मैं एक गृहिणी हूँ शायद इस लिए यह ख्याल उनके मन में आया होगा?]हो सकता है बहुतों के मन में यह प्रश्न उठता हो कि कोई कवि बिना उस स्थिति को अनुभव किये कैसे वर्णन कर सकता है? सभी के लिए मेरा यही उत्तर है कि अगर कल्पना कर के थोडी देर को स्वयं उस पात्र में जीने की कोशिश करें तो उन भावों को लिख पाना मुश्किल नहीं है.
मुझे जब भारत के स्वतंत्रता के ५० साल पूरे होने पर निकाली जाने वाली पत्रिका के लिए एक कविता भेजने को कहा गया तब इस सामाजिक समस्या को ध्यान में रख कर मैं ने 'बेरोजगार' कविता लिखी थी.
कई बार यूँ भी यकायक कुछ ख्याल आ जाते हैं और यह जरुरी भी नहीं होता कि हम उन्हीं परिस्थितियों से गुजरे हों..और बस कुछ कवितायेँ ऐसे भी बन जाती हैं.
आज का गीत-:
उसकी बहुत ही सुन्दर व्याख्याएं भी आयीं और साथ ही आया प्रकाश गोविन्द जी का एक प्रश्न भी ---'कि आप तो खुद इस स्थिति से नहीं गुजरी होंगी फिर आप ने एक बेरोजगार की स्थिति को कविता में कैसे चित्रित कर दिया ?
[मैं एक गृहिणी हूँ शायद इस लिए यह ख्याल उनके मन में आया होगा?]हो सकता है बहुतों के मन में यह प्रश्न उठता हो कि कोई कवि बिना उस स्थिति को अनुभव किये कैसे वर्णन कर सकता है? सभी के लिए मेरा यही उत्तर है कि अगर कल्पना कर के थोडी देर को स्वयं उस पात्र में जीने की कोशिश करें तो उन भावों को लिख पाना मुश्किल नहीं है.
मुझे जब भारत के स्वतंत्रता के ५० साल पूरे होने पर निकाली जाने वाली पत्रिका के लिए एक कविता भेजने को कहा गया तब इस सामाजिक समस्या को ध्यान में रख कर मैं ने 'बेरोजगार' कविता लिखी थी.
कई बार यूँ भी यकायक कुछ ख्याल आ जाते हैं और यह जरुरी भी नहीं होता कि हम उन्हीं परिस्थितियों से गुजरे हों..और बस कुछ कवितायेँ ऐसे भी बन जाती हैं.
[मेरी आवाज़ में यहाँ से भी डाउनलोड कर के गीत चला सकते हैं. |
आपकी इस बात से शत प्रतिशत सहमत हैं कि
ReplyDeleteकई बार यूँ भी यकायक कुछ ख्याल आ जाते हैं और यह जरुरी भी नहीं होता कि हम उन्हीं परिस्थितियों से गुजरे हों..
और कविता बन जाती है..
आज इसी तरह मुझे भी धूम्रपान पर एक कविता लिखनी पड़ी। क्रिएटिविटी के हिसाब से कविता को सभी ने सराहा, जबकि मैंने जो लिखा था उस परिस्थिति से मैं कभी नहीं गुजरा :)
आपकी प्रतीक्षा कविता बहुत गहरी लगी.. और हर बार की तरह गीत मनभावन है..
आभार
बात तो सही कही आपने अल्पना की खुद उन हालात से गुजर कर ही लिखना पड़े ..आस पास के माहौल से बहुत कुछ मिल जाता है और भाव कविता बन कर कागज [आर बिखर जाते हैं ...
ReplyDeleteतुम शब्द नए बन आओ,
मैं गीत नवल बन जाऊँगी,
बहुत सुन्दर मनभावन लगी यह प्रतीक्षा ...गाना अभी सुना नहीं पर बोल तो इस गाने के निश्चित रूप से पसंद है बहुत ..शुक्रिया
तुम शब्द नए बन आओ,
ReplyDeleteमैं गीत नवल बन जाऊँगी,
सुंदरतम कविता, उम्मीद का एहसास पैदा करते भाव. बहुत शुभकामनाएं.
जंगली का गीत बहुत कर्ण प्रिय बन पडा है. बधाई.
रामराम.
bahut hi achhi rachna aur geet....kavi khud bhale na gujre un raaston se,par kavi wahi hai,jo dusre ke dard aur uthte manobhawon ko jita hai ........kalam yun hi nahin chalti
ReplyDelete'ehsaan tera'....waaahhhhhhh....what a lovely selection of song!!! loved it...and tumne bahot acha gaaya hai
ReplyDeleteKomal,
KSA
जग बना गरल ,
ReplyDeleteकुछ नहीं सरल,
आशाओं के तरु जर्ज़र
संचार चेतना कर जाओ,
मैं संबल खुद का बन जाऊँगी.
waah alpana ji ,shabd aur bhawon ka gehra sangam ban gaya hai,aisi anuhuti huyi jaise ganga ki pavitrata.
geet bhi behad khubsurat,kuch ehsaan yu bhi hum pe hote hai,dil mayur ban jaaye teri vani se.
सही बात है। रचनाकार के लिए जरूरी नहीं कि यथार्थ उसका भोगा हुआ ही हो। शब्द-संपदा व लेखन-शैली के साथ-साथ कल्पनाशीलता भी लेखन में महत्वपूर्ण योगदान करती है।
ReplyDeleteपिछली कविता नहीं पढ़ पाया था, आज पढ़ी। दोनों कविताएं अच्छी लगीं।
'प्रतीक्षा' आपका ये गीत ही सुरभित हो महक रहा है, इतने सुन्दर गीत अब भी लिखे जाते हैं ये सोच कर ही मन प्रसन्न हो उठा है. बधाई के अतिरिक्त क्या कहा जा सकता है आपकी इस गीत रचना में जाने कितने पल गवाह रहे होंगे कि उन्होंने आपको गुनगुनाते और बुनते देखा होगा. कितनी ही पंक्तियाँ कितनी ही बार नए शब्दों के साथ खिल उठी होंगी. आपको इस गीत रचना का समय भी याद रहेगा ऐसा मुझे लगता है.
ReplyDelete[मेरी ये टिप्पणी आपके लिखे गीत प्रतीक्षा के लिए है वैसे आप गाती भी सुन्दर ही हैं. ]
आपकी बात सही है........महसूस भी किया जा सकता है हर बात को....बस भावनाएं होनी चाहियें.
ReplyDeleteआपकी कविता बहूत ही सारगर्भित है.......
शब्दों के साथ भाव भी पूरी तरह से रचना को सम्पूर्ण कर रहे हैं.........हर छंद कुछ कहता हुवा लगता है........प्रेरणा देता हुवा ये छंद खास है
जग बना गरल ,
कुछ नहीं सरल,
आशाओं के तरु जर्ज़र
संचार चेतना कर जाओ,
मैं संबल खुद का बन जाऊँगी
UPAR KE KHUBSURAT PHOOL KE TARAH HI AAPNE YE KAVITA KAHI HAI AUR UTNI HI MITHAAS KE SAATH YE GEET GAAYEE HAI .. AAPNE SAHI HI KAHAA HAI KE KAVI USKI KALPAA KAR KE US KHAWB ME JEE LETA HAI JO JYADA MUSHKIL NAHI HAI .. DHERO BADHAAYEE AAPKO..
ReplyDeleteARSH
मनीषियों के लिए यह जरूरी नहीं कि प्रेक्षित दृश्य का खुद हिस्सा बने !
ReplyDeleteआप की इस कविता में तो निराला जी की आहट है ,बधाई .
ReplyDeleteस्थितियों से गुजरने की बजाय उन्हें अहसासना जरुरी है...अच्छी रचना.
ReplyDeleteसच है जी - अनुभूति के लिये भुक्त भोगी होना न नेसेसरी कण्डीशन है और न सफीशियेण्ट!
ReplyDeleteकविता पढ़कर आनन्द आ गया
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
महसूसना
ReplyDeleteप्रतीक्षा नहीं करवाता
कि भोग कर ही
जाए लिखा
जो भोगा ही जाता है
कौन सा
सारा जाता है लिखा।
तुम शब्द नए बन आओ,
ReplyDeleteमैं गीत नवल बन जाऊँगी.....amazing...
हो सकता है बहुतों के मन में यह प्रश्न उठता हो कि कोई कवि बिना उस स्थिति को अनुभव किये कैसे वर्णन कर सकता है? सभी के लिए मेरा यही उत्तर है कि अगर कल्पना कर के थोडी देर को स्वयं उस पात्र में जीने की कोशिश करें तो उन भावों को लिख पाना मुश्किल नहीं है.
ReplyDeleteaisi comments mujhe bhi mile hain, main aapse sahmat hun , agar hum character men doob kar likhen to kuchh bhi likha ja sakta hai zaroori nahin ki humne bhoga ho.
सुरभित दीपित हो अन्धकार,
बज उठें हिय के तार तार,
छिड़ जाएँ फिर से मधुर राग,
तुम शब्द नए बन आओ,
मैं गीत नवल बन जाऊँगी,
bahut manmohak panktiyan, ek isi bhav ka geet maine bhi likha tha kai varsh pahle, yathasamay post karunga. rachna ke liye badhai. geet sunta hun. hamesh ki tarah wo bhi aapki awaz men benazeer hi hoga.
yah kavita padvane ke liye shukria.............
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeletebhut sundar ahsas
ReplyDeletebeautiful poem and
ReplyDeletedifficult song but u sung it so well !
keep it up !
god bless
सुन्दर्।
ReplyDeleteU've Got Very Nice Voice N also good Music Sense...Starting me thodi Murkhiyan Miss Hui HaiN.Singing N Voice is Good
ReplyDeleteकविता तो कवि की कल्पना है...तभी तो बच्चन बगैर कभी मदिरा-सेवन किये "मधुशाला" खड़ी कर सकते हैं....
ReplyDeleteऔर गीत सुंदर बन पड़ा है...
अहसान तेरा होगा मुझ पर...जाने कितनी यादें लिये चला आया...
भव्य भाषा मधुर सम्वाद
ReplyDeleteचेतन अभिव्यक्ति का प्रसाद
रस सिक्त निर्झर काव्यधारा
सार्थक यह सृजन तुम्हारा
गीत फूटे बजे हिय के तार
कूकी कोयल दूर व्योम पार
स्वेद बिंदु सूखे नि:श्रमित हुआ तन मन
नित्य अवतरित करें शब्द गंगा ,अवाहन
स्वेद बिंदु सूखे नि:श्रमित हुआ तन मन
ReplyDeleteनित्य अवतरित करें शब्द गंगा ,अवाहन
मुस्कराहट बांटती कविता और गीत :-)
ReplyDeleteशत प्रतिशत सहमत!!
ReplyDeleteप्राइमरी का मास्टरफतेहपुर
आपकी बात सही है...
ReplyDelete"अहसान तेरा होगा मुझ पर...
इसका कराओके कब भेज रही हैं?"
सुबह सुबह आशा का संचार करती कविता पढ़कर आनंद आ गया। फिलहाल इतना ही।
ReplyDeleteअच्छी रचना.बधाई.
ReplyDeleteतुम शब्द नए बन आओ,
ReplyDeleteमैं गीत नवल बन जाऊँगी,
...sundar, atisundar rachanaa !!!
"संचार चेतना कर जाओ,
ReplyDeleteमैं संबल खुद का बन जाऊँगी."
Waah waah..
Sundar.
~Jayant
कवी अगर कल्पना ही न करे तो कवी क्या.. बहुत ही उम्दा बात कही है आपने.. गाना तो फिर एक बार नहीं सुन पाऊंगा :( पर आपने गया है तो अच्छा ही होगा..
ReplyDeleteसही कहा आपने बस गहरे से सोचने भर की देर है कवितायेँ खुद-ब-खुद निकल जाती है...
ReplyDeleteसुंदर लिखा है...
तुम शब्द नए बन आओ,
मैं गीत नवल बन जाऊँगी,
मीत
Dear Author
ReplyDeleteI am glad to percieve your urge to do evry bit to ornament this world simultaneously entering a few intense relationships.I always felt and observed that contemporary poets usually get carried over by a small emotional blow and write a very profound poem only scaning their state of mind.But I am so happy that it is not so in your style of writing.You have shown a sincere responsibility towards the world and society in which you live. Now I am releived to feel that if persons and poets of your calliber are there we can liberate this world from the prevailing value crisis.My sincere regards to your effort and best wishes for a very happy life to come forth.Regards
Dr Vishwas Saxena
आपने बिलकुल सच कहा...जहाँ न जाए रवि...वहां पहुंचे कवी" कवी अपनी कवितायेँ खुद के या आस पास के लोगों के अनुभव से या पढ़ कर रचता है...आप किसी घटना को किस हद तक आत्मसात करके लिखते हैं ये ही कविता के सफलता की निशानी होती है...
ReplyDeleteआपकी ये कविता अद्भुत भावः लिए हुए है.....बधाई...
नीरज
सुरभित ,हिय ,व्याकुल व्यथित ,जर्जर तरु ,संबल अच्छे शब्दों का चयन किया गया है
ReplyDeleteदर्द का एहसास करने के लिए उसे भोगना बिलकुल ज़रूरी नहीं है....कविता सुन्दर है और आपने मेरा मन पसंद गीत गाया है...बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteजी हाँ एक संवेदन शील इन्सान किसी भी पीडा को महसूस कर सकता है .शायद यही किसी कलाकार का गुण है ....आपकी कविता ...पोसिटिव फ्रेम ऑफ़ माइंड में है .......
ReplyDeleteओर हाँ ढेरो शुक्रिया.......इस ब्लॉग में डाल रहा हूँ.......
पहली बात तो ये कतई ज़रूरी नही है,कि कवि उन सभी हालातों से गुज़रे, जिनके बारे में उसने कविता में तसव्वूर कर रखा है. On the other hands, यही उसकी कल्पनाशक्ति की पराकाष्ठा है , और सृजन कला की परिक्षा!!
ReplyDeleteकहतें हैं कि जो ना देखे रवि, वो देखे कवि!!!
इस गाने को सुन कर इस बात की दाद दिये बगैर नही रहा जा सकता कि अब आपके गायन में निरंतरता, माधुर्य और सूकून से की गयी सुरों की अदायगी.
आपने तो कहीं कहीं सुरों की हरकतों को यूं smoothly Negotiate किया है कि मींड , मुरकीयां सभी पर नियंत्रण पूरा लग रहा है.
अब वो दिन दूर नहीं जब तीनों सप्तक के सभी सुरों पर आपकी पकड बखूबी हो जायेगी.
शुभकामनायें...
संचार चेतना कर जाओ,
ReplyDeleteमैं संबल खुद का बन जाऊँगी.
bahut sundar.....! aur geet.. uske vishay me kya kahuN .....!!!!!
आपकी कविताओं की सकारात्मक सोच कविता को और ज्यादा अपीलिंग बना देती है।
ReplyDeleteवैसे चित्र भी प्यारा है।
-----------
SBAI TSALIIM
एक बेहतरीन गाना, एक बेहतरीन आवाज में सुनकर आनंद आ गया। और कविता पढकर सुबह ही ऊर्जा आ गई थी।
ReplyDeleteजग बना गरल ,
कुछ नहीं सरल,
आशाओं के तरु जर्ज़र
संचार चेतना कर जाओ,
मैं संबल खुद का बन जाऊँगी.
बहुत ही उम्दा। और ऊपर के सवाल के जवाब में मेरे सर जी ने एक सटीक बात कहीं लिखी थी। ढूढी तो मिली नही। मिलेगी तो शेयर करुँगा।
छंद-मुक्त कविता के इस युग में जब कवि छंदोमयी ,प्रवाहमयी,कोमल सरस शब्दयुक्त कविता लिखता है, तो मन मंत्रमुग्ध हो जाता है .
ReplyDeleteजग बना गरल ,
ReplyDeleteकुछ नहीं सरल,
आशाओं के तरु जर्ज़र
संचार चेतना कर जाओ,
मैं संबल खुद का बन जाऊँगी.
अल्पना जी ,
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ लिखी हैं आपने.भावनाओं का अच्छा संयोजन .
पूनम
BEAUTIFUL POEM I LIKE IT.
ReplyDeleteसुरभित दीपित हो अन्धकार,
ReplyDeleteबज उठें हिय के तार तार,
छिड़ जाएँ फिर से मधुर राग,
तुम शब्द नए बन आओ,
मैं गीत नवल बन जाऊँगी,
अल्पना जी ,
अपनी भावनाओं और शब्दों को आसान तरीके से संयोजित करना ही रचनाकार की खासियत होती है ...और ये हुनर आपकी कविताओं में साफ झलकता है ...बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ....
हेमंत कुमार
भोगे यथार्थ को लिखना ही साहित्य नहीं है. प्रेरणा के अनेकों स्रोत हो सकते हैं,
ReplyDeleteप्रस्तुत कविता में सहकार और समर्पण दोनों की ही झलक है,
आपके गाये गीतों का नियमित श्रोता बन गया हूँ,
हम आपसे पूर्णतः सहमत हैं. व्यक्ति संवेदनशील हो तो हर स्थितियों में कुछ पल गुजार सकता है. और यही गुजारे हुए क्षणों की अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से भी की जा सकती है. पर उसकी हुनर आवश्यक है जो हरेक में नहीं होता. "प्रतीक्षा" बहुत ही सुन्दर लगी. "अहसान तेरा होगा मुझ पर" को डाउनलोड कर सुना जिससे buffering की परेशानी न हो. प्रारंभ बहुत ही अच्छा था. "तुमने मुझको हँसना सिखाया" में जाकर हम अटक गए. यह भी हमारे प्रिय गीतों में से एक है और इसमें थोडी सी भी गडबडी समझ में आ जाती है. आप दुबारा मूल गीत को सुनकर compare कर देखिये.एक दो retake के बाद ठीक हो जायेगी.
ReplyDeleteप्रतीक्षा कविता दिल को छू गई . आभार.
ReplyDeletewah! alpana ji,bahut hi sundar kavita aur geet bhi madhur.
ReplyDeleteतुम शब्द नऐ बन जाओ
ReplyDeleteमैं गीत नवल बन जाऊँगी
अच्छा लिखा है बधाई
तुम शब्द नए बन आओ,
ReplyDeleteमैं गीत नवल बन जाऊँगी,
गीत बहुत ही मनमोहक लगा आपका आभार अल्पना जी
और यह जरुरी भी नहीं होता कि हम उन्हीं परिस्थितियों से गुजरे हों..और बस कुछ कवितायेँ ऐसे भी बन जाती हैं.
ReplyDeleteaur ye sach bhi hai ....
kuchh nij-anubhav se aur
kuchh adhyayan se ....
bs aise hi hota jata hai..
kabhi-kabhaar to !!
---MUFLIS---
kavi hriday aur kavi ke hriday me fark bhi to hota hai..isliye aisi soch ki jo humpe guzri hai hum usi pe likh sakte hai ye to thik nahi..kuch log kehte hai ki agar kavi bina mahsoos kiye likhe to ye kavita ka apmaan hai..mujhe to lagta hai ki ek mukammal kavi ko agar kisi baat pe likhn ke liye use mahsoos kar lena zaroori lage to wo kavita ka apmaan aur uski kamee hai :)
ReplyDeletewww.pyasasajal.blogspot.com
कविता और गीत दोनो ही लाजवाब...Wah..
ReplyDeletevery very nice voice...
ReplyDeleteपरिस्थितियों से गुजरना और हुई अनुभूतियों का अहसास
ReplyDeleteकिरदार को जीना
दोनों ही दौर से एक लेखक, कवि को कुछ न कुछ निकलना ही होता है,
यही नहीं उसे तो वह सब भी सोचना और लिखना होता है जो दूसरे सोच भी नहीं सकते
इसीलिये तो कहा गया है कि
जहाँ न पहुचे रवि , वहां पहुचे कवि
अल्पना जी, आपके प्रत्युत्तर से मै पूर्ण सहमत हूँ.
चन्द्र मोहन गुप्त
aur to kisi kaa maaloom nahi ,,
ReplyDeletepar hame ye pataa hai ke khud us mukaam se gujre binaa ya apne kisi khas ko wahaan par dekh kar mahsoos kiye bina nahi likhaa jaataa,,
par yadee koi mudda ekdam saamaajik ho to aur baat hai,,,,
संचार चेतना कर जाओ,
ReplyDeleteमैं संबल खुद बन जाऊँगी.
" सच ही तो है कुछ ख़यालात अन्यास यूँही ही कविता बन जाया करते हैं........एक उर्जावान कविता मै खुद ही संबल बन जाउंगी ये पंक्ति अपने अन्दर छुपी एक उर्जा या शक्ति को उजागर कर रही है ...मन को भा गयी...."
regards
alpana ji
ReplyDeleteitni shaandar kavita ke liye dil se bahdai sweekar karen ... aapne bahut sundar shabdo me bhaav vyakt kiye hai
bahut hi shaandar abhivyakti
Dear Alpana ji
ReplyDeleteBahut sundar kavita likhi apne..har baar hi utkrisht hoti hai..tareef ke shabd nahin milte...aapki kavitaon mein ek kashish hoti hai jiska varnan mushkil hai...mehsoos hi kiya jaa sakta hai..Saadhuvaad
Geet hamesha ki tarah mera fav hai...mujhe bahut khushi hai ki aapne itna mushkil geet bahut achhi tarah se gaaya aur nibhaya hai..(itna high scale tha lekin aapne apne andaaz mein usay aasaan bana diya...Badhayee ki paatra hai aap....
Mera tour achha raha....aapki shubhkaamnaon ke liye dhanyavaad...
best regards
Dr Sridhar Saxena
अपनी सवेदनाओ के माध्यम से व्यक्ति किसी भी किरदार के जीवन में ठहर सकता हैं..... और कलम की अभिव्यक्ति से उसे चित्रित भी कर सकता है.............
ReplyDeleteआपकी "प्रतीक्षा" अच्छी लगी.....
प्रान्जल हिन्दी मे सरल्तम शब्दोन मे बहुत ही सुन्दर भाव . और जन्गली का गाना बहुत ही बढ्यिया बन पदा है . आप्की मेह्नत झलक्ती है . सभी ने तो कहा ही है ,लेकिन डा. सक्सेना की बात दोहराउन्गा .इत्ने हायी स्केल के गीत गाना आप्की मेहनत के सबूत हैन .
ReplyDeleteअपना गायन आनन्द और कवितावों मे मन ,सब से बान्तने का धन्यवाद !